सरस्वती (पत्रिका): Difference between revisions

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==सम्पादक==
==सम्पादक==
सरस्वती पत्रिका के सम्पादक निम्नलिखित प्रसिद्ध साहित्यकार रहे हैं-
सरस्वती पत्रिका के सम्पादक निम्नलिखित प्रसिद्ध साहित्यकार रहे हैं-
* जगन्नाथदास रत्नाकर
* [[जगन्नाथदास रत्नाकर]]
*  [[श्यामसुन्दर दास]]
*  [[श्यामसुन्दर दास]]
* राधाकृष्णदास
* [[राधाकृष्णदास]]
*  कार्तिक प्रसाद 
*  कार्तिक प्रसाद 
*  किशोरी लाल
*  किशोरी लाल
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*  श्रीनारायण चतुर्वेदी  
*  श्रीनारायण चतुर्वेदी  
==द्विवेदी जी का योगदान==
==द्विवेदी जी का योगदान==
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का ‘सरस्वती’ पत्रिका का सम्पादक बनना एक विशिष्ट घटना सिद्ध हुई। सरस्वती के माध्यम से द्विवेदी ने भाषा संस्कार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया। भाषा को त्रुटिरहित एवं व्याकरण सम्मत बनाने में द्विवेदी जी का योगदान अविस्मरणीय है। द्विवेदी के योगदान को रेखांकित करते हुए [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] लिखते हैं कि ‘‘यदि द्विवेदी जी न उठ खडे होते तो जैसी अव्यवस्थित, व्याकरण-विरुद्ध और उटपटांग भाषा चारों ओर दिखायी पड़ती थी, उसकी परम्परा जल्दी न रुकती।’’ द्विवेदी जी श्रेष्ठ साहित्यकार होने के साथ-साथ एक यशस्वी सम्पादक थे। उनकी प्रतिभा से तत्कालीन विद्वानों ने बहुत कुछ ग्रहण किया। राष्ट्रभाषा एवं [[राजभाषा]] के गौरव को प्राप्त करने तथा भाषा के परिनिष्ठित रूप निर्धारण में उनका योगदान वंदनीय है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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चित्र:Disamb2.jpg सरस्वती एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सरस्वती (बहुविकल्पी)

सरस्वती हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध पत्रिका थी। इस पत्रिका का प्रकाशन इलाहाबाद से सन 1900 ई. के जनवरी मास में प्रारम्भ हुआ था। 32 पृष्ठ की क्राउन आकार की इस पत्रिका का मूल्य 4 आना मात्र था। 1905 ई. में 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' का नाम मुखपृष्ठ से हट गया। 1970 के दशक में इसका प्रकाशन बन्द हो गया।

सम्पादक

सरस्वती पत्रिका के सम्पादक निम्नलिखित प्रसिद्ध साहित्यकार रहे हैं-

द्विवेदी जी का योगदान

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का ‘सरस्वती’ पत्रिका का सम्पादक बनना एक विशिष्ट घटना सिद्ध हुई। सरस्वती के माध्यम से द्विवेदी ने भाषा संस्कार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया। भाषा को त्रुटिरहित एवं व्याकरण सम्मत बनाने में द्विवेदी जी का योगदान अविस्मरणीय है। द्विवेदी के योगदान को रेखांकित करते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं कि ‘‘यदि द्विवेदी जी न उठ खडे होते तो जैसी अव्यवस्थित, व्याकरण-विरुद्ध और उटपटांग भाषा चारों ओर दिखायी पड़ती थी, उसकी परम्परा जल्दी न रुकती।’’ द्विवेदी जी श्रेष्ठ साहित्यकार होने के साथ-साथ एक यशस्वी सम्पादक थे। उनकी प्रतिभा से तत्कालीन विद्वानों ने बहुत कुछ ग्रहण किया। राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा के गौरव को प्राप्त करने तथा भाषा के परिनिष्ठित रूप निर्धारण में उनका योगदान वंदनीय है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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