एकपत्नीत्व विवाह: Difference between revisions

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* संतान की प्रबल आकांक्षा में क्षीणता आना तथा सामाजिक गरिमा और प्रतिष्ठा के नए मानदंडों का विकास होना भी इसमें सहायक होता है।  
* संतान की प्रबल आकांक्षा में क्षीणता आना तथा सामाजिक गरिमा और प्रतिष्ठा के नए मानदंडों का विकास होना भी इसमें सहायक होता है।  
* इसके अतिरिक्त स्त्रियों के प्रति सम्मान की भावना का विकास, स्त्रियों की उच्च शिक्षा और दांपत्य प्रेम के नवीन आदर्श का विकास तथा सौतिया डाह के झगड़ों से छुटकारा भी एकविवाह तो समाज में लोकप्रिय बनाते हैं।  
* इसके अतिरिक्त स्त्रियों के प्रति सम्मान की भावना का विकास, स्त्रियों की उच्च शिक्षा और दांपत्य प्रेम के नवीन आदर्श का विकास तथा सौतिया डाह के झगड़ों से छुटकारा भी एकविवाह तो समाज में लोकप्रिय बनाते हैं।  
पश्चिमी जगत में आजकल एकविवाह का नियम सार्वभौम है। हिंदू समाज में संतान प्राप्ति आदि के उद्देश्य पूर्ण करने के लिए प्राचीन शास्त्रकारों ने पुरुषों को बहुविवाह की अनुमति दी थी किंतु [[1955]] के [[हिंदू विवाह अधिनियम 1955|हिंदू विवाह कानून]] ने इस पुरानी व्यवस्था का अंत करते हुए एकविवाह के नियम को आवश्यक बना दिया है।
पश्चिमी जगत् में आजकल एकविवाह का नियम सार्वभौम है। हिंदू समाज में संतान प्राप्ति आदि के उद्देश्य पूर्ण करने के लिए प्राचीन शास्त्रकारों ने पुरुषों को बहुविवाह की अनुमति दी थी किंतु [[1955]] के [[हिंदू विवाह अधिनियम 1955|हिंदू विवाह कानून]] ने इस पुरानी व्यवस्था का अंत करते हुए एकविवाह के नियम को आवश्यक बना दिया है।





Latest revision as of 14:06, 30 June 2017

एकपत्नीत्व विवाह अथवा एक पत्नी से विवाह की प्रथा मानव समाज में सबसे अधिक प्रचलित और सामान्य परिपाटी है। जिन समाजों में बहुभार्यता की प्रथा है, उनमें भी यह प्रथा प्रचलित है क्योंकि बहुभार्यता की प्रथा का पालन प्रत्येक समाज में बहुत थोड़े व्यक्ति ही करते हैं। उदाहरणार्थ ग्रीनलैंड वासियों को बहुभार्यतावादी समाज कहा जाता है, किंतु क्राँज को इस प्रदेश में 20 में से एक पुरुष ही दो स्त्रियों से विवाह करने वाला मिला याने वहाँ केवल पाँच प्रतिशत पुरुष अनेक स्त्रियों से विवाह के नियम का पालन करने वाले थे। एकविवाह की व्यवस्था का प्रचलन सबसे अधिक होने का बड़ा कारण यह है कि अधिकांश समाजों में स्त्री पुरुषों की संख्या का अनुपात लगभग समान होता है और एक विवाह की व्यवस्था अधिकतम नर-नारियों के लिए जीवनसाथी प्रस्तुत करती है। युद्ध, कन्यावध की दारुण प्रथा तथा काम धंधों की जोखिम स्त्री-पुरुषों की संख्या के संतुलन को कुछ हद तक बिगाड़ देते हैं, किंतु प्राय: यह संतुलन बना रहता है और एकविवाह की व्यवस्था में सहायक होता है, क्योंकि यह अधिकतम व्यक्तियों का विवाह का अवसर प्रदान करता है। सभ्यता की उन्नति एवं प्रगति के साथ कई कारणों से यह प्रथा अधिक प्रचलित होने लगती है:

  • पहला कारण यह होता है कि बड़ा परिवार आर्थिक दृष्टि से बोझ बन जाता है।
  • घरेलू पशुओं, नवीन औजारों तथा मशीनों के आविष्कार के कारण पत्नी की मज़दूर के रूप में काम करने की उपयोगिता कम हो जाती है।
  • संतान की प्रबल आकांक्षा में क्षीणता आना तथा सामाजिक गरिमा और प्रतिष्ठा के नए मानदंडों का विकास होना भी इसमें सहायक होता है।
  • इसके अतिरिक्त स्त्रियों के प्रति सम्मान की भावना का विकास, स्त्रियों की उच्च शिक्षा और दांपत्य प्रेम के नवीन आदर्श का विकास तथा सौतिया डाह के झगड़ों से छुटकारा भी एकविवाह तो समाज में लोकप्रिय बनाते हैं।

पश्चिमी जगत् में आजकल एकविवाह का नियम सार्वभौम है। हिंदू समाज में संतान प्राप्ति आदि के उद्देश्य पूर्ण करने के लिए प्राचीन शास्त्रकारों ने पुरुषों को बहुविवाह की अनुमति दी थी किंतु 1955 के हिंदू विवाह कानून ने इस पुरानी व्यवस्था का अंत करते हुए एकविवाह के नियम को आवश्यक बना दिया है।



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