दार्जिलिंग हिमालयी रेल

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दार्जिलिंग हिमालयी रेल (अंग्रेज़ी: Darjeeling Himalayan Railway) जिसे लोग टॉय ट्रेन के नाम से पहचानते हैं, भारत की उन तीन पर्वतीय रेल सेवाओं में से एक है, जिन्हें यूनेस्को ने विश्व विरासत घोषित किया है। दार्जिलिंग हिमालय रेल की दार्जिलिंग से घूम की यात्रा, भारत के इस पर्वतीय रेल की प्रारम्भिक दिनों की हमारी कल्पना साकार करती है। इस रेल का पुराना कोयले वाला इंजन अभी भी इस रेल को खींचने में बहुत हद तक सक्षम है। दुर्गम मार्ग पर सहायता के लिए एक डीजल इंजन भी इसके पीछे लगाया जाता है। घूम स्टेशन पर स्थित संग्रहालय अपने विभिन्न रेलवे कलाकृतियों द्वारा पर्यटकों का अपने इतिहास से परिचय कराता है।

इतिहास

दार्जिलिंग हिमालयी रेल की शुरुआत 1879 और 1881 के बीच हुई थी। इसकी कुल लंबाई 78 किलोमीटर है। इसकी ऊंचाई का स्तर न्यू जलपाईगुड़ी में लगभग 328 फीट से लेकर दार्जिलिंग में 7,218 फुट तक है। यह जानकर हैरानी होगी कि इसका निर्माण अंग्रेजों ने 1828 में ईस्ट इंडिया कंपनी के मजदूरों को पहाड़ों तक पहुंचाने के लिए किया था। तब का दार्जिलिंग शहर आज के दार्जिलिंग से बिलकुल जुदा था। तब वहां सिर्फ एक मोनेस्ट्री, ऑब्जर्वेटरी हिल, 20 झोंपड़ियां और लगभग 100 लोगों की आबादी थी। पर आज दार्जिलिंग हिमालयी रेल को यूनेस्को द्वारा नीलगिरि पर्वतीय रेल और कालका शिमला रेलवे के साथ भारत की पर्वतीय रेल के रूप में विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इसे देखने प्रतिवर्ष लाखों लोग आते हैं। 2011 में तिनधरिया और पगलाझोरा में भारी भूस्खलन के कारण डीएचआर ने टॉय ट्रेन सेवा को बंद कर दिया था। लेकिन, दिसंबर 2017 से इसे दोबारा शुरू कर दिया गया है।[1]

यात्राक्रम

न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग तक की सेवा आधुनिक डीजल इंजनों द्वारा उपलब्ध करायी जाती है। जबकि पुराने ब्रिटिश निर्मित बी श्रेणी के भाप इंजन- डीएचआर 778 का संचालन दैनिक पर्यटन के लिए, कुर्सियांग-दार्जिलिंग वापसी सेवा और दार्जिलिंग से घूम स्टेशन के लिए किया जाता है। सिलीगुड़ी को दार्जिलिंग की पहाड़ियों से जोड़ने वाली टॉय ट्रेन सेवा पर्यटकों के बीच मनोरम दृश्यों को लेकर काफी लोकप्रिय है, इसलिए टिकट पहले से ही बुक जरूर करवा लेना चाहिये। दार्जिलिंग हिमालयी रेल की लंबाई सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच 78 कि.मी. (48 मील) की है। इसमें 13 स्टेशन- न्यू जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी टाउन, सिलीगुड़ी जंक्शन, सुकना, रंगटंग, तिनधरिया, गयाबाड़ी, महानदी, कुर्सियांग, टुंग, सोनादा, घूम और दार्जिलिंग पड़ते हैं। न्यू जलपाईगुड़ी के समतल रेलवे स्टेशन से शुरू हुई यह यात्रा हर मोड़ पर कुछ अनोखा लिए हुए बैठी है।

शहर के बीच से गुजरती दो डिब्बों की यह गाड़ी लहराती हुई चाय बागानों के बीच से होकर महानंदा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के भीतर जंगलों में प्रवेश करती है। इसकी रफ्तार अधिकतम 20 कि.मी. प्रति घंटा है, जिसे आप चाहें तो दौड़कर पकड़ सकते हैं। हरियाली से भरे जंगलों को पार करती हुई यह पहाड़ों में बसे छोटे-छोटे गांवों से होती हुई आगे बढ़ती है। रास्ते में कई जगह रिवर्स लाइन भी पड़ती हैं। उन हसीन वादियों में देखने के लिए बहुत कुछ है, जैसे पहाड़ी झरने, वनस्पति, सुंदर, सजीले पक्षी और मुस्कुराते पहाड़ी लोग। यहां के लोग प्रकृति के साथ जीने की कला जानते हैं। इनके घर छोटे मगर सुंदर होते हैं। आस-पास इतनी हरियाली और पेड़-पौधों के बावजूद इनके घर के आसपास बहुत ही सुंदर फूलदार पौधे लगे होते हैं।

कई लूप और ट्रैक बदलती हुई यह ट्रेन पहाड़ी गांव और कस्बों से मिलती-मिलाती किसी पहाड़ी बुजुर्ग की तरह 6-7 घंटों में धीरे-धीरे सुस्ताती हुई दार्जिलिंग पहुंचती है। इस रास्ते पर पड़ने वाले स्टेशन अंग्रेजी जमाने की याद दिलाते हैं। इस ट्रैक पर पड़ने वाला कुर्सियांग बड़ा शहर है। यहीं दार्जिलिंग से कुछ पहले घूम स्टेशन पड़ता है। भारत में सबसे ऊंचाई लगभग 7407 फीट पर स्थित घूम रेलवे स्टेशन यहीं स्थित है। यहां से आगे चलकर बतासिया लूप पड़ता है। यहां एक शहीद स्मारक है, जहां से पूरा दार्जिलिंग दिखता है। शाम होते-होते यह टॉय ट्रेन दार्जिलिंग पहुंचा देती है और यात्रा यहीं समाप्त हो जाती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दार्जिलिंग हिमालयी रेल का सुहाना सफर (हिंदी) prabhatkhabar.com। अभिगमन तिथि: 25 जनवरी, 2020।

बाहरी कड़ियाँ

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