महेन्द्र वर्मन प्रथम: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(12 intermediate revisions by 5 users not shown)
Line 1: Line 1:
*छठी सदी से पल्लवों का इतिहास अधिक स्पष्ट हो जाता है।
'''महेन्द्र वर्मन प्रथम''' (600-30ई.) [[सिंह विष्णु]] का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। छठी [[सदी]] से [[पल्लव वंश|पल्लवों]] का इतिहास अधिक स्पष्ट हो जाता है।
*इस सदी के अन्तिम भाग में सिंहविष्णु नाम के राजा ने दूर-दूर तक विजय यात्राएँ कर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया, और दक्षिण दिशा में आक्रमण कर उसने [[चोल साम्राज्य|चोल]] और [[पांड्य साम्राज्य|पांड्य]] राज्यों को जीत लिया।
*इस [[सदी]] के अन्तिम भाग में [[सिंह विष्णु]] नाम के राजा ने दूर-दूर तक विजय यात्राएँ कर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया और दक्षिण दिशा में आक्रमण कर उसने [[चोल साम्राज्य|चोल]] और [[पांड्य साम्राज्य|पांड्य]] राज्यों को जीत लिया।
*प्रसिद्ध चालुक्य सम्राट [[पुलकेशी द्वितीय]] के समय में [[पल्लव वंश]] का राजा महेन्द्र वर्मन प्रथम था, जो सातवीं सदी के शुरू में हुआ था।
*प्रसिद्ध चालुक्य सम्राट [[पुलकेशी द्वितीय]] के समय में पल्लव वंश का राजा '''महेन्द्र वर्मन प्रथम''' था, जो सातवीं [[सदी]] के शुरू में हुआ था।
*'''महेन्द्र वर्मन प्रथम''' (600-30ई.) [[सिंह विष्णु]] का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था।
*पल्लवराज महेन्द्र वर्मन प्रथम के साथ पुलकेशी द्वितीय के अनेक युद्ध हुए, जिनमें पुलकेशी द्वितीय विजयी हुआ।
*पुलकेशी द्वितीय महान विजेता था, और उसने [[नर्मदा नदी]] के दक्षिण में अपने विशाल साम्राज्य का विस्तार किया था।  
*पुलकेशी द्वितीय से परास्त हो जाने पर भी महेन्द्र वर्मन प्रथम [[कांची]] में अपनी स्वतंत्र सत्ता क़ायम रखने में सफल रहा।
*पल्लवराज महेन्द्र वर्मन प्रथम के साथ उसके अनेक युद्ध हुए, जिनमें पुलकेशी द्वितीय विजयी हुआ।  
*कसक्कुडी ताम्रपत्रों से ज्ञात होता है कि, किसी युद्ध में महेन्द्र वर्मन प्रथम ने भी पुलकेशी को परास्त किया था।  
*कसक्कुडी ताम्रपत्रों से ज्ञात होता है, कि किसी युद्ध में महेन्द्र वर्मन प्रथम ने भी पुलकेशी को परास्त किया था।  
*उसके समय में [[पल्लव वंश|पल्लव]] साम्राज्य न केवल राजनीतिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं कलात्मक दृष्टि से भी अपने चरमोत्कर्ष पर था।
*उसके समय में [[पल्लव वंश|पल्लव]] साम्राज्य न केवल राजनीतिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं कलात्मक दृष्टि से भी अपने चरमोत्कर्ष पर था।
*उसने 'मत्तविलास' 'विचित्र चित्त' एवं 'गुणभर शत्रुमल्ल, ललिताकुर, अवनिविभाजन, संर्कीणजाति, महेन्द्र विक्रम, अलुप्तकाम कलहप्रीथ आदि प्रशंसासूचक पदवी धारण की थी।
*उसने 'मत्तविलास' 'विचित्र चित्त' एवं 'गुणभर शत्रुमल्ल, ललिताकुर, अवनिविभाजन, संर्कीणजाति, महेन्द्र विक्रम, अलुप्तकाम कलहप्रीथ आदि प्रशंसासूचक पदवी धारण की थी।
*उसकी उपाधियां 'चेत्थकारी' और 'चित्रकारपुल्ली' भी थीं।
*उसकी उपाधियां 'चेत्थकारी' और 'चित्रकारपुल्ली' भी थीं।
*उसके समय में ही दक्षिण [[भारत]] में प्रभुसत्ता की स्थापना के लिए [[पल्लव वंश|पल्लव]]-[[चालुक्य वंश|चालुक्य]] एवं पल्लव-[[पाण्ड्य वंश|पाण्ड्य]] संघर्ष शुरू हो गया था।
*उसके समय में ही दक्षिण [[भारत]] में प्रभुसत्ता की स्थापना के लिए [[पल्लव वंश|पल्लव]]-[[चालुक्य वंश|चालुक्य]] एवं पल्लव-[[पाण्ड्य साम्राज्य|पाण्ड्य]] संघर्ष शुरू हो गया था।
