Difference between revisions of "चक्रतीर्थ मथुरा"

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यस्तत्र कुरुते स्नानं त्रिरात्रोपोषितो नर: ।<br />
 
यस्तत्र कुरुते स्नानं त्रिरात्रोपोषितो नर: ।<br />
 
स्नानमात्रेण मनुजो मुच्यते ब्रह्महत्यया ॥<br />
 
स्नानमात्रेण मनुजो मुच्यते ब्रह्महत्यया ॥<br />
[[मथुरा]] मण्डल में चक्र तीर्थ विख्यात है । जो व्यक्ति तीन दिन उपवास करके इस स्थान पर स्नान एवं ध्यान करेंगे वे व्यक्ति निश्चय ही ब्रह्महत्या से मुक्त हो जायेंगे । मथुरा मण्डल में [[यमुना नदी|यमुना]] तट पर स्थित यह तीर्थ सर्वत्र विख्यात है। निकट ही महाराज अम्बरीष का टीला है, जहाँ महाराज [[अम्बरीष]] यमुना के किनारे निवास कर शुद्धभक्ति के अंगों के द्वारा भगवद् आराधना करते थे। द्वादशी पारण के समय राजा अम्बरीष के प्रति महर्षि [[दुर्वासा]] के व्यवहार से असन्तुष्ट होकर विष्णु-चक्र ने इनका पीछा किया। दुर्वासा एक वर्ष तक विश्व ब्रह्मण्ड में सर्वत्र यहाँ तक कि ब्रह्मलोक, शिवलोक एवं वैकुण्ड लोक में गये, परन्तु चक्र ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। अन्त में भगवान् [[विष्णु]] के परामर्श से भक्त अम्बरीष के निकट लौटने पर उनकी प्रार्थना से चक्र यहीं रूक गया। इस प्रकार ऋषि के प्राणों की रक्षा हुई। यहाँ स्नान करने से ब्रह्म-हत्या आदि पापों से भी मुक्ति हो जाती है। तथा स्नान करने वाला सुदर्शन चक्र की कृपा से भगवद् दर्शन प्राप्त कर कृतार्थ हो जाता है।
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[[मथुरा]] मण्डल में चक्र तीर्थ विख्यात है । जो व्यक्ति तीन दिन उपवास करके इस स्थान पर स्नान एवं ध्यान करेंगे वे व्यक्ति निश्चय ही ब्रह्महत्या से मुक्त हो जायेंगे । मथुरा मण्डल में [[यमुना नदी|यमुना]] तट पर स्थित यह तीर्थ सर्वत्र विख्यात है। निकट ही महाराज अम्बरीष का टीला है, जहाँ महाराज [[अम्बरीष]] यमुना के किनारे निवास कर शुद्धभक्ति के अंगों के द्वारा भगवद् आराधना करते थे। द्वादशी पारण के समय राजा अम्बरीष के प्रति महर्षि [[दुर्वासा]] के व्यवहार से असन्तुष्ट होकर विष्णु-चक्र ने इनका पीछा किया। दुर्वासा एक वर्ष तक विश्व ब्रह्मण्ड में सर्वत्र यहाँ तक कि [[ब्रह्मलोक]], [[शिवलोक]] एवं [[वैकुण्ड लोक]] में गये, परन्तु चक्र ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। अन्त में भगवान् [[विष्णु]] के परामर्श से भक्त अम्बरीष के निकट लौटने पर उनकी प्रार्थना से चक्र यहीं रूक गया। इस प्रकार ऋषि के प्राणों की रक्षा हुई। यहाँ स्नान करने से ब्रह्म-हत्या आदि पापों से भी मुक्ति हो जाती है। तथा स्नान करने वाला सुदर्शन चक्र की कृपा से भगवद् दर्शन प्राप्त कर कृतार्थ हो जाता है।
  
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==

Revision as of 06:22, 30 October 2010

chakratirthan tu vikhyatan mathure mam mandale .
yastatr kurute snanan triratroposhito nar: .
snanamatren manujo muchyate brahmahatyaya ॥
mathura mandal mean chakr tirth vikhyat hai . jo vyakti tin din upavas karake is sthan par snan evan dhyan kareange ve vyakti nishchay hi brahmahatya se mukt ho jayeange . mathura mandal mean yamuna tat par sthit yah tirth sarvatr vikhyat hai. nikat hi maharaj ambarish ka tila hai, jahaan maharaj ambarish yamuna ke kinare nivas kar shuddhabhakti ke aangoan ke dvara bhagavadh aradhana karate the. dvadashi paran ke samay raja ambarish ke prati maharshi durvasa ke vyavahar se asantusht hokar vishnu-chakr ne inaka pichha kiya. durvasa ek varsh tak vishv brahmand mean sarvatr yahaan tak ki brahmalok, shivalok evan vaikund lok mean gaye, parantu chakr ne unaka pichha nahian chho da. ant mean bhagavanh vishnu ke paramarsh se bhakt ambarish ke nikat lautane par unaki prarthana se chakr yahian rook gaya. is prakar rrishi ke pranoan ki raksha huee. yahaan snan karane se brahm-hatya adi papoan se bhi mukti ho jati hai. tatha snan karane vala sudarshan chakr ki kripa se bhagavadh darshan prapt kar kritarth ho jata hai.

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