अमर सिंह: Difference between revisions
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'''अमर सिंह''' [[विक्रमादित्य|राजा विक्रमादित्य]] की राजसभा के नौ रत्नों में से एक थे। उनका बनाया '[[अमरकोष]]' [[संस्कृत|संस्कृत भाषा]] का सबसे प्रसिद्ध कोष ग्रन्थ है। उन्होंने इसकी रचना तीसरी शताब्दी ई. पू. में की थी। | '''अमर सिंह''' [[विक्रमादित्य|राजा विक्रमादित्य]] की राजसभा के नौ रत्नों में से एक थे। अमरसिंह नाम से अनुमान होता है कि उसके पूर्वज क्षत्रिय रहे होंगे। उनका बनाया '[[अमरकोष]]' [[संस्कृत|संस्कृत भाषा]] का सबसे प्रसिद्ध कोष ग्रन्थ है। उन्होंने इसकी रचना तीसरी शताब्दी ई. पू. में की थी। इस तथ्य का प्रमाण अमरकोश के भीतर ही मिलता है कि अमरसिंह बौद्ध थे। अमरकोश के मंगलाचरण में प्रच्छन्न रूप से [[बुद्ध]] की स्तुति की गई है, किसी हिंदू [[देवी]] [[देवता]] की नहीं। यह पुरानी किंवदंती है कि [[शंकराचार्य]] के समय (आठवीं शताब्दी) में अमरसिंह के ग्रंथ जहाँ-जहाँ मिले, जला दिए गए। | ||
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'''अमरसिंह''' का निश्चित समय बताना असंभव ही है क्योंकि अमरसिंह ने अपने से पहले के कोशकारों के नाम ही नहीं दिए हैं। लिखा है:- <blockquote>'सम्ह्रात्यान्यतंत्राणि'</blockquote> अर्थात् मैंने अन्य कोशों से सामग्री ली है, किंतु किससे ली है, इसका उल्लेख नहीं किया। कर्न और पिशल का अनुमान था कि अमरसिंह का समय 550 ई.के आसपास होगा क्योंकि वह [[विक्रमादित्य]] के नवरत्नों में गिना जाता है जिनमें से एक रत्न [[वराहमिहिर]] का निश्चित समय 550 ई. है। ब्यूलर अमरसिंह को [[लक्ष्मणसेन]] की सभा का रत्न मानते हैं। विलमट साहब को गया में एक [[शिलालेख]] मिला जो 948 ई. का है। इसमें खुदा है कि [[विक्रमादित्य]] की सभा के नवरत्नों में से एक रत्न 'अमरदेव' 'अमरसिंह' ही था, इसका प्रमाण नहीं मिलता; महत्व की बात है कि प्राय: अस्सी पचासी वर्ष से उक्त शिलालेख और उसके अनुवाद लुप्त हैं। हलायुध ने भी अपने कोश में एक प्राचीन कोशकार अमरदत्त का नाम गिनाया है। यूरोप के विद्वान् इस अमरदत्त को अमरसिंह नहीं मानते।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=190 |url=}}</ref> | |||
*संस्कृत भाषा के प्रायः 10,000 शब्दों के संग्रह ग्रंथ ‘अमरकोष’ के रचयिता अमर सिंह के जीवन के संबंध में नाम मात्र की जानकारी उपलब्ध है और वह भी परिस्थितिजन्य प्रमाणों के आधार पर। | *संस्कृत भाषा के प्रायः 10,000 शब्दों के संग्रह ग्रंथ ‘अमरकोष’ के रचयिता अमर सिंह के जीवन के संबंध में नाम मात्र की जानकारी उपलब्ध है और वह भी परिस्थितिजन्य प्रमाणों के आधार पर। | ||
*अमरकोष के आरंभ में अप्रत्यक्ष रूप से केवल [[बुद्ध]] की स्तुति की गई है। इसी प्रकार [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] आदि से पहले बुद्ध का नाम दिया गया है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि अमर सिंह [[बौद्ध]] धर्मानुयायी थे। उनकी गणना [[वराहमिहिर]] के साथ [[विक्रमादित्य]] के नवरत्नों में की जाती है। वराहमिहिर 550 ईस्वी में थे। अतः यही समय अमर सिंह का भी माना जाता है। | *[[अमरकोष]] के आरंभ में अप्रत्यक्ष रूप से केवल [[बुद्ध]] की स्तुति की गई है। इसी प्रकार [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] आदि से पहले बुद्ध का नाम दिया गया है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि अमर सिंह [[बौद्ध]] धर्मानुयायी थे। उनकी गणना [[वराहमिहिर]] के साथ [[विक्रमादित्य]] के नवरत्नों में की जाती है। वराहमिहिर 550 ईस्वी में थे। अतः यही समय अमर सिंह का भी माना जाता है। | ||
*अमर सिंह ने अपने कोश का नाम | *अमर सिंह ने अपने कोश का नाम '''नामलिंगानुशासन''' रखा था। कदाचित रचयिता के नाम पर बाद में यह ‘[[अमरकोष]]’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह एक पद्यबद्ध रचना है। कंठस्थ करने में सुविधा के कारण उन दिनों की रचनाएं श्लोकों में ही अधिक मिलती हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=40|url=}}</ref> | ||
*एक [[शिलालेख]] के अनुसार अमर सिंह ने [[बोधगया]] में एक बुद्ध मंदिर का निर्माण कराया था। | *एक [[शिलालेख]] के अनुसार अमर सिंह ने [[बोधगया]] में एक बुद्ध मंदिर का निर्माण कराया था। | ||
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चित्र:Disamb2.jpg अमर सिंह | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अमर सिंह (बहुविकल्पी) |
अमर सिंह राजा विक्रमादित्य की राजसभा के नौ रत्नों में से एक थे। अमरसिंह नाम से अनुमान होता है कि उसके पूर्वज क्षत्रिय रहे होंगे। उनका बनाया 'अमरकोष' संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कोष ग्रन्थ है। उन्होंने इसकी रचना तीसरी शताब्दी ई. पू. में की थी। इस तथ्य का प्रमाण अमरकोश के भीतर ही मिलता है कि अमरसिंह बौद्ध थे। अमरकोश के मंगलाचरण में प्रच्छन्न रूप से बुद्ध की स्तुति की गई है, किसी हिंदू देवी देवता की नहीं। यह पुरानी किंवदंती है कि शंकराचार्य के समय (आठवीं शताब्दी) में अमरसिंह के ग्रंथ जहाँ-जहाँ मिले, जला दिए गए।
परिचय
अमरसिंह का निश्चित समय बताना असंभव ही है क्योंकि अमरसिंह ने अपने से पहले के कोशकारों के नाम ही नहीं दिए हैं। लिखा है:-
'सम्ह्रात्यान्यतंत्राणि'
अर्थात् मैंने अन्य कोशों से सामग्री ली है, किंतु किससे ली है, इसका उल्लेख नहीं किया। कर्न और पिशल का अनुमान था कि अमरसिंह का समय 550 ई.के आसपास होगा क्योंकि वह विक्रमादित्य के नवरत्नों में गिना जाता है जिनमें से एक रत्न वराहमिहिर का निश्चित समय 550 ई. है। ब्यूलर अमरसिंह को लक्ष्मणसेन की सभा का रत्न मानते हैं। विलमट साहब को गया में एक शिलालेख मिला जो 948 ई. का है। इसमें खुदा है कि विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में से एक रत्न 'अमरदेव' 'अमरसिंह' ही था, इसका प्रमाण नहीं मिलता; महत्व की बात है कि प्राय: अस्सी पचासी वर्ष से उक्त शिलालेख और उसके अनुवाद लुप्त हैं। हलायुध ने भी अपने कोश में एक प्राचीन कोशकार अमरदत्त का नाम गिनाया है। यूरोप के विद्वान् इस अमरदत्त को अमरसिंह नहीं मानते।[1]
- संस्कृत भाषा के प्रायः 10,000 शब्दों के संग्रह ग्रंथ ‘अमरकोष’ के रचयिता अमर सिंह के जीवन के संबंध में नाम मात्र की जानकारी उपलब्ध है और वह भी परिस्थितिजन्य प्रमाणों के आधार पर।
- अमरकोष के आरंभ में अप्रत्यक्ष रूप से केवल बुद्ध की स्तुति की गई है। इसी प्रकार ब्रह्मा, विष्णु आदि से पहले बुद्ध का नाम दिया गया है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि अमर सिंह बौद्ध धर्मानुयायी थे। उनकी गणना वराहमिहिर के साथ विक्रमादित्य के नवरत्नों में की जाती है। वराहमिहिर 550 ईस्वी में थे। अतः यही समय अमर सिंह का भी माना जाता है।
- अमर सिंह ने अपने कोश का नाम नामलिंगानुशासन रखा था। कदाचित रचयिता के नाम पर बाद में यह ‘अमरकोष’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह एक पद्यबद्ध रचना है। कंठस्थ करने में सुविधा के कारण उन दिनों की रचनाएं श्लोकों में ही अधिक मिलती हैं।[2]
- एक शिलालेख के अनुसार अमर सिंह ने बोधगया में एक बुद्ध मंदिर का निर्माण कराया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख