जय गुरुदेव: Difference between revisions

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'''बाबा जय गुरुदेव''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jai Gurudev'', जन्म- ज्ञात नहीं; मृत्यु- [[18 मई]], [[2012]], [[मथुरा]], [[उत्तर प्रदेश]]) एक प्रसिद्ध धार्मिक गुरु थे। जय गुरुदेव के भक्तों की संख्या देश-विदेश में 20 करोड़ से ज्यादा है और जो उनके एक इशारे पर दौड़े चले आते थे। गुरु के महत्व को सर्वोपरि रखने वाले बाबा जय गुरुदेव भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए। अपने प्रत्येक कार्य में अपने गुरु देव का स्मरण कर जय गुरु देव का उद्घोष करते थे। वह बाबा जयगुरुदेव के नाम से ही जाने जाने लगे। आम आदमी भी उनको इसी संबोधन से दशकों तक जानता आया और उनके प्रचार का ख़ास माध्यम दीवारों पर लिखा उनका नारा होता था ‘जयगुरु देव, सतयुग आएगा’। बाबा जय गुरुदेव गुरु के सान्निध्य को जीवन भर रेखांकित करते रहे। उनका कहना था, हर मर्ज की दवा है। हर समस्या का हल है। बस गुरु की शरण में चले आओ। मैं तो यह जानता हूं कि आप मजबूर होकर आओगे और मैं तब भी आपकी मदद के लिए तैयार रहूंगा। बाबा की सोच व विचार गांव और ग़रीब दोनों से जुड़े थे। बाबा कहते थे- शरीर तो किराए की कोठरी है, इसके लिए 23 घंटे दो लेकिन इस मंदिर में बसने वाले देव यानी [[आत्मा]] के लिए कम से कम एक घंटा ज़रूर निकालो। इससे ईश्वर प्राप्ति सहज हो जाएगी।
==जीवन परिचय==
बाबा जय गुरुदेव का बचपन का नाम तुलसीदास था। बाबा की जन्म तिथि की कोई पक्की जानकारी नहीं है लेकिन बाबा का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] में [[इटावा|इटावा जिले]] के भरथना स्थित गांव खितौरा नील कोठी प्रांगण में हुआ था। जय गुरुदेव नामयोग साधना मंदिर के प्रकाशन में इस साल उनकी उम्र 116 साल बताई गई। वह [[हिंदी]], [[उर्दू]] और [[अंग्रेज़ी]] में पारंगत थे।


जय गुरुदेव होने का मतलब क्या था, यह कोई उनके भक्तों से पूछे जिनकी संख्या लगभग बीस करोड़ है और जो उनके एक इशारे पर दौड़े चले आते थे। गुरु के महत्व को सर्वोपरि रखने वाले बाबा जय गुरुदेव भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए। अपने प्रत्येक कार्य में अपने गुरु देव का स्मरण कर जय गुरु देव का उद्घोष करते थे। वह बाबा जयगुरुदेव के नाम से ही जाने जाने लगे। आम आदमी भी उनको इसी संबोधन से दशकों तक जानता आया और उनके प्रचार का खास माध्यम दीवारों पर लिखा उनका नारा होता था ‘जयगुरु देव, सतयुग आएगा’। बाबा जय गुरुदेव गुरु के सानिध्य को जीवन भर रेखांकित करते रहे। उनका कहना था, हर मर्ज की दवा है। हर समस्या का हल है। बस गुरु की शरण में चले आओ। मैं तो यह जानता हूं कि आप मजबूर होकर आओगे और मैं तब भी आपकी मदद के लिए तैयार रहूंगा।
<blockquote>उन्होंने [[कोलकाता]] में [[5 फरवरी]] [[1973]] को सत्संग सुनने आए अनुयायियों के सामने कहा था कि सबसे पहले मैं अपना परिचय दे दूँ - मैं इस किराये के मकान में पांच तत्व से बना साढ़े तीन हाथ का आदमी हूं। इसके बाद उन्होंने कहा था - मैं सनातन धर्मी हूं, कट्टर हिंदू हूं, न बीड़ी पीता हूं न गांजा, भांग, शराब और न ताड़ी। आप सबका सेवादार हूं। मेरा उद्देश्य है सारे देश में घूम-घूम कर जय गुरुदेव नाम का प्रचार करना। मैं कोई फ़कीर और महात्मा नहीं हूं। मैं तो कोई औलिया हूं न कोई पैगंबर और न अवतारी।</blockquote>


जयगुरूदेव ने अपने जीवन में दो बातों पर सबसे अधिक जोर दिया। एक तो उन्होंने शाकाहार को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया और अपने भक्तों को कहते रहे कि शाकाहार किसी भी कीमत पर छूटना नहीं चाहिए और दूसरा अपने भक्तों को वस्त्र त्याग करके अति सामान्य टाट में गुजारा करने के लिए भी कहा था। उनके बहुत से भक्त आज भी टाट पहनते हैं। उनका कहना था कि शाकाहार आपकी उम्र बढ़ा सकता है। शायद यही वजह रही हो उनके सुदीर्घ जीवन की। उनकी आयु के बारे में भक्तों का अनुमान है कि 110 से ज्यादा वर्षों तक वे जीवित रहे। उनका इस बात पर बराबर जोर रहा कि महामारियों से बचना है तो शाकाहार को अपनाना ही होगा। नशा रोकने पर भी उनका पूरा जोर रहा। अपने भक्तों को वे हमेशा कहते थे कि एक दिन जरूर धरती पर सतयुग आयेगा। उनके भक्त इसे नारा बनाकर प्रचारित भी करते थे कि जयगुरूदेव ने कहा है इसलिए धरा पर सतयुग आयेगा।
====गुरुदेव के गुरु====
बाबा जयगुरुदेव जब सात साल के थे तब उनके मां-बाप का निधन हो गया था। उसके बाद वह सत्य की खोज में निकल पड़े। और इसके बाद से ही उन्होंने मंदिर-मस्जिद और चर्च का भ्रमण करना शुरू कर दिया था। यहां वे धार्मिक गुरुओं की तलाश करते थे। कुछ समय बाद घूमते-घूमते [[अलीगढ़]] के चिरौली गांव (इगलास तहसील) पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात संत घूरेलाल जी शर्मा (दादा गुरु) से हुई और उन्होंने जीवन भर के लिए उन्हें अपना गुरु मान लिया। उन्हीं के पास बाबा वर्षो झोपड़ी में रहे। उनके सान्निध्य में एक-एक दिन में 18-18 घंटे तक साधना करते थे। [[दिसंबर]] [[1950]] में उनके गुरु घूरे लाल जी का निधन हो गया। संत घूरेलालजी के दो‍ शिष्य थे। एक चंद्रमादास और दूसरे तुलसीदास (जय बाबा गुरुदेव)। कालांतर में चंद्रमादास भी नहीं रहे। गांव चिरौली में गुरु के आश्रम को राधास्वामी सत्संग भवन के नाम से जाना जाता है। वहां घूरेलाल महाराज के सत्संग भवन के साथ चंद्रमादास का समाधि स्थल भी है।


बाबा जय गुरुदेव का बचपन का नाम तुलसीदास था। जन्म (तारीख का पक्‍की जानकारी नहीं) उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के भरथना स्थित गांव खितौरा नील कोठी प्रांगण में हुआ था। जय गुरुदेव नामयोग साधना मंदिर के प्रकाशन में इस साल उनकी उम्र 116 साल बताई गई। वह हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में पारंगत थे।
====प्रवचन की शुरुआत====
बाबा जय गुरुदेव आजादी से पहले वे अलीगढ़ में अपने गुरु घूरेलाल शर्मा से दीक्षा लेने के बाद वे पहली बार [[10 जुलाई]] [[1952]] को [[वाराणसी]] में प्रवचन देने के लिए समाज के सामने उपस्थित हुए। इसके बाद क़रीब आधे दशक पूरे देश में तुलसीदास महाराज या फिर जय गुरुदेव की धूम रही। [[29 जून]] [[1975]] के आपातकाल के दौरान वे जेल गए, आगरा सेंट्रल, बरेली सेंटल जेल, बेंगलूर की जेल के बाद उन्हें नई दिल्ली के तिहाड़ जेल ले जाया गया। वहां से वह [[23 मार्च]] [[1977]] को रिहा हुए। जय गुरुदेव के अनुयायी इस दिवस को मुक्ति दिवस के रूप में मनाते हैं। जेल से छूटने के बाद गुरुदेव जब मथुरा आश्रम आये तो तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[इंदिरा गांधी]] उनके आश्रम में पहुंचकर आपातकाल के लिये माफी मांगी। अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान उन्होंने राजनीति की असफल यात्रा भी की। वर्ष 1980 और 90 के दशक के दौरान उन्होंने दूरदर्शी पार्टी बनाई लेकिन वे बहुत सफल नहीं हुए। उन्‍होंने [[संसद]] का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई।
==जय गुरुदेव आश्रम==
वर्ष 1948 से पहले उनके गुरु ने बाबा से मथुरा में किसी एकांत स्थान पर अपना आश्रम बनाकर ग़रीबों की सेवा करने के लिए कहा था। जब उनके गुरु का 1948 की अगहन सुदी दशमी ([[दिसंबर]]) को शरीर नहीं रहा, तब उन्होंने अपने गुरु स्थान चिरौली के नाम पर 1953 में पहले कृष्णानगर मथुरा में चिरौली संत आश्रम की स्थापना से अपने मिशन की शुरुआत की। यह स्थान छोटा पड़ने पर राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे दूसरी ज़मीन तलाश कर यहां आश्रम बनवाया। राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे ही उनका भव्य स्मृति चिन्ह जय गुरुदेव नाम योग साधना मंदिर है। यहां दर्शन 2002 से शुरू हुआ था। नाम योग साधना मंदिर में सर्वधर्म समभाव के दर्शन होते हैं। इस समय वह आश्रम परिसर में ही कुटिया का निर्माण करा रहे थे।
==जय गुरुदेव के अनुयायी==
[[उत्तर प्रदेश]] के [[मथुरा ज़िला|मथुरा ज़िले]] में आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित जयगुरुदेव आश्रम की लगभग डेढ़ सौ एकड़ भूमि पर संत बाबा जयगुरुदेव की एक अलग ही दुनिया बसी हुई है। उनके अनुयायियों में अनपढ़ किसान से लेकर प्रबुद्ध वर्ग तक के लोग हैं। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को सुधारने का संकल्प लेकर जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था एवं जयगुरुदेव धर्म प्रचारक ट्रस्ट चला रहे हैं, जिनके तहत तमाम लोक कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं। बाबा ने अपने विचारों को मूर्त रूप देने के लिए दूरदर्शी पार्टी की भी स्थापना की थी। मकसद था उन्होंने समाज की बिगड़ी हुई व्यवस्था को वैचारिक क्रांति के जरिए ठीक करना। भूमि जोतक, खेतिहर-काश्तकार संगठन की स्थापना भी उन्हीं की देन है।
==जय गुरुदेव मेला==
[[चित्र:Jai-Gurudev-Temple-4.jpg|मेला पर आये हुए बाबा के अनुयायी|thumb|250px]]
गुरु के प्रेम को जीवंत बनाए रखने के लिए सदैव याद रखने के लिए उन्होंने पंच दिवसीय वृहद आध्यात्मिक मेले का आयोजन शुरू किया। इस लक्खी मेले में बाबा के सत्संग-प्रवचन गोष्ठी-सभा, दहेज रहित सामूहिक विवाह एवं श्रमदान आदि के अनेक कार्यक्रम होते हैं। यह मेला मथुरा की पहचान भी बन चुका है। मथुरा के जयगुरुदेव आश्रम, नि:शुल्क शिक्षण संस्थाएं व अस्पताल, उन्होंने ग़रीब तबके के लिए शुरू किए। अपने निजी नलकूपों से निकटवर्ती ग्रामों में पाइप लाइन के जरिए उन्होंने मीठे पानी की नि:शुल्क आपूर्ति कराई। श्रमदान में बाबा की अत्यधिक आस्था रही। इसलिए यहां उनके असंख्य अनुयायी श्रमदान करते नजर आते हैं। कुछ वर्ष पहले तक बाबा स्वयं भी श्रमदान किया करते थे। आश्रम की लगभग 80 एकड़ भूमि पर बड़े ही आधुनिक तौर तरीकों से खेती होती है, जिससे आश्रम की भोजन व्यवस्था चलती है। बाबा अपने जीते जी झोपड़ी में रहे। उनके सभी शिष्य भी इसी भी बाबा का अनुसरण करते हैं लेकिन अतिथियों के लिए आधुनिक सुविधा संपन्न अतिथि गृह है।
==समाज सेवा==
अपने आश्रम में अपने सदगुरु देव ब्रह्मलीन घूरेलाल जी महाराज की पुण्य स्मृति में 160 फुट ऊंचे [[जयगुरुदेव मंदिर मथुरा|योग साधना मंदिर]] का निर्माण उन्होंने कराया। सफेद संगमरमर का यह मंदिर [[ताजमहल]] जैसा प्रतीत होता है। इस मंदिर के डिजाइन में मंदिर-मस्जिद का मिलाजुला रूप है। यह मंदिर समूचे ब्रज का सबसे ऊंचा व अनोखा मंदिर है। मंदिर में 200 फुट लंबा व 100 फुट चौड़ा सत्संग हॉल है, जिसमें लगभग साठ हजार व्यक्ति एक साथ बैठ सकते हैं। पूरा मंदिर श्रमदान से बना है।


उन्होंने कोलकाता में पांच फरवरी 1973 को सत्संग सुनने आए अनुयायियों के सामने कहा था कि सबसे पहले मैं अपना परिचय दे दूं - मैं इस किराये के मकान में पांच तत्व से बना साढ़े तीन हाथ का आदमी हूं। इसके बाद उन्होंने कहा था - मैं सनातन धर्मी हूं, कट्टर हिंदू हूं, न बीड़ी पीता हूं न गांजा, भांग, शराब और न ताड़ी। आप सबका सेवादार हूं। मेरा उद्देश्य है सारे देश में घूम-घूम कर जय गुरुदेव नाम का प्रचार करना। मैं कोई फकीर और महात्मा नहीं हूं। मैं न तो कोई औलिया हूं न कोई पैगंबर और न अवतारी।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व राज्यपाल रोमेश भण्डारी, [[भारतीय जनता पार्टी]] के नेता [[राजनाथ सिंह]], कांग्रेस नेता [[नारायण दत्त तिवारी]], [[समाजवादी पार्टी]] के अध्यक्ष [[मुलायम सिंह यादव]] जैसे वरिष्ठ राजनेताओं से लेकर अनपढ ग़रीब किसान तथा स्वदेश से विदेश तक करोडों लोगों को अपना अनुयायी बनाने वाले संत जय गुरुदेव के द्वारा संचालित जनहितकारी कार्यक्रम जैसे निशुल्क चिकित्सा, निशुल्क शिक्षा, सामूहिक विवाह, मद्यनिषेध, शाकाहार, वृक्षारोपण आदि अनेक सामाजिक कार्य युगों युगों तक चलते रहेंगे।


बाबा जयगुरुदेव जब सात साल के थे तब उनके मां-बाप का निधन हो गया था। उसके बाद वह सत्य की खोज में निकल पडे। और इसके बाद से ही उन्होंने मंदिर-मस्जिद और चर्च का भ्रमण करना शुरू कर दिया था। यहां वे धार्मिक गुरूओं की तलाश करते थे। कुछ समय बाद घूमते-घूमते अलीगढ़ के चिरौली गांव (इगलास तहसील) पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात संत घूरेलाल जी शर्मा से हुई और उन्होंने जीवन भर के लिए उन्हें अपना गुरू मान लिया। उन्हीं के पास बाबा वर्षो रहे। उनके सानिध्य में एक-एक दिन में 18-18 घंटे तक साधना करते थे। दिसंबर 1950 में उनके गुरू घूरे लाल जी का निधन हो गया।
दुनिया भर को शाकाहारी जीवन जीने का संदेश देने वाले बाबा जय गुरुदेव जीवन भर समाजसेवा में लगे रहे। उन्होंने ग़रीब तबके के लिए निशुल्क शिक्षण संस्थाएं व अस्पताल शुरू किए। बाबा ने अपने जीवनकाल में निशुल्क शिक्षा-चिकित्सा, दहेज रहित सामूहिक विवाह, आध्यात्मिक साधना, मद्यपान निषेध, शाकाहारी भोजन तथा वृक्षारोपण पर विशेष बल दिया। सभी शाकाहारी जीवन अपनाएं यही बाबा जय गुरुदेव की अपील है।


बाबा जय गुरुदेव आजादी से पहले वे अलीगढ़ में अपने गुरू घूरेलाल शर्मा से दीक्षा लेने के बाद वे पहली बार दस जुलाई 1952 को वाराणसी में प्रवचन देने के लिए समाज के सामने उपस्थित हुए। इसके बाद करीब आधे दशक पूरे देश में तुलसीदास महाराज या फिर जयगुरूदेव की धूम रही। 29 जून 1975 के आपातकाल के दौरान वे जेल गए, आगरा सेंट्रल, बरेली सेंटल जेल, बेंगलूर की जेल के बाद उन्हें नई दिल्ली के तिहाड़ जेल ले जाया गया। वहां से वह 23 मार्च 77 को रिहा हुए। जयगुरूदेव के अनुयायी इस दिवस को मुक्ति दिवस के रूप में मनाते हैं। जेल से छूटने के बाद गुरूदेव जब मथुरा आश्रम आये तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनके आश्रम में पहुंचकर आपातकाल के लिये माफी मांगी। अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान उन्होंने राजनीति की असफल यात्रा भी की। वर्ष 1980 और 90 के दशक के दौरान उन्होंने दूरदर्शी पार्टी बनाई लेकिन वे बहुत सफल नहीं हुए। उन्‍होंने संसद का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई।
==जीवन दर्शन==
[[चित्र:Jai-Gurudev-Temple-1.jpg|thumb|[[जयगुरुदेव मन्दिर मथुरा|जयगुरुदेव मन्दिर]], [[मथुरा]]|250px]]
जय गुरुदेव ने अपने जीवन में दो बातों पर सबसे अधिक जोर दिया। एक तो उन्होंने शाकाहार को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया और अपने भक्तों को कहते रहे कि शाकाहार किसी भी कीमत पर छूटना नहीं चाहिए और दूसरा अपने भक्तों को वस्त्र त्याग करके अति सामान्य टाट में गुजारा करने के लिए भी कहा था। उनके बहुत से भक्त आज भी टाट पहनते हैं। उनका कहना था कि शाकाहार आपकी उम्र बढ़ा सकता है। शायद यही वजह रही हो उनके सुदीर्घ जीवन की। उनकी आयु के बारे में भक्तों का अनुमान है कि 110 से ज्यादा वर्षों तक वे जीवित रहे। उनका इस बात पर बराबर जोर रहा कि महामारियों से बचना है तो शाकाहार को अपनाना ही होगा। नशा रोकने पर भी उनका पूरा जोर रहा। अपने भक्तों को वे हमेशा कहते थे कि एक दिन ज़रूर धरती पर सतयुग आयेगा। उनके भक्त इसे नारा बनाकर प्रचारित भी करते थे कि जय गुरुदेव ने कहा है इसलिए धरा पर सतयुग आयेगा।
==निधन==
बाबा जय गुरुदेव का 116 वर्ष की उम्र में [[शुक्रवार]], [[18 मई]] [[2012]] की रात [[मथुरा]] में निधन हो गया। आश्रम प्रबंधकों के अनुसार दस दिन गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में इलाज कराने के बाद उन्हें उनकी इच्छानुसार मथुरा स्थित आश्रम लाया गया था, जहां रात नौ बजकर 52 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका हिंदू रीति-रिवाज से आश्रम परिसर में दाह संस्कार किया गया। उनके ड्रायवर ने उन्हें मुखाग्नि दी। वहां उपस्थित लाखों भक्तों ने रुंधे गले से बाबा को अंतिम विदाई दी। 20 करोड़ भक्तों के देवतुल्य बाबा अब इस दुनिया में नहीं हैं। बाबा जय गुरुदेव का निधन एक युग का अंत है।


वर्ष 1948 से पहले उनके गुरु ने बाबा जयगुरुदेव से मथुरा में किसी एकांत स्थान पर अपना आश्रम बनाकर गरीबों की सेवा करने के लिए कहा था। जब उनके गुरु का 1948 की अगहन सुदी दशमी (दिसंबर) को शरीर नहीं रहा, तब उन्होंने अपने गुरु स्थान चिरौली के नाम पर 1953 में पहले कृष्णानगर मथुरा में चिरौली संत आश्रम की स्थापना से अपने मिशन की शुरुआत की। यह स्थान छोटा पड़ने पर नेशनल हाइवे के किनारे दूसरी जमीन तलाश कर यहां आश्रम बनवाया। नेशनल हाइवे के किनारे ही उनका भव्य स्मृति चिन्ह जयगुरूदेव नाम योग साधना मंदिर है। यहां दर्शन 2002 से शुरू हुआ था। नाम योग साधना मंदिर में सर्वधर्म समभाव के दर्शन होते हैं। इस समय वह आश्रम परिसर में ही कुटिया का निर्माण करा रहे थे।


उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित जयगुरुदेव आश्रम की लगभग डेढ़ सौ एकड़ भूमि पर संत बाबा जयगुरुदेव की एक अलग ही दुनिया बसी हुई है। उनके अनुयायियों में अनपढ़ किसान से लेकर प्रबुद्ध वर्ग तक के लोग हैं। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को सुधारने का संकल्प लेकर जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था एवं जयगुरुदेव धर्म प्रचारक ट्रस्ट चला रहे हैं, जिनके तहत तमाम लोक कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं। बाबा ने अपने विचारों को मूर्त रूप देने के लिए दूरदर्शी पार्टी की भी स्थापना की थी। मकसद था उन्होंने समाज की बिगड़ी हुई व्यवस्था को वैचारिक क्रांति के जरिए ठीक करना। भूमि जोतक, खेतिहर-काश्तकार संगठन की स्थापना भी उन्हीं की देन है।
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गुरु के प्रेम को जीवंत बनाए रखने के लिए सदैव याद रखने के लिए उन्होंने पंच दिवसीय वृहद आध्यात्मिक मेले का आयोजन शुरू किया। इस लक्खी मेले में बाबा के सत्संग-प्रवचन गोष्ठी-सभा, दहेज रहित सामूहिक विवाह एवं श्रमदान आदि के अनेक कार्यक्रम होते हैं। यह मेला मथुरा की पहचान भी बन चुका है। मथुरा के जयगुरुदेव आश्रम, नि:शुल्क शिक्षण संस्थाएं व अस्पताल उन्होंने गरीब तबके के लिए शुरू किए। अपने निजी नलकूपों से निकटवर्ती ग्रामों में पाइप लाइन के जरिए उन्होंने मीठे पानी की नि:शुल्क आपूर्ति कराई। श्रमदान में बाबा की अत्यधिक आस्था रही। इसलिए यहां उनके असंख्य अनुयायी श्रमदान करते नजर आते हैं। कुछ वर्ष पहले तक बाबा स्वयं भी श्रमदान किया करते थे। आश्रम की लगभग 80 एकड़ भूमि पर बड़े ही आधुनिक तौर तरीकों से खेती होती है, जिससे आश्रम की भोजन व्यवस्था चलती है। बाबा अपने जीते जी झोपड़ी में रहे। उनके सभी शिष्य भी इसी भी बाबा का अनुसरण करते हैं लेकिन अतिथियों के लिए आधुनिक सुविधा संपन्न अतिथि गृह है। अपने आश्रम में अपने सदगुरु देव ब्रह्मलीन घूरेलाल जी महाराज की पुण्य स्मृति में 160 फुट ऊंचे योग साधना मंदिर का निर्माण उन्होंने कराया। सफेद संगमरमर का यह मंदिर ताजमहल जैसा प्रतीत होता है। इस मंदिर के डिजाइन में मंदिर-मस्जिद का मिलाजुला रूप है। यह मंदिर समूचे ब्रज का सबसे ऊंचा व अनोखा मंदिर है। मंदिर में 200 फुट लंबा व 100 फुट चौड़ा सत्संग हॉल है, जिसमें लगभग साठ हजार व्यक्ति एक साथ बैठ सकते हैं। पूरा मंदिर श्रमदान से बना है।
 
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व राज्यपाल रोमेश भण्डारी, भारतीय जनता पार्टी के नेता राजनाथ सिंह, कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जैसे वरिष्ठ राजनेताओं से लेकर अनपढ गरीब किसान तथा स्वदेश से विदेश तक करोडों लोगों को अपना अनुयायी बनाने वाले संत जयगुरूदेव के द्वारा संचालित जनहितकारी कार्यक्रम जैसे निशुल्क चिकित्सा, निशुल्क शिक्षा, सामूहिक विवाह, मद्यनिषेध, शाकाहार, वृक्षारोपण आदि अनेक सामाजिक कार्य युगों युगों तक चलते रहेंगे।
 
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://apnamat.blogspot.in/ नहीं रहे बाबा जय गुरुदेव]
*[http://hindi.webdunia.com/religion-personality/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%AF-%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5-1120522036_1.htm बाबा जय गुरुदेव]
*[http://visfot.com/home/index.php/permalink/6451.html सतयुग तो आया नहीं जयगुरुदेव चले गये]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{आधुनिक आध्यात्मिक गुरु}}
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[[Category:आधुनिक आध्यात्मिक गुरु]][[Category:अध्यात्म]]
 
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
[[Category:चरित कोश]]
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Latest revision as of 09:19, 12 April 2018

जय गुरुदेव
पूरा नाम बाबा जय गुरुदेव
अन्य नाम तुलसीदास[1]
जन्म ज्ञात नहीं
जन्म भूमि गांव खितौरा, इटावा जिले, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 18 मई, 2012
मृत्यु स्थान मथुरा
गुरु संत घूरेलाल जी शर्मा
भाषा हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख जयगुरुदेव मन्दिर
अद्यतन‎

बाबा जय गुरुदेव (अंग्रेज़ी: Jai Gurudev, जन्म- ज्ञात नहीं; मृत्यु- 18 मई, 2012, मथुरा, उत्तर प्रदेश) एक प्रसिद्ध धार्मिक गुरु थे। जय गुरुदेव के भक्तों की संख्या देश-विदेश में 20 करोड़ से ज्यादा है और जो उनके एक इशारे पर दौड़े चले आते थे। गुरु के महत्व को सर्वोपरि रखने वाले बाबा जय गुरुदेव भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए। अपने प्रत्येक कार्य में अपने गुरु देव का स्मरण कर जय गुरु देव का उद्घोष करते थे। वह बाबा जयगुरुदेव के नाम से ही जाने जाने लगे। आम आदमी भी उनको इसी संबोधन से दशकों तक जानता आया और उनके प्रचार का ख़ास माध्यम दीवारों पर लिखा उनका नारा होता था ‘जयगुरु देव, सतयुग आएगा’। बाबा जय गुरुदेव गुरु के सान्निध्य को जीवन भर रेखांकित करते रहे। उनका कहना था, हर मर्ज की दवा है। हर समस्या का हल है। बस गुरु की शरण में चले आओ। मैं तो यह जानता हूं कि आप मजबूर होकर आओगे और मैं तब भी आपकी मदद के लिए तैयार रहूंगा। बाबा की सोच व विचार गांव और ग़रीब दोनों से जुड़े थे। बाबा कहते थे- शरीर तो किराए की कोठरी है, इसके लिए 23 घंटे दो लेकिन इस मंदिर में बसने वाले देव यानी आत्मा के लिए कम से कम एक घंटा ज़रूर निकालो। इससे ईश्वर प्राप्ति सहज हो जाएगी।

जीवन परिचय

बाबा जय गुरुदेव का बचपन का नाम तुलसीदास था। बाबा की जन्म तिथि की कोई पक्की जानकारी नहीं है लेकिन बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के भरथना स्थित गांव खितौरा नील कोठी प्रांगण में हुआ था। जय गुरुदेव नामयोग साधना मंदिर के प्रकाशन में इस साल उनकी उम्र 116 साल बताई गई। वह हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी में पारंगत थे।

उन्होंने कोलकाता में 5 फरवरी 1973 को सत्संग सुनने आए अनुयायियों के सामने कहा था कि सबसे पहले मैं अपना परिचय दे दूँ - मैं इस किराये के मकान में पांच तत्व से बना साढ़े तीन हाथ का आदमी हूं। इसके बाद उन्होंने कहा था - मैं सनातन धर्मी हूं, कट्टर हिंदू हूं, न बीड़ी पीता हूं न गांजा, भांग, शराब और न ताड़ी। आप सबका सेवादार हूं। मेरा उद्देश्य है सारे देश में घूम-घूम कर जय गुरुदेव नाम का प्रचार करना। मैं कोई फ़कीर और महात्मा नहीं हूं। मैं न तो कोई औलिया हूं न कोई पैगंबर और न अवतारी।

गुरुदेव के गुरु

बाबा जयगुरुदेव जब सात साल के थे तब उनके मां-बाप का निधन हो गया था। उसके बाद वह सत्य की खोज में निकल पड़े। और इसके बाद से ही उन्होंने मंदिर-मस्जिद और चर्च का भ्रमण करना शुरू कर दिया था। यहां वे धार्मिक गुरुओं की तलाश करते थे। कुछ समय बाद घूमते-घूमते अलीगढ़ के चिरौली गांव (इगलास तहसील) पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात संत घूरेलाल जी शर्मा (दादा गुरु) से हुई और उन्होंने जीवन भर के लिए उन्हें अपना गुरु मान लिया। उन्हीं के पास बाबा वर्षो झोपड़ी में रहे। उनके सान्निध्य में एक-एक दिन में 18-18 घंटे तक साधना करते थे। दिसंबर 1950 में उनके गुरु घूरे लाल जी का निधन हो गया। संत घूरेलालजी के दो‍ शिष्य थे। एक चंद्रमादास और दूसरे तुलसीदास (जय बाबा गुरुदेव)। कालांतर में चंद्रमादास भी नहीं रहे। गांव चिरौली में गुरु के आश्रम को राधास्वामी सत्संग भवन के नाम से जाना जाता है। वहां घूरेलाल महाराज के सत्संग भवन के साथ चंद्रमादास का समाधि स्थल भी है।

प्रवचन की शुरुआत

बाबा जय गुरुदेव आजादी से पहले वे अलीगढ़ में अपने गुरु घूरेलाल शर्मा से दीक्षा लेने के बाद वे पहली बार 10 जुलाई 1952 को वाराणसी में प्रवचन देने के लिए समाज के सामने उपस्थित हुए। इसके बाद क़रीब आधे दशक पूरे देश में तुलसीदास महाराज या फिर जय गुरुदेव की धूम रही। 29 जून 1975 के आपातकाल के दौरान वे जेल गए, आगरा सेंट्रल, बरेली सेंटल जेल, बेंगलूर की जेल के बाद उन्हें नई दिल्ली के तिहाड़ जेल ले जाया गया। वहां से वह 23 मार्च 1977 को रिहा हुए। जय गुरुदेव के अनुयायी इस दिवस को मुक्ति दिवस के रूप में मनाते हैं। जेल से छूटने के बाद गुरुदेव जब मथुरा आश्रम आये तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनके आश्रम में पहुंचकर आपातकाल के लिये माफी मांगी। अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान उन्होंने राजनीति की असफल यात्रा भी की। वर्ष 1980 और 90 के दशक के दौरान उन्होंने दूरदर्शी पार्टी बनाई लेकिन वे बहुत सफल नहीं हुए। उन्‍होंने संसद का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई।

जय गुरुदेव आश्रम

वर्ष 1948 से पहले उनके गुरु ने बाबा से मथुरा में किसी एकांत स्थान पर अपना आश्रम बनाकर ग़रीबों की सेवा करने के लिए कहा था। जब उनके गुरु का 1948 की अगहन सुदी दशमी (दिसंबर) को शरीर नहीं रहा, तब उन्होंने अपने गुरु स्थान चिरौली के नाम पर 1953 में पहले कृष्णानगर मथुरा में चिरौली संत आश्रम की स्थापना से अपने मिशन की शुरुआत की। यह स्थान छोटा पड़ने पर राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे दूसरी ज़मीन तलाश कर यहां आश्रम बनवाया। राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे ही उनका भव्य स्मृति चिन्ह जय गुरुदेव नाम योग साधना मंदिर है। यहां दर्शन 2002 से शुरू हुआ था। नाम योग साधना मंदिर में सर्वधर्म समभाव के दर्शन होते हैं। इस समय वह आश्रम परिसर में ही कुटिया का निर्माण करा रहे थे।

जय गुरुदेव के अनुयायी

उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले में आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित जयगुरुदेव आश्रम की लगभग डेढ़ सौ एकड़ भूमि पर संत बाबा जयगुरुदेव की एक अलग ही दुनिया बसी हुई है। उनके अनुयायियों में अनपढ़ किसान से लेकर प्रबुद्ध वर्ग तक के लोग हैं। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को सुधारने का संकल्प लेकर जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था एवं जयगुरुदेव धर्म प्रचारक ट्रस्ट चला रहे हैं, जिनके तहत तमाम लोक कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं। बाबा ने अपने विचारों को मूर्त रूप देने के लिए दूरदर्शी पार्टी की भी स्थापना की थी। मकसद था उन्होंने समाज की बिगड़ी हुई व्यवस्था को वैचारिक क्रांति के जरिए ठीक करना। भूमि जोतक, खेतिहर-काश्तकार संगठन की स्थापना भी उन्हीं की देन है।

जय गुरुदेव मेला

मेला पर आये हुए बाबा के अनुयायी|thumb|250px गुरु के प्रेम को जीवंत बनाए रखने के लिए सदैव याद रखने के लिए उन्होंने पंच दिवसीय वृहद आध्यात्मिक मेले का आयोजन शुरू किया। इस लक्खी मेले में बाबा के सत्संग-प्रवचन गोष्ठी-सभा, दहेज रहित सामूहिक विवाह एवं श्रमदान आदि के अनेक कार्यक्रम होते हैं। यह मेला मथुरा की पहचान भी बन चुका है। मथुरा के जयगुरुदेव आश्रम, नि:शुल्क शिक्षण संस्थाएं व अस्पताल, उन्होंने ग़रीब तबके के लिए शुरू किए। अपने निजी नलकूपों से निकटवर्ती ग्रामों में पाइप लाइन के जरिए उन्होंने मीठे पानी की नि:शुल्क आपूर्ति कराई। श्रमदान में बाबा की अत्यधिक आस्था रही। इसलिए यहां उनके असंख्य अनुयायी श्रमदान करते नजर आते हैं। कुछ वर्ष पहले तक बाबा स्वयं भी श्रमदान किया करते थे। आश्रम की लगभग 80 एकड़ भूमि पर बड़े ही आधुनिक तौर तरीकों से खेती होती है, जिससे आश्रम की भोजन व्यवस्था चलती है। बाबा अपने जीते जी झोपड़ी में रहे। उनके सभी शिष्य भी इसी भी बाबा का अनुसरण करते हैं लेकिन अतिथियों के लिए आधुनिक सुविधा संपन्न अतिथि गृह है।

समाज सेवा

अपने आश्रम में अपने सदगुरु देव ब्रह्मलीन घूरेलाल जी महाराज की पुण्य स्मृति में 160 फुट ऊंचे योग साधना मंदिर का निर्माण उन्होंने कराया। सफेद संगमरमर का यह मंदिर ताजमहल जैसा प्रतीत होता है। इस मंदिर के डिजाइन में मंदिर-मस्जिद का मिलाजुला रूप है। यह मंदिर समूचे ब्रज का सबसे ऊंचा व अनोखा मंदिर है। मंदिर में 200 फुट लंबा व 100 फुट चौड़ा सत्संग हॉल है, जिसमें लगभग साठ हजार व्यक्ति एक साथ बैठ सकते हैं। पूरा मंदिर श्रमदान से बना है।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व राज्यपाल रोमेश भण्डारी, भारतीय जनता पार्टी के नेता राजनाथ सिंह, कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जैसे वरिष्ठ राजनेताओं से लेकर अनपढ ग़रीब किसान तथा स्वदेश से विदेश तक करोडों लोगों को अपना अनुयायी बनाने वाले संत जय गुरुदेव के द्वारा संचालित जनहितकारी कार्यक्रम जैसे निशुल्क चिकित्सा, निशुल्क शिक्षा, सामूहिक विवाह, मद्यनिषेध, शाकाहार, वृक्षारोपण आदि अनेक सामाजिक कार्य युगों युगों तक चलते रहेंगे।

दुनिया भर को शाकाहारी जीवन जीने का संदेश देने वाले बाबा जय गुरुदेव जीवन भर समाजसेवा में लगे रहे। उन्होंने ग़रीब तबके के लिए निशुल्क शिक्षण संस्थाएं व अस्पताल शुरू किए। बाबा ने अपने जीवनकाल में निशुल्क शिक्षा-चिकित्सा, दहेज रहित सामूहिक विवाह, आध्यात्मिक साधना, मद्यपान निषेध, शाकाहारी भोजन तथा वृक्षारोपण पर विशेष बल दिया। सभी शाकाहारी जीवन अपनाएं यही बाबा जय गुरुदेव की अपील है।

जीवन दर्शन

[[चित्र:Jai-Gurudev-Temple-1.jpg|thumb|जयगुरुदेव मन्दिर, मथुरा|250px]] जय गुरुदेव ने अपने जीवन में दो बातों पर सबसे अधिक जोर दिया। एक तो उन्होंने शाकाहार को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया और अपने भक्तों को कहते रहे कि शाकाहार किसी भी कीमत पर छूटना नहीं चाहिए और दूसरा अपने भक्तों को वस्त्र त्याग करके अति सामान्य टाट में गुजारा करने के लिए भी कहा था। उनके बहुत से भक्त आज भी टाट पहनते हैं। उनका कहना था कि शाकाहार आपकी उम्र बढ़ा सकता है। शायद यही वजह रही हो उनके सुदीर्घ जीवन की। उनकी आयु के बारे में भक्तों का अनुमान है कि 110 से ज्यादा वर्षों तक वे जीवित रहे। उनका इस बात पर बराबर जोर रहा कि महामारियों से बचना है तो शाकाहार को अपनाना ही होगा। नशा रोकने पर भी उनका पूरा जोर रहा। अपने भक्तों को वे हमेशा कहते थे कि एक दिन ज़रूर धरती पर सतयुग आयेगा। उनके भक्त इसे नारा बनाकर प्रचारित भी करते थे कि जय गुरुदेव ने कहा है इसलिए धरा पर सतयुग आयेगा।

निधन

बाबा जय गुरुदेव का 116 वर्ष की उम्र में शुक्रवार, 18 मई 2012 की रात मथुरा में निधन हो गया। आश्रम प्रबंधकों के अनुसार दस दिन गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में इलाज कराने के बाद उन्हें उनकी इच्छानुसार मथुरा स्थित आश्रम लाया गया था, जहां रात नौ बजकर 52 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका हिंदू रीति-रिवाज से आश्रम परिसर में दाह संस्कार किया गया। उनके ड्रायवर ने उन्हें मुखाग्नि दी। वहां उपस्थित लाखों भक्तों ने रुंधे गले से बाबा को अंतिम विदाई दी। 20 करोड़ भक्तों के देवतुल्य बाबा अब इस दुनिया में नहीं हैं। बाबा जय गुरुदेव का निधन एक युग का अंत है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बचपन में बाबा जयगुरुदेव का नाम तुलसीदास था।

बाहरी कड़ियाँ

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