Difference between revisions of "भीटा इलाहाबाद"

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प्रयाग से लगभग बारह मील दक्षिण-पश्चिम की ओर [[यमुना नदी|यमुना]] के तट पर कई विस्तृत खण्डहर हैं, जो एक प्राचीन समृद्धशाली नगर के अवशेष हैं। इन खण्डहरों से प्राप्त अभिलेखों में इस स्थान का प्राचीन नाम सहजाति है। भीटा, सहजाति [[इलाहाबाद]] से दस मील पर स्थित है।  
 
प्रयाग से लगभग बारह मील दक्षिण-पश्चिम की ओर [[यमुना नदी|यमुना]] के तट पर कई विस्तृत खण्डहर हैं, जो एक प्राचीन समृद्धशाली नगर के अवशेष हैं। इन खण्डहरों से प्राप्त अभिलेखों में इस स्थान का प्राचीन नाम सहजाति है। भीटा, सहजाति [[इलाहाबाद]] से दस मील पर स्थित है।  
==उतखनन==
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==उत्खनन==
1909-1910 में भीटा में भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से मार्शल ने उतखनन किया था। विभाग के प्रतिवेदन में कहा गया है कि खुदाई में एक सुन्दर, मिट्टी का बना हुआ वर्तुल पट्ट प्राप्त हुआ था, जिस पर सम्भवतः [[शकुन्तला]]-[[दुष्यन्त]] की आख्यायिका का एक दृश्य अंकित है। इसमें दुष्यन्त और उनका सारथी कण्व के आश्रम में प्रवेश करते हुए प्रदर्शित हैं और आश्रमवासी उनसे आश्रम के हिरण को न मारने के लिए प्रार्थना कर रहा है।  
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1909-1910 में भीटा में भारतीय [[पुरातत्व विभाग]] की ओर से मार्शल ने [[उत्खनन]] किया था। विभाग के प्रतिवेदन में कहा गया है कि खुदाई में एक सुन्दर, मिट्टी का बना हुआ वर्तुल पट्ट प्राप्त हुआ था, जिस पर सम्भवतः [[शकुन्तला]]-[[दुष्यन्त]] की आख्यायिका का एक दृश्य अंकित है। इसमें दुष्यन्त और उनका सारथी कण्व के आश्रम में प्रवेश करते हुए प्रदर्शित हैं और आश्रमवासी उनसे आश्रम के हिरण को न मारने के लिए प्रार्थना कर रहा है। पास ही एक कुटी भी है, जिसके सामने एक कन्या आश्रम के वृक्षों को सींच रही है। यह मृत्खंड शुगकालीन है<ref>117-72 ई. पू</ref> और इस पर अंकित चित्र यदि वास्तव में दुष्यन्त व शकुन्तला की कथा <ref>जिस प्रकार वह कालिदास के नाटक में वर्णित है</ref> से सम्बन्धित हैं, तो महाकवि [[कालिदास]] का समय इस तथ्य के आधार पर, गुप्तकाल <ref>5वीं शती ई</ref> के बजाए पहली या दूसरी शती से भी काफ़ी पूर्व मानना होगा। किन्तु पुरातत्व विभाग के प्रतिवेदन में इस दृश्य की समानता कालिदास द्वारा वर्णित दृश्य से आवश्यक नहीं मानी गई है।  
  
पास ही एक कुटी भी है, जिसके सामने एक कन्या आश्रम के वृक्षों को सींच रही है। यह मृत्खंड शुगकालीन है<ref>117-72 ई. पू</ref> और इस पर अंकित चित्र यदि वास्तव में दुष्यन्त व शकुन्तला की कथा <ref>जिस प्रकार वह कालिदास के नाटक में वर्णित है</ref> से सम्बन्धित हैं, तो महाकवि [[कालिदास]] का समय इस तथ्य के आधार पर, गुप्तकाल <ref>5वीं शती ई</ref> के बजाए पहली या दूसरी शती से भी काफ़ी पूर्व मानना होगा। किन्तु पुरातत्व विभाग के प्रतिवेदन में इस दृश्य की समानता कालिदास द्वारा वर्णित दृश्य से आवश्यक नहीं मानी गई है।
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भीटा से, खुदाई में [[मौर्यकाल|मौर्यकालीन]] विशाल ईंटें, परवर्तिकाल की मूर्तियाँ, मिट्टी की मुद्राएँ तथा अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिनसे सिद्ध होता है कि [[मौर्यकाल]] से लेकर [[गुप्तकाल]] तक यह नगर काफ़ी समृद्धशाली था। यहाँ से प्राप्त सामग्री [[लखनऊ]] के [[संग्रहालय लखनऊ|संग्रहालय]] में है। भीटा के समीप ही मानकुँवर ग्राम से एक सुन्दर [[बुद्ध]] प्रतिमा मिली थी, जिस पर महाराजाधिराज [[कुमारगुप्त]] के समय का एक अभिलेख उत्कीर्ण है. <ref>129 गुप्त संवत्=449</ref>  
 
 
भीटा से, खुदाई में मौर्यकालीन विशाल ईंटें, परवर्तिकाल की मूर्तियाँ, मिट्टी की मुद्राएँ तथा अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिनसे सिद्ध होता है कि मौर्यकाल से लेकर गुप्तकाल तक यह नगर काफ़ी समृद्धशाली था। यहाँ से प्राप्त सामग्री लखनऊ के संग्रहालय में है। भीटा के समीप ही मानकुँवर ग्राम से एक सुन्दर बुद्ध प्रतिमा मिली थी, जिस पर महाराजाधिराज कुमारगुप्त के समय का एक अभिलेख उत्कीर्ण है. <ref>129 गुप्त संवत्=449</ref>  
 
 
==व्यापारिक नगर==
 
==व्यापारिक नगर==
सहजाति या भीटा, गुप्त और शुंग काल के पूर्व एक व्यस्त व्यापारिक नगर के रूप में भी प्रख्यात था क्योंकि एक मिट्टी की मुद्रा पर '''सहजातिये निगमस''' यह पाली शब्द तीसरी शती ई. पू. की ब्राह्मीलिपि में अंकित पाए गए हैं। इससे प्रमाणित होता है कि इतने प्राचीन काल में भी यह स्थान व्यापारियों के निगम या व्यापारिक संगठन का केन्द्र था। वास्तव में यह नगर मौर्यकाल में भी काफ़ी समुन्नत रहा होगा, जैसा कि उस समय के अवशेषों से सूचित होता है।
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सहजाति या भीटा, [[गुप्त]] और [[शुंग काल]] के पूर्व एक व्यस्त व्यापारिक नगर के रूप में भी प्रख्यात था क्योंकि एक मिट्टी की मुद्रा पर '''सहजातिये निगमस''' यह [[पाली]] शब्द तीसरी शती ई. पू. की [[ब्राह्मीलिपि]] में अंकित पाए गए हैं। इससे प्रमाणित होता है कि इतने प्राचीन काल में भी यह स्थान व्यापारियों के निगम या व्यापारिक संगठन का केन्द्र था। वास्तव में यह नगर मौर्यकाल में भी काफ़ी समुन्नत रहा होगा, जैसा कि उस समय के अवशेषों से सूचित होता है।
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
पुस्तक ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 668-669 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
 
पुस्तक ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 668-669 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
 
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[[Category:उत्तर_प्रदेश]]
 
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Revision as of 10:04, 21 July 2010

40px panna banane ki prakriya mean hai. ap isako taiyar karane mean sahayata kar sakate haian.

prayag se lagabhag barah mil dakshin-pashchim ki or yamuna ke tat par kee vistrit khandahar haian, jo ek prachin samriddhashali nagar ke avashesh haian. in khandaharoan se prapt abhilekhoan mean is sthan ka prachin nam sahajati hai. bhita, sahajati ilahabad se das mil par sthit hai.

utkhanan

1909-1910 mean bhita mean bharatiy puratatv vibhag ki or se marshal ne utkhanan kiya tha. vibhag ke prativedan mean kaha gaya hai ki khudaee mean ek sundar, mitti ka bana hua vartul patt prapt hua tha, jis par sambhavatah shakuntala-dushyant ki akhyayika ka ek drishy aankit hai. isamean dushyant aur unaka sarathi kanv ke ashram mean pravesh karate hue pradarshit haian aur ashramavasi unase ashram ke hiran ko n marane ke lie prarthana kar raha hai. pas hi ek kuti bhi hai, jisake samane ek kanya ashram ke vrikshoan ko sianch rahi hai. yah mritkhand shugakalin hai[1] aur is par aankit chitr yadi vastav mean dushyant v shakuntala ki katha [2] se sambandhit haian, to mahakavi kalidas ka samay is tathy ke adhar par, guptakal [3] ke bajae pahali ya doosari shati se bhi kafi poorv manana hoga. kintu puratatv vibhag ke prativedan mean is drishy ki samanata kalidas dvara varnit drishy se avashyak nahian mani gee hai.

bhita se, khudaee mean mauryakalin vishal eeantean, paravartikal ki moortiyaan, mitti ki mudraean tatha anek abhilekh prapt hue haian. jinase siddh hota hai ki mauryakal se lekar guptakal tak yah nagar kafi samriddhashali tha. yahaan se prapt samagri lakhanoo ke sangrahalay mean hai. bhita ke samip hi manakuanvar gram se ek sundar buddh pratima mili thi, jis par maharajadhiraj kumaragupt ke samay ka ek abhilekh utkirn hai. [4]

vyaparik nagar

sahajati ya bhita, gupt aur shuang kal ke poorv ek vyast vyaparik nagar ke roop mean bhi prakhyat tha kyoanki ek mitti ki mudra par sahajatiye nigamas yah pali shabd tisari shati ee. poo. ki brahmilipi mean aankit pae ge haian. isase pramanit hota hai ki itane prachin kal mean bhi yah sthan vyapariyoan ke nigam ya vyaparik sangathan ka kendr tha. vastav mean yah nagar mauryakal mean bhi kafi samunnat raha hoga, jaisa ki us samay ke avasheshoan se soochit hota hai.

tika tippani aur sandarbh

pustak aitihasik sthanavali se pej sankhya 668-669 | vijayendr kumar mathur | vaijnanik tatha takaniki shabdavali ayog | manav sansadhan vikas mantralay, bharat sarakar

  1. 117-72 ee. poo
  2. jis prakar vah kalidas ke natak mean varnit hai
  3. 5vian shati ee
  4. 129 gupt sanvath=449