दूधाधारी मठ, रायपुर

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दूधाधारी मठ रायपुर, छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक स्थलों में से एक है। यह रायपुर का ख़ासा आकर्षित करने वाला पर्यटन स्थल है। यह मठ अपनी शानदार स्थापत्य कला के लिये भी जाना जाता है। वक्त के साथ दूधाधारी मठ ने अपने विस्तार के साथ साथ समाज विस्तार का काम भी किया। रायपुर का रावणभाठा दूधाधारी मठ की ही देन है, जहां दशहरा उत्सव मनाने पूरा शहर आज भी इक्क्ठा होता है। वहीं वीआईपी रोड स्थित राम मंदिर भी मठ की ही ज़मीन पर बना है और रावणभाटा स्थित नलघर भी जिस ज़मीन पर बना है, वह मठ की ही ज़मीन है। रायपुर ही नही बल्कि प्रदेश के अन्य स्थानों में भी मठ द्वारा शिक्षण संस्थानो का संचालन किया जाता है।

स्थापना

महाराजबन्ध तालाब के पास हरे-भरे पेड़ो के बीच बलभद्रदास अपनी कुटिया में रहते थे। बलभद्रदास का अधिकतर समय उनके इष्ट हनुमान की भक्ति में निकलता था। वे गाय के दूध से हनुमान का अभिषेक करते और उसी दूध का सेवन, अन्य कोई आहार नहीं। मठ की स्थापना बलभद्र दास ने की थी। आस-पास के लोगों ने देखा की बलभद्र सिर्फ दूध का सेवन ही करते है, तब से उन्हें 'दूधाधारी' के नाम से जाना जाने लगा और यहीं से मठ का नामकरण हो गया 'दूधाधारी मठ'। मठ की सीढ़िया चढ़ते ही सामने मोटी लौहे की सलाखों से बने मंदिर का मुख्य द्वार है। जिसके ऊपर लगे हुए सफेद मार्बल में लिखा है “श्री दूधाधारी मठ, स्थापित – संवत 1610” यानि सन 1554। मठ भले ही ब्रिटिश काल के पहले स्थापित हुआ था, लेकिन आज दिखाई देने वाले मठ का निर्माण ब्रिटिश काल मे हुआ था। जिससे मंदिर को बाहर से देखते ही मन में ब्रिटिश काल की झलक सामने आ जाती है।[1]

महंत वैष्णवदास

यूं तो मठ में बलभद्रदास के बाद कई महंत हुए, जिन्होंने मठाधीश का पद संभाला। उन्हीं में से एक थे महंत वैष्णवदास। ऐसे महंत जो स्वतंत्रता की लड़ाई में जेल भी गए। उस समय ऐसा कोई भी निर्णय लेने से पहले मठ संगठन की सहमति लेना ज़रूरी माना जाता था। लेकिन जब महंत वैष्णवदास ने जेल जाने की सूचना संगठन को दी, तब उन्होंने कहा- 'स्वतंत्रता के लिये मैं जेल जाऊंगा, यह मैं आपसे अनुमति के लिये नहीं, केवल सूचना के बतौर कह रहा हूं'। महंत वैष्णवदास ही थे, जिन्होंने महिला उच्च शिक्षा के लिये एक बड़ा कदम उठाया था। इन्होंने ही रायपुर में डी.बी. महिला महाविद्यालय और संस्कृत महाविद्यालय की शुरुआत की।

स्थापत्य

मुख्य द्वार पार करने पर ऊपर देखें तो लकड़ी का स्तम्भ छत को संभाल रहा है। जिसके बाद मुख्य द्वार से भी बड़ा दरवाज़ा बना है, जो लकड़ी का है। उसे छूने मात्र से आपको उसके भार का अंदाज़ा हो जाएगा। लकड़ी का यह दरवाज़ा पार करते ही एक सीध में छोटे-छोटे मंदिर है। जो कि वहां बने हर मंहत के चिन्ह है, जिन्होंने मठ में अपनी सेवा दी है। इन छोटे मंदिरों से ज़रूर मुख्य मंदिर का मुख छुप जाता है। पर जो है यही है, भगवान के दर्शन इनको पार करके ही करना होता है। मंदिर प्रांगण में मुख्य तीन मंदिर है-

  1. सबसे बड़ा राम जानकी मंदिर
  2. उसके बाद श्री बालाजी मंदिर
  3. अंत मे सबसे छोटा पर सबसे मुख्य हनुमान मंदिर

हनुमान मंदिर सबसे पहले बना था, इसलिए सबसे छोटा है। यही हनुमान दूधाधारी मठ के इष्टदेव माने जाते हैं। राम जानकी मन्दिर का निर्माण पुरानी बस्ती के दाऊ परिवार द्वारा किया गया था, जिसकी मूर्ति निर्माण हेतु पत्थर राजस्थान से मंगवाए गए थे। वही श्री बालाजी मंदिर का निर्माण नागपुर के भोंसले वंश द्वारा बताया जाता है। चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा हुआ मठ एक किले की तरह है। उन दीवारों के ऊपर जाने की सीढ़िया भी है, जिसे देख कर ऐसा लगता है मानो पुराने समय मे दीवारों के ऊपर से निगरानी की जाती हो। मठ की महत्ता को और बढ़ाते हुए, मठ प्रांगण में पुराना कुआं भी मौजूद है। जिसका उपयोग आज भी किया जाता है।[1]

छात्रावास

इन सब के अलावा मठ में एक छात्रावास भी है, जहां विद्यार्थियों को रहने और खाने की सुविधा निःशुल्क दी जाती है। मठ में सभी को मिलाकर 100 के करीब लोग रहते है। मठ की एक और खासियत यह है की यहां दो रसोईघर है, एक 'सीता' तो एक 'अनसुइया'। सीता में सुबह का खाना बनता है तो वहीं अनसुइया में शाम का। यहां आज भी पुराने बड़े-बड़े चूल्हों में खाना पकाया जाता है। अब इतने लोगों को खाना रोज़ बनता है, तो जरूर खाने के समान भी बहुत होंगे और उनको रखने के लिए अनाजघर भी चाहिए होगा। जिसके लिये मठ में अनाज भंडारण के लिये बहुत बड़ी जगह सुरक्षित है। जहां आज भी अनाज कूटने से लेकर पीसने तक की सारी पुरानी तकनीकें मौजूद हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 ऐसा मठ जिसने अंग्रेज़ो की हुकूमत के पहले का वक्त भी देखा (हिंदी) kosalkatha.com। अभिगमन तिथि: 03 अप्रॅल, 2021।

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