*पल्लव वंश के इतिहास में इस राजा का बहुत अधिक महत्त्व है। उसने [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[शिव]] के बहुत से मन्दिर अपने राज्य में बनवाये, और 'चैत्यकारी' का विरुद धारण किया।
*एहोल अभिलेख के उल्लेख के आधार पर कहा जाता है कि, [[पुलकेशी द्वितीय]] ने पल्लवों से [[वेंगी]] को छीन लिया था।
*एहोल अभिलेख के उल्लेख के आधार पर कहा जाता है कि, [[पुलकेशी द्वितीय]] ने पल्लवों से [[वेंगी]] को छीन लिया था।
*[[नंदिवर्मा द्वितीय]] के कशाक्कुडि अभिलेख से ज्ञात होता है कि, महेन्द्र वर्मन प्रथम ने पुल्ललूर में अपने प्रमुख शत्रु को पराजित किया था।
*[[नंदि वर्मन द्वितीय]] के कशाक्कुडि अभिलेख से ज्ञात होता है कि, महेन्द्र वर्मन प्रथम ने पुल्ललूर में अपने प्रमुख शत्रु को पराजित किया था।
*उसने 'मत्तविलास प्रहसन' तथा 'भगवदज्जुकीयम' जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। 'मत्तविलास प्रहसन' एक हास्य ग्रंथ है।
*उसने 'मत्तविलास प्रहसन' तथा 'भगवदज्जुकीयम' जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। 'मत्तविलास प्रहसन' एक हास्य ग्रंथ है।
*इसमें कपालियों तथा भिक्षुओं पर व्यंग कसा गया है। उसके संरक्षण में ही संगीतशास्त्र पर आधारित ग्रंथ 'कुडमिमालय' की रचना हुई, जो वीणाशास्त्र पर आधारित है।
*इसमें कपालियों तथा भिक्षुओं पर व्यंग्य कसा गया है। उसके संरक्षण में ही संगीतशास्त्र पर आधारित ग्रंथ 'कुडमिमालय' की रचना हुई, जो वीणाशास्त्र पर आधारित है।
*महेन्द्र वर्मन प्रथम ने सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ [[रूद्राचार्य]] के निर्देशन में संगीत का अध्ययन किया था।
*महेन्द्र वर्मन प्रथम ने सुप्रसिद्ध [[संगीतज्ञ]]  [[रुद्राचार्य]] के निर्देशन में संगीत का अध्ययन किया था।
*प्रारम्भ में यह [[जैन धर्म|जैन]] था, किन्तु बाद में अय्यर नामक शैव संत के प्रभाव में आकर [[शैव धर्म]] अपना लिया।
*प्रारम्भ में यह [[जैन धर्म|जैन]] था, किन्तु बाद में अय्यर नामक शैव संत के प्रभाव में आकर [[शैव धर्म]] अपना लिया।
*कहा जाता है कि, इसने [[पारलिपुरम]] के जैन मंदिर को तुड़वाकर उनके अवशेषों से तिवाड़ि (दक्षिण अर्काट) में एक जैन मंदिर बनवाया था।
*कहा जाता है कि, इसने [[पारलिपुरम]] के जैन मंदिर को तुड़वाकर उनके अवशेषों से तिवाड़ि (दक्षिण [[अर्काट]]) में एक जैन मंदिर बनवाया था।
*महेन्द्र वर्मन प्रथम ने सर्वप्रथम दक्षिण [[भारत]] में आडम्बरयुक्त मंदिरों के स्थान पर सीधी-सादी आकर्षक शैल मण्डप वास्तु शैली प्रोत्साहित की।
*महेन्द्र वर्मन प्रथम ने सर्वप्रथम दक्षिण [[भारत]] में आडम्बरयुक्त मंदिरों के स्थान पर सीधी-सादी आकर्षक शैल मण्डप वास्तु शैली प्रोत्साहित की।
*पर इसमें सन्देह नहीं कि चालुक्य सम्राट पल्लवों के अनेक प्रदेशों को स्थायी रूप से अपनी अधीनता ले लाने में समर्थ हुआ था।
*वेंगि को पल्लवों से जीतकर पुलकेशी द्वितीय ने अपने छोटे भाई कुब्ज विष्णुवर्धन को वहाँ का शासक नियुक्त किया था, और इस प्रदेश के चालुक्य शासक ही आगे चलकर 'वेंगि के पूर्वी चालुक्य' नाम से विख्यात हुए।
*पुलकेशी द्वितीय से परास्त हो जाने पर भी महेन्द्र वर्मन प्रथम [[कांची|काञ्जी]] में अपनी स्वतंत्र सत्ता क़ायम रखने में सफल रहा।
*पल्लव वंश के इतिहास में इस राजा का बहुत अधिक महत्व है। उसने [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[शिव]] के बहुत से मन्दिर अपने राज्य में बनवाये, और 'चैत्यकारी' का विरुद धारण किया।
*यह कविता और साहित्य का प्रेमी था।
*'मत्तविलासप्रहसन' नामक उसकी रचना उसकी काव्यप्रियता की परिचायक है।


{{प्रचार}}
{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
|आधार=
|प्रारम्भिक=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|पूर्णता=
|शोध=
|शोध=
}}
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
{{भारत के राजवंश}}
==संबंधित लेख==
{{पल्लव साम्राज्य}}
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:पल्लव साम्राज्य]]
__INDEX__
__INDEX__
[[Category:इतिहास कोश]]

Latest revision as of 05:34, 14 April 2012

महेन्द्र वर्मन प्रथम (600-30ई.) सिंह विष्णु का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। छठी सदी से पल्लवों का इतिहास अधिक स्पष्ट हो जाता है।

  • इस सदी के अन्तिम भाग में सिंह विष्णु नाम के राजा ने दूर-दूर तक विजय यात्राएँ कर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया और दक्षिण दिशा में आक्रमण कर उसने चोल और पांड्य राज्यों को जीत लिया।
  • प्रसिद्ध चालुक्य सम्राट पुलकेशी द्वितीय के समय में पल्लव वंश का राजा महेन्द्र वर्मन प्रथम था, जो सातवीं सदी के शुरू में हुआ था।
  • पल्लवराज महेन्द्र वर्मन प्रथम के साथ पुलकेशी द्वितीय के अनेक युद्ध हुए, जिनमें पुलकेशी द्वितीय विजयी हुआ।
  • पुलकेशी द्वितीय से परास्त हो जाने पर भी महेन्द्र वर्मन प्रथम कांची में अपनी स्वतंत्र सत्ता क़ायम रखने में सफल रहा।
  • कसक्कुडी ताम्रपत्रों से ज्ञात होता है कि, किसी युद्ध में महेन्द्र वर्मन प्रथम ने भी पुलकेशी को परास्त किया था।
  • उसके समय में पल्लव साम्राज्य न केवल राजनीतिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं कलात्मक दृष्टि से भी अपने चरमोत्कर्ष पर था।
  • उसने 'मत्तविलास' 'विचित्र चित्त' एवं 'गुणभर शत्रुमल्ल, ललिताकुर, अवनिविभाजन, संर्कीणजाति, महेन्द्र विक्रम, अलुप्तकाम कलहप्रीथ आदि प्रशंसासूचक पदवी धारण की थी।
  • उसकी उपाधियां 'चेत्थकारी' और 'चित्रकारपुल्ली' भी थीं।
  • उसके समय में ही दक्षिण भारत में प्रभुसत्ता की स्थापना के लिए पल्लव-चालुक्य एवं पल्लव-पाण्ड्य संघर्ष शुरू हो गया था।
  • पल्लव वंश के इतिहास में इस राजा का बहुत अधिक महत्त्व है। उसने ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बहुत से मन्दिर अपने राज्य में बनवाये, और 'चैत्यकारी' का विरुद धारण किया।
  • एहोल अभिलेख के उल्लेख के आधार पर कहा जाता है कि, पुलकेशी द्वितीय ने पल्लवों से वेंगी को छीन लिया था।
  • नंदि वर्मन द्वितीय के कशाक्कुडि अभिलेख से ज्ञात होता है कि, महेन्द्र वर्मन प्रथम ने पुल्ललूर में अपने प्रमुख शत्रु को पराजित किया था।
  • उसने 'मत्तविलास प्रहसन' तथा 'भगवदज्जुकीयम' जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। 'मत्तविलास प्रहसन' एक हास्य ग्रंथ है।
  • इसमें कपालियों तथा भिक्षुओं पर व्यंग्य कसा गया है। उसके संरक्षण में ही संगीतशास्त्र पर आधारित ग्रंथ 'कुडमिमालय' की रचना हुई, जो वीणाशास्त्र पर आधारित है।
  • महेन्द्र वर्मन प्रथम ने सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ रुद्राचार्य के निर्देशन में संगीत का अध्ययन किया था।
  • प्रारम्भ में यह जैन था, किन्तु बाद में अय्यर नामक शैव संत के प्रभाव में आकर शैव धर्म अपना लिया।
  • कहा जाता है कि, इसने पारलिपुरम के जैन मंदिर को तुड़वाकर उनके अवशेषों से तिवाड़ि (दक्षिण अर्काट) में एक जैन मंदिर बनवाया था।
  • महेन्द्र वर्मन प्रथम ने सर्वप्रथम दक्षिण भारत में आडम्बरयुक्त मंदिरों के स्थान पर सीधी-सादी आकर्षक शैल मण्डप वास्तु शैली प्रोत्साहित की।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख