Difference between revisions of "बशोली चित्रकला"

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*पुस्तक चित्रण की [[चित्रकला पहाड़ी शैली|पहाड़ी शैली]], जो भारतीय पहाड़ी राज्यों में 17वीं शताब्दी के अंत व 18वीं शताब्दी में फली-फूली बशोली [[चित्रकला]] अपने [[रंग|रंगों]] और रेखाओं की सजीवता के लिए जानी जाती है। यद्यपि इस शैली का नाम एक छोटे से स्वतंत्र राज्य [[बशोली]] के नाम पर पड़ा, जो इस शैली का मुख्य केंद्र है, इसके नमूने क्षेत्र में पाए जाते हैं।
 
*पुस्तक चित्रण की [[चित्रकला पहाड़ी शैली|पहाड़ी शैली]], जो भारतीय पहाड़ी राज्यों में 17वीं शताब्दी के अंत व 18वीं शताब्दी में फली-फूली बशोली [[चित्रकला]] अपने [[रंग|रंगों]] और रेखाओं की सजीवता के लिए जानी जाती है। यद्यपि इस शैली का नाम एक छोटे से स्वतंत्र राज्य [[बशोली]] के नाम पर पड़ा, जो इस शैली का मुख्य केंद्र है, इसके नमूने क्षेत्र में पाए जाते हैं।
 
*बशोली शैली का उद्गम अस्पष्ट है; अब तक खोजे गए प्राचीनतम नमूनों में से एक, रसमंजरी (1690) के चित्रण की श्रृंखला पहले से ही पूर्ण विकसित शैली को दर्शाता है। अधिकांश चित्र आयताकार खांचे में बने हैं, जिसमें चित्र बनाने का स्थान बहुधा वास्तुशास्त्रीय विवरण वाले विशिष्ट [[लाल रंग]] के हाशियों से घिरा हुआ है।  
 
*बशोली शैली का उद्गम अस्पष्ट है; अब तक खोजे गए प्राचीनतम नमूनों में से एक, रसमंजरी (1690) के चित्रण की श्रृंखला पहले से ही पूर्ण विकसित शैली को दर्शाता है। अधिकांश चित्र आयताकार खांचे में बने हैं, जिसमें चित्र बनाने का स्थान बहुधा वास्तुशास्त्रीय विवरण वाले विशिष्ट [[लाल रंग]] के हाशियों से घिरा हुआ है।  
*पार्श्वचित्र में बड़ी, भावप्रवण [[आंख|आंखों]] के साथ दर्शाए गए चेहरे विशेष शैली में हैं; रंगों में गेरुआ, पीला, भूरा और हरा प्रमुख है। इसकी एक विशिष्ट तकनीक [[आभूषण|आभूषणों]] को सफ़ेद रंग की मोटी, उठी हुई बूंदों के माध्यम से दर्शाया है, जिसमें हरे भृंगो के पंखों का प्रयोग [[पन्ना]] [[रत्न]] को दर्शाने के लिए किया गया है।  
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*पार्श्वचित्र में बड़ी, भावप्रवण [[आंख|आंखों]] के साथ दर्शाए गए चेहरे विशेष शैली में हैं; [[रंग|रंगों]] में गेरुआ, [[पीला रंग|पीला]], [[भूरा रंग|भूरा]] और [[हरा रंग|हरा]] प्रमुख है। इसकी एक विशिष्ट तकनीक [[आभूषण|आभूषणों]] को [[सफ़ेद रंग]] की मोटी, उठी हुई बूंदों के माध्यम से दर्शाया है, जिसमें हरे भृंगो के पंखों का प्रयोग [[पन्ना]] [[रत्न]] को दर्शाने के लिए किया गया है।  
  
 
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Latest revision as of 10:19, 9 February 2021

  • pustak chitran ki paha di shaili, jo bharatiy paha di rajyoan mean 17vian shatabdi ke aant v 18vian shatabdi mean phali-phooli basholi chitrakala apane rangoan aur rekhaoan ki sajivata ke lie jani jati hai. yadyapi is shaili ka nam ek chhote se svatantr rajy basholi ke nam par p da, jo is shaili ka mukhy keandr hai, isake namoone kshetr mean pae jate haian.
  • basholi shaili ka udgam aspasht hai; ab tak khoje ge prachinatam namoonoan mean se ek, rasamanjari (1690) ke chitran ki shrriankhala pahale se hi poorn vikasit shaili ko darshata hai. adhikaansh chitr ayatakar khaanche mean bane haian, jisamean chitr banane ka sthan bahudha vastushastriy vivaran vale vishisht lal rang ke hashiyoan se ghira hua hai.
  • parshvachitr mean b di, bhavapravan aankhoan ke sath darshae ge chehare vishesh shaili mean haian; rangoan mean gerua, pila, bhoora aur hara pramukh hai. isaki ek vishisht takanik abhooshanoan ko safed rang ki moti, uthi huee booandoan ke madhyam se darshaya hai, jisamean hare bhriango ke pankhoan ka prayog panna ratn ko darshane ke lie kiya gaya hai.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
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tika tippani aur sandarbh

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