हार्मोन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "स्वरुप" to "स्वरूप")
 
(6 intermediate revisions by 3 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}
{{पुनरीक्षण}}
{{tocright}}
{{tocright}}
'''हॉर्मोन''' [[मानव शरीर]] की अंत:स्रावी ग्रंथियाँ विभिन्न प्रकार के उद्दीपन में ऐसे [[पदार्थ|पदार्थों]] का स्राव करती हैं जिनसे शरीर में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। ये स्राव [[रुधिर वाहिनियाँ|रुधिर वाहिनियों]] द्वारा अंतकोंशिका [[ऊतक]] [[द्रव]] से बहकर लक्ष्य अंगों तक पहुँचते है। अत: इन ग्रंथियों को वाहिनी ग्रंथि कहते हैं। सर्वप्रथम 1905 ई. में स्टलिंग ने सेक्रेटिंग स्राव के संबंध में हॉर्मोन शब्द का प्रयोग किया था। हॉर्मोन शब्द का अर्थ होता है उद्दीपन करने वाला अथवा गति का प्रारंभ करने वाला। शरीर में अम्लकृत भोजन जब [[आमाशय]] से आगे पहुँचता है तब ड्युओडिनल श्लेष्मकला की [[कोशिका|कोशिकाओं]] से सेक्रेटिन का स्राव होता है। [[रुधिर]] परिवहन द्वारा यह पदार्थ [[अग्न्याशय]] में पहुंचकर अग्न्याशयी वाहिनी से मुक्त होने वाले अग्न्याशयी रस के स्राव का उद्दीपन करता है। इससे यह निश्चित हो गया कि [[तन्त्रिका तन्त्र]] के सहयोग बिना भी शरीर में रासायनिक साम्यावस्था संभव है। हॉर्मोन के प्रभाव से शरीर में उद्दीपन एवं अवरोध दोनों ही होते हैं। हॉर्मोन के प्रभाव से शरीर में आधारभूत उपापचयी रूपांतरण का प्रारंभ नहीं किया जा सकता पर उपापचयी रूपांतरण की गति में परिवर्तन लाया जा सकता है। आधुनिक परिभाषा के अनुसार वाहिनी अथवा अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा उन्मुक्त स्राव को हॉर्मोन कहते हैं। ये स्राव शरीर में विभिन्न क्रियाओं के बीच रासायनिक साम्यवास्था स्थापित करते हैं, अत: सीमित अर्थ में रासायनिक संतुलन के स्थान में योगदान करते हैं। वनस्पतिजगत्‌ में ऐसे अनेक रासायनिक संतुलनकारी पदार्थ पाए जाते हैं। उन्हें हॉर्मोन माना जाए या नहीं यह विवादस्पद है। इससे हॉर्मोन की परिभाषा बहुत व्यापक हो जाती है।   
'''हार्मोन''' [[मानव शरीर]] की अंत:स्रावी ग्रंथियाँ विभिन्न प्रकार के उद्दीपन में ऐसे [[पदार्थ|पदार्थों]] का स्राव करती हैं जिनसे शरीर में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। ये स्राव [[रुधिर वाहिनियाँ|रुधिर वाहिनियों]] द्वारा अंतकोंशिका [[ऊतक]] [[द्रव]] से बहकर लक्ष्य अंगों तक पहुँचते है। अत: इन ग्रंथियों को वाहिनी ग्रंथि कहते हैं। सर्वप्रथम 1905 ई. में स्टलिंग ने सेक्रेटिंग स्राव के संबंध में हार्मोन शब्द का प्रयोग किया था। हार्मोन शब्द का अर्थ होता है उद्दीपन करने वाला अथवा गति का प्रारंभ करने वाला। शरीर में अम्लकृत भोजन जब [[आमाशय]] से आगे पहुँचता है तब ड्युओडिनल श्लेष्मकला की [[कोशिका|कोशिकाओं]] से सेक्रेटिन का स्राव होता है। [[रुधिर]] परिवहन द्वारा यह पदार्थ [[अग्न्याशय]] में पहुंचकर अग्न्याशयी वाहिनी से मुक्त होने वाले अग्न्याशयी रस के स्राव का उद्दीपन करता है। इससे यह निश्चित हो गया कि [[तन्त्रिका तन्त्र]] के सहयोग बिना भी शरीर में रासायनिक साम्यावस्था संभव है। हार्मोन के प्रभाव से शरीर में उद्दीपन एवं अवरोध दोनों ही होते हैं। हार्मोन के प्रभाव से शरीर में आधारभूत उपापचयी रूपांतरण का प्रारंभ नहीं किया जा सकता पर उपापचयी रूपांतरण की गति में परिवर्तन लाया जा सकता है। आधुनिक परिभाषा के अनुसार वाहिनी अथवा अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा उन्मुक्त स्राव को हार्मोन कहते हैं। ये स्राव शरीर में विभिन्न क्रियाओं के बीच रासायनिक साम्यवास्था स्थापित करते हैं, अत: सीमित अर्थ में रासायनिक संतुलन के स्थान में योगदान करते हैं। वनस्पतिजगत्‌ में ऐसे अनेक रासायनिक संतुलनकारी पदार्थ पाए जाते हैं। उन्हें हार्मोन माना जाए या नहीं यह विवादस्पद है। इससे हार्मोन की परिभाषा बहुत व्यापक हो जाती है।   


प्राणियों के शरीर का आंतरिक वातावरण स्वायत्त [[तन्त्रिका तन्त्र]] तथा [[अन्तःस्रावी तन्त्र]] द्वारा साम्यावस्था में बना रहता है। अंतःस्त्रावी तंत्र जटिल संरचनाओं वाले रासायनिक यौगिकों द्वारा रासायनिक समंवयन स्थापित रखता है। इन रासायनिक यौगिकों को हॉर्मोन कहते हैं। यह तंत्र मन्द गति से कार्य करता है। भोजन के [[पाचन]], [[पोषण]], उपापचय, [[श्वसन]], उत्सर्जन, वृद्धि एवं प्रजनन आदि जैविक क्रियाओं का नियंत्रण इसी के द्वारा किया जाता है।  
प्राणियों के शरीर का आंतरिक वातावरण स्वायत्त [[तन्त्रिका तन्त्र]] तथा [[अन्तःस्रावी तन्त्र]] द्वारा साम्यावस्था में बना रहता है। अंतःस्त्रावी तंत्र जटिल संरचनाओं वाले रासायनिक यौगिकों द्वारा रासायनिक समंवयन स्थापित रखता है। इन रासायनिक यौगिकों को हार्मोन कहते हैं। यह तंत्र मन्द गति से कार्य करता है। भोजन के [[पाचन]], [[पोषण]], उपापचय, [[श्वसन]], उत्सर्जन, वृद्धि एवं प्रजनन आदि जैविक क्रियाओं का नियंत्रण इसी के द्वारा किया जाता है।  


