पुलकेशी प्रथम: Difference between revisions
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*दक्षिणापथ में [[चालुक्य साम्राज्य]] के राज्य की स्थापना छठी [[सदी]] के मध्य भाग में हुई, जब कि [[गुप्त साम्राज्य]] का क्षय प्रारम्भ हो चुका था। | *दक्षिणापथ में [[चालुक्य साम्राज्य]] के राज्य की स्थापना छठी [[सदी]] के मध्य भाग में हुई, जब कि [[गुप्त साम्राज्य]] का क्षय प्रारम्भ हो चुका था। | ||
*यह निश्चित है, कि 543 ई. तक पुलकेशी नामक चालुक्य राजा वातापी ([[बीजापुर ज़िला|बीजापुर ज़िले]] में, [[बादामी]]) को राजधानी बनाकर अपने | *यह निश्चित है, कि 543 ई. तक पुलकेशी नामक चालुक्य राजा वातापी ([[बीजापुर ज़िला|बीजापुर ज़िले]] में, [[बादामी]]) को राजधानी बनाकर अपने पृथक् व स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर चुका था। | ||
*महाराज [[मंगलेश]] के 'महाकूट अभिलेख' से प्रमाणित होता है कि, उसने 'हिरण्यगर्भ', '[[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध]]', '[[अग्निष्टोम]]', 'अग्नि चयन', '[[वाजपेय]]', 'बहुसुवर्ण', 'पुण्डरीक' [[यज्ञ]] करवाया था। | *महाराज [[मंगलेश]] के 'महाकूट अभिलेख' से प्रमाणित होता है कि, उसने 'हिरण्यगर्भ', '[[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध]]', '[[अग्निष्टोम]]', 'अग्नि चयन', '[[वाजपेय]]', 'बहुसुवर्ण', 'पुण्डरीक' [[यज्ञ]] करवाया था। | ||
*इसने 'रण विक्रम', 'सत्याश्रय', 'धर्म महाराज', 'पृथ्वीवल्लभराज' तथा 'राजसिंह' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं। | *इसने 'रण विक्रम', 'सत्याश्रय', 'धर्म महाराज', 'पृथ्वीवल्लभराज' तथा 'राजसिंह' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं। |
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पुलकेशी प्रथम (550-566 ई.), चालुक्य नरेश रणराग का पुत्र था। पुलकेशी प्रथम को पुलकेशिन प्रथम के नाम से भी जाना जाता था।
- यह चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी राजा था।
- पुलकेशी प्रथम दक्षिण में वातापी में चालुक्य वंश का प्रवर्तक था।
- दक्षिणापथ में चालुक्य साम्राज्य के राज्य की स्थापना छठी सदी के मध्य भाग में हुई, जब कि गुप्त साम्राज्य का क्षय प्रारम्भ हो चुका था।
- यह निश्चित है, कि 543 ई. तक पुलकेशी नामक चालुक्य राजा वातापी (बीजापुर ज़िले में, बादामी) को राजधानी बनाकर अपने पृथक् व स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर चुका था।
- महाराज मंगलेश के 'महाकूट अभिलेख' से प्रमाणित होता है कि, उसने 'हिरण्यगर्भ', 'अश्वमेध', 'अग्निष्टोम', 'अग्नि चयन', 'वाजपेय', 'बहुसुवर्ण', 'पुण्डरीक' यज्ञ करवाया था।
- इसने 'रण विक्रम', 'सत्याश्रय', 'धर्म महाराज', 'पृथ्वीवल्लभराज' तथा 'राजसिंह' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।
- उनका प्राचीन इतिहास अन्धकार में है, पर उसने वातापी के समीपवर्ती प्रदेशों को जीत कर अपनी शक्ति का विस्तार किया था, और उसी उपलक्ष्य में अश्वमेध यज्ञ भी किया था। इस यज्ञ के अनुष्ठान से सूचित होता है कि, वह अच्छा प्रबल और दिग्विजयी राजा था।
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