तेरी सेाहबत भी मुझे कैसी सज़ा देती है
पाक दामन में भी सौ दाग़ लगा देती है
मैं तो समझा था कि तू अक़्ल का पुतला होगा
पर तेरी ज़िद तेरी औक़ात बता देती है
तंज़ कस कर तेरी हँसने की ये आदत है जो
जिस्म और जां में मेरे आग लगा देती है
अपनी बातों को ज़रा सोच समझकर कह तू
तेरी हर बात मेरे दिल को दुखा देती है
इस सियासत से ज़रा बच के रहा कर आक़िल
अक़्लमंदों को भी कमअक़्ल बना देती है