अग्न

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अग्न (विशेषण) [अङ्ग+रन् नलोपश्च]

1. प्रथम, आगे का भाग, ऊपर का भाग, सर्वोपरि, मुख्य, सर्वोत्तम, प्रमुख; 'महिषी मुख्य रानी; 2. अत्यधिक;-ग्रं 1. (क) सर्वोपरि स्थल या उच्चतम बिन्दु (विप.- मूलम्, मध्यम्); (आल) तीक्ष्णता, प्रखरता, नासिका-नाक का अग्रभाग, समस्ता एवं विद्या जिह्वाग्रेऽभवन्- का. 346-जिह्वा के अग्र भाग पर थी, (ख) चोटी, शिखर, सतह-कैलास°, पर्वत° आदि। 2. सामने, 3. किसी भी प्रकार में सर्वोत्तम, 4. लक्ष्य, उद्देश्य, 5. आरम्भ, 6. आधिक्य, अतिरेक, समस्त पदों में जब यह प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त होता है तो उसका अर्थ होता है-'पूर्वभाग', 'सामने', 'नोंक' आदि; उदा. °पाद-'चरण'। सम.-अनी (णी) कः (कम) सैन्यमुख- मनुस्मृति 7/193-आसनं प्रमुख आसन, मान-आसन-मुद्रा: 1/12,-करः=अग्रहस्तः-गः नेता, मार्गदर्शक, सबसे आगे चलने वाला।-गण्य (विशेषण) श्रेष्ठ, प्रथम श्रेणी में रखे जाने योग्य; - पहले पैदा या उत्पन्न हुआ;-जः अग्रजन्मा, बड़ा भाई-अस्त्येव मन्युर्भरताग्रजे मे-रघुवंश 14/73 2. ब्राह्मण-जा बड़ी बहन, इसी प्रकार °जात, °जातक, °जाति।-जन्मन् (पुल्लिंग) 1. पहले जन्मा हुआ, बड़ा भाई 2. ब्राह्मण-दश. 13,-जिह्वा जिह्वा की नोक;-दानिन् (विशेषण) पतित ब्राह्मण जो मृतक श्राद्ध में दान लेता है;-दूतः हरकारा, आगे-आगे जाने वाला दूत-कृष्णाक्रोधाग्रदूतः- वेणी. 1/22, रघुवंश 6/12-निरूपण (न.) भविष्य कथन। -नीः (णीः) प्रमुख नेता-अप्यग्रणीर्मन्त्रकृतामृषीणाम्- रघुवंश 5/4; -पादः पैर का अगला हिस्सा, पैर का अगला पंजा,-पर्णी (स्त्रीलिंग) सतावर, केवांच।-पाणी (पुल्लिंग) हाथ का अगला भाग।-पाद (पुल्लिंग) पैर का अगला भाग; अंगुली।-पूजा आदर या सम्मान का सर्वोच्च या प्रथम चिह्न, -पेयं पीने में प्राथमिकता-भागः 1. प्रथम या सर्वोत्तम भाग 2. शेष, शेष भाग 3. नोक, सिरा;-भागिन् (विशेषण) (शेषभाग) को पहले प्राप्त करने का अधिकार प्रकट करने वाला;-भूः=°ज,-भूमिः (स्त्रीलिंग) महत्वाकांक्षा का लक्ष्य या उद्दिष्ट पदार्थ;-महिषी (स्त्रीलिंग) पटरानी।

-मांसं हृदय का मांस, हृदय-सं चानीतम्-वेणी. 3;-यायिन् (विशेषण) नेतृत्व करना, सेना के आगे चलना, पुत्रस्य ते रणशिरस्य- यमग्रयायी- श. 7/26,-योचिन् (पुल्लिंग) मुख्य वीर, मुख्य योद्धा,-शाला (स्त्रीलिंग) ओसारा;-सङ्घानी यम द्वारा मनुष्यों के कार्यों का लेखा-जोखा रखने की बही-संध्या (स्त्रीलिंग) प्रभात काल; कर्कन्धूनामुपरि तुहिनं रंजयत्यग्रसंध्या-श. 4 (पाठ.),-सर=यायिन्-नेतृत्व करने वाला-रघुवंश 9/23; 5/71;-हस्तः (पुल्लिंग) (-°करः,- °पाणिः) हाथ या भुजा का अगला भाग, हाथी की सूंड का सिरा; कभी-कभी उंगली या उंगलियों के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है; दाहिना हाथ- अथाग्रहस्ते मुकुलीकृता-गुलौ कुमा. 5/63-हायनः (णः)-वर्ष का आरम्भ, मार्गशीर्ष (मंगसिर) महीने का नाम;-हारः राजाओं द्वारा ब्राह्मणों को जीवन निर्वाहार्थ दान में दी गई भूमि-कस्मिंश्चिद- ग्रहारे-दश. 8/91[1]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 09 |

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