वज़ीर: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:51, 9 January 2020
सल्तनत काल की मंत्रिपरिषद में वज़ीर शायद सर्वप्रमुख होता था। उसके पास अन्य मंत्रियों की अपेक्षा अधिक अधिकार होता था और वह अन्य मंत्रियों के कार्यों पर नज़र रखता था।
वज़ीर राजस्व विभाग का प्रमुख होता था, उसे लगान, कर व्यवस्था, दान सैनिक व्यय आदि की देखभाल करनी पड़ती थी। वह प्रान्तपतियों के राजस्व लेखा का निरीक्षण करता था तथा प्रान्तपतियों से अतिरिक्त राजस्व की वसूली करता था। सुल्तान की अनुपस्थिति में उसे शासन का प्रबन्ध करना पड़ता था। वह दीवान-ए-विराजत (राजस्व विभाग), दीवान-ए-इमारत (लोक निर्माण विभाग), दीवान-ए-अमीर कोही (कृषि विभाग) विभाग के मंत्रियों का प्रमुख होता था। मुस्तौफ़ी-ए-मुमालिक एवं ख़ज़ीन (ख़ज़ांची), होते थे।
तुग़लक़ काल “मुस्लिम भारतीय वज़ीरत का स्वर्ण काल” था।
उत्तरगामी तुग़लक़ों के समय में वज़ीर की शक्ति बहुत बढ़ गयी थी। अंतिम तुग़लक़ शासक महमूद तुग़लक़ के समय में जब अशांति फैली तो, एक नये कार्यालय वक़ील-ए-सुल्तान की स्थापना हुई। सैय्यदों के समय में यह शक्ति घटने लगी तथा अफ़ग़ानों के अधीन वज़ीर का पद महत्त्वहीन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख