Difference between revisions of "प्रयोग:प्रिया3"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
Line 1: Line 1:
गंगा पुनीततम नदी है और इसके तटों पर हरिद्वार, कनखल, प्रयाग एवं काशी जैसे परम प्रसिद्ध तीर्थ अवस्थित हैं। अत: गंगा से ही आरम्भ करके विभिन्न तीर्थों का पृथक-पृथक वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रसिद्ध नदीसूक्त <ref>([[ऋग्वेद]] 10|75|5-6)</ref> में सर्वप्रथम गंगा का ही आह्वान किया गया है। [[ऋग्वेद]] <ref>[[ऋग्वेद]] (6|45|31)</ref> में ‘गंगय’ शब्द आया है जिसका सम्भवत: अर्थ है ‘गंगा पर वृद्धि करता हुआ।’<ref>अधि बृबु: पणीनां वर्षिष्ठे मूर्धन्नस्थात्। उरु:कक्षो न गाङग्य:।। [[ऋग्वेद]] (6|45|31)। अन्तिम पद का अर्थ है ‘गंगा के तटों पर उगी हुई घास या झाड़ी के समान।’</ref> शतपथ ब्राह्मण (13|5|4|11 एवं 13) एवं ऐतरेय ब्राह्मण (13|5|4|11 एवं 13) में एक प्राचीन गाथा का उल्लेख है-‘नाडपित् पर अप्सरा शकुन्तला ने भरत को गर्भ में धारण किया, जिसने सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतने के उपरान्त इन्द्र के पास यज्ञ के लिए एक सहस्र से अधिक अश्व भेजे।’ महाभारत (अनुशासन. 26|26-103) एवं पुराणों (नारदीय, उत्तरार्ध, अध्याय 38-45 एवं 51|1-48; पद्म. 5|60|1-127; अग्नित्र अध्याय 110; मत्स्य., अध्याय 180-185; पद्म., आदिखण्ड, अध्याय 33-37) में गंगा की महत्ता एवं पवित्रीकरण के विषय में सैकड़ों प्रशस्तिजनक श्लोक हैं। स्कन्द. (काशीखण्ड, अध्याय 33-37) में गंगा के एक सहस्र नामों का उल्लेख है। यहाँ पर उपर्युक्त ग्रन्थों में दिये गये वर्णनों का थोड़ा अंश भी देना सम्भव नहीं है। अधिकांश भारतीयों के मन में गंगा जैसी नदियों एवं हिमालय जैसे पर्वतों के दो स्वरूप घर कर बैठे हैं-भौतिक एवं आध्यात्मिक। विशाल नदियों के साथ दैवी जीवन की प्रगाढ़ता संलग्न हो ही जाती है। टेलर ने अपने ग्रन्थ ‘प्रिमिटिव कल्चर’ (द्वितीय संस्करण, पृष्ठ 477) में लिखा है-‘जिन्हें हम निर्जीव पदार्थ कहते हैं, यथा नदियाँ, पत्थर, वृक्ष, अस्त्र-शस्त्र आदि। वे जीवित, बुद्धिशाली हो उठते हैं, उनसे बातें की जाती हैं, उन्हें प्रसन्न किया जाता है और यदि वे हानि पहुँचाते हैं तो उन्हें दण्डित भी किया जाता है।’ गंगा के महात्म्य एवं उसकी तीर्थयात्रा के विषय में पृथक-पृथक ग्रन्थ प्रणीत हुए हैं। यथा गणेश्वर (1350 ई.) का गंगापत्तलक, मिथिला के राजा पद्मसिंह की रानी विश्वासदेवी की गंगावाक्यावली, गणपति की गंगाभक्ति-तरंगिणी एवं वर्धमान की गंगाकृत्यविवेक। इन ग्रन्थों की तिथियाँ इस महाग्रन्थ के अन्त में दी हुई हैं।
+
{{tocright}}
 +
गंगा नदी, उत्तर [[भारत]] के मैदानों की विशाल नदी है। [[हिमालय]] से निकलकर [[बंगाल की खाड़ी]] में गिरने वाली गंगा भारत के लगभग एक-चौथाई भूक्षेत्र को अपवाहित करती है तथा अपने बेसिन में बसे विराट जनसमुदाय के जीवन का आधार बनती है। जिस गंगा के मैदान से होकर यह प्रवाहित होती है, वह इस क्षेत्र का हृदय स्थल है, जिसे हिन्दुस्तान कहते हैं। यहाँ तीसरी सदी में अशोक महान के साम्राज्य से लेकर 16वीं सदी में स्थापित [[मुग़ल साम्राज्य]] तक सारी सभ्यताएँ विकसित हुईं। गंगा नदी अपना अधिकांश सफ़र भारतीय इलाक़े में ही तय करती है, लेकिन उसके विशाल डेल्टा क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा [[बांग्लादेश]] में है। गंगा के प्रवाह की सामान्यत: दिशा उत्तर-पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पूर्व की तरफ़ है और डेल्टा क्षेत्र में प्रवाह आमतौर से दक्षिण मुखी है।
  
वनपर्व (अध्याय 85) ने गंगा की प्रशस्ति में कई श्लोक (88-97) दिये हैं, जिनमें से कुछ का अनुवाद यों है-"जहाँ भी कहीं स्नान किया जाए, गंगा कुरुक्षेत्र के बराबर है। किन्तु कनखल की अपनी विशेषता है और प्रयाग में इसकी परम महत्ता है। यदि कोई सैकड़ों पापकर्म करके गंगा जल का अवसिंचन करता है तो गंगा जल उन दुष्कृत्यों को उसी प्रकार जला देता है, जिस प्रकार से अग्नि ईधन को जला देती है। कृत युग में सभी स्थल पवित्र थे, त्रेता में पुश्कर सबसे अधिक पवित्र था, द्वापर में कुरुक्षेत्र एवं कलियुग में गंगा। नाम लेने पर गंगा पापी को पवित्र कर देती है। इसे देखने से सौभाग्य प्राप्त होता है। जब इसमें स्नान किया जाता है या इसका जल ग्रहण किया जाता है तो सात पीढ़ियों तक कुल पवित्र हो जाता है। जब तक किसी मनुष्य की अस्थि गंगा जल को स्पर्श करती रहती है, तब तक वह स्वर्गलोक में प्रसन्न रहता है। गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है और केशन के समान कोई देव। वह देश जहाँ गंगा बहती है और वह तपोवन जहाँ पर गंगा पाई जाती है, उसे सिद्धिक्षेत्र कहना चाहिए, क्योंकि वह गंगातीर को छूता रहता है।" अनुशासनपर्व (36|26, 30-31) में आया है कि वे जनपद एवं देश, वे पर्वत एवं आश्रम, जिनसे होकर गंगा बहती है, पुण्य का फल देने में महान हैं। वे लोग, जो जीवन के प्रथम भाग में पापकर्म करते हैं, यदि गंगा की ओर जाते हैं तो परम पद प्राप्त करते हैं। जो लोग गंगा में स्नान करते हैं उनका फल बढ़ता जाता है। वे पवित्रात्मा हो जाते हैं और ऐसा पुण्यफल पाते हैं जो सैकड़ों वैदिक यज्ञों के सम्पादन से भी नहीं प्राप्त होता।
+
भारतीय [[भाषा|भाषाओं]] में तथा अधिकृत रूप से गंगा नदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके अंग्रेज़ीकृत नाम ‘द गैजिज़’ से ही जाना जाता है। गंगा सहस्राब्दियों से [[हिन्दू|हिन्दुओं]] की पवित्र तथा पूजनीय नदी रही है। अपने अधिकांश मार्ग में गंगा एक चौड़ी व मंद धारा है और विश्व के सबसे ज़्यादा उपजाऊ और घनी आबादी वाले इलाक़ों से होकर बहती है। इतने महत्व के बावज़ूद इसकी लम्बाई 2,510 किलोमीटर है, जो एशिया या विश्व स्तर की तुलना में कोई बहुत ज़्यादा नहीं है।
 +
==पतितपावनी==
 +
भारत की पावन नदी, जिसकी जलधारा में स्नान से पापमुक्ति और जलपान से शुद्धि होती है। यह प्रसिद्ध नदी, [[हिमाचल प्रदेश]] में [[गंगोत्री]] से निकलकर [[मध्यदेश]] से होती हुई [[पश्चिम बंगाल]] के परे गंगासागर में मिलती है। गंगा की घाटी संसार की उर्वरतम घाटियों में से एक है और [[सरयू नदी|सरयू]], [[यमुना नदी|यमुना]], [[सोन नदी|सोन]] आदि अनेक नदियाँ उससे आ मिलती हैं। उसकी घाटी भारतीय सभ्यता के विकास में अन्यतम रही हैं। गंगा को [[संस्कृति|भारतीय संस्कृति]] में विशिष्ट योगदान के कारण ही उसे असाधारण महिमा मिली है, जिससे वह ‘पतितपावनी’ कहलाती है।
  
भगवदगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि धाराओं में मैं गंगा हूँ (स्रोतसामस्मि जाह्नवी, 10|31)। मनु (8|92) ने साक्षी को सत्योच्चारण के लिए जो कहा है उससे प्रकट होता है कि मनुस्मृति के काल में गंगा एवं कुरुक्षेत्र सर्वोच्च पुनीत स्थल थे।<ref>यमो वैवस्वतो देवो यस्तवैष हृदि स्थित:। तेन चेदविवादस्ते मा गंगा मा कुरून्गम:।। मनु (8|92)।</ref> कुछ पुराणों ने गंगा को मन्दाकिनी के रूप में स्वर्ग में, गंगा के रूप में पृथ्वी पर और भोगवती के रूप में पाताल में प्रवाहित होते हुए वर्णित किया है (पद्म. 6|267|47)। विष्णु आदि पुराणों ने गंगा को विष्णु के बायें पैर के अँगूठे के नख से प्रवाहित माना है।<ref>वामपादाम्बुजांगुष्ठनखस्रोतोविनिर्गताम्। विष्णोर्बभर्ति यां भक्त्या शिरसाहनिंशं ध्रुव:।। विष्णुपुराण (2|8|109); कल्पतरु (तीर्थ, पृष्ठ 161) ने ‘शिव:’ पाठान्तर दिया है। ‘नदी सा वैष्णवी प्रोक्ता विष्णुपादसमुदभवा।’ पद्म. (5|25|188)।</ref> कुछ पुराणों में ऐसा आया है कि शिव ने अपनी जटा से गंगा को सात धाराओं में परिवर्तित कर दिया, जिनमें तीन (नलिनी, ह्लदिनी एवं पावनी) पूर्व की ओर, तीन (सीता, चक्षुस एवं सिन्धु) पश्चिम की ओर प्रवाहित हुई और सातवीं धारा भागीरथी हुई (मत्स्य. 121|38-41; ब्रह्माण्ड. 2|18|39-41 एवं 1|3|65-66)। कूर्म. (1|46|30-31) एवं वराह. (अध्याय 82, गद्य में) का कथन है कि गंगा सर्वप्रथम सीता, अलकनंदा, सुचक्ष एवं भद्रा नामक चार विभिन्न धाराओं में बहती है। अलकनंदा दक्षिण की ओर बहती है, भारतवर्ष की ओर आती है और सप्तमुखों में होकर समुद्र में गिरती है।<ref>तथैवालकनंदा च दक्षिणादेत्य भारतम्। प्रयाति सागरं भित्त्वा सप्तभेदा द्विजोत्तम:।। कूर्म. (1|46|31)।</ref> ब्रह्मा. (73|68-69) में गंगा को विष्णु के पाँव से एवं शिव के जटाजूट में अवस्थित माना गया है।
+
[[ऋग्वेद]] के नदीसूक्त में गंगा की स्तुति हुई है और [[पुराण|पुराणों]] ने उसकी महिमा का अनन्त बखान किया है। गंगा की धारा, जो पहाड़ों में मंदाकिनी और [[अलकनन्दा नदी|अलकनन्दा]] की धाराओं के सम्मिलन से बनती है, हिमालय में अत्यन्त क्षीण है और [[हरिद्वार]] के ऊपर कनखल के समीप उत्तरी मैदान में प्रशस्त होकर बहती है और बरसात में उसके [[जल]] का [[वेग]] भयावह हो उठता है।
 +
==भौतिक विशेषताएँ==
 +
====भू-आकृति====
 +
गंगा का उद्गम दक्षिणी [[हिमालय]] में [[तिब्बत]] सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। इसकी पाँच आरम्भिक धाराओं [[भागीरथी नदी|भागीरथी]], अलकनन्दा, मंदाकिनी, धौलीगंगा तथा पिंडर का उद्गम [[उत्तराखण्ड]] क्षेत्र, जो [[उत्तर प्रदेश]] का एक संभाग था (वर्तमान उत्तरांचल राज्य) में होता है। दो प्रमुख धाराओं में बड़ी अलकनन्दा का उद्गम हिमालय के [[नंदा देवी पर्वत|नंदा देवी शिखर]] से 48 किलोमीटर दूर तथा दूसरी भागीरथी का उद्गम हिमालय की गंगोत्री नामक हिमनद के रूप में 3, 050 मीटर की ऊँचाई पर बर्फ़ की गुफ़ा में होता है। गंगोत्री हिन्दुओं का एक तीर्थ स्थान है। वैसे गंगोत्री से 21 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व स्थित गोमुख को गंगा का वास्तविक उद्गम स्थल माना जाता है।
  
विष्णुपुराण (2|8|120-121) ने गंगा की प्रशस्ति यों की है-जब इसका नाम श्रवण किया जाता है, जब कोई इसके दर्शन की अभिलाषा करता है, जब यह देखी जाती है या स्पर्श की जाती है या जब इसका जल ग्रहण किया जाता है या जब कोई उसमें डुबकी लगाता है या जब इसका नाम लिया जाता है (या इसकी स्तुति की जाती है) तो गंगा दिन-प्रतिदिन प्राणियों को पवित्र करती है। जब सहस्रों योजन दूर रहने वाले लोग गंगा नाम का उच्चारण करते हैं, तो तीन जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।<ref>श्रुताभिलषिता दृष्टा स्पृष्टा पीतावगाहिता। या पावयति भूतानि कीर्तिता च दिने दिने।। गंगा गंगेति यैनमि योजनानां शतेष्वपि। स्थितैरुच्चारितं हन्ति पापं जन्मत्रयार्जितम्।। विष्णुपु. (2|8|120-121); गंगा वाक्यावली (पृष्ठ 110), तीर्थचि. (पृष्ठ 202), गंगाभक्ति. (पृष्ठ 9)। दूसरा श्लोक पद्म. (6|21|8 एवं 23|12) एवं ब्रह्मा. (175|82) में कई प्रकार से पढ़ा गया है, यथा-गंगा........यो ब्रूयाद्योजनानां शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति।। पद्य. (1|31|77) में आया है......शतैरपि। नरो न नरकं याति किं तया सदृशं भवेत्।। </ref> भविष्यपुराण में भी ऐसा ही आया है।<ref>दर्शनार्त्स्शनात्पानात् तथा गंगेति कीर्तनात्। स्मरणदेव गंगाया: सद्य: पापै: प्रमुच्यते।। भविष्य. (तीर्थचि. पृष्ठ 198; गंगावा पृष्ठ 12 एवं गंगाभक्ति पृष्ठ 9)। प्रथम पाद अनुशासन. (26|64) एवं अग्नि. (110|6) में आया है। गच्छंस्तिष्ठञ् जपन्ध्यायन् भुञ्जञ् जाग्रत स्वपन् वदन्। य: स्मरेत् सततं गंगां सोऽपि मुच्येत बन्धनात्।। स्कन्द. (काशीखण्ड, पूर्वार्ध 27|37) एवं नारदीय. (उत्तर, 39|16-17)।</ref> मत्स्य., कूर्म., गरुड़. एवं पद्म. का कहना है कि गंगा में पहुँचना सब स्थानों में सरल है, केवल गंगाद्वार (हरिद्वार), प्रयाग एवं वहाँ जहाँ यह समुद्र में मिलती है, पहुँचना कठिन है। जो लोग यहाँ पर स्नान करते हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जो लोग यहाँ पर मर जाते हैं, वे पुन: जन्म नहीं पाते हैं।<ref>सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा। गंगाद्वारे प्रयागे च गंगासागरसंगमे।। तत्र स्नात्वा दिवं यान्ति ये मृतास्तेऽपुनर्भवा:।। मत्स्य. (106|54); कूर्म. (1|37|34); गरुड़. (पूर्वार्ध, 81|1-2); पद्म. (5|60|120)। नारदीय. (40|26-27) में ऐसा पाठान्तर है-‘सर्वत्र दुर्लभा गंगा त्रिषु स्थानेषु चाधिका। गंगाद्वारे.......संगमे।। एषु स्नाता दिवं.......र्भवा:।।’</ref> नारदीय पुराण का कथन है कि गंगा सभी स्थानों में दुर्लभ है, किन्तु तीन स्थानों पर अत्यधिक दुर्लभ है। वह व्यक्ति जो चाहे या अनचाहे गंगा के पास पहुँच जाता है और मर जाता है, स्वर्ग जाता है और नरक नहीं देखता (मत्स्य. 107|4)। कूर्म. का कथन है कि गंगा वायुपुराण द्वारा घोषित स्वर्ग, अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी में स्थित 35 करोड़े पवित्र स्थलों के बराबर है और वह उनका प्रतिनिधित्व करती है।<ref>तिस्र: कोट्योर्धकोटी च तीर्थानां वायुरब्रवीत्। दिवि भुव्यन्तरिक्षे च तत्सर्व जाह्नवी स्मृता।। कूर्म. (1|39|8); पद्म. (1|47|7 एवं 5|60|59); मत्स्य. (102|5, तानि ते सन्ति जाह्नवि)।</ref> पद्मपुराण ने प्रश्न किया है-‘बहुत धन के व्यय वाले यज्ञों एवं कठिन तपों से क्या लाभ, जब कि सुलभ रूप से प्राप्त होने वाली एवं स्वर्ग मोक्ष देने वाली गंगा उपस्थित है!’ नारदीय पुराणों में भी आया है-‘आठ अंगों वाले योग, तपों एवं यज्ञों से क्या लाभ? गंगा का निवास इन सभी से उत्तम है।’<ref>किं यज्ञैर्बहुवित्ताढ्यै: किं तपोभि: सुदुष्करै:। स्वर्ग्मोक्षप्रदा गंगा सुखसौभाग्यपूजिता।। पद्म. (5|60|39); किमष्टांगेन योगेन किं तपोभि: किमध्वरै:। वास एव हि गंगायां सर्वतोपि विशिष्यते।। नारदीय. (उत्तर, 38|38); तीर्थचि. (पृष्ठ 194, गंगायां ब्रह्मज्ञानस्य कारणम्); प्रायश्चित्ततत्त्व (पृष्ठ 494)।</ref> मत्स्य. (104|14-15) के दो श्लोक यहाँ वर्णन के योग्य हैं-"पाप करने वाला व्यक्ति भी सहस्रों योजन दूर रहता हुआ गंगा स्मरण से परम पद प्राप्त कर लेता है। गंगा के नाम-स्मरण एवं उसके दर्शन से व्यक्ति क्रम से पापमुक्त हो जाता है एवं सुख पाता है। उसमें स्नान करने एवं जल के पान से वह सात पीढ़ियों तक अपने कुल को पवित्र कर देता है।" काशीखण्ड (27|69) में ऐसा आया है कि गंगा के तट पर सभी काल शुभ हैं, सभी देश शुभ हैं और सभी लोग दान ग्रहण करने के योग्य हैं।
+
देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से ऋषिकेश के निकट बाहर आती है और हरिद्वार के बाद मैदानी इलो में प्रवेश करती है। हरिद्वार भी हिन्दुओं का तीर्थ स्थान है।
 +
नदी के प्रवाह में मौसम के अनुसार आने वाले थोड़े-बहुत परिवर्तन के बावजूद इसके जल की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि तब होती है, जब इसमें अन्य सहायक नदियाँ मिलती हैं तथा यह अधिक वर्षा वाले इलाक़े में प्रवेश करती है। एक तरफ़ अप्रैल से जून के बीच हिमालय में पिघलने वाली बर्फ़ से इसका पोषण होता है, वहीं दूसरी ओर जुलाई से सितम्बर के बीच का मानसून इसमें आने वाली बाढ़ों का कारण बनता है। उत्तर प्रदेश राज्य में इसके दाहिने दाहिने तट की सहायक नदियाँ, यमुना राजधानी दिल्ली होते हुए इलाहाबाद में गंगा में शामिल होती है तथा टोन्स नदी है, जो मध्य प्रदेश के विंध्याचल से निकलकर उत्तर की तरफ़ प्रवाहित होती हैं और शीघ्र ही गंगा में शामिल हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश में बाईं तरफ़ की सहायक नदियाँ रामगंगा, गोमती तथा घाघरा हैं।
  
वराहपुराण (अध्याय 82) में गंगा की व्युत्पत्ति ‘गां गता’ (जो पृथ्वी की ओर गई हो) है। पद्म. (सृष्टि खण्ड, 60|64-65) ने गंगा के विषय में निम्न मूलमंत्र दिया है-‘ओं नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नम:।’
+
इसके बाद गंगा बिहार राज्य में प्रवेश करती है, जहाँ इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हिमालय क्षेत्र की तरफ़ से गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी तथा घुघरी हैं। दक्षिण की तरफ़ से इसकी मुख्य सहायक नदी सोन है। यहाँ से यह नदी राजमहल पहाड़ियों का चक्कर लगाती हुई दक्षिण-पूर्व में फरक्का तक पहुँचती है, जो इस डेल्टा का सर्वोच्च बिन्दु है। यहाँ से गंगा भारत में अन्तिम राज्य पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है, जहाँ उत्तर की तरफ़ से इसमें महानंदा मिलती है (समूचे पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में स्थानीय आबादी गंगा को पद्मा कहकर पुकारती है)गंगा के डेल्टा की सुदूर पश्चिमी शाखा हुगली है, जिसके तट पर महानगर कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) बसा हुआ है। स्वयं हुगली में पश्चिम से आकर उसकी दो सहायक नदियाँ दामोदर व रूपनारायण शामिल होती हैं। बांग्लादेश में ग्वालुंदो घाट के निकट गंगा में विशाल ब्रह्मपुत्र शामिल होती है (इन दोनों के संगम के 241 किलोमीटर पहले तक इसे फिर यमुना के नाम से बुलाया जाता है)गंगा और ब्रह्मपुत्र की संयुक्त धारा ही पद्मा कहलाने लगती है और चाँदपुर के निकट वह मेघना में शामिल हो जाती है। इसके बाद यह विराट जलराशि अनेक प्रवाहों में विभाजित होकर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका धालेश्वदी नदी की सहायक नदी बूढ़ी गंगा के तट पर स्थित है। जिन नदी शाखाओं से गंगा का डेल्टा बनता है, उसकी हुगली और मेघना के अलावा अन्य शाखाएँ पश्चिम बंगाल में जलांगी और बांग्लादेश में मातागंगा, भैरब, काबाडक, गराई-मधुमती तथा अरियल खान हैं।
पद्म. (सृष्टि. 60|65) में आया है कि विष्णु सभी देवों का प्रतिनिधित्व करते हैं और गंगा विष्णु का। इसमें गंगा की प्रशस्ति इस प्रकार की गई है-‘पिताओं, पतियों, मित्रों एवं सम्बन्धियों के व्यभिचारी, पतित, दुष्ट, चाण्डाल एवं गुरुघाती हो जाने पर या सभी प्रकार के पापों एवं द्रोहों से संयुक्त होने पर क्रम से पुत्र, पत्नियाँ, मित्र एवं सम्बन्धि उनका त्याग कर देते हैं, किन्तु गंगा उन्हें परित्यक्त नहीं करती (पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड, 60|25-26)।’
+
*डेल्टा क्षेत्र में स्थित गंगा की सभी सहायक नदियाँ और शाखाएँ मौसम में परिवर्तनों के कारण अक्सर अपना रास्ता बदल लेती हैं। ये परिवर्तन इधर, विशेषकर 1750 ई. के बाछ से ज़्यादा होने लगे हैं। ब्रह्मपुत्र 1785 ई. तक मैमनसिंह शहर के पास से बहती थी, अब यह वहाँ से 64 किलोमीटर पश्चिम में गंगा में मिलती है।
 +
*गंगा तथा ब्रह्मपुत्र की नदी घाटियों से बहकर आई हुई गाद से बने डेल्टा का क्षेत्रफल 60,000 वर्ग किमी. है तथा उसका निर्माण मिट्टी, रेत तथा खड़िया की क्रमिक परतों से हुआ है। यहाँ पर सड़ी-गली वनस्पति (पीट) लिग्नाइट (भूरे कोयले) की परतें भी उन इलाक़ों में मिलती हैं, जहाँ पहले घन वन हुए करते थे। डेल्टा में नहरों के आसपास बाद में प्राकृतिक रूप से बहुत-सा खादर भी जमा हुआ है।
 +
*गंगा डेल्टा की दक्षिणी सतह का निर्माण तेज़ गति से तथा तुलनात्मक रूप से हाल में बहकर आई गाद की भारी मात्रा से हुआ है। पूरब में समुद्र की तरफ़ इसी गाद के कारण बड़ी तेज़ी से नए-नए भूक्षेत्र (नदी द्वीप) बनते जा रहे हैं, जिन्हें ‘चार’ कहते हैं। वैसे डेल्टा का पश्चिमी समुद्री तट 18वीं सदी के बाद से लगभग अपरिवर्तित है।
 +
*पश्चिम बंगाल की नदियों का प्रवाह बहुत धीमा है और उनसे काफ़ी कम पानी समुद्र में प्रवाहित होता है। बांग्लादेशी डेल्टा क्षेत्र में नदियाँ चौड़ी तथा गतिमान हैं और उनमें पानी विपुल मात्रा में बहता है। ये नदियाँ अनेक संकरी पहाड़ियों से परस्पर जुड़ी हुई हैं।
 +
*वर्षा ऋतु (जून से अक्टूबर) में इस इलाक़े में कृत्रिम रूप से निर्मित उच्चभूमि पर बसाए गए गाँव कई फ़ीट पानी में डूब जाते हैं। इस मौसम में इन बस्तियों के बीच आवागमन का एकमात्र साधन नौकाएँ ही होती हैं।
 +
*समूचे डेल्टा क्षेत्र का समुद्रतटीय इलाक़ा दलदली है। यह पूरा क्षेत्र सुन्दरवन कहलाता है और भारत व बांग्लादेश, दोनों ने इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है।
 +
*इस डेल्टा के कुछ हिस्सों में जंगली वनस्पतियों तथा धान से निर्मित पीट की परतें हैं। अनेक प्राकृतिक खाइयों (बिलों) में उस पीट के बनने की क्रिया जारी है। जिसका उपयोग स्थानीय किसान खाद तथा सुखाकर घरेलू तथा औद्योगिक ईधन के रूप में करते हैं।
 +
====जलवायु====
 +
गंगा के बेसिन में इस उपमहाद्वीप की विशालतम नदी प्रणाली स्थित है। यहाँ जल की आपूर्ति मुख्यत: जुलाई से अक्टूबर के बीच दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा अप्रैल से जून के बीच ग्रीष्म ऋतु के दौरान पिघलने वाली हिमालय की बर्फ़ से होती है। नदी के बेसिन में मानसून के उन कटिबंधीय तूफ़ानों से भी वर्षा होती है, जो जून से अक्टूबर के बीच बंगाल की खाड़ी में पैदा होते हैं। दिसम्बर और जनवरी में बहुत कम मात्रा में वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा बेसिन के पश्चिमी सिरे में 760 मिमी. से लेकर पूर्वी सिरे पर 2,286 मिमी. के बीच होती है (उत्तर प्रदेश में गंगा के ऊपरी कछार में जहाँ औसत वर्षा 762 से 1,016 मिमी. होती है, वहीं बिहार के मध्यवर्ती मैदान में यह औसत 1,016 से 1,524 मिमी. तथा डेल्टा क्षेत्र में 1,524 से 2,540 मिमी. के बीच है)। डेल्टा क्षेत्र में मानसून के प्रारम्भ (मार्च से मई) तथा मानसून के अन्त (सितम्बर से अक्टूबर) में ज़ोरदार चक्रवाती समुद्री तूफ़ान आते हैं। इनसे काफ़ी बड़ी मात्रा में मानव जीवन, सम्पत्ति, फ़सलों तथा पशुओं का नुक़सान होता है। ऐसा ही एक भीषण विनाशकारी तूफ़ान नवम्बर, 1970 में आया था, जिसमें कम से कम दो लाख और अधिक से अधिक पाँच लाख लोगों की मौत हुई थी।
  
कुछ पुराणों में गंगा के पुनीत स्थल के विस्तार के विषय में व्यवस्था दी हुई है। नारदीय. (उत्तर, 43|119-120) में आया है-गंगा के तीर से एक गव्यूति तक क्षेत्र कहलाता है, इसी क्षेत्र सीमा के भीतर रहना चाहिए, किन्तु तीर पर नहीं, गंगातीर का वास ठीक नहीं है। क्षेत्र सीमा दोनों तीरों से एक योजन की होती है अर्थात् प्रत्येक तीर से दो कोस तक क्षेत्र का विस्तार होता है।<ref>तीराद् गव्यूतिमात्रं तु परित: क्षेत्रमुच्यते। तीरं वसेत्क्षेत्रे तीरे वासो न चेष्यते।। एकयोजनविस्तीर्णा क्षेत्रसीमा तटद्वयात्। नारदीय. (उत्तर, 43|119-120)। प्रथम को तीर्थचि. (पृष्ठ 266) ने स्कन्दपुराण से उदधृत किया है और व्याख्या की है-‘उभयतटे प्रत्येकं कोशदयं क्षेत्रम्।’ अन्तिम पाद को तीर्थचि. (पृष्ठ 267) एवं गंगावा. (पृष्ठ 136) ने भविष्य. से उदधृत किया है। ‘गव्यूति’ दूरी या लम्बाई की माप है जो सामान्यत: दो क्रोश (कोस) के बराबर है। लम्बाई के मापों के विषय में कुछ अन्तर है। अमरकोश के अनुसार ‘गव्यूति’ दो क्रोश के बराबर है, यथा-‘गव्यूति: स्त्री क्रोशयुगम्।’ वायु. (8|105 एवं 101|122-123) एवं ब्रह्माण्ड. (2|7|96-101) के अनुसार 24 अंगुल=एक हस्त, 96 अंगुल=एक धनु (अर्थात् ‘दण्ड’, ‘युग’ या ‘नाली’); 2000 धनु (या दण्ड या युग या नालिका)=गव्यूति एवं 8000 धनु=योजन। मार्कण्डेय. (46|37-40) के अनुसार 4 हस्त=धनु या दण्ड या युग या नालिका; 2000 धनु=क्रोश, 4 क्रोश=गव्यूति (जो योजन के बराबर है)। और देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड 3, अध्याय 5।</ref> यम ने एक सामान्य नियम यह दिया है कि वनों, पर्वतों, पवित्र नदियों एवं तीर्थों के स्वामी नहीं होते, इन पर किसी का भी प्रभुत्व (स्वामी रूप से) नहीं हो सकता। ब्रह्मपुराण का कथन है कि नदियों से चार हाथ की दूरी तक नारायण का स्वामित्व होता है और मरते समय भी (कण्ठगत प्राण होने पर भी) किसी को भी उस क्षेत्र में दान नहीं लेना चाहिए। गंगाक्षेत्र के गर्भ (अन्तर्वत्त), तीर एवं क्षेत्र में अन्तर प्रकट किया गया है। गर्भ वहाँ तक विस्तृत हो जाता है, जहाँ तक भाद्रपद के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तक धारा पहुँच जाती है और उसके आगे तीर होता है, जो गर्भ से 150 हाथ तक फैला हुआ रहता है तथा प्रत्येक तीर से दो कोस तक क्षेत्र विस्तृत रहता है।
+
चूँकि गंगा के मैदान में उतार-चढ़ाव लगभग न के बराबर है, अत: नदी प्रवाह की गति धीमी है। दिल्ली में यमुना नदी से लेकर बंगाल की खाड़ी के 1,609 किमी. के सम्पूर्ण फ़ासले में भूतल की ऊँचाई में मात्र 213 मीटर की कमी आती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान का कुल विस्तार 7,77,000 वर्ग किमी. है। इस मैदान में मिट्टी की सतह, जो कहीं-कहीं 1,829 मीटर से भी ज़्यादा है, सम्भवत: 10 हज़ार वर्ष से अधिक पुरानी नहीं है।
 +
====वनस्पति====
 +
गंगा-यमुना के इलाक़े में कभी घने जंगल हुआ करते थे। ऐतिहासिक ग्रन्थों से पता चलता है कि 16वीं और 17वीं सदी तक यहाँ जंगली हाथी, गौर, बारहसिंगा, गैंडा, बाघ तथा शेर का शिकार होता था। गंगा के सम्पूर्ण बेसिन से वहाँ की मूल प्राकृतिक वनस्पतियाँ लुप्त हो गई हैं और वहाँ अब लगातार बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए व्यापक रूप में खेती की जाती है। हिरन, जंगली सूअर, जंगली बिल्लियाँ तथा कुछ भेड़िए, भालू, सियार और लोमड़ी को छोड़कर जंगली जानवर बहुत कम हैं। डेल्टा के सुन्दरवन इलाक़े में बंगाल टाइगर (शेर), मगरमच्छ तथा दलदली हिरन अब भी मिल जाते हैं। नदियों में, ख़ासतौर से डेल्टा क्षेत्र में मछलियाँ विपुल मात्रा में पाई जाती हैं और स्थानीय निवासियों के भाजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ पर मैना, तोता, कौआ, चील, तीतर और मुर्ग़ाबी जैसे पक्षियों की भी कई क़िस्में पाई जाती हैं। जाड़े के मौसम में बत्तख़ और चाहा पक्षी ऊँचे हिमालय को पार करके दक्षिण में पानी से घिरे क्षेत्रों की तरफ़ प्रवास करते हैं। बंगाल के इलाक़े में आमतौर से पाई जाने वाली मछलियों में फ़ेदर बैक (नोटोप्टेरिडी), वॉकिंग कैटफ़िश, गोरामि (एनाबैंटिडी) तथा मिल्कफ़िश (चैनिडी), बार्ब (सिप्राइनिडी) आदि प्रमुख हैं।
 +
====जनजीवन====
 +
गंगा के बेसिन के निवासी नृजातीय रूप से मिश्रित मूल के हैं। पश्चिम और मध्य बेसिन में वे मूलत: आर्य पूर्वजों की सन्तान थे। बाद में तुर्क, मंगोल, अफ़आनी, फ़ारसी तथा अरब लोग पश्चिम से आय और अंतमिश्रित हो गए। पूरब और दक्षिण, ख़ासतौर से बंगाल के इलाक़े में तिब्बती, बर्मी तथा विविध नस्ल के पहाड़ी लोग भी मिलते हैं। इनसे भी बाद में आने वाले यूरोपीय लोग यहाँ न तो बसे और न ही स्थानीय लोगों के साथ विवाह सम्बन्ध बनाये।
 +
ऐतिहासिक रूप से गंगा के मैदान से ही हिन्दुस्तान का हृदय स्थल निर्मित है और वही बाद में आने वाली विभिन्न सभ्यताओं का पालना बना। अशोक के ई. पू. के साम्राज्य का केन्द्र पाटलिपुत्र (पटना), बिहार में गंगा के तट पर बसा हुआ था। महान मुग़ल साम्राज्य के केन्द्र दिल्ली और आगरा भी गंगा के बेसिन की पश्चिमी सीमाओं पर स्थित थे। सातवीं सदी के मध्य में कानपुर के उत्तर में गंगा तट पर स्थित कन्नौज, जिसमें अधिकांश उत्तरी भारत आता था, हर्ष के सामन्तकालीन साम्राज्य का केन्द्र था। मुस्लिम काल के दौरान, यानी 12वीं सदी से मुसलमानों का शासन न केवल मैदान, बल्कि बंगाल तक फैला हुआ था। डेल्टा क्षेत्र के ढाका और मुर्शिदाबाद मुस्लिम सत्ता के केन्द्र थे। अंग्रेज़ों ने 17वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुगली के तट पर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) की स्थापना करने के बाद धीरे-धीरे अपने पैर गंगा की घाटी में फैलाए और 19वीं सदी के मध्य में दिल्ली तक जा पहुँचे।
 +
गंगा के मैदान में अनेक नगर बसे, जिनमें मुख्य रूप से रूड़की, सहारनपुर, मेरठ, आगरा (मशहूर मक़बरे ताजमहल का शहर), मथुरा (भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली के रूप में पूजनीय), अलीगढ़, कानपुर, बरेली, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी (पवित्र शहर बनारस), पटना, भागलपुर, राजशाही, मुर्शिदाबाद, बर्दवान (वर्द्धमान), कलकत्ता, हावड़ा, ढाका, खुलना और बारीसाल उल्लेखनीय हैं। डेल्टा क्षेत्र में कलकत्ता और उसके उपनगर हुगली के दोनों किनारों पर लगभग 80 किमी. क्षेत्र में फैले हैं व भारत के जनसंख्या, व्यापार तथा उद्योग को दृष्टि से सबसे घने बसे हुए इलाक़ों में गिने जाते हैं।
 +
==धार्मिक महत्व==
 +
गंगा नदी का धार्मिक महत्व सम्भवत: विश्व की किसी भी अन्य नदी से ज़्यादा है। आदिकाल से ही यह पूजी जाती रही है और आज भी हिन्दुओं के लिए यह सबसे पवित्र नदी है। इसे देवी स्वरूप माना जाता है। एक किंवदन्ती के अनुसार, महान तपस्वी भगीरथ की प्रार्थना पर देवी गंगा को स्वयं भगवान विष्णु ने इस धरती पर भेजा। लेकिन गंगा जिस वेग से धरती पर अवतरित हुईं, उससे उनके मार्ग में आने वाली हर वस्तु के जलप्लावित होने का ख़तरा था। इसीलिए भगवान शिव ने पहले ही उन्हें अपनी जटाओं में लपेटकर उनके वेग को नियंत्रित और शान्त किया। मुक्ति चाहने वाले उसके बाद ही उसमें स्नान कर पाए। हिन्दुओं के तीर्थस्थल वैसे तो समूचे उपमहाद्वीप में फैल हुए हैं, तथापि गंगा तट पर बसे तीर्थ हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इनमें प्रमुख है, इलाहाबाद में गंगा और यमुना का संगम, जहाँ एक निश्चित अन्तराल पर जनवरी-फ़रवरी में कुम्भ का मेला आयोजित होता है। इस अनुष्ठान के समय लाखों तीर्थयात्री गंगा में स्नान करते हैं। पवित्र स्नान की दृष्टि से अन्य तीर्थ हैं, वाराणसी, काशी और हरिद्वार। कलकत्ता में हुगली नदी भी पवित्र मानी जाती है। तीर्थयात्रा की दृष्टि से गंगा तट पर गंगोत्री और अलकनन्दा और भागीरथी का संगम भी महत्वपूर्ण है। हिन्दू अपने मृतकों की भस्म एवं अस्थियाँ यह मानते हुए यहाँ विसर्जित करते हैं कि ऐसा करने से मृतक सीधे स्वर्ग में जाता है। इसीलिए गंगा के तट पर कई स्थानों पर शवदाह हेतु विशेष घाट बने हुए हैं।
 +
==अर्थव्यवस्था==
 +
====सिंचाई====
 +
सिंचाई के लिए गंगा के पानी का उपयोग, चाहे बाढ़ का पानी हो या फिर नहरों का, पुरातन काल से ही प्रचलित है। इस तरह की सिंचाई का उल्लेख धर्मग्रन्थों तथा 2,000 से भी ज़्यादा वर्ष पहले लिखे पुराणों में मिलता है। चौथी सदी में यूनान से भारत आए राजदूत मेगस्थनीज़ ने यहाँ सिंचाई के उपयोग का उल्लेख किया है। 12वीं सदी से मुस्लिम काल में सिंचाई प्रणाली बहुत विकसित थी और मुग़ल बादशाहों ने बाद में बहुत सी नहरों का निर्माण किया। बाद में ब्रिटिश शासकों ने सिंचाई प्रणाली का और भी विस्तार किया।
  
अब गंगा के पास पहुँचने पर स्नान करने की पद्धति पर विचार किया जाएगा। गंगा स्नान के लिए संकल्प करने के विषय में निबन्धों ने कई विकल्प दिये हैं। प्रायश्चित्ततत्त्व (पृष्ठ 497-498) में विस्तृत संकल्प दिया हुआ है। गंगावाक्यावली के संकल्प के लिए देखिए नीचे की टिप्पणी।<ref>अद्यामुके मासि अमुकपक्षे अमुकतिथौ सद्य:पापप्रणाशपूर्वकं सर्वपुण्यप्राप्तिकामोगंगाया स्नानमहं करिष्ये। गंगावा. (पृष्ठ 141)। और देखिए तीर्थचि. (पृष्ठ 206-207), जहाँ गंगास्नान के पूर्वक लिंक संकल्पों के कई विकल्प दिये हुए हैं।</ref> मत्स्य. (102) में जो स्नान विधि दी हुई है वह सभी वर्णों एवं वेद के विभिन्न शाखानुयायियों के लिए समान है। मत्स्यपुराण (अध्याय 102) के वर्णन का निष्कर्ष यों है- बिना स्नान और शरीर की शुद्धि एवं शुद्ध विचारों का अस्तित्व नहीं होता। इसी से मन को शुद्ध करने के लिए सर्वप्रथम स्नान की व्याख्या होती है। कोई किसी कूप या धारा से पात्र में जल लेकर स्नान कर सकता है या बिना इस विधि से भी स्नान कर सकता है। ‘नमो नारायणाय’ मंत्र के साथ बुद्धिमान लोगों को तीर्थस्थल का ध्यान करना चाहिए। हाथ में दर्भ (कुश) लेकर, पवित्र एवं शुद्ध होकर आचमन करना चाहिए। चार वर्गहस्त स्थल को चुनना चाहिए और निम्न मंत्र के साथ गंगा का आवाहन करना चाहिए; "तुम विष्णु के चरण से उत्पन्न हुई हो, तुम विष्णु से भक्ति रखती हो, तुम विष्णु की पूजा करती हो, अत: जन्म से मरण तक किये गए पापों से मेरी रक्षा करो। स्वर्ग, अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी में 35 करोड़ तीर्थ हैं; है जाह्नवी गंगा, ये सभी देव तुम्हारे हैं। देवों में तुम्हारा नाम नन्दिनी (आनन्द देने वाली) और नलिनी भी है तथा तुम्हारे अन्य नाम भी हैं, यथा-दक्षा, पृथ्वी, विहगा, विश्वकाया, अमृता, शिवा, विद्याधरी, सुप्रशान्ता, शान्तिप्रदायिनी।"<ref>स्मृतिचन्द्रिका (1, पृष्ठ 182) ने मत्स्य. (102) के श्लोक (1-8) उदधृत किये हैं। स्मृतिचन्द्रिका ने वहीं गंगा के 12 विभिन्न नाम दिए हैं। पद्म. (4|81|17-19) में मत्स्य. के नाम पाये जाते हैं। इस अध्याय के आरम्भ में गंगा के सहस्र नामों की ओर संकेत किया जा चुका है।</ref> स्नान करते समय इन नामों का उच्चारण करना चाहिए। तब तीन लोकों में बहने वाली गंगा पास में चली आयेगी (भले ही व्यक्ति घर पर ही स्नान कर रहा हो)। व्यक्ति को उस जल को, जिस पर सात बार मंत्र पढ़ा गया हो, तीन या चार या पाँच या सात बार सिर पर छिड़कना चाहिए। नदी के नीचे की मिट्टी का मंत्र पाठ के साथ लेप करना चाहिए। इस प्रकार स्नान एवं आचमन करके व्यक्ति को बाहर आना चाहिए और दो श्वेत एवं पवित्र वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके उपरान्त उसे तीन लोकों के सन्तोष के लिए देवों, ऋषियों एवं पितरों का यथाविधि तर्पण करना चाहिए।<ref>तर्पण के दो प्रकार हैं-प्रधान एवं गौण। प्रथम विद्याध्ययन समाप्त किये हुए द्विजों द्वारा देवों, ऋषियों एवं पितरों के लिए प्रतिदिन किया जाता है। दूसरा स्नान के अंग के रूप में किया जाता है। नित्यं नैमित्तिकं काम्यं त्रिविधं स्नानमुच्यते। तर्पणं तु भवेत्तस्य अंगत्त्वेन प्रकीर्तितम्।। ब्रह्म. (गंगाभक्ति., 162)। तर्पण स्नान एवं ब्रह्मयज्ञ दोनों का अंग है। इस विषय में देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड 2, अध्याय 17। तर्पण अपनी वेद शाखा के अनुसार होता है। दूसरा नियम यह है कि तर्पण तिलयुक्त जल से किसी तीर्थस्थ्ल, गया में, पितृपक्ष (आश्विन के कृष्णपक्ष) में किया जाता है। विधवा भी किसी तीर्थ में अपने पति या सम्बन्धी के लिए तर्पण कर सकती है। संन्यासी ऐसा नहीं करता। पिता वाला व्यक्ति भी तर्पण नहीं करता। किन्तु विष्णुपुराण के मत से वह तीन अंजिली देवों, तीन ऋषियों को एवं एक प्रजापति (‘देवास्तुप्यन्ताम्’ के रूप में) को देता है। एक अन्य नियम यह हे कि एक हाथ (दाहिने) से श्राद्ध में या अग्नि में आहुति दी जाती है, किन्तु तर्पण में दोनों हाथों से जल स्नान करने वाली नदी में डाला जाता है या फिर भूमि पर छोड़ा जाता है-‘श्राद्धे हवनकाले च पाणिनैकेन दीयते। तर्पणे तूभयं कुर्यादिष एव विधि:स्मृत।। नारदीय. (उत्तर, 57|62-63)’ यदि कोई विस्तृत विधि से तर्पण न कर सके तो वह निम्न मंत्रों के साथ (जो वायुपुराण, 110|21-22 में दिये हुए हैं) तिल एवं कुश से मिश्रित जल की तीन अंजलियाँ दे सकता है-‘आब्रह्मस्तम्बपर्यन्त देवर्षिपितृमानवा:। तृप्यन्तु पितर: सर्वे मातृमातामहादय:।। अतीतकुलकोटीनां सप्तद्वीपनिवासिनाम्। आब्रह्मयुभ-नाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम्।।’</ref>
+
उत्तर प्रदेश और बिहार स्थित गंगा घाटी के कृषि क्षेत्रों को सिंचाई नहरों की प्रणाली से बहुत लाभ हुआ है। ख़ासतौर से इस विकसित सिंचाई प्रणाली के कारण गन्ना, कपास और तिलहन जैसी नक़दी फ़सलों की पैदावार में वृद्धि सम्भव हुई। पुरानी नहरें मुख्यत: गंगा-यमुना के दौआब इलाक़े में हैं। ऊपरी गंगा नहर हरिद्वार से शुरू होती है और अपनी सहायक नहरों सहित 9,524 किमी. लम्बी है। निचली गंगा नहर की लम्बाई अपनी सहायक नहरों सहित 8,238 किमी. है और यह नरोरा से प्रारम्भ होती है। शारदा नहर से उत्तर प्रदेश में अयोध्या की भूमि सींची जाती है। गंगा के उत्तर में भूमि की ऊँचाई अधिक होने से नहरों के द्वारा सिंचाई करना कठिन होने के कारण भूमिगत जल पम्प द्वारा खींचकर सतह पर लाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार के काफ़ी बड़े इलाक़े में हाथ से खोदे हुए कुओं से निकली नहरों के द्वारा सिंचाई की जाती है।
 +
बांग्लादेश में गंगा-कबाडाक योजना मुख्यत: सिंचाई के लिए ही है और उसमें खुलना, जेशोर और कुश्तिया ज़िलों के वे हिस्से आते हैं, जो डेल्टा के कमज़ोर हिस्से हैं, जहाँ नदियों का मार्ग गाद और घनी झाड़ियों के कारण अवरुद्ध हो चुका है।
 +
इस इलाक़े में कुल वार्षिक वर्षा सामान्यत: 1,524 मिमी. से कम होती है तथा शीत ऋतु तुलनात्मक रूप से शुष्क रहती है। यहाँ की सिंचाई प्रणाली भी नहरों तथा भूमिगत जल खींचने वाले विद्युतचालित उपकरणों पर आधारित है।
 +
====नौकायन====
 +
प्राचीन काल में गंगा और इसकी कुछ सहायक नदियाँ, ख़ासतौर से पूरब में, नौकायन के उपयुक्त थीं। मेगस्थनीज़ के अनुसार, चौथी शताब्दी ई. पू. में गंगा और इसकी प्रमुख सहायक नदियों में नौकायन होता था। गंगा के बेसिन में अंतर्देशीय नदी नौकायन 14वीं शताब्दी तक भी फल-फूल रहा था। 19वीं सदी के आते-आते सिंचाई तथा नौकायन के लिए उपयुक्त नहरों की जल परिवहन प्रणाली के प्रमुख मार्ग बन चुके थे। पैंडल स्टीमरों के आगमन से अंतर्देशीय परिवहन में भी जो क्रान्ति आई, उससे बंगाल और बिहार के नील उद्योग को बहुत बढ़ावा मिला। गंगा में कलकत्ता से इलाहाबाद और उससे आगे यमुना में आगरा तक तथा उधर ब्रह्मपुत्र तक नियमित स्टीमर सेवाएँ चलने लगीं।
 +
19वीं सदी के मध्य में रेलमार्गों के बनने से बड़े पैमाने पर जल परिवहन में गिरावट शुरू हो गई। सिंचाई हेतु पानी बहुत अधिक मात्रा में खींच लिए जाने से भी नौकायन विपरीत रूप से प्रभावित हुआ। अब तो नौकायन केवल इलाहाबाद के आसपास के मध्य गंगा बेसिन तक ही सीमित होकर रह गया है, जिसमें से अधिकांश देसी नौकाओं पर आधारित हैं।
  
यहाँ यह ज्ञातव्य है कि मत्स्य. (102|2-31) के श्लोक, जिनका निष्कर्ष ऊपर दिया गया है, कुछ अन्तरों के साथ पद्म. (पातालखण्ड 81|12-42 एवं सृष्टिखण्ड 20|145-176) में भी पाये जाते हैं। प्रायश्चित्ततत्त्व (पृष्ठ 502) में गंगा स्नान के समय के मंत्र दिये हुए हैं।<ref>विष्णुपादाब्जसम्भूते गंगे त्रिपथगामिनि। धर्मव्रतेति विख्याते पापं में हर जाह्नवी।। श्रद्धया भक्तिसम्पन्ने श्रीमातर्देवि जाह्नवि। अमृतेनाम्बुना देवि भागीरथी पुनीह माम्।। स्मृति. (1|131); प्रा. तत्त्व. (502); त्वं देव सरितां नाथ त्वं देवि सरितां वरे। उभयो: संगमे स्नात्वा मुञ्चामि दुरितानि वै।। वही। और देखिए पद्मत्र (सृष्टिखण्ड, 60|60)</ref>
+
वैसे पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश अब भी जूट, घास, चाय, अनाज तथा अन्य कृषि और ग्रामीण उत्पादों के परिवहन के लिए जलमार्गों पर निर्भर हैं। बांग्लादेश में चालना, खुलना, बारीसाल, चाँदपुर, नारायणगंज, ग्वालुंदो घाट, सिरसागंज, भैरव बाज़ार तथा फेंचूगंज और भारत में कोलकाता, गोलपाड़ा, धुबुरी और डिब्रूगढ़ प्रमुख नदी बंदरगाह हैं। 1947 में भारत के विभाजन से बड़े दूरगामी परिवर्तन हुए। कलकत्ता से असम तक अंतर्देशीय जलमार्गों के द्वारा पहले बड़े पैमाने पर होने वाला व्यापार लगभग बन्द ही हो गया।
  
हमनें इस ग्रन्थ के इस खण्ड के अध्याय 7 में देख लिया है कि विष्णुधर्मसूत्र आदि ग्रन्थों ने अस्थि-भस्म या जली हुई अस्थियों का प्रयाग या काशी या अन्य तीर्थों में प्रवाह करने की व्यवस्था दी है। हमने अस्थि प्रवाह की विधि का वर्णन वहाँ कर दिया है, दो एक बातें यहाँ पर जोड़ दी जा रही हैं। इस विषय में एक ही श्लोक कुछ अन्तरों के साथ कई ग्रन्थों में आया है।<ref>वाचदस्थि मनुष्यस्य गंगाया: स्पृशते जलम्। तावत्स पुरुषो राजन स्वर्गलोके महीयते।। वनपर्व (85|94=पद्म. 1|39|87); अनुशासन पर्व (36|32) में आया है-‘यावदस्थीनि गंगायां तिष्ठन्ति हि शरीरिण:। तावद्वर्षसहस्राणि......महीयते।।’ यही बात मत्स्य. (106|52) में भी है। कूर्म. (1|37|32) ने ‘पुरुषस्य तु’ पढ़ा है। नारद. (43|101) में आया है-‘यावन्त्यस्थीनि गंगायां तिष्ठन्ति पुरुषस्य’ वै। तावद्वर्ष....महीयते।’ पुन: नारद. (उत्तर, 62|51) में आया है-यावन्ति नखलोमानि गंगातोये पतन्ति वै। तावद्वर्ष सहस्राणि स्वर्गलोके महीयते।। नारदीय. (पूर्वार्ध, 15|163)-केशास्थिनखदन्ताश्च भस्मापि नृपसत्तम। नयन्ति विष्णुसदनं स्पृष्टा गांगेन आरिणा।।</ref> अग्निपुराण में आया है-‘मृत व्यक्ति का कल्याण होता है, जबकि उसकी अस्थियाँ गंगा में डाली जाती हैं। जब तक गंगा के जल में अस्थि का एक टुकड़ा भी रहता है, तब तक व्यक्ति स्वर्ग में निवास करता है।’ आत्मघातियों एवं पतितों की अन्येंष्टि क्रिया नहीं की जाती, किन्तु यदि उनकी अस्थियाँ भी गंगा में रहती हैं तो इनका भी कल्याण होता है। तीर्थचि. एवं तीर्थप्र. ने ब्रह्म. के ढाई श्लोक उद्धृत किये हैं जो अस्थि-प्रवाह के कृत्य को निर्णय सिन्धु की अपेक्षा संक्षेप में देते हैं।<ref>स्नात्वा तत: पंचगवेन सिक्त्वा हिरण्यमध्वाज्यतिलेन योज्यम्। ततस्तु मृत्पिण्डपुटे निधाय पश्यन दिशं प्रेतगणोक्गूढाम्।। नमोऽस्तु धर्माय वदन् प्रविश्य जलं स मे प्रीत इति क्षिपेच्च। स्नात्वा तथोत्तीर्य च भास्करं च दृष्ट्वा प्र.... दक्षिणां तु।। एवं कृते प्रेतपुरस्थितस्य स्वर्गे गति: स्यात्तु महेन्द्रतुल्या। ब्रह्म. (तीर्थचि., पृष्ठ 265-266 एवं तीर्थप्र., पृष्ठ 374)। गंगावा. (पृष्ठ 272) ने कुछ अन्तर के साथ इसे ब्रह्माण्ड. से उदधृत किया है, यथा-‘यस्तु सर्वहितो विष्णु: स मे प्रीत इति क्षिपेत्।’ और देखिए नारद. (उत्तर, 43|113-115)</ref> श्लोकों का अर्थ यह है-‘अस्थियों को ले जाने वाले को स्नान करना चाहिए; अस्थियों पर पंचगव्य छिड़कना चाहिए, उन पर सोने का एक टुकड़ा, मधु एवं तिल रखना चाहिए तथा यह कहना चाहिए कि "धर्म को नमस्कार"। इसके उपरान्त गंगा में प्रवेश कर यह कहना चाहिए ‘धर्म (या विष्णु) मुझसे प्रसन्न हों’ और अस्थियों को जल में बहा देना चाहिए। इसके उपरान्त उसे स्नान करना चाहिए। बाहर निकलकर सूर्य को देखना चाहिए और किसी ब्राह्मण को दक्षिणा देनी चाहिए। यदि वह ऐसा करता है तो मृत की स्थिति इन्द्र के समान हो जाती है।’ और देखिए स्कन्द. (काशीखण्ड, 30|42-46) जहाँ यह विधि कुछ विशद रूप में वर्णित है। गंगा में अस्थि प्रवाह की परम्परा सम्भवत: सगर पुत्रों की गाथा से उत्पन्न हुई है। सगर के पुत्र कपिल ऋषि के क्रोध से भस्म हो गए थे और भगीरथ के प्रयत्न से स्वर्ग से नीचे लाई गई गंगा के जल से उनकी भस्म बहा दी गई तब उन्हें रक्षा मिली। इस कथा के लिए देखिए वनपर्व (अध्याय 107-109) एवं विष्णुपुराण (2|8-10)। नारदीय. के मत से न केवल भस्म हुई अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने से मृत को कल्याण प्राप्त होता है, प्रत्युत नख एवं केश डाल देने से भी कल्याण होता है। स्कन्द. (काशीखण्ड, 27|80) में आया है कि जो लोग गंगा के तट पर खड़े होकर दूसरे तीर्थ की प्रशंसा करते हैं या गंगा की प्रशंसा करने या महत्ता गाने में नहीं संलग्न रहते वे नरक में जाते हैं।<ref>तीर्थमन्यत्प्रशंसन्ति गंगातीरे स्थिताश्च ये। गंगां न बहु मन्यन्ते ते स्युर्निरयगामिन:।। स्कन्द. (काशीखण्ड, 27|80)।</ref> काशीखण्ड ने आगे व्यवस्था दी है कि विशिष्ट दिनों में गंगास्नान से विशिष्ट एवं अधिक पुण्यफल प्राप्त होते हैं, यथा-साधारण दिनों की अपेक्षा अमावस पर स्नान करने से सौ गुना फल प्राप्त होता है। संक्रान्ति पर स्नान करने से सहस्र गुना, सूर्य या चन्द्र ग्रहण पर स्नान करने से सौ लाख गुना और सोमवार के दिन चन्द्रग्रहण पर या रविवार के दिन सूर्य-ग्रहण पर स्नान करने से असंख्य फल प्राप्त होता है।<ref>दर्शे शतगुणं पुण्यं संक्रान्तौ च सहस्रकम्। चन्द्रसूर्यग्रहेलक्षं व्यतीपाते त्वनन्तकम्।।.....सोमग्रह: सोमदिने रविवारे रवेग्रह:। तच्चूडामणिपर्वाख्यं तत्र स्नानमसंख्यकम्।। स्कन्द. (काशीखण्ड, 27129-131)।</ref>
+
बांग्लादेश में अंतर्देशीय जल परिवहन की ज़िम्मेदारी अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण की है। भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों का नीति निर्धारण केन्द्रीय अंतर्देशीय जल परिवहन मण्डल (सेंट्रल वॉटर ट्रांसपोर्ट बोर्ड) करता है। लेकिन राष्ट्रीय जलमार्गों की व्यापक प्रणाली का विकास एवं रख-रखाव अंतर्देशीय जलमार्ग (इनलैंड वॉटरवेज़ अथॉरिटी) प्राधिकरण करता है। गंगा के बेसिन में इलाहाबाद से लेकर हल्दिया तक लगभग 1,607 किमी. लम्बा जलमार्ग इस प्रणाली में शामिल है।
 +
डेल्टा के मुख पर भारत की सीमा के ठीक भीतर फ़रक्का बाँध का निर्माण बांग्लादेश और भारत के बीच विवाद का कारण बन गया है। भारत का कहना है कि गाद के जमने तथा खारा पानी घुस आने की वजह से कोलकाता बंदरगाह का पतन हो गया है। कोलकाता की स्थिति में सुधार के लिए खारे पानी को निकालकर और जलस्तर को बढ़ाकर भारत ने फ़रक्का बैराज से गंगा को मोड़कर ताज़ा पानी हासिल करने की कोशिश की है। अब एक बड़ी नहर द्वारा पानी भागीरथी नदी में लाया जाता है, जो कोलकाता से परे हुगली नदी में समाहित होता है।
  
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
+
बांग्लादेश का कहना है कि नदियों के तटवर्ती देशों की परस्पर समृद्धि के लिए यह ज़रूरी है कि अंतर्देशीय नदियों के पानी पर उनका संयुक्त नियंत्रण होना चाहिए। सिंचाई, नौकायन तथा खारे पानी की रोकथाम के लिए गंगा का पानी बांग्लादेश में भी उतना ही आवश्यक है, जितना भारत के लिए। बांग्लादेश के अनुसार, फ़रक्का बाँध ने उसे पानी के एक ऐसे बहुमूल्य स्रोत से वंचित कर दिया है, जो कि उसकी समृद्धि के लिए आवश्यक है। दूसरी तरफ़ भारत गंगाजल की समस्या के बारे में द्विपक्षीय रवैया अपनाये जाने के पक्ष में है। दोनों देशों के बीच कई अंतरिम समझौते हुए हैं, लेकिन अभी तक इस विवाद का कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया है। भारत के असम में ब्रह्मपुत्र के पानी को बांग्लादेश से होकर एक नहर द्वारा गंगा में मोड़ने के प्रस्ताव के जवाब में बांग्लादेश ने सुझाया है कि पूर्वी नेपाल, पश्चिम बंगाल होते हुए एक नहर बांग्लादेश तक बनाई जाए। किसी भी प्रस्ताव को सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। 1987 तथा 1988 में बांग्लादेश में आई प्रलयंकारी बाढ़ों, जिसमें 1988 की बाढ़ उस देश के इतिहास की सर्वाधिक विनाशकारी बाढ़ थी, को देखते हुए विश्व बैंक ने इस क्षेत्र के लिए अब बाढ़ नियंत्रण की एक दूरगामी योजना बनाई है।
<references/>
+
====पनबिजली योजना====
 +
गंगा की लगभग 130 लाख किलोवाट की अनुमानित जलविद्युत क्षमता का 2/5 हिस्सा भारत में तथा शेष नेपाल में है। इस क्षमता में से कुछ का दोहन भारत ने चंबल और रिहंद नदियों द्वारा किया है।
 +
गंगा का मैदान दुनिया की सबसे घनी आबादी वाला तथा उपजाऊ इलाक़ों में से एक है। चूँकि इस मैदानी क्षेत्र में अवरोध न के बराबर है, इसीलिए गंगा की धारा अधिकांश इलाक़े में चौड़ी व धीमी गति से प्रवाहित है। उसके कुल अपवाह बेसिन का 9,75,900 वर्ग किमी. क्षेत्रफल, यानी भारत के कुल क्षेत्र का लगभग चौथाई हिस्सा है और उस पर लगभग 50 करोड़ की आबादी निर्भर करती है। इस बेसिन की भूमि पर गहन खेती होती है। गंगा प्रणाली की जलापूर्ति आंशिक रूप से जुलाई से अक्टूबर के बीच होने वाली मानसून की वर्षा और अप्रैल से जून के बीच हिमालय पर गर्मी से पिघलने वाली बर्फ़ पर निर्भर करती हैं।
 +
भारतीय उपमहाद्वीप का यह विस्तृत उत्तर-मध्य खण्ड, जिसे उत्तर भारतीय मैदान भी कहा जाता है, पश्चिम में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी और गंगा के डेल्टा से लेकर सिंधु नदी घाटी तक फैला हुआ है। इस इलाक़े में इस उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध और सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। इस मैदान का अधिकांश हिस्सा गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के द्वारा पूर्व में सिंध नदी द्वारा पश्चिम में बहकर लाई गई कछारी मिट्टी से बना हुआ है। मैदान के पूर्वी हिस्सों में कम बारिश या सर्दियाँ शुष्क होती हैं। किन्तु मानसून की वर्षा इतनी अधिक होती है कि बड़े-बड़े इलाक़ों में दलदल या उथली झीलें बन जाती हैं। ज्यों-ज्यों पश्चिम की ओर बढ़ते हैं, यह मैदान शुष्क होता चला जाता है और अन्त में थार के रेगिस्तान में बदल जाता है।
 +
==पौराणिक प्रसंग==
 +
पुराणों के अनुसार विवद्गंगा, आकाशगंगा अथवा स्वर्गगंगा विष्णु के अँगूठे से निकली है, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के स्तवन से कपिल द्वारा भस्मीकृत राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों को पवित्र करने के लिए हुआ। भगीरथ के साथ इसी सयोग के कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा। पौराणिक परम्परा है कि स्वर्ग से उतरने के कारण गंगा अत्यन्त कुपित हो उठी थीं और उसके कोप के कारण पृथ्वी पर उसकी धारा पड़ते ही उसके बहकर नष्ट हो जाने के भय से शिव ने अपनी जटा में उसे समेट लिया, जिससे उनकी जटाओं में उलझ जाने के कारण धारा पृथ्वी पर सीधी नहीं पड़ी और गंगा की गति मन्द हो गई। इसी सम्बन्ध में शिव का एक नाम गंगाधर भी पड़ा। गंगा का अवतरण तपस्वी जह्नु के यज्ञ के लिए घातक हुआ, जिससे क्रुद्ध होकर उस तापस ने गंगा को पी डाला और प्रार्थना के बाद उसने कान से गंगा की धारा निकाल दी, जिससे वह जाह्नवी कहलाई हैं। एक दूसरे पौराणिक आख्यान के अनुसार गंगा हिमालय और मैना की पुत्री तथा उमा की भगिनी थीं। महाभारत की एक कथा उसे कुरुराज शान्तनु की पत्नी और भीष्म की माता बताती है। जिसमें भीष्म का दूसरा नाम गांगेय भी है। गंगा का सम्बन्ध कार्तिकेय के मातृत्व से भी है। हिन्दुओं के जितने तीर्थ इस नदी के तीर पर हैं, उतने कहीं पर नहीं और उसकी पवित्रता का प्रभाव तो भारतीयों पर इतना गहरा पड़ा कि उन्होंने अनेक दूसरी नदियों के नाम भी गंगा रख दिये। जहाँ-जहाँ भारतीय संस्कृति का विस्तार हुआ, वहाँ-वहाँ गंगा की पवित्रता का विविध रूप से उल्लेख हुआ। गंगा की मकर पर आरूढ़ चँवर अथवा कलश धारिणी मूर्तियाँ भी गुप्तकाल में बनने लगी थीं।(म. भा., वनपर्व, अध्याय 12, 42, 47, 83-88, 90, 93, 95, 99, 107-109 आदि।)
 +
====आठ वसुओं की माँ====
 +
गंगा-यमुना के मध्य का समस्त भूभाग ययाति ने पुरु को दिया था। गंगा आठ वसुओं की माँ हैं। वसुओं ने गंगा से कहा था कि शान्तनु से उनके गर्भ धारण करने के उपरान्त उनके जन्मते ही जल में प्रवाहित कर देना। गंगा ने शान्तनु से उत्पन्न सात वसु जल में प्रवाहित कर दिए। आठवें वसु (भीष्म) को शान्तनु ने बचा लिया।
 +
(म. भा., आदिपर्व, अध्याय 2, 3, 61, 63, 67, 70, 87, 95-10।)

Revision as of 11:04, 12 May 2011

ganga nadi, uttar bharat ke maidanoan ki vishal nadi hai. himalay se nikalakar bangal ki kha di mean girane vali ganga bharat ke lagabhag ek-chauthaee bhookshetr ko apavahit karati hai tatha apane besin mean base virat janasamuday ke jivan ka adhar banati hai. jis ganga ke maidan se hokar yah pravahit hoti hai, vah is kshetr ka hriday sthal hai, jise hindustan kahate haian. yahaan tisari sadi mean ashok mahan ke samrajy se lekar 16vian sadi mean sthapit mugal samrajy tak sari sabhyataean vikasit hueean. ganga nadi apana adhikaansh safar bharatiy ilaqe mean hi tay karati hai, lekin usake vishal delta kshetr ka adhikaansh hissa baangladesh mean hai. ganga ke pravah ki samanyat: disha uttar-pashchimottar se dakshin-poorv ki taraf hai aur delta kshetr mean pravah amataur se dakshin mukhi hai.

bharatiy bhashaoan mean tatha adhikrit roop se ganga nadi ko aantarrashtriy star par isake aangrezikrit nam ‘d gaijiz’ se hi jana jata hai. ganga sahasrabdiyoan se hinduoan ki pavitr tatha poojaniy nadi rahi hai. apane adhikaansh marg mean ganga ek chau di v mand dhara hai aur vishv ke sabase zyada upajaoo aur ghani abadi vale ilaqoan se hokar bahati hai. itane mahatv ke bavazood isaki lambaee 2,510 kilomitar hai, jo eshiya ya vishv star ki tulana mean koee bahut zyada nahian hai.

patitapavani

bharat ki pavan nadi, jisaki jaladhara mean snan se papamukti aur jalapan se shuddhi hoti hai. yah prasiddh nadi, himachal pradesh mean gangotri se nikalakar madhyadesh se hoti huee pashchim bangal ke pare gangasagar mean milati hai. ganga ki ghati sansar ki urvaratam ghatiyoan mean se ek hai aur sarayoo, yamuna, son adi anek nadiyaan usase a milati haian. usaki ghati bharatiy sabhyata ke vikas mean anyatam rahi haian. ganga ko bharatiy sanskriti mean vishisht yogadan ke karan hi use asadharan mahima mili hai, jisase vah ‘patitapavani’ kahalati hai.

rrigved ke nadisookt mean ganga ki stuti huee hai aur puranoan ne usaki mahima ka anant bakhan kiya hai. ganga ki dhara, jo paha doan mean mandakini aur alakananda ki dharaoan ke sammilan se banati hai, himalay mean atyant kshin hai aur haridvar ke oopar kanakhal ke samip uttari maidan mean prashast hokar bahati hai aur barasat mean usake jal ka veg bhayavah ho uthata hai.

bhautik visheshataean

bhoo-akriti

ganga ka udgam dakshini himalay mean tibbat sima ke bharatiy hisse se hota hai. isaki paanch arambhik dharaoan bhagirathi, alakananda, mandakini, dhauliganga tatha piandar ka udgam uttarakhand kshetr, jo uttar pradesh ka ek sanbhag tha (vartaman uttaraanchal rajy) mean hota hai. do pramukh dharaoan mean b di alakananda ka udgam himalay ke nanda devi shikhar se 48 kilomitar door tatha doosari bhagirathi ka udgam himalay ki gangotri namak himanad ke roop mean 3, 050 mitar ki ooanchaee par barf ki gufa mean hota hai. gangotri hinduoan ka ek tirth sthan hai. vaise gangotri se 21 kilomitar dakshin-poorv sthit gomukh ko ganga ka vastavik udgam sthal mana jata hai.

dev prayag mean alakananda aur bhagirathi ka sangam hone ke bad yah ganga ke roop mean dakshin himalay se rrishikesh ke nikat bahar ati hai aur haridvar ke bad maidani ilo mean pravesh karati hai. haridvar bhi hinduoan ka tirth sthan hai. nadi ke pravah mean mausam ke anusar ane vale tho de-bahut parivartan ke bavajood isake jal ki matra mean ullekhaniy vriddhi tab hoti hai, jab isamean any sahayak nadiyaan milati haian tatha yah adhik varsha vale ilaqe mean pravesh karati hai. ek taraf aprail se joon ke bich himalay mean pighalane vali barf se isaka poshan hota hai, vahian doosari or julaee se sitambar ke bich ka manasoon isamean ane vali badhoan ka karan banata hai. uttar pradesh rajy mean isake dahine dahine tat ki sahayak nadiyaan, yamuna rajadhani dilli hote hue ilahabad mean ganga mean shamil hoti hai tatha tons nadi hai, jo madhy pradesh ke viandhyachal se nikalakar uttar ki taraf pravahit hoti haian aur shighr hi ganga mean shamil ho jati haian. uttar pradesh mean baeean taraf ki sahayak nadiyaan ramaganga, gomati tatha ghaghara haian.

isake bad ganga bihar rajy mean pravesh karati hai, jahaan isaki mukhy sahayak nadiyaan himalay kshetr ki taraf se gandak, boodhi gandak, kosi tatha ghughari haian. dakshin ki taraf se isaki mukhy sahayak nadi son hai. yahaan se yah nadi rajamahal paha diyoan ka chakkar lagati huee dakshin-poorv mean pharakka tak pahuanchati hai, jo is delta ka sarvochch bindu hai. yahaan se ganga bharat mean antim rajy pashchim bangal mean pravesh karati hai, jahaan uttar ki taraf se isamean mahananda milati hai (samooche pashchim bangal aur baangladesh mean sthaniy abadi ganga ko padma kahakar pukarati hai). ganga ke delta ki sudoor pashchimi shakha hugali hai, jisake tat par mahanagar kolakata (bhootapoorv kalakatta) basa hua hai. svayan hugali mean pashchim se akar usaki do sahayak nadiyaan damodar v roopanarayan shamil hoti haian. baangladesh mean gvaluando ghat ke nikat ganga mean vishal brahmaputr shamil hoti hai (in donoan ke sangam ke 241 kilomitar pahale tak ise phir yamuna ke nam se bulaya jata hai). ganga aur brahmaputr ki sanyukt dhara hi padma kahalane lagati hai aur chaandapur ke nikat vah meghana mean shamil ho jati hai. isake bad yah virat jalarashi anek pravahoan mean vibhajit hokar bangal ki kha di mean sama jati hai. baangladesh ki rajadhani dhaka dhaleshvadi nadi ki sahayak nadi boodhi ganga ke tat par sthit hai. jin nadi shakhaoan se ganga ka delta banata hai, usaki hugali aur meghana ke alava any shakhaean pashchim bangal mean jalaangi aur baangladesh mean mataganga, bhairab, kabadak, garaee-madhumati tatha ariyal khan haian.

  • delta kshetr mean sthit ganga ki sabhi sahayak nadiyaan aur shakhaean mausam mean parivartanoan ke karan aksar apana rasta badal leti haian. ye parivartan idhar, visheshakar 1750 ee. ke bachh se zyada hone lage haian. brahmaputr 1785 ee. tak maimanasianh shahar ke pas se bahati thi, ab yah vahaan se 64 kilomitar pashchim mean ganga mean milati hai.
  • ganga tatha brahmaputr ki nadi ghatiyoan se bahakar aee huee gad se bane delta ka kshetraphal 60,000 varg kimi. hai tatha usaka nirman mitti, ret tatha kh diya ki kramik paratoan se hua hai. yahaan par s di-gali vanaspati (pit) lignait (bhoore koyale) ki paratean bhi un ilaqoan mean milati haian, jahaan pahale ghan van hue karate the. delta mean naharoan ke asapas bad mean prakritik roop se bahut-sa khadar bhi jama hua hai.
  • ganga delta ki dakshini satah ka nirman tez gati se tatha tulanatmak roop se hal mean bahakar aee gad ki bhari matra se hua hai. poorab mean samudr ki taraf isi gad ke karan b di tezi se ne-ne bhookshetr (nadi dvip) banate ja rahe haian, jinhean ‘char’ kahate haian. vaise delta ka pashchimi samudri tat 18vian sadi ke bad se lagabhag aparivartit hai.
  • pashchim bangal ki nadiyoan ka pravah bahut dhima hai aur unase kafi kam pani samudr mean pravahit hota hai. baangladeshi delta kshetr mean nadiyaan chau di tatha gatiman haian aur unamean pani vipul matra mean bahata hai. ye nadiyaan anek sankari paha diyoan se paraspar ju di huee haian.
  • varsha rritu (joon se aktoobar) mean is ilaqe mean kritrim roop se nirmit uchchabhoomi par basae ge gaanv kee fit pani mean doob jate haian. is mausam mean in bastiyoan ke bich avagaman ka ekamatr sadhan naukaean hi hoti haian.
  • samooche delta kshetr ka samudratatiy ilaqa daladali hai. yah poora kshetr sundaravan kahalata hai aur bharat v baangladesh, donoan ne ise sanrakshit kshetr ghoshit kar rakha hai.
  • is delta ke kuchh hissoan mean jangali vanaspatiyoan tatha dhan se nirmit pit ki paratean haian. anek prakritik khaiyoan (biloan) mean us pit ke banane ki kriya jari hai. jisaka upayog sthaniy kisan khad tatha sukhakar ghareloo tatha audyogik eedhan ke roop mean karate haian.

jalavayu

ganga ke besin mean is upamahadvip ki vishalatam nadi pranali sthit hai. yahaan jal ki apoorti mukhyat: julaee se aktoobar ke bich dakshin-pashchimi manasoon tatha aprail se joon ke bich grishm rritu ke dauran pighalane vali himalay ki barf se hoti hai. nadi ke besin mean manasoon ke un katibandhiy toofanoan se bhi varsha hoti hai, jo joon se aktoobar ke bich bangal ki kha di mean paida hote haian. disambar aur janavari mean bahut kam matra mean varsha hoti hai. ausat varshik varsha besin ke pashchimi sire mean 760 mimi. se lekar poorvi sire par 2,286 mimi. ke bich hoti hai (uttar pradesh mean ganga ke oopari kachhar mean jahaan ausat varsha 762 se 1,016 mimi. hoti hai, vahian bihar ke madhyavarti maidan mean yah ausat 1,016 se 1,524 mimi. tatha delta kshetr mean 1,524 se 2,540 mimi. ke bich hai). delta kshetr mean manasoon ke prarambh (march se mee) tatha manasoon ke ant (sitambar se aktoobar) mean zoradar chakravati samudri toofan ate haian. inase kafi b di matra mean manav jivan, sampatti, fasaloan tatha pashuoan ka nuqasan hota hai. aisa hi ek bhishan vinashakari toofan navambar, 1970 mean aya tha, jisamean kam se kam do lakh aur adhik se adhik paanch lakh logoan ki maut huee thi.

chooanki ganga ke maidan mean utar-chadhav lagabhag n ke barabar hai, at: nadi pravah ki gati dhimi hai. dilli mean yamuna nadi se lekar bangal ki kha di ke 1,609 kimi. ke sampoorn fasale mean bhootal ki ooanchaee mean matr 213 mitar ki kami ati hai. ganga-brahmaputr ke maidan ka kul vistar 7,77,000 varg kimi. hai. is maidan mean mitti ki satah, jo kahian-kahian 1,829 mitar se bhi zyada hai, sambhavat: 10 hazar varsh se adhik purani nahian hai.

vanaspati

ganga-yamuna ke ilaqe mean kabhi ghane jangal hua karate the. aitihasik granthoan se pata chalata hai ki 16vian aur 17vian sadi tak yahaan jangali hathi, gaur, barahasianga, gaianda, bagh tatha sher ka shikar hota tha. ganga ke sampoorn besin se vahaan ki mool prakritik vanaspatiyaan lupt ho gee haian aur vahaan ab lagatar badhati abadi ka pet bharane ke lie vyapak roop mean kheti ki jati hai. hiran, jangali sooar, jangali billiyaan tatha kuchh bhe die, bhaloo, siyar aur lom di ko chho dakar jangali janavar bahut kam haian. delta ke sundaravan ilaqe mean bangal taigar (sher), magaramachchh tatha daladali hiran ab bhi mil jate haian. nadiyoan mean, khasataur se delta kshetr mean machhaliyaan vipul matra mean paee jati haian aur sthaniy nivasiyoan ke bhajan ka mahatvapoorn hissa hai. yahaan par maina, tota, kaua, chil, titar aur murgabi jaise pakshiyoan ki bhi kee qismean paee jati haian. ja de ke mausam mean battakh aur chaha pakshi ooanche himalay ko par karake dakshin mean pani se ghire kshetroan ki taraf pravas karate haian. bangal ke ilaqe mean amataur se paee jane vali machhaliyoan mean fedar baik (notopteridi), v aaukiang kaitafish, gorami (enabaiantidi) tatha milkafish (chainidi), barb (siprainidi) adi pramukh haian.

janajivan

ganga ke besin ke nivasi nrijatiy roop se mishrit mool ke haian. pashchim aur madhy besin mean ve moolat: ary poorvajoan ki santan the. bad mean turk, mangol, afani, farasi tatha arab log pashchim se ay aur aantamishrit ho ge. poorab aur dakshin, khasataur se bangal ke ilaqe mean tibbati, barmi tatha vividh nasl ke paha di log bhi milate haian. inase bhi bad mean ane vale yooropiy log yahaan n to base aur n hi sthaniy logoan ke sath vivah sambandh banaye. aitihasik roop se ganga ke maidan se hi hindustan ka hriday sthal nirmit hai aur vahi bad mean ane vali vibhinn sabhyataoan ka palana bana. ashok ke ee. poo. ke samrajy ka kendr pataliputr (patana), bihar mean ganga ke tat par basa hua tha. mahan mugal samrajy ke kendr dilli aur agara bhi ganga ke besin ki pashchimi simaoan par sthit the. satavian sadi ke madhy mean kanapur ke uttar mean ganga tat par sthit kannauj, jisamean adhikaansh uttari bharat ata tha, harsh ke samantakalin samrajy ka kendr tha. muslim kal ke dauran, yani 12vian sadi se musalamanoan ka shasan n keval maidan, balki bangal tak phaila hua tha. delta kshetr ke dhaka aur murshidabad muslim satta ke kendr the. aangrezoan ne 17vian sadi ke uttararddh mean hugali ke tat par kalakatta (vartaman kolakata) ki sthapana karane ke bad dhire-dhire apane pair ganga ki ghati mean phailae aur 19vian sadi ke madhy mean dilli tak ja pahuanche. ganga ke maidan mean anek nagar base, jinamean mukhy roop se roo daki, saharanapur, merath, agara (mashahoor maqabare tajamahal ka shahar), mathura (bhagavan shrikrishna ki janmasthali ke roop mean poojaniy), aligadh, kanapur, bareli, lakhanoo, ilahabad, varanasi (pavitr shahar banaras), patana, bhagalapur, rajashahi, murshidabad, bardavan (varddhaman), kalakatta, hav da, dhaka, khulana aur barisal ullekhaniy haian. delta kshetr mean kalakatta aur usake upanagar hugali ke donoan kinaroan par lagabhag 80 kimi. kshetr mean phaile haian v bharat ke janasankhya, vyapar tatha udyog ko drishti se sabase ghane base hue ilaqoan mean gine jate haian.

dharmik mahatv

ganga nadi ka dharmik mahatv sambhavat: vishv ki kisi bhi any nadi se zyada hai. adikal se hi yah pooji jati rahi hai aur aj bhi hinduoan ke lie yah sabase pavitr nadi hai. ise devi svaroop mana jata hai. ek kianvadanti ke anusar, mahan tapasvi bhagirath ki prarthana par devi ganga ko svayan bhagavan vishnu ne is dharati par bheja. lekin ganga jis veg se dharati par avatarit hueean, usase unake marg mean ane vali har vastu ke jalaplavit hone ka khatara tha. isilie bhagavan shiv ne pahale hi unhean apani jataoan mean lapetakar unake veg ko niyantrit aur shant kiya. mukti chahane vale usake bad hi usamean snan kar pae. hinduoan ke tirthasthal vaise to samooche upamahadvip mean phail hue haian, tathapi ganga tat par base tirth hindoo dharmavalambiyoan ke lie vishesh mahatv rakhate haian. inamean pramukh hai, ilahabad mean ganga aur yamuna ka sangam, jahaan ek nishchit antaral par janavari-faravari mean kumbh ka mela ayojit hota hai. is anushthan ke samay lakhoan tirthayatri ganga mean snan karate haian. pavitr snan ki drishti se any tirth haian, varanasi, kashi aur haridvar. kalakatta mean hugali nadi bhi pavitr mani jati hai. tirthayatra ki drishti se ganga tat par gangotri aur alakananda aur bhagirathi ka sangam bhi mahatvapoorn hai. hindoo apane mritakoan ki bhasm evan asthiyaan yah manate hue yahaan visarjit karate haian ki aisa karane se mritak sidhe svarg mean jata hai. isilie ganga ke tat par kee sthanoan par shavadah hetu vishesh ghat bane hue haian.

arthavyavastha

sianchaee

sianchaee ke lie ganga ke pani ka upayog, chahe badh ka pani ho ya phir naharoan ka, puratan kal se hi prachalit hai. is tarah ki sianchaee ka ullekh dharmagranthoan tatha 2,000 se bhi zyada varsh pahale likhe puranoan mean milata hai. chauthi sadi mean yoonan se bharat ae rajadoot megasthaniz ne yahaan sianchaee ke upayog ka ullekh kiya hai. 12vian sadi se muslim kal mean sianchaee pranali bahut vikasit thi aur mugal badashahoan ne bad mean bahut si naharoan ka nirman kiya. bad mean british shasakoan ne sianchaee pranali ka aur bhi vistar kiya.

uttar pradesh aur bihar sthit ganga ghati ke krishi kshetroan ko sianchaee naharoan ki pranali se bahut labh hua hai. khasataur se is vikasit sianchaee pranali ke karan ganna, kapas aur tilahan jaisi naqadi fasaloan ki paidavar mean vriddhi sambhav huee. purani naharean mukhyat: ganga-yamuna ke dauab ilaqe mean haian. oopari ganga nahar haridvar se shuroo hoti hai aur apani sahayak naharoan sahit 9,524 kimi. lambi hai. nichali ganga nahar ki lambaee apani sahayak naharoan sahit 8,238 kimi. hai aur yah narora se prarambh hoti hai. sharada nahar se uttar pradesh mean ayodhya ki bhoomi sianchi jati hai. ganga ke uttar mean bhoomi ki ooanchaee adhik hone se naharoan ke dvara sianchaee karana kathin hone ke karan bhoomigat jal pamp dvara khianchakar satah par laya jata hai. uttar pradesh aur bihar ke kafi b de ilaqe mean hath se khode hue kuoan se nikali naharoan ke dvara sianchaee ki jati hai. baangladesh mean ganga-kabadak yojana mukhyat: sianchaee ke lie hi hai aur usamean khulana, jeshor aur kushtiya ziloan ke ve hisse ate haian, jo delta ke kamazor hisse haian, jahaan nadiyoan ka marg gad aur ghani jha diyoan ke karan avaruddh ho chuka hai. is ilaqe mean kul varshik varsha samanyat: 1,524 mimi. se kam hoti hai tatha shit rritu tulanatmak roop se shushk rahati hai. yahaan ki sianchaee pranali bhi naharoan tatha bhoomigat jal khianchane vale vidyutachalit upakaranoan par adharit hai.

naukayan

prachin kal mean ganga aur isaki kuchh sahayak nadiyaan, khasataur se poorab mean, naukayan ke upayukt thian. megasthaniz ke anusar, chauthi shatabdi ee. poo. mean ganga aur isaki pramukh sahayak nadiyoan mean naukayan hota tha. ganga ke besin mean aantardeshiy nadi naukayan 14vian shatabdi tak bhi phal-phool raha tha. 19vian sadi ke ate-ate sianchaee tatha naukayan ke lie upayukt naharoan ki jal parivahan pranali ke pramukh marg ban chuke the. paiandal stimaroan ke agaman se aantardeshiy parivahan mean bhi jo kranti aee, usase bangal aur bihar ke nil udyog ko bahut badhava mila. ganga mean kalakatta se ilahabad aur usase age yamuna mean agara tak tatha udhar brahmaputr tak niyamit stimar sevaean chalane lagian. 19vian sadi ke madhy mean relamargoan ke banane se b de paimane par jal parivahan mean giravat shuroo ho gee. sianchaee hetu pani bahut adhik matra mean khianch lie jane se bhi naukayan viparit roop se prabhavit hua. ab to naukayan keval ilahabad ke asapas ke madhy ganga besin tak hi simit hokar rah gaya hai, jisamean se adhikaansh desi naukaoan par adharit haian.

vaise pashchim bangal tatha baangladesh ab bhi joot, ghas, chay, anaj tatha any krishi aur gramin utpadoan ke parivahan ke lie jalamargoan par nirbhar haian. baangladesh mean chalana, khulana, barisal, chaandapur, narayanaganj, gvaluando ghat, sirasaganj, bhairav bazar tatha pheanchooganj aur bharat mean kolakata, golapa da, dhuburi aur dibroogadh pramukh nadi bandaragah haian. 1947 mean bharat ke vibhajan se b de dooragami parivartan hue. kalakatta se asam tak aantardeshiy jalamargoan ke dvara pahale b de paimane par hone vala vyapar lagabhag band hi ho gaya.

baangladesh mean aantardeshiy jal parivahan ki zimmedari aantardeshiy jal parivahan pradhikaran ki hai. bharat mean aantardeshiy jalamargoan ka niti nirdharan kendriy aantardeshiy jal parivahan mandal (seantral v aautar traansaport bord) karata hai. lekin rashtriy jalamargoan ki vyapak pranali ka vikas evan rakh-rakhav aantardeshiy jalamarg (inalaiand v aautaravez ath aauriti) pradhikaran karata hai. ganga ke besin mean ilahabad se lekar haldiya tak lagabhag 1,607 kimi. lamba jalamarg is pranali mean shamil hai. delta ke mukh par bharat ki sima ke thik bhitar farakka baandh ka nirman baangladesh aur bharat ke bich vivad ka karan ban gaya hai. bharat ka kahana hai ki gad ke jamane tatha khara pani ghus ane ki vajah se kolakata bandaragah ka patan ho gaya hai. kolakata ki sthiti mean sudhar ke lie khare pani ko nikalakar aur jalastar ko badhakar bharat ne farakka bairaj se ganga ko mo dakar taza pani hasil karane ki koshish ki hai. ab ek b di nahar dvara pani bhagirathi nadi mean laya jata hai, jo kolakata se pare hugali nadi mean samahit hota hai.

baangladesh ka kahana hai ki nadiyoan ke tatavarti deshoan ki paraspar samriddhi ke lie yah zaroori hai ki aantardeshiy nadiyoan ke pani par unaka sanyukt niyantran hona chahie. sianchaee, naukayan tatha khare pani ki rokatham ke lie ganga ka pani baangladesh mean bhi utana hi avashyak hai, jitana bharat ke lie. baangladesh ke anusar, farakka baandh ne use pani ke ek aise bahumooly srot se vanchit kar diya hai, jo ki usaki samriddhi ke lie avashyak hai. doosari taraf bharat gangajal ki samasya ke bare mean dvipakshiy ravaiya apanaye jane ke paksh mean hai. donoan deshoan ke bich kee aantarim samajhaute hue haian, lekin abhi tak is vivad ka koee sthayi hal nahian nikal paya hai. bharat ke asam mean brahmaputr ke pani ko baangladesh se hokar ek nahar dvara ganga mean mo dane ke prastav ke javab mean baangladesh ne sujhaya hai ki poorvi nepal, pashchim bangal hote hue ek nahar baangladesh tak banaee jae. kisi bhi prastav ko sakaratmak pratikriya nahian mili hai. 1987 tatha 1988 mean baangladesh mean aee pralayankari badhoan, jisamean 1988 ki badh us desh ke itihas ki sarvadhik vinashakari badh thi, ko dekhate hue vishv baiank ne is kshetr ke lie ab badh niyantran ki ek dooragami yojana banaee hai.

panabijali yojana

ganga ki lagabhag 130 lakh kilovat ki anumanit jalavidyut kshamata ka 2/5 hissa bharat mean tatha shesh nepal mean hai. is kshamata mean se kuchh ka dohan bharat ne chanbal aur rihand nadiyoan dvara kiya hai. ganga ka maidan duniya ki sabase ghani abadi vala tatha upajaoo ilaqoan mean se ek hai. chooanki is maidani kshetr mean avarodh n ke barabar hai, isilie ganga ki dhara adhikaansh ilaqe mean chau di v dhimi gati se pravahit hai. usake kul apavah besin ka 9,75,900 varg kimi. kshetraphal, yani bharat ke kul kshetr ka lagabhag chauthaee hissa hai aur us par lagabhag 50 karo d ki abadi nirbhar karati hai. is besin ki bhoomi par gahan kheti hoti hai. ganga pranali ki jalapoorti aanshik roop se julaee se aktoobar ke bich hone vali manasoon ki varsha aur aprail se joon ke bich himalay par garmi se pighalane vali barf par nirbhar karati haian. bharatiy upamahadvip ka yah vistrit uttar-madhy khand, jise uttar bharatiy maidan bhi kaha jata hai, pashchim mean brahmaputr nadi ghati aur ganga ke delta se lekar siandhu nadi ghati tak phaila hua hai. is ilaqe mean is upamahadvip ke sabase samriddh aur saghan janasankhya vale kshetr haian. is maidan ka adhikaansh hissa ganga aur brahmaputr nadiyoan ke dvara poorv mean siandh nadi dvara pashchim mean bahakar laee gee kachhari mitti se bana hua hai. maidan ke poorvi hissoan mean kam barish ya sardiyaan shushk hoti haian. kintu manasoon ki varsha itani adhik hoti hai ki b de-b de ilaqoan mean daladal ya uthali jhilean ban jati haian. jyoan-jyoan pashchim ki or badhate haian, yah maidan shushk hota chala jata hai aur ant mean thar ke registan mean badal jata hai.

pauranik prasang

puranoan ke anusar vivadganga, akashaganga athava svargaganga vishnu ke aangoothe se nikali hai, jisaka prithvi par avataran bhagirath ke stavan se kapil dvara bhasmikrit raja sagar ke 60,000 putroan ki asthiyoan ko pavitr karane ke lie hua. bhagirath ke sath isi sayog ke karan ganga ka doosara nam bhagirathi p da. pauranik parampara hai ki svarg se utarane ke karan ganga atyant kupit ho uthi thian aur usake kop ke karan prithvi par usaki dhara p date hi usake bahakar nasht ho jane ke bhay se shiv ne apani jata mean use samet liya, jisase unaki jataoan mean ulajh jane ke karan dhara prithvi par sidhi nahian p di aur ganga ki gati mand ho gee. isi sambandh mean shiv ka ek nam gangadhar bhi p da. ganga ka avataran tapasvi jahnu ke yajn ke lie ghatak hua, jisase kruddh hokar us tapas ne ganga ko pi dala aur prarthana ke bad usane kan se ganga ki dhara nikal di, jisase vah jahnavi kahalaee haian. ek doosare pauranik akhyan ke anusar ganga himalay aur maina ki putri tatha uma ki bhagini thian. mahabharat ki ek katha use kururaj shantanu ki patni aur bhishm ki mata batati hai. jisamean bhishm ka doosara nam gaangey bhi hai. ganga ka sambandh kartikey ke matritv se bhi hai. hinduoan ke jitane tirth is nadi ke tir par haian, utane kahian par nahian aur usaki pavitrata ka prabhav to bharatiyoan par itana gahara p da ki unhoanne anek doosari nadiyoan ke nam bhi ganga rakh diye. jahaan-jahaan bharatiy sanskriti ka vistar hua, vahaan-vahaan ganga ki pavitrata ka vividh roop se ullekh hua. ganga ki makar par aroodh chanvar athava kalash dharini moortiyaan bhi guptakal mean banane lagi thian.(m. bha., vanaparv, adhyay 12, 42, 47, 83-88, 90, 93, 95, 99, 107-109 adi.)

ath vasuoan ki maan

ganga-yamuna ke madhy ka samast bhoobhag yayati ne puru ko diya tha. ganga ath vasuoan ki maan haian. vasuoan ne ganga se kaha tha ki shantanu se unake garbh dharan karane ke uparant unake janmate hi jal mean pravahit kar dena. ganga ne shantanu se utpann sat vasu jal mean pravahit kar die. athavean vasu (bhishm) ko shantanu ne bacha liya. (m. bha., adiparv, adhyay 2, 3, 61, 63, 67, 70, 87, 95-10.)