संविधान संशोधन- 30वाँ: Difference between revisions

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'''भारत का संविधान (30वाँ संशोधन) अधिनियम, 1972'''
'''भारत का संविधान (30वाँ संशोधन) अधिनियम, 1972'''
*[[भारत]] के संविधान में एक और [[संविधान संशोधन|संशोधन]] किया गया।
*[[भारत]] के संविधान में एक और [[संविधान संशोधन|संशोधन]] किया गया।
*इस संशोधन का उद्देश्य अनुच्छेद 133 का संशोधन करके उसमें निर्धारित 20,000 रुपये की मूल्यांकन परीक्षा समाप्त करना तथा उसके स्थान पर सिविल कार्यवाही में [[उच्चतम न्यायालय]] में अपील की व्यवस्था करना है, जो केवल उच्च न्यायालय के इस प्रमाणपत्र पर ही की जा सकेगी कि उस मामले में सामान्य महत्व की विधि का सारवान प्रश्न अंतरग्रस्त है और उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है।
*इस संशोधन का उद्देश्य अनुच्छेद 133 का संशोधन करके उसमें निर्धारित 20,000 रुपये की मूल्यांकन परीक्षा समाप्त करना तथा उसके स्थान पर सिविल कार्रवाई में [[उच्चतम न्यायालय]] में अपील की व्यवस्था करना है, जो केवल उच्च न्यायालय के इस प्रमाणपत्र पर ही की जा सकेगी कि उस मामले में सामान्य महत्व की विधि का सारवान प्रश्न अंतरग्रस्त है और उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है।
*इस संशोधन की सिफ़ारिश विधि-आयोग ने की थी।
*इस संशोधन की सिफ़ारिश विधि-आयोग ने की थी।



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संविधान संशोधन- 30वाँ
विवरण 'भारतीय संविधान' का निर्माण 'संविधान सभा' द्वारा किया गया था। संविधान में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन भी होते रहे हैं। विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को ही 'संशोधन' कहा जाता है।
संविधान लागू होने की तिथि 26 जनवरी, 1950
30वाँ संशोधन 1972
संबंधित लेख संविधान सभा
अन्य जानकारी 'भारत का संविधान' ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली के नमूने पर आधारित है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है। ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है, जबकि भारत में संसद नहीं; बल्कि 'संविधान' सर्वोच्च है।

भारत का संविधान (30वाँ संशोधन) अधिनियम, 1972

  • भारत के संविधान में एक और संशोधन किया गया।
  • इस संशोधन का उद्देश्य अनुच्छेद 133 का संशोधन करके उसमें निर्धारित 20,000 रुपये की मूल्यांकन परीक्षा समाप्त करना तथा उसके स्थान पर सिविल कार्रवाई में उच्चतम न्यायालय में अपील की व्यवस्था करना है, जो केवल उच्च न्यायालय के इस प्रमाणपत्र पर ही की जा सकेगी कि उस मामले में सामान्य महत्व की विधि का सारवान प्रश्न अंतरग्रस्त है और उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है।
  • इस संशोधन की सिफ़ारिश विधि-आयोग ने की थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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संबंधित लेख