कोहिनूर फ़िल्म कम्पनी

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कोहिनूर फ़िल्म कम्पनी (अंग्रेज़ी: Kohinoor Film Company) भारत में फ़िल्मों के निर्माण के लिए सन 1918 में स्थापित की गई थी। कई सफल फ़िल्मों ने इस कम्पनी और स्टूडियो की ख्याति बढ़ा दी थी। मोती, जमुना, खलील तथा जुबेदा जैसे मशहूर कलाकारों ने इस कम्पनी को एक ख़ास पहचान दिलाई थी।

स्थापना

सन 1918 में भारत की सबसे बड़ी और प्रभावशाली मूक फ़िल्मों के निर्माण के लिए डी. एन. संपत और माणिकलाल पटेल ने एक साथ मिलकर एक कम्पनी की स्थापना की, जिसे 'कोहिनूर फ़िल्म कम्पनी' के नाम से जाना गया। इस कम्पनी ने अपने स्टूडियो को फ़िल्म निर्माण से संबंधित लगभग सारी सुविधाओं से सुसज्जित किया था, क्योंकि इनका मुख्य उद्देश्य था, हॉलीवुड की तरह भारत में भी फ़िल्मों के निर्माण के लिए निर्माताओं को एक छत के नीचे लगभग सारी सुविधाएँ उपलब्ध कराना।[1]

ख्याति

इस कम्पनी के डी. एन. संपत उन दिनों गाँधी आंदोलन के प्रति काफ़ी आकर्षित हो चुके थे, इसलिए गाँधी जी के आदर्शों का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। सन 1919 में उन्होंने गाँधी जी के आंदोलन और विचारों पर आधारित एक वृत्तचित्र का निर्माण किया, जो इस कम्पनी की पहली फ़िल्म थी। सन 1921 में इस कम्पनी के लिए डी. एन. संपत ने एक कथा फ़िल्म का निर्माण किया, जिसका नाम था 'भक्त विदुर'। इसके बाद क्रमश: 'गुलेबकावली', 'काला नाग' कथा फ़िल्मों का निर्माण किया गया, जो उस दौर में लोकप्रिय हुईं। इन फ़िल्मों की लोकप्रियता से इस कम्पनी और स्टूडियो की ख्याति बढ़ गई। इसकी मासिक आमदनी पचास हज़ार रुपए तक पहुँच गई।

कोहिनूर फ़िल्म कम्पनी फ़िल्म निर्माण की सुविधाओं के अतिरिक्त नए कलाकारों को फ़िल्मों में काम करने का अवसर भी दिया करती थी। उस दौर के मशहूर फ़िल्म निर्माता होमी मास्टर, भावनानी, चंदूलाल, आर. एस. चौधरी, नंदलाल जसवंतलाल आदि ने कई सफल मूक फ़िल्मों का निर्माण इसी स्टूडियो में किया था। उस दौर के कुछ प्रमुख कलाकार थे- मोती, जमुना, तारा, खलील, जुबेदा आदि कई मशहूर और सफल कलाकारों को इसी कम्पनी ने पहचान दिलाई थी। उस समय की अति सुंदर अभिनेत्री सुलोचना सन 1925 में निर्मित फ़िल्म 'वीर बाला' से ही सुर्खियों में आयीं।

अंत

यह मशहूर फ़िल्म कम्पनी सन 1932 में बंद हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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