==अंतः स्त्रावी तंत्र की कार्यप्रणाली==
==अंतः स्त्रावी तंत्र की कार्यप्रणाली==
अंतःस्त्रावी तंत्र की सम्पूर्ण क्रियाविधि के निम्नलिखित तीन प्रमुख चरण होते हैं-
अंतःस्त्रावी तंत्र की सम्पूर्ण क्रियाविधि के निम्नलिखित तीन प्रमुख चरण होते हैं-
#शरीर की अंतःस्त्रावी ग्रंथियों की की कोशिकाएँ हॉर्मोन नामक [[पदार्थ|पदार्थों]] का संश्लेषण करके इन्हें ऊतक द्रव्य में स्त्रावित करती रहती हैं। ये हॉर्मोन संकेत सूचनाओं का वहन करते हैं। ऊतक द्रव्य से ये हार्मोंस [[रुधिर]] में चले जाते हैं।  
#शरीर की अंतःस्त्रावी ग्रंथियों की की कोशिकाएँ हार्मोन नामक [[पदार्थ|पदार्थों]] का संश्लेषण करके इन्हें ऊतक द्रव्य में स्त्रावित करती रहती हैं। ये हार्मोन संकेत सूचनाओं का वहन करते हैं। ऊतक द्रव्य से ये हार्मोंस [[रुधिर]] में चले जाते हैं।  
#ये हॉर्मोन रुधिर के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में संचारित होते रहते हैं।  
#ये हार्मोन रुधिर के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में संचारित होते रहते हैं।  
#कुछ हॉर्मोन को शरीर की समस्त [[कोशिका|कोशिकाएँ]] रुधिर से ग्रहण कर सकती हैं। शेष हॉर्मोन में से प्रत्येक को कुछ निर्दिष्ट ऊतकों की कोशिकाएँ ही रुधिर से ग्रहण कर सकती हैं। इन निर्दिष्ट कोशिकाओं की लक्ष्य कोशिकाएँ कहते हैं। इन कोशिकाओं ग्रहण किए गए हॉर्मोन इनकी कोशिकाकला या प्लाजा झिल्ली की पारगम्यता एवं उपापचयी एंजाइम्स का नियंत्रण करके इनकी उपापचयी प्रक्रियाओं की दरों को परिवर्तित कर देते हैं। इसके फलस्वरुप, शरीर में होने वाली अनेक सतत् क्रियाओं जैसे-उपापचयी, वृद्धि, ह्रदय स्पंदन, [[रक्तचाप]], [[आहारनाल]] की क्रमाकुंचन गति, स्त्रावण, लैंगिक परिपक्वन, प्रजनन, पुनरुद्भवन, प्रतिरक्षण, आचार-व्यवहार आदि तथा विभिन्न प्रतिक्रियाओं का नियमन होता है। इस प्रकार, हॉर्मोन आजीवन 'जीवन की गति' को बनाए रखने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।  
#कुछ हार्मोन को शरीर की समस्त [[कोशिका|कोशिकाएँ]] रुधिर से ग्रहण कर सकती हैं। शेष हार्मोन में से प्रत्येक को कुछ निर्दिष्ट ऊतकों की कोशिकाएँ ही रुधिर से ग्रहण कर सकती हैं। इन निर्दिष्ट कोशिकाओं की लक्ष्य कोशिकाएँ कहते हैं। इन कोशिकाओं ग्रहण किए गए हार्मोन इनकी कोशिकाकला या प्लाजा झिल्ली की पारगम्यता एवं उपापचयी एंजाइम्स का नियंत्रण करके इनकी उपापचयी प्रक्रियाओं की दरों को परिवर्तित कर देते हैं। इसके फलस्वरूप, शरीर में होने वाली अनेक सतत् क्रियाओं जैसे-उपापचयी, वृद्धि, हृदय स्पंदन, [[रक्तचाप]], [[आहारनाल]] की क्रमाकुंचन गति, स्त्रावण, लैंगिक परिपक्वन, प्रजनन, पुनरुद्भवन, प्रतिरक्षण, आचार-व्यवहार आदि तथा विभिन्न प्रतिक्रियाओं का नियमन होता है। इस प्रकार, हार्मोन आजीवन 'जीवन की गति' को बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं।  


==ग्रंथियाँ और उनके प्रकार==
==ग्रंथियाँ और उनके प्रकार==
Line 20: Line 20:


====अंतः स्त्रावी ग्रंथियाँ====
====अंतः स्त्रावी ग्रंथियाँ====
इन ग्रंथियों में स्त्रावित पदार्थ के परिवहन के लिए नलिकाओं या वाहिकाओं का अभाव होता है। अतः इनके द्वारा स्त्रावित पदार्थ, ऊतक द्रव्य के माध्यम से, सीधे रुधिर में मुक्त होकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुँच जाता है। नलिका न होने के कारण इन ग्रंथियों को नलिकाविहीन या अप्रणाल ग्रंथियाँ भी कहते हैं। इन ग्रंथियों के स्त्रावों को हॉर्मोन कहते हैं। ऐसी ग्रंथियाँ में रुधिर वाहिनियाँ अपेक्षाकृत अधिक होती हैं।  
इन ग्रंथियों में स्त्रावित पदार्थ के परिवहन के लिए नलिकाओं या वाहिकाओं का अभाव होता है। अतः इनके द्वारा स्त्रावित पदार्थ, ऊतक द्रव्य के माध्यम से, सीधे रुधिर में मुक्त होकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुँच जाता है। नलिका न होने के कारण इन ग्रंथियों को नलिकाविहीन या अप्रणाल ग्रंथियाँ भी कहते हैं। इन ग्रंथियों के स्त्रावों को हार्मोन कहते हैं। ऐसी ग्रंथियाँ में रुधिर वाहिनियाँ अपेक्षाकृत अधिक होती हैं।  
;उदाहरण
;उदाहरण
पीयूष ग्रंथि, थाइरॉइड ग्रंथि, अधिवृक्क ग्रंथि आदि।  
पीयूष ग्रंथि, थाइरॉइड ग्रंथि, अधिवृक्क ग्रंथि आदि।  


