Difference between revisions of "मलिक अम्बर"

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'''मलिक अम्बर,''' एक हब्शी ग़ुलाम था, वह तरक़्क़ी करके वज़ीर के पद तक पहुँचा था। उसने पहली बार 1601 ई. में नाम क़माया, जब उसने मुग़ल सेना को हराया। मलिक अम्बर एक '''अबीसीनियायी''' था और उसका जन्म '''इथियोपिया''' में हुआ था। उसके प्रारम्भिक जीवन की विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। ऐसा अनुमान है कि उसके निर्धन माता-पिता ने उसे बग़दाद के गुलाम-बाज़ार में बेच दिया था। बाद में उसे किसी व्यापारी ने ख़रीद लिया और उसे दक्कन ले आया, जहाँ की समृद्धि उस काल में बहुत लोगों को आकर्षित करती थी। 1626 ई. में उसकी मृत्यु हुई।
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'''मलिक अम्बर''' एक हब्शी ग़ुलाम था। वह तरक्की करके वज़ीर के पद तक पहुँचा था। उसने पहली बार 1601 ई. में उस समय नाम क़माया, जब उसने [[मुग़ल]] सेना को हरा दिया था। मलिक अम्बर एक 'अबीसीनियायी' था और उसका जन्म 'इथियोपिया' में हुआ था। उसके प्रारम्भिक जीवन की विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। ऐसा अनुमान है कि उसके निर्धन माता-पिता ने उसे बग़दाद के गुलाम-बाज़ार में बेच दिया था। बाद में उसे किसी व्यापारी ने ख़रीद लिया और उसे दक्कन ले आया, जहाँ की समृद्धि उस काल में बहुत लोगों को आकर्षित करती थी। 1626 ई. में मलिक अम्बर की मृत्यु हुई थी।
====व्यक्तित्व====
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'''मलिक अम्बर''' [[अहमदनगर]] में बस गया था। [[चाँद सुल्तान]] की मृत्यु के बाद वह तरक़्क़ी करके अहमदनगर के वज़ीर के पद पर पहुँच गया। वहाँ का राज्य प्रबन्ध अनेक वर्षों तक उसके हाथ में रहा। वह जितना योग्य सिपहसलार था, उतना ही योग्य राजनेता भी था। उसमें नेतृत्व के सहज गुण थे और मध्ययुगीन [[भारत]] के सबसे बड़े राजनीतिज्ञों में उसकी गणना की जाती थी।
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==व्यक्तित्व==
====शासन व्यवस्था====
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मलिक अम्बर [[अहमदनगर]] में बस गया था। चाँद सुल्तान की मृत्यु के बाद वह अपनी योग्यताओं के बल पर तरक्की करके अहमदनगर के वज़ीर के पद पर पहुँच गया। वहाँ का राज्य प्रबन्ध अनेक वर्षों तक उसके हाथ में रहा। वह जितना योग्य सिपहसलार था, उतना ही योग्य राजनेता भी था। उसमें नेतृत्व के सहज गुण थे और [[मध्यकालीन भारत]] के सबसे बड़े राजनीतिज्ञों में उसकी गणना की जाती थी।
'''उसने अहमदनगर राज्य की उत्तम शासन व्यवस्था की।''' इसके अलावा उसने राज्य में मालगुज़ारी की व्यवस्था भी बड़े सुन्दर ढंग से की। सारी कृषि योग्य भूमि को उर्वरता के आधार पर चार श्रेणियों में विभाजित कर दिया और लग़ान स्थायी रूप से निश्चित कर दिया गया, जो नक़द लिया जाता था। लग़ान की वसूली राज्य के अधिकारी गाँव के पटेल से करते थे।
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==शासन व्यवस्था==
====मलिक अम्बर की नीति====
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अम्बर ने अहमदनगर राज्य की उत्तम शासन व्यवस्था की थी। इसके अलावा उसने राज्य में [[मालगुज़ारी]] की व्यवस्था भी बड़े सुन्दर ढंग से की। सारी [[कृषि]] योग्य भूमि को उर्वरता के आधार पर चार श्रेणियों में विभाजित कर दिया और लगान स्थायी रूप से निश्चित कर दिया गया, जो नक़द लिया जाता था। लगान की वसूली राज्य के अधिकारी गाँव के पटेल से करते थे।
'''मलिक अम्बर ने मुरतज़ा निज़ामशाही के''' प्रभावशाली सरदार [[चंगेज़ ख़ाँ]] के यहाँ काफ़ी तरक़्क़ी की थी। जब [[मुग़ल|मुग़लों]] ने अहमदनगर पर आक्रमण किया तो मलिक अम्बर अपना भाग्य आज़माने के लिए [[बीजापुर]] चला गया। लेकिन जल्दी ही वह वापस आ गया और [[चाँदबीबी]] के विरोधी हब्शी (अबीसीनियायी) दल में सम्मिलित हो गया। अहमदनगर के पतन के बाद अम्बर ने एक निज़ामशाही शहजादे को ढूँढ निकाला और बीजापुर के शासक की मदद से उसे मुरतज़ा निज़ामशाह द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा दिया। वह स्वयं उसका पेरुबा बन गया। [[पेशवा]] का पद अहमदनगर की रियासत में पहले से प्रचलित था। अहमदनगर के पतन और मुग़लों द्वारा बहादुर निज़ाम शाह की गिरफ्तारी के बाद इस बात की पूरी सम्भावना थी कि अहमदनगर रियासत के टुकड़े हो जाते और पड़ोसी रियासतें उन्हें हस्तगत कर लेतीं, किन्तु मलिक़ अम्बर के रूप में एक योग्य व्यक्ति के उदय की वजह से ऐसा नहीं हुआ। मलिक़ अम्बर ने काफ़ी बड़ी मराठी सेना (बारगी) इकट्ठी कर ली। [[मराठा|मराठे]] तेज़ गति वाले थे और दुश्मन की रसद काटने में काफ़ी होशियार थे। यह गुरिल्ला युद्ध प्रणाली दक्कन के मराठों के लिए परम्परागत थी, लेकिन मुग़ल इससे अपरिचित थे। मराठों की सहायता से मलिक अम्बर ने मुग़लों को [[बरार]], [[अहमदनगर]], और [[बालाघाट]] में अपनी स्थिति सुदृढ़ करना कठिन कर दिया।
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==मलिक अम्बर की नीति==
====मुग़लों से युद्ध====
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मलिक अम्बर ने मुरतजा निज़ामशाही के प्रभावशाली सरदार [[चंगेज़ ख़ाँ]] के यहाँ काफ़ी तरक्की की थी। जब मुग़लों ने अहमदनगर पर आक्रमण किया, तो मलिक अम्बर अपना भाग्य आजमाने के लिए [[बीजापुर]] चला गया। लेकिन जल्दी ही वह वापस आ गया और [[चाँदबीबी]] के विरोधी हब्शी (अबीसीनियायी) दल में सम्मिलित हो गया। अहमदनगर के पतन के बाद अम्बर ने एक [[निज़ामशाही वंश]] के शाहज़ादे को ढूँढ निकाला और बीजापुर के शासक की मदद से उसे मुरतजा निज़ामशाह द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा दिया। वह स्वयं उसका पेरुबा बन गया। [[पेशवा]] का पद अहमदनगर की रियासत में पहले से प्रचलित था। अहमदनगर के पतन और मुग़लों द्वारा बहादुर निज़ाम शाह की गिरफ्तारी के बाद इस बात की पूरी सम्भावना थी कि अहमदनगर रियासत के टुकड़े हो जाते और पड़ोसी रियासतें उन्हें हस्तगत कर लेतीं, किन्तु मलिक अम्बर के रूप में एक योग्य व्यक्ति के उदय की वजह से ऐसा नहीं हो सका। मलिक अम्बर ने काफ़ी बड़ी [[मराठा]] सेना (बारगी) इकट्ठी कर ली। मराठे तेज़ गति वाले थे और दुश्मन की रसद काटने में काफ़ी होशियार थे। यह गुरिल्ला युद्ध प्रणाली दक्कन के मराठों के लिए परम्परागत थी, लेकिन [[मुग़ल]] इससे अपरिचित थे। मराठों की सहायता से मलिक अम्बर ने मुग़लों को [[बरार]], [[अहमदनगर]], और बालाघाट में अपनी स्थिति सुदृढ़ करना कठिन कर दिया।
'''[[मुग़ल]] सेना [[दौलताबाद]] पर अधिकार करना चाहती थी,''' जो कि अहमदनगर सल्तनत की राजधानी थी। 1601 ई. में राजधानी यहीं स्थानान्तरित कर दी गई थी। उसी के उद्योग से [[अहमदनगर]] पर क़ब्ज़ा करने के जहाँगीर के सारे प्रयत्न विफल हो गए। उसने अहमदनगर को बादशाह [[जहाँगीर]] के पंजे से बचाने की जी तोड़ कोशिश की। लेकिन 1616 ई. में जब बहुत बड़ी [[मुग़ल]] सेना ने अहमदनगर पर चढ़ाई की तो मलिक अम्बर को आत्म समर्पण करना पड़ा। उस समय शाहज़ादा ख़ुर्रम मुग़ल सेना का नेतृत्व कर रहा था।  
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==मुग़लों से युद्ध==
====मृत्यु====
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मुग़ल सेना [[दौलताबाद]] पर अधिकार करना चाहती थी, जो कि अहमदनगर सल्तनत की राजधानी थी। 1601 ई. में राजधानी यहीं स्थानान्तरित कर दी गई थी। उसी के उद्योग से अहमदनगर पर क़ब्ज़ा करने के [[जहाँगीर]] के सारे प्रयत्न विफल हो गए। उसने अहमदनगर को बादशाह जहाँगीर के पंजे से बचाने की जी तोड़ कोशिश की, लेकिन 1616 ई. में जब बहुत बड़ी मुग़ल सेना ने अहमदनगर पर चढ़ाई की तो मलिक अम्बर को आत्म समर्पण करना पड़ा। उस समय शाहज़ादा ख़ुर्रम ([[शाहजहाँ]]) मुग़ल सेना का नेतृत्व कर रहा था।
'''मलिक अम्बर ने बड़े सम्मान''' के साथ जीवन बिताया और 1626 ई. में बहुत वृद्ध हो जाने पर उसकी मृत्यु हुई। उसकी मृत्यु के बाद ही [[अहमदनगर]] सल्तनत को मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित किया जा सका। <ref>(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-15 और 350</ref>
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==मृत्यु==
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मलिक अम्बर ने बड़े सम्मान के साथ जीवन बिताया और 1626 ई. में बहुत वृद्ध हो जाने पर उसकी मृत्यु हुई। उसकी मृत्यु के बाद ही अहमदनगर सल्तनत को मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित किया जा सका।
  
 
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Revision as of 08:32, 24 April 2011

malik ambar ek habshi gulam tha. vah tarakki karake vazir ke pad tak pahuancha tha. usane pahali bar 1601 ee. mean us samay nam qamaya, jab usane mugal sena ko hara diya tha. malik ambar ek 'abisiniyayi' tha aur usaka janm 'ithiyopiya' mean hua tha. usake prarambhik jivan ki vishesh janakari upalabdh nahian hai. aisa anuman hai ki usake nirdhan mata-pita ne use bagadad ke gulam-bazar mean bech diya tha. bad mean use kisi vyapari ne kharid liya aur use dakkan le aya, jahaan ki samriddhi us kal mean bahut logoan ko akarshit karati thi. 1626 ee. mean malik ambar ki mrityu huee thi.

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vyaktitv

malik ambar ahamadanagar mean bas gaya tha. chaand sultan ki mrityu ke bad vah apani yogyataoan ke bal par tarakki karake ahamadanagar ke vazir ke pad par pahuanch gaya. vahaan ka rajy prabandh anek varshoan tak usake hath mean raha. vah jitana yogy sipahasalar tha, utana hi yogy rajaneta bhi tha. usamean netritv ke sahaj gun the aur madhyakalin bharat ke sabase b de rajanitijnoan mean usaki ganana ki jati thi.

shasan vyavastha

ambar ne ahamadanagar rajy ki uttam shasan vyavastha ki thi. isake alava usane rajy mean malaguzari ki vyavastha bhi b de sundar dhang se ki. sari krishi yogy bhoomi ko urvarata ke adhar par char shreniyoan mean vibhajit kar diya aur lagan sthayi roop se nishchit kar diya gaya, jo naqad liya jata tha. lagan ki vasooli rajy ke adhikari gaanv ke patel se karate the.

malik ambar ki niti

malik ambar ne murataja nizamashahi ke prabhavashali saradar changez khaan ke yahaan kafi tarakki ki thi. jab mugaloan ne ahamadanagar par akraman kiya, to malik ambar apana bhagy ajamane ke lie bijapur chala gaya. lekin jaldi hi vah vapas a gaya aur chaandabibi ke virodhi habshi (abisiniyayi) dal mean sammilit ho gaya. ahamadanagar ke patan ke bad ambar ne ek nizamashahi vansh ke shahazade ko dhooandh nikala aur bijapur ke shasak ki madad se use murataja nizamashah dvitiy ke nam se gaddi par baitha diya. vah svayan usaka peruba ban gaya. peshava ka pad ahamadanagar ki riyasat mean pahale se prachalit tha. ahamadanagar ke patan aur mugaloan dvara bahadur nizam shah ki giraphtari ke bad is bat ki poori sambhavana thi ki ahamadanagar riyasat ke tuk de ho jate aur p dosi riyasatean unhean hastagat kar letian, kintu malik ambar ke roop mean ek yogy vyakti ke uday ki vajah se aisa nahian ho saka. malik ambar ne kafi b di maratha sena (baragi) ikatthi kar li. marathe tez gati vale the aur dushman ki rasad katane mean kafi hoshiyar the. yah gurilla yuddh pranali dakkan ke marathoan ke lie paramparagat thi, lekin mugal isase aparichit the. marathoan ki sahayata se malik ambar ne mugaloan ko barar, ahamadanagar, aur balaghat mean apani sthiti sudridh karana kathin kar diya.

mugaloan se yuddh

mugal sena daulatabad par adhikar karana chahati thi, jo ki ahamadanagar saltanat ki rajadhani thi. 1601 ee. mean rajadhani yahian sthanantarit kar di gee thi. usi ke udyog se ahamadanagar par qabza karane ke jahaangir ke sare prayatn viphal ho ge. usane ahamadanagar ko badashah jahaangir ke panje se bachane ki ji to d koshish ki, lekin 1616 ee. mean jab bahut b di mugal sena ne ahamadanagar par chadhaee ki to malik ambar ko atm samarpan karana p da. us samay shahazada khurram (shahajahaan) mugal sena ka netritv kar raha tha.

mrityu

malik ambar ne b de samman ke sath jivan bitaya aur 1626 ee. mean bahut vriddh ho jane par usaki mrityu huee. usaki mrityu ke bad hi ahamadanagar saltanat ko mugal samrajy mean sammilit kiya ja saka.

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panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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tika tippani aur sandarbh