कुल: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
'''कुल''' से तात्पर्य है कि एक ऐसा समूह है, जिसके सदस्यों में [[रक्त]] का संबंध हो, जो एक परंपरागत वंशानुक्रम बंधन को स्वीकार करते हों, भले ही ये मातृरेखीय हों या पितृरेखीय, पर जो वास्तविक पीढ़ियों के संबंधों को बतलाने में हमेशा असमर्थ रहे।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2 |title=कुल |accessmonthday=11 मार्च|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
'''कुल''' से तात्पर्य है कि एक ऐसा समूह है, जिसके सदस्यों में [[रक्त]] का संबंध हो, जो एक परंपरागत वंशानुक्रम बंधन को स्वीकार करते हों, भले ही ये मातृरेखीय हों या पितृरेखीय, पर जो वास्तविक पीढ़ियों के संबंधों को बतलाने में हमेशा असमर्थ रहे।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2 |title=कुल |accessmonthday=11 मार्च|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
{{tocright}}
{{tocright}}
==वंश==
==वंश==
रक्त संबंधी पीढ़ियों के संबंध को स्पष्ट रूप से बतला सकने वाले समूह को 'वंश' कहा जाता है। मर्डाक ने 'कुल' के लिए [[अंग्रेज़ी]] में 'सिब' शब्द का प्रयोग किया है। मर्डाक के पहले अन्य मानवशास्त्रियों ने 'सिब' का अन्य अर्थों में भी प्रयोग किया था। वंश की तुलना में 'कुल' [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] की अस्पष्टता मर्डाक के 'सिब' शब्द के प्रयोग के अनुरूप ही हैं।
रक्त संबंधी पीढ़ियों के संबंध को स्पष्ट रूप से बतला सकने वाले समूह को 'वंश' कहा जाता है। मर्डाक ने 'कुल' के लिए [[अंग्रेज़ी]] में 'सिब' शब्द का प्रयोग किया है। मर्डाक के पहले अन्य मानवशास्त्रियों ने 'सिब' का अन्य अर्थों में भी प्रयोग किया था। वंश की तुलना में 'कुल' [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] की अस्पष्टता मर्डाक के 'सिब' शब्द के प्रयोग के अनुरूप ही हैं।
पाणिनिकालीन भारतवर्ष में परिवार की संख्या कुल थी।<ref>4/1/ 139 :4/2/ 96</ref> कुल की प्रतिष्ठा पर प्राचीन भारतीय बहुत ध्यान देते थे। यूं तो समाज में चारों ओर कुल ही कुल थे, किंतु उत्कृष्ट कुलों की गणना में स्थान पा लेना कुल संख्या प्राप्त करने का आदर्श था। [[महाभारत]] में भी इस प्रकार के महाकुलों प्रशंसा की गई है, इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि महाकुल में उत्पन्न व्यक्ति के लिए भाषा में पाणिनि निर्दिष्ट कई शब्दों की आकांक्षा थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पाणिनीकालीन भारत|लेखक=वासुदेवशरण अग्रवाल|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=109-110|url=}}</ref>
====मातृकुल और पितृकुल====
====मातृकुल और पितृकुल====
किसी कुल के व्यक्ति [[पिता]] से अपनी अनुगतता बतलाते हैं तो ऐसे समूह को '[[पितृकुल]]' कहा जाता है। यदि किसी कुल के व्यक्ति [[माता]] से अपनी अनुगतता बतलाते हैं तो ऐसे समूह को '[[मातृकुल]]' कहा जाता है। इसलिए ये दोनों समूह क्रमश: 'पितृरेखीय' और 'मातृरेखीय' कहलाते हैं। पितृकुलों में संपति के उत्तराधिकारी के नियम के अनुसार पिता से [[पुत्र]] को संपति का उत्तराधिकार मिलता है।
किसी कुल के व्यक्ति [[पिता]] से अपनी अनुगतता बतलाते हैं तो ऐसे समूह को '[[पितृकुल]]' कहा जाता है। यदि किसी कुल के व्यक्ति [[माता]] से अपनी अनुगतता बतलाते हैं तो ऐसे समूह को '[[मातृकुल]]' कहा जाता है। इसलिए ये दोनों समूह क्रमश: 'पितृरेखीय' और 'मातृरेखीय' कहलाते हैं। पितृकुलों में संपति के उत्तराधिकारी के नियम के अनुसार पिता से [[पुत्र]] को संपति का उत्तराधिकार मिलता है।

Latest revision as of 06:41, 13 April 2018

कुल से तात्पर्य है कि एक ऐसा समूह है, जिसके सदस्यों में रक्त का संबंध हो, जो एक परंपरागत वंशानुक्रम बंधन को स्वीकार करते हों, भले ही ये मातृरेखीय हों या पितृरेखीय, पर जो वास्तविक पीढ़ियों के संबंधों को बतलाने में हमेशा असमर्थ रहे।[1]

वंश

रक्त संबंधी पीढ़ियों के संबंध को स्पष्ट रूप से बतला सकने वाले समूह को 'वंश' कहा जाता है। मर्डाक ने 'कुल' के लिए अंग्रेज़ी में 'सिब' शब्द का प्रयोग किया है। मर्डाक के पहले अन्य मानवशास्त्रियों ने 'सिब' का अन्य अर्थों में भी प्रयोग किया था। वंश की तुलना में 'कुल' शब्द की अस्पष्टता मर्डाक के 'सिब' शब्द के प्रयोग के अनुरूप ही हैं।


पाणिनिकालीन भारतवर्ष में परिवार की संख्या कुल थी।[2] कुल की प्रतिष्ठा पर प्राचीन भारतीय बहुत ध्यान देते थे। यूं तो समाज में चारों ओर कुल ही कुल थे, किंतु उत्कृष्ट कुलों की गणना में स्थान पा लेना कुल संख्या प्राप्त करने का आदर्श था। महाभारत में भी इस प्रकार के महाकुलों प्रशंसा की गई है, इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि महाकुल में उत्पन्न व्यक्ति के लिए भाषा में पाणिनि निर्दिष्ट कई शब्दों की आकांक्षा थी।[3]

मातृकुल और पितृकुल

किसी कुल के व्यक्ति पिता से अपनी अनुगतता बतलाते हैं तो ऐसे समूह को 'पितृकुल' कहा जाता है। यदि किसी कुल के व्यक्ति माता से अपनी अनुगतता बतलाते हैं तो ऐसे समूह को 'मातृकुल' कहा जाता है। इसलिए ये दोनों समूह क्रमश: 'पितृरेखीय' और 'मातृरेखीय' कहलाते हैं। पितृकुलों में संपति के उत्तराधिकारी के नियम के अनुसार पिता से पुत्र को संपति का उत्तराधिकार मिलता है।

बहिर्विवाह

अन्य रक्त संबंधी एकरेखीय समूहों की भाँति कुल में भी बहिर्विवाह के नियम का पालन होता हैं। सामान्य रूप से एक कुल में भी अनेक वंश होते हैं, इसीलिये कुल के बाहर विवाह करने का तात्पर्य वंश के बाहर भी विवाह करना है। कुछ समाजों में वंश होते हैं पर कुल नहीं होते और कुछ समाजों में वंश और कुल के बीच में उपकुल भी होते हैं।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 मार्च, 2014।
  2. 4/1/ 139 :4/2/ 96
  3. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 109-110 |

संबंधित लेख