====मिश्रित ग्रंथियाँ====
====मिश्रित ग्रंथियाँ====
ये मुख्यतः वाहिकायुक्त होती हैं किन्तु इनके अन्दर कुछ विशेष कोशिकाएँ समूह में पाई जाती हैं जो अंतः स्त्रावी ग्रंथियों का कार्य करती हैं। इनसे स्त्रावित हॉर्मोन सीधे ही रुधिर में युक्त हो जाते हैं।  
ये मुख्यतः वाहिकायुक्त होती हैं किन्तु इनके अन्दर कुछ विशेष कोशिकाएँ समूह में पाई जाती हैं जो अंतः स्त्रावी ग्रंथियों का कार्य करती हैं। इनसे स्त्रावित हार्मोन सीधे ही रुधिर में युक्त हो जाते हैं।  


;उदाहरण
;उदाहरण
[[अग्न्याशय]]- इनका बहिःस्त्रावी भाग अग्न्याशयिक रस उत्पन्न करता है और अंतः स्त्रावी भाग-लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ [[इंसुलिन]] तथा ग्लूकागोन नामक हॉर्मोन का स्त्रावित करती हैं जो सीधे रुधिर में मुक्त हो जाते हैं।  
[[अग्न्याशय]]- इनका बहिःस्त्रावी भाग अग्न्याशयिक रस उत्पन्न करता है और अंतः स्त्रावी भाग-लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ [[इंसुलिन]] तथा ग्लूकागोन नामक हार्मोन का स्त्रावित करती हैं जो सीधे रुधिर में मुक्त हो जाते हैं।  


==हॉर्मोन की विशेषताएँ==
==हार्मोन की विशेषताएँ==
*अधिकांश हॉर्मोन के [[अणु]] छोटे होते हैं और इनका [[अणुभार]] भी कम होता है।  
*अधिकांश हार्मोन के [[अणु]] छोटे होते हैं और इनका [[अणुभार]] भी कम होता है।  
*ये [[जल]] में घुलनशील (विलेय) होते हैं। ये ऊतकों में सरलतापूर्वक विसरणशील होते हैं।  
*ये [[जल]] में घुलनशील (विलेय) होते हैं। ये ऊतकों में सरलतापूर्वक विसरणशील होते हैं।  
*बहुत ही सक्रिय पदार्थ होने के कारण इनका स्त्रावण बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में होता है।  
*बहुत ही सक्रिय पदार्थ होने के कारण इनका स्त्रावण बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में होता है।  
Line 38: Line 38:
*ये रासायनिक उत्प्रेरक की भाँति कार्य करते हैं। अतः ये शरीर की क्रियाओं को प्रेरित करके उनकी [[गति]] को बढ़ा देते हैं या फिर घटा देते हैं।  
*ये रासायनिक उत्प्रेरक की भाँति कार्य करते हैं। अतः ये शरीर की क्रियाओं को प्रेरित करके उनकी [[गति]] को बढ़ा देते हैं या फिर घटा देते हैं।  
*क्रियाओं के समय ये विघटित अथवा नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इनका अंतःस्त्रावी ग्रन्थियों से निरंतर स्त्रावण होता है।  
*क्रियाओं के समय ये विघटित अथवा नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इनका अंतःस्त्रावी ग्रन्थियों से निरंतर स्त्रावण होता है।  
*हॉर्मोन [[मानव शरीर|शरीर]] में संचय नहीं होता है। ये बनते रहते हैं और प्रयुक्त होते रहते हैं।  
*हार्मोन [[मानव शरीर|शरीर]] में संचय नहीं होता है। ये बनते रहते हैं और प्रयुक्त होते रहते हैं।  


==हॉर्मोन के कार्य==
==हार्मोन के कार्य==
*हॉर्मोन शरीर की [[कोशिका|कोशिकाओं]] के उपापचय का नियंत्रण करके शरीर की कार्यक्षमता को बनाए रखता है।
*हार्मोन शरीर की [[कोशिका|कोशिकाओं]] के उपापचय का नियंत्रण करके शरीर की कार्यक्षमता को बनाए रखता है।
*ये शरीर की वृद्धि एवं विकास, सुरक्षा एवं आचरण, लैंगिक लक्षणों एवं प्रजनन आदि का नियंत्रण करते हैं।  
*ये शरीर की वृद्धि एवं विकास, सुरक्षा एवं आचरण, लैंगिक लक्षणों एवं प्रजनन आदि का नियंत्रण करते हैं।  
*हॉर्मोन बाहरी वातावरण की बदलती हुई परिस्थियों में शरीर के अंतः वातावरण को अखण्ड बनाए रखने<ref>होमिओस्टैसिस</ref> का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। चूँकि शरीर की कोशिकाएँ अपना-अपना सामान्य कार्य तभी कर सकती हैं जब शरीर का अंतः वातावरण अखण्ड बना रहे, और शरीर का 'एक जीव' के रूप में अस्तित्व तभी बना रह सकता है जब विभिन्न भागों की कोशिकाओं की क्रियाओं में सामंजस्य बना रहे।  
*हार्मोन बाहरी वातावरण की बदलती हुई परिस्थियों में शरीर के अंतः वातावरण को अखण्ड बनाए रखने<ref>होमिओस्टैसिस</ref> का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। चूँकि शरीर की कोशिकाएँ अपना-अपना सामान्य कार्य तभी कर सकती हैं जब शरीर का अंतः वातावरण अखण्ड बना रहे, और शरीर का 'एक जीव' के रूप में अस्तित्व तभी बना रह सकता है जब विभिन्न भागों की कोशिकाओं की क्रियाओं में सामंजस्य बना रहे।  
*हॉर्मोन की गड़बड़ियों (असंतुलन) से शरीर में कार्यात्मक रोग हो जाते हैं। ये गड़बड़ियाँ दो प्रकार की हो सकती हैं- हॉर्मोन का आवश्यक मात्रा से कम स्त्रावण अथवा अधिक स्त्रावण।  
*हार्मोन की गड़बड़ियों (असंतुलन) से शरीर में कार्यात्मक रोग हो जाते हैं। ये गड़बड़ियाँ दो प्रकार की हो सकती हैं- हार्मोन का आवश्यक मात्रा से कम स्त्रावण अथवा अधिक स्त्रावण।  
==हॉर्मोन की क्रियाविधि==
==हार्मोन की क्रियाविधि==
हॉर्मोन निम्न प्रकार से जैविक क्रियाओं को प्रभावित करते हैं-
हार्मोन निम्न प्रकार से जैविक क्रियाओं को प्रभावित करते हैं-
* कुछ [[प्रोटीन]] हॉर्मोन प्लाज्मा कला की पारगम्यता को परिवर्तित कर देते हैं। जिससे कोशिका की क्रियाओं के लिए आवश्यक पदार्थ कोशिका के भीतर प्रवेश करने लगते हैं या उनका प्रवेश रुक जाता है; जैसे- वृद्धि हॉर्मोंन, [[इंसुलिन]] आदि।  
* कुछ [[प्रोटीन]] हार्मोन प्लाज्मा कला की पारगम्यता को परिवर्तित कर देते हैं। जिससे कोशिका की क्रियाओं के लिए आवश्यक पदार्थ कोशिका के भीतर प्रवेश करने लगते हैं या उनका प्रवेश रुक जाता है; जैसे- वृद्धि हॉर्मोंन, [[इंसुलिन]] आदि।  
* कुछ प्रोटीन हॉर्मोन कोशिका कला में उपस्थित एंजाइम एडीनाइलेटसाइक्लेज को सक्रिय कर देते हैं। यह एंजाइम कोशिकाद्रव्य में उपस्थित A. T. P. को चक्रिक एडिनोसीन मोनोफॉस्फेट में बदल देता है। उदाहरण थायरॉक्सिन, एड्रीनैलिन आदि।  
* कुछ प्रोटीन हार्मोन कोशिका कला में उपस्थित एंजाइम एडीनाइलेटसाइक्लेज को सक्रिय कर देते हैं। यह एंजाइम कोशिकाद्रव्य में उपस्थित A. T. P. को चक्रिक एडिनोसीन मोनोफॉस्फेट में बदल देता है। उदाहरण थायरॉक्सिन, एड्रीनैलिन आदि।  
* स्टीरॉएड हॉर्मोन सीधे कोशिका में पहुँचकर जीन की क्रिया को प्रभावित करते हैं। ये आवश्यकतानुसार सक्रिय जीन को निष्क्रिय या सुप्त जीन को सक्रिय कर देते हैं। इससे प्रोटीन संश्लेषण प्रभावित होता है।  
* स्टीरॉएड हार्मोन सीधे कोशिका में पहुँचकर जीन की क्रिया को प्रभावित करते हैं। ये आवश्यकतानुसार सक्रिय जीन को निष्क्रिय या सुप्त जीन को सक्रिय कर देते हैं। इससे प्रोटीन संश्लेषण प्रभावित होता है।  


;मनुष्य के शरीर में पाई जाने वाली अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ
;मनुष्य के शरीर में पाई जाने वाली अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ
मनुष्य के शरीर के हॉर्मोन का स्त्रावण करने वाली रचनाओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है-  
मनुष्य के शरीर के हार्मोन का स्त्रावण करने वाली रचनाओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है-  
====अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ और उनकी स्थिति====
====अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ और उनकी स्थिति====
#थाइरॉइड : गले में  
#थाइरॉइड : गले में  
Line 77: Line 77:
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
[[Category:हॉर्मोन]]
[[Category:हार्मोन]]
[[Category:नया पन्ना जनवरी-2012]]
[[Category:जीव विज्ञान]][[Category:प्राणि विज्ञान ]]
[[Category:प्राणि विज्ञान कोश]]


__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 13:19, 29 October 2017

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

हार्मोन मानव शरीर की अंत:स्रावी ग्रंथियाँ विभिन्न प्रकार के उद्दीपन में ऐसे पदार्थों का स्राव करती हैं जिनसे शरीर में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। ये स्राव रुधिर वाहिनियों द्वारा अंतकोंशिका ऊतक द्रव से बहकर लक्ष्य अंगों तक पहुँचते है। अत: इन ग्रंथियों को वाहिनी ग्रंथि कहते हैं। सर्वप्रथम 1905 ई. में स्टलिंग ने सेक्रेटिंग स्राव के संबंध में हार्मोन शब्द का प्रयोग किया था। हार्मोन शब्द का अर्थ होता है उद्दीपन करने वाला अथवा गति का प्रारंभ करने वाला। शरीर में अम्लकृत भोजन जब आमाशय से आगे पहुँचता है तब ड्युओडिनल श्लेष्मकला की कोशिकाओं से सेक्रेटिन का स्राव होता है। रुधिर परिवहन द्वारा यह पदार्थ अग्न्याशय में पहुंचकर अग्न्याशयी वाहिनी से मुक्त होने वाले अग्न्याशयी रस के स्राव का उद्दीपन करता है। इससे यह निश्चित हो गया कि तन्त्रिका तन्त्र के सहयोग बिना भी शरीर में रासायनिक साम्यावस्था संभव है। हार्मोन के प्रभाव से शरीर में उद्दीपन एवं अवरोध दोनों ही होते हैं। हार्मोन के प्रभाव से शरीर में आधारभूत उपापचयी रूपांतरण का प्रारंभ नहीं किया जा सकता पर उपापचयी रूपांतरण की गति में परिवर्तन लाया जा सकता है। आधुनिक परिभाषा के अनुसार वाहिनी अथवा अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा उन्मुक्त स्राव को हार्मोन कहते हैं। ये स्राव शरीर में विभिन्न क्रियाओं के बीच रासायनिक साम्यवास्था स्थापित करते हैं, अत: सीमित अर्थ में रासायनिक संतुलन के स्थान में योगदान करते हैं। वनस्पतिजगत्‌ में ऐसे अनेक रासायनिक संतुलनकारी पदार्थ पाए जाते हैं। उन्हें हार्मोन माना जाए या नहीं यह विवादस्पद है। इससे हार्मोन की परिभाषा बहुत व्यापक हो जाती है।

प्राणियों के शरीर का आंतरिक वातावरण स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र तथा अन्तःस्रावी तन्त्र द्वारा साम्यावस्था में बना रहता है। अंतःस्त्रावी तंत्र जटिल संरचनाओं वाले रासायनिक यौगिकों द्वारा रासायनिक समंवयन स्थापित रखता है। इन रासायनिक यौगिकों को हार्मोन कहते हैं। यह तंत्र मन्द गति से कार्य करता है। भोजन के पाचन, पोषण, उपापचय, श्वसन, उत्सर्जन, वृद्धि एवं प्रजनन आदि जैविक क्रियाओं का नियंत्रण इसी के द्वारा किया जाता है।

अंतः स्त्रावी तंत्र की कार्यप्रणाली

अंतःस्त्रावी तंत्र की सम्पूर्ण क्रियाविधि के निम्नलिखित तीन प्रमुख चरण होते हैं-

  1. शरीर की अंतःस्त्रावी ग्रंथियों की की कोशिकाएँ हार्मोन नामक पदार्थों का संश्लेषण करके इन्हें ऊतक द्रव्य में स्त्रावित करती रहती हैं। ये हार्मोन संकेत सूचनाओं का वहन करते हैं। ऊतक द्रव्य से ये हार्मोंस रुधिर में चले जाते हैं।
  2. ये हार्मोन रुधिर के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में संचारित होते रहते हैं।
  3. कुछ हार्मोन को शरीर की समस्त कोशिकाएँ रुधिर से ग्रहण कर सकती हैं। शेष हार्मोन में से प्रत्येक को कुछ निर्दिष्ट ऊतकों की कोशिकाएँ ही रुधिर से ग्रहण कर सकती हैं। इन निर्दिष्ट कोशिकाओं की लक्ष्य कोशिकाएँ कहते हैं। इन कोशिकाओं ग्रहण किए गए हार्मोन इनकी कोशिकाकला या प्लाजा झिल्ली की पारगम्यता एवं उपापचयी एंजाइम्स का नियंत्रण करके इनकी उपापचयी प्रक्रियाओं की दरों को परिवर्तित कर देते हैं। इसके फलस्वरूप, शरीर में होने वाली अनेक सतत् क्रियाओं जैसे-उपापचयी, वृद्धि, हृदय स्पंदन, रक्तचाप, आहारनाल की क्रमाकुंचन गति, स्त्रावण, लैंगिक परिपक्वन, प्रजनन, पुनरुद्भवन, प्रतिरक्षण, आचार-व्यवहार आदि तथा विभिन्न प्रतिक्रियाओं का नियमन होता है। इस प्रकार, हार्मोन आजीवन 'जीवन की गति' को बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं।

ग्रंथियाँ और उनके प्रकार

ग्रंथियाँ ऐसे ऊतक, अंग या कोशिका होती हैं जिनसे निकलने वाला स्त्राव शरीर में विभिन्न कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। ग्रंथियाँ प्रायः एपिथीलियम ऊतक के वलन से बनी होती हैं। ये शरीर के अन्दर अंगो में या शरीर में मिलने वाली ग्रंथियाँ प्रायः तीन प्रकार की होती हैं-

बहिः स्त्रावी ग्रंथियाँ

इन ग्रंथियों में सँकरी नलिकाएँ एवं वाहिकाएँ होती हैं, जिनके द्वारा इनमें बनने वाले स्त्रावित पदार्थ शरीर के किसी निश्चित अंग या शरीर की सतह पर पहुँचाए जाते हैं। ऐसी ग्रंथियों को बहिःस्त्रावी ग्रंथियाँ या नलिकायुक्त या प्रणाल ग्रंथियाँ।

उदाहरण

यकृत, स्तानियों की स्वेद ग्रंथियाँ, तैल ग्रंथियाँ, लार ग्रंथियाँ, अश्रु ग्रंथियाँ, दुग्ध ग्रंथियाँ आदि।

अंतः स्त्रावी ग्रंथियाँ

इन ग्रंथियों में स्त्रावित पदार्थ के परिवहन के लिए नलिकाओं या वाहिकाओं का अभाव होता है। अतः इनके द्वारा स्त्रावित पदार्थ, ऊतक द्रव्य के माध्यम से, सीधे रुधिर में मुक्त होकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुँच जाता है। नलिका न होने के कारण इन ग्रंथियों को नलिकाविहीन या अप्रणाल ग्रंथियाँ भी कहते हैं। इन ग्रंथियों के स्त्रावों को हार्मोन कहते हैं। ऐसी ग्रंथियाँ में रुधिर वाहिनियाँ अपेक्षाकृत अधिक होती हैं।

उदाहरण

पीयूष ग्रंथि, थाइरॉइड ग्रंथि, अधिवृक्क ग्रंथि आदि।

मिश्रित ग्रंथियाँ

ये मुख्यतः वाहिकायुक्त होती हैं किन्तु इनके अन्दर कुछ विशेष कोशिकाएँ समूह में पाई जाती हैं जो अंतः स्त्रावी ग्रंथियों का कार्य करती हैं। इनसे स्त्रावित हार्मोन सीधे ही रुधिर में युक्त हो जाते हैं।

उदाहरण

अग्न्याशय- इनका बहिःस्त्रावी भाग अग्न्याशयिक रस उत्पन्न करता है और अंतः स्त्रावी भाग-लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ इंसुलिन तथा ग्लूकागोन नामक हार्मोन का स्त्रावित करती हैं जो सीधे रुधिर में मुक्त हो जाते हैं।

हार्मोन की विशेषताएँ

  • अधिकांश हार्मोन के अणु छोटे होते हैं और इनका अणुभार भी कम होता है।
  • ये जल में घुलनशील (विलेय) होते हैं। ये ऊतकों में सरलतापूर्वक विसरणशील होते हैं।
  • बहुत ही सक्रिय पदार्थ होने के कारण इनका स्त्रावण बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में होता है।
  • कम अणुभार के कारण ये कोशिका की प्लाज्मा झिल्ली से होकर गुजर सकते हैं।
  • ये कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली की पारगम्यता बढ़ा देते हैं।
  • ये रासायनिक उत्प्रेरक की भाँति कार्य करते हैं। अतः ये शरीर की क्रियाओं को प्रेरित करके उनकी गति को बढ़ा देते हैं या फिर घटा देते हैं।
  • क्रियाओं के समय ये विघटित अथवा नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इनका अंतःस्त्रावी ग्रन्थियों से निरंतर स्त्रावण होता है।
  • हार्मोन शरीर में संचय नहीं होता है। ये बनते रहते हैं और प्रयुक्त होते रहते हैं।

हार्मोन के कार्य

  • हार्मोन शरीर की कोशिकाओं के उपापचय का नियंत्रण करके शरीर की कार्यक्षमता को बनाए रखता है।
  • ये शरीर की वृद्धि एवं विकास, सुरक्षा एवं आचरण, लैंगिक लक्षणों एवं प्रजनन आदि का नियंत्रण करते हैं।
  • हार्मोन बाहरी वातावरण की बदलती हुई परिस्थियों में शरीर के अंतः वातावरण को अखण्ड बनाए रखने[1] का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। चूँकि शरीर की कोशिकाएँ अपना-अपना सामान्य कार्य तभी कर सकती हैं जब शरीर का अंतः वातावरण अखण्ड बना रहे, और शरीर का 'एक जीव' के रूप में अस्तित्व तभी बना रह सकता है जब विभिन्न भागों की कोशिकाओं की क्रियाओं में सामंजस्य बना रहे।
  • हार्मोन की गड़बड़ियों (असंतुलन) से शरीर में कार्यात्मक रोग हो जाते हैं। ये गड़बड़ियाँ दो प्रकार की हो सकती हैं- हार्मोन का आवश्यक मात्रा से कम स्त्रावण अथवा अधिक स्त्रावण।

हार्मोन की क्रियाविधि

हार्मोन निम्न प्रकार से जैविक क्रियाओं को प्रभावित करते हैं-

  • कुछ प्रोटीन हार्मोन प्लाज्मा कला की पारगम्यता को परिवर्तित कर देते हैं। जिससे कोशिका की क्रियाओं के लिए आवश्यक पदार्थ कोशिका के भीतर प्रवेश करने लगते हैं या उनका प्रवेश रुक जाता है; जैसे- वृद्धि हॉर्मोंन, इंसुलिन आदि।
  • कुछ प्रोटीन हार्मोन कोशिका कला में उपस्थित एंजाइम एडीनाइलेटसाइक्लेज को सक्रिय कर देते हैं। यह एंजाइम कोशिकाद्रव्य में उपस्थित A. T. P. को चक्रिक एडिनोसीन मोनोफॉस्फेट में बदल देता है। उदाहरण थायरॉक्सिन, एड्रीनैलिन आदि।
  • स्टीरॉएड हार्मोन सीधे कोशिका में पहुँचकर जीन की क्रिया को प्रभावित करते हैं। ये आवश्यकतानुसार सक्रिय जीन को निष्क्रिय या सुप्त जीन को सक्रिय कर देते हैं। इससे प्रोटीन संश्लेषण प्रभावित होता है।
मनुष्य के शरीर में पाई जाने वाली अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ

मनुष्य के शरीर के हार्मोन का स्त्रावण करने वाली रचनाओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है-

अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ और उनकी स्थिति

  1. थाइरॉइड : गले में
  2. पैराथाइरॉइड : गले में
  3. थाइमस : वक्ष में
  4. पीयूष ग्रंथि : मस्तिष्क में
  5. पीनियल काय : मस्तिष्क में
  6. अधिवृक्क : उदय में।

मिश्रित ग्रंथियाँ

  1. अग्न्याशय : उदय में
  2. आमाशय तथा आंत्रीय श्लेष्मिका : उदय में

अन्य अंग

  1. हाइपोथैलेमस : मस्तिष्क में
  2. जनद : पुरुष में वृषण तथा स्त्रियों में अण्डाशय
  3. वृक्क : उदय में
  4. अपरा या ऑवल : गर्भशय तथा भ्रूण के बीच
  5. त्वचा : शरीर का आवरण।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. होमिओस्टैसिस

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख