दीवान-ए-विजारत

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 15:44, 9 June 2021 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''दीवान-ए-विजारत''' सल्तनत काल में सुल्तान केन्द्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

दीवान-ए-विजारत

सल्तनत काल में सुल्तान केन्द्रीय शासन का प्रधान होता था। प्रशासन की सम्पूर्ण शक्ति उसके हाथों में केन्द्रित थी। वह राज्य का संवैधानिक एवं व्यवहारिक प्रमुख होता था। सुल्तान की सहायता के लिए केन्द्रीय स्तर पर एक मंत्रिपरिषद एवं उच्च अधिकारी होते थे। मंत्रिपरिषद में चार मन्त्री महत्वपूर्ण होते थे, जिनमें से एक 'दीवान-ए-विजारत' था।

  • दीवान-ए-विजारत का अध्यक्ष वजीर अथवा प्रधानमंत्री होता था।
  • तुग़लक़ काल को 'मुस्लिम भारतीय वजीरत का स्वर्णकाल' कहा जाता है। जबकि बलबन का काल निम्न काल था।
  • वजीर मंत्रिपरिषद का प्रमुख होता था। उसके पास अन्य मन्त्रियों की अपेक्षा अधिक अधिकार होते थे। वह अन्य मंत्रियों के कार्यों पर नजर भी रखता था।
  • सुल्तान के पश्चात केन्द्रीय प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी वजीर को ही माना जाता था। इसका मुख्य कार्य लगान बन्दोबस्त के लिए नियम बनाना, करों की दर निश्चित करना, राज्य के व्यय पर नियंत्रण रखना तथा सैनिक व्यय की देखभाल करना था।
  • दिल्ली सल्तनत में वजीरों की दो श्रेणियाँ थीं-

वजीर-ए-तौफीद - इसे असीमित अधिकार प्राप्त थे। यह सुल्तान के आदेश के बिना ही महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय लेने में सक्षम होता था।

वजीर-ए-तनफीद - इसके अधिकार सीमित थे। यह राजकीय नियमों को लागू कराता था तथा कर्मचारियों व सर्वसाधारण पर नियंत्रण रखता था। वजीर की सहायता के लिए निम्नलिखित अधिकारी होते थे-

  1. नायब वज़ीर
  2. मुशरिफ़-ए-मुमालिक
  3. मुस्तौफ़ी-ए-मुमालिक
  4. खजीन
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः