अनुज नय्यर

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कैप्टन अनुज नय्यर (अंग्रेज़ी: Captain Anuj Nayyar, जन्म- 28 अगस्त, 1975; मृत्यु- 7 जुलाई, 1999) भारतीय सैन्य अधिकारी थे। वह 17 जाट रेजीमेन्ट के भारतीय सेना के अधिकारी थे, जिन्हें कारगिल युद्ध में अभियानों के दौरान युद्ध में अनुकरणीय वीरता के लिए मरणोपरांत 1999 में भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया था।

परिचय

कैप्टन अनुज नय्यर का जन्म 28 अगस्त, 1975 को दिल्ली में हुआ। उनके पिता एस. के. नय्यर प्रोफेसर थे जबकि माता मीना नय्यर दिल्ली विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में काम करती थीं। अनुज नय्यर बचपन से ही बहादुर थे। डर नाम की चीज तो उनमें थी ही नहीं। उनकी माता के अनुसार, वह स्कूल में भी लीड करता था। पढ़ाई के साथ खेल में भी वह आगे रहता था। उसे शुरू से सेना और गन को लेकर दिलचस्पी रही थी। उसके दादा भी सेना में थे, उनसे वह काफी जुड़ा हुआ था। एक हादसे को याद करते हुए वे बताती हैं कि एक बार अनुज को चोट लग गई थी। घाव गंभीर था, उसके शरीर में 22 टांके लगे थे। तब अनुज ने एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लिए बिना ही ऑपरेशन करा लिया था। उसकी बहादुरी देखकर डॉक्टर भी अचंभित रह गए थे।[1]

सेना में आगमन

12वीं के बाद पहले ही प्रयास में अनुज नय्यर एनडीए के लिये चुन लिये थे। तब होटल मैनेजमेंट और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी में भी उनकी अच्छी रैंक आई थी, लेकिन उन्होंने भारतीय सेना को चुना। साल 1993 में उनकी ट्रेनिंग शुरू हुई और 1997 में वे कमीशंड हुए। दो साल बाद यानी 1999 में करगिल की जंग छिड़ गई और अनुज को जंग के लिए बुलावा आ गया।

कारगिल युद्ध में योगदान

इंडियन मिलिट्री एकेडमी से ग्रेजुएट होने के बाद 17 बटालियन जाट रेजिमेंट में जुनियर ऑफिसर के पद पर कैप्टन अनुज नय्यर को कारगिल, जम्मू और कश्मीर में पोस्टिंग मिली। फिर समय आया कारगिल युद्ध का, जिसकी शुरूआत हुई 1999 में। कैप्टन अनुज नय्यर की पोस्टिंग उस दौरान कारगिल में ही थी। 1999 में पाकिस्तानियों की लगातार भारत के कारगिल में गतिविधियां बढ़ने लगी थीं। स्थिति के बिगड़ने की जानकारी मिलते ही भारत सरकार ने 'ऑपरेशन विजय' चलाया ताकि जल्द से जल्द पाकिस्तानियों की भारत की सीमा से खदेड़ा जा सकें।[2]

कैप्टन अनुज नय्यर जो उस समय 17 जाट रेजिमेंट के जुनियर कमांडर थे, सैनिकों के साथ कारगिल युद्ध क्षेत्र की ओर प्रास्थान के लिए आगे बढ़े। उन्हें प्वाइंट 4875 पर भारत का वापस कब्जा हासिल करना था। प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना उसकी स्ट्रैटेजिक लोकेशन की वजह से सबसे महत्वपूर्ण था। जिस पर कब्जा करने के लिए विक्रम बत्रा को भी भेजा गया था। टाइगर हिल पर वापस भारत का कब्जा पूरी तरह से कायम करने के लिए प्वाइंट 4875 पर भारत का कब्जा हासिल करना जरूरी था। प्वाइंट 4875 पर चार्ली कंपनी पर कब्जे का जिम्मा था। इस अभियान पर चार्ली कंपनी के कमांडर के घायल होने के कारण इसकी कमांड विक्रम बत्रा और कैप्टन अनुज नय्यर के हाथ आई। इन्होंने टीम को दो हिस्सों में विभाजित किया और हमले की योजना की।

प्वाइंट 4875 पाकिस्तानी घुसपैठियों के कई बंकर थे जिन्हें नष्ट करना अति आवश्यक था। कैप्टन अनुज नय्यर की टीम अभियान के लिए आगे बढ़ने लगी लेकिन लगातार पाकिस्तानी घुसपैठियों की तरफ से भारी गोलाबारी हो रही थी। जिसके लिए अनुय नय्यर की टीम ने काउंटर अटैक किया। उनके इस काउंटर अटैक ने पाकिस्तानियों को पीछे हटने पर मजबूर किया। अपने इस अटैक के दौरान अनुज नय्यर ने 9 पाकिस्तानियों को मार गिराया और 3 मशीनगन बंकरों को भी नष्ट किया। उनकी टीम ने 4 में से 3 बंकरो को सफलतापूर्वक तबाह कर दिया, लेकिन 4 बंकर को नष्ट करने के दौरान दुश्मनों की तरफ से दागे गए ग्रेनेड से कैप्टन अनुज नय्यर को टक्कर लगी। गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अपनी बची हुई टीम के साथ हमला जारी रखा। उनकी टीम का कोई सदस्य इस अभियान में नहीं बच पाया और कैप्टन अनुज नय्यर भी वीरगती को प्राप्त हुए। लेकिन दो दिन बाद ही प्वाइंट 4875 पर चार्ली कंपनी की विक्रम बत्रा के नेतृत्व वाली टीम ने भारत का वापस कब्जा हासिल किया।

महावीर चक्र

कैप्टन अनुज नय्यर के प्वाइंट 4875 पर भारत के वापस कब्जे के अभूतपूर्व योगदान को भारत कभी नहीं भूला पाएगा। 24 साल की उम्र में कैप्टन अनुज नय्यर ने दुश्मनों के सामने अत्यधिक साहस और धैर्य का परिचय दिया, जिसे भारत नमन करता है। उनके इस योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया।

तय थी विवाह की तिथि

कैप्टन अनुज नय्यर की माता के अनुसार, अनुज अपने साथ पढ़ी एक लड़की को पसंद करता था। दोनों दस साल से एक-दूसरे को जानते थे। दोनों की सगाई हो गई थी और शादी की तारीख भी तय कर दी गई थी। 10 सितंबर 1999 को अनुज की शादी होनी थी, लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। युद्ध के दौरान अनुज ने अपनी सगाई की अंगूठी उतारकर अपने ऑफिसर को यह कहते हुए दे दी थी कि अगर वे जंग से जिंदा लौटते हैं तो वे अंगूठी वापस ले लेंगे, लेकिन अगर शहीद होते हैं तो उनकी मंगेतर तक यह अंगूठी पहुंचा दी जाए। वे नहीं चाहते कि उनके प्यार की निशानी दुश्मन के हाथ लगे। कैप्टन अनुज नय्यर की शहादत के बाद उनके शव के साथ वह अंगूठी भी उनके घर पहुंची थी।[1]

अंतिम पत्र

कैप्टन अनुज नय्यर ने अपना अंतिम पत्र अपने पिता को लिखा था-

डियर डैड

आपका पिछला खत मिला, आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। अभी तक कोई ऐसा माई का लाल नहीं मिला जो मुझसे जीत पाए। वो दिन कभी नहीं आएगा जब मुझे हार का स्वाद चखना पड़ेगा। डर नाम का कोई वर्ड उस डिक्शनरी में है ही नहीं जो आपने मुझे दी है। आप 200% सही थे, जमीनी हवा कुछ नहीं छुपाती। मैं अब हथियार चलाने में माहिर हो गया हूँ। यहां तक कि मैं अब बिना हथियार के भी किसी का मुकाबला कर सकता हूं। आप चिंता मत कीजिए। आपके बेटे को कभी कोई हालात हरा नहीं सकते। मुझे सिर्फ आपकी चिंता लगी रहती है। आप लोग अपना ध्यान रखें। आपकी अगली एनिवर्सरी हम साथ मनाएंगे।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 करगिल के महावीर चक्र विजेता की कहानी (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2021।
  2. कारगिल युद्ध में महा वीर चक्र से सम्मानित कैप्टन अनुज नायर की जीवन गाथा (हिंदी) hindi.careerindia.com। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2021।

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