काका के प्रहसन -काका हाथरसी: Difference between revisions
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काका हाथरसी ने अपने जीवन काल में [[हास्य रस]] को भरपूर जिया था वे और हास्य रस आपस में इतने घुलमिल गए हैं कि हास्य रस कहते ही उनका चित्र सामने आ जाता है। उन्होंने कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों, रेडियो और टी. वी. के माध्यम से हास्य-कविता और साथ ही हिन्दी के प्रसार में अविस्मरणीय योग दिया है। उन्होंने साधारण जनता के लिए सीधी और सरल [[भाषा]] में ऐसी रचनाएँ लिखीं, जिन्होंने देश और विदेश में बसे हुए करोड़ों हिन्दी-प्रेमियों के [[हृदय]] को छुआ। 'काका के प्रहसन' एक नए ढंग की पुस्तक है, जिसमें गोष्ठियाँ सम्मिलित हैं। इन गोष्ठियों में श्रोताओं द्वारा समाज, राजनीति, [[कला]], [[धर्म]], [[संस्कृति]] और जीवन के अनेक पहलुओं पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर [[कविता]] के रूप में दिए गए हैं। | काका हाथरसी ने अपने जीवन काल में [[हास्य रस]] को भरपूर जिया था वे और हास्य रस आपस में इतने घुलमिल गए हैं कि हास्य रस कहते ही उनका चित्र सामने आ जाता है। उन्होंने कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों, रेडियो और टी. वी. के माध्यम से हास्य-कविता और साथ ही हिन्दी के प्रसार में अविस्मरणीय योग दिया है। उन्होंने साधारण जनता के लिए सीधी और सरल [[भाषा]] में ऐसी रचनाएँ लिखीं, जिन्होंने देश और विदेश में बसे हुए करोड़ों हिन्दी-प्रेमियों के [[हृदय]] को छुआ। 'काका के प्रहसन' एक नए ढंग की पुस्तक है, जिसमें गोष्ठियाँ सम्मिलित हैं। इन गोष्ठियों में श्रोताओं द्वारा समाज, राजनीति, [[कला]], [[धर्म]], [[संस्कृति]] और जीवन के अनेक पहलुओं पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर [[कविता]] के रूप में दिए गए हैं।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=3448 |title=काका के प्रहसन |accessmonthday= 13 जून|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिन्दी}}</ref> | ||
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उत्तर- मौत अच्छी फ़क़त इक बार मरने पर जलाती है, | उत्तर- मौत अच्छी फ़क़त इक बार मरने पर जलाती है, | ||
सौत है मौत से बदतर, ज़िंदगी भर जलाती है।</poem> | सौत है मौत से बदतर, ज़िंदगी भर जलाती है।</poem> |
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काका के प्रहसन -काका हाथरसी
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कवि | काका हाथरसी |
मूल शीर्षक | 'काका के प्रहसन' |
प्रकाशक | डायमंड पॉकेट बुक्स |
ISBN | 81-288-1023-5 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 136 |
भाषा | हिन्दी |
शैली | हास्य |
विशेष | इस पुस्तक में समाज, राजनीति, कला, धर्म, संस्कृति और जीवन के अनेक पहलुओं पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कविता के रूप में दिए गए हैं। |
काका के प्रहसन प्रसिद्ध हास्य कवि काका हाथरसी की कविताओं का संग्रह है। काकीजी ने कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों, रेडियो और टी. वी. के माध्यम से हास्य-कविता और साथ ही हिन्दी के प्रसार में अविस्मरणीय योगदान दिया है।
विषय वस्तु
काका हाथरसी ने अपने जीवन काल में हास्य रस को भरपूर जिया था वे और हास्य रस आपस में इतने घुलमिल गए हैं कि हास्य रस कहते ही उनका चित्र सामने आ जाता है। उन्होंने कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों, रेडियो और टी. वी. के माध्यम से हास्य-कविता और साथ ही हिन्दी के प्रसार में अविस्मरणीय योग दिया है। उन्होंने साधारण जनता के लिए सीधी और सरल भाषा में ऐसी रचनाएँ लिखीं, जिन्होंने देश और विदेश में बसे हुए करोड़ों हिन्दी-प्रेमियों के हृदय को छुआ। 'काका के प्रहसन' एक नए ढंग की पुस्तक है, जिसमें गोष्ठियाँ सम्मिलित हैं। इन गोष्ठियों में श्रोताओं द्वारा समाज, राजनीति, कला, धर्म, संस्कृति और जीवन के अनेक पहलुओं पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कविता के रूप में दिए गए हैं।[1]
पुस्तक अंश
- हास्याष्टक
‘काका’ से कहने लगे, शिवानंद आचार्य
रोना-धोना पाप है, हास्य पुण्य का कार्य
हास्य पुण्य का कार्य, उदासी दूर भगाओ
रोग-शोक हों दूर, हास्यरस पियो-पिलाओ
क्षणभंगुर मानव जीवन, मस्ती से काटो
मनहूसों से बचो, हास्य का हलवा चाटो
आमंत्रित हैं, सब बूढ़े-बच्चे, नर-नारी
‘काका की चौपाल’ प्रतीक्षा करे तुम्हारी
काका के जवाब
काका हाथरसी ने गोष्ठियों में श्रोताओं द्वारा समाज, राजनीति, कला, धर्म, संस्कृति और जीवन के अनेक पहलुओं पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कविता के रूप में दिए गए हैं, जैसे-
प्रश्न- इंसान को बलवान बनने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर- भ्रष्टाचारी टॉप का, वी.आई.पी.के ठाठ,
इतनी चौड़ी तोंद हो, बिछा लीजिए खाट।
प्रश्न- मध्यावधि चुनावों में काँग्रेस (आई) की जीत का क्या कारण है ?
उत्तर- कुर्सी लालच द्वेष की, लूटम फूट प्रपंच,
बंदर आपस में लड़ें, बिल्ली छीना मंच।
प्रश्न- लेकर कलम जो बैठा, तो भूल गया सब,
वरना मुझे कुछ आपसे, कहना ज़रूर था ?
उत्तर- कुछ फ़िक्र नहीं, अपनी बात भूल गए तुम,
हैं आप उधर चुप, तो इधर हम भी हैं गुमसुम।
प्रश्न- इंसान जब ठोकर खाता है तो क्या करता है ?
उत्तर- खाते-खाते ठोकरें, बिगड़ गई जब शक्ल,
संभल गए, तब लौटकर वापिस आई अक्ल।
प्रश्न- मनुष्य कितना ही अच्छा हो, उसमें दोष निकालने वाले क्यों पैदा हो जाते हैं।
उत्तर- मानव की तो क्या चली, बचा नहीं भगवान,
उसके निंदक देख लो, हैं नास्तिक श्रीमान्।
प्रश्न- काकाजी, मैं आपको दावत पर बुलाना चाहता हूँ ?
उत्तर- ‘मीनू’ में क्या चीज है, बतलाओ यह बात,
कितनी दोगे दक्षिणा, दावत के पश्चात्।
प्रश्न- मौत और सौत में क्या फ़र्क़ है काका ?
उत्तर- मौत अच्छी फ़क़त इक बार मरने पर जलाती है,
सौत है मौत से बदतर, ज़िंदगी भर जलाती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ काका के प्रहसन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 जून, 2013।
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