बख्शी ग्रन्थावली-1: Difference between revisions

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'''बख्शी ग्रन्थावली-1''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का पहला खण्ड है।  इस खण्ड में पाठकों के समक्ष उनकी [[कविता|कविताएँ]], [[नाटक]]/[[एकांकी]], [[उपन्यास]] और कुछ अनूदित रचनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं।   
 
* साहित्य जगत् में 'साहित्यवाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी' का प्रवेश सर्वप्रथम कवि के रूप में हुआ था। कहा जाता है कवि का व्यक्तित्व जितना सर्वोपरि होगा साहित्य के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण भी । बख्शी जी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं।   
साहित्य जगत में 'साहित्यवाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी' का प्रवेश सर्वप्रथम कवि के रूप में हुआ था। कहा जाता है कवि का व्यक्तित्व जितना सर्वोपरि होगा साहित्य के लिए उतना ही महत्वपूर्ण भी । बख्शी जी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं।  उनकी रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है। बख्शी जी मनसा, वाचा, और कर्मणा से विशुद्ध साहित्यकार थे। मान प्रतिष्ठा पद या कीर्ति की लालसा से कोसों दूर निष्काम कर्मयोगी की भाँति पूरी ईमानदारी और पवित्रता से निश्छल भावों की अभिव्यक्ति को साकार रूप देने की कोशिश में निरन्तर साहित्य सृजन करते रहे। उपन्यास के प्रेमी पाठक होने पर भी अपने को असफल कहते, लेकिन इनके उपन्यासों को पढ़ कर कोई यह नहीं कह सकता कि बख्शी जी असफल उपन्यासकार हैं।<ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में  |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव  |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref>
* उनकी रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है। बख्शी जी मनसा, वाचा, और कर्मणा से विशुद्ध साहित्यकार थे। मान प्रतिष्ठा पद या कीर्ति की लालसा से कोसों दूर निष्काम कर्मयोगी की भाँति पूरी ईमानदारी और पवित्रता से निश्छल भावों की अभिव्यक्ति को साकार रूप देने की कोशिश में निरन्तर साहित्य सृजन करते रहे।  
* उपन्यास के प्रेमी पाठक होने पर भी अपने को असफल कहते, लेकिन इनके उपन्यासों को पढ़ कर कोई यह नहीं कह सकता कि बख्शी जी असफल उपन्यासकार हैं।<ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में  |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव  |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref>




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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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*[http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में]
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==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 13:49, 30 June 2017

बख्शी ग्रन्थावली-1
लेखक पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
मूल शीर्षक बख्शी ग्रन्थावली
संपादक डॉ. नलिनी श्रीवास्तव
प्रकाशक वाणी प्रकाशन
ISBN 81-8143-510-9
देश भारत
भाषा हिंदी
विधा कविताएँ, नाटक/एकांकी, उपन्यास

बख्शी ग्रन्थावली-1 हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की 'बख्शी ग्रन्थावली' का पहला खण्ड है। इस खण्ड में पाठकों के समक्ष उनकी कविताएँ, नाटक/एकांकी, उपन्यास और कुछ अनूदित रचनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं।

  • साहित्य जगत् में 'साहित्यवाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी' का प्रवेश सर्वप्रथम कवि के रूप में हुआ था। कहा जाता है कवि का व्यक्तित्व जितना सर्वोपरि होगा साहित्य के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण भी । बख्शी जी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं।
  • उनकी रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है। बख्शी जी मनसा, वाचा, और कर्मणा से विशुद्ध साहित्यकार थे। मान प्रतिष्ठा पद या कीर्ति की लालसा से कोसों दूर निष्काम कर्मयोगी की भाँति पूरी ईमानदारी और पवित्रता से निश्छल भावों की अभिव्यक्ति को साकार रूप देने की कोशिश में निरन्तर साहित्य सृजन करते रहे।
  • उपन्यास के प्रेमी पाठक होने पर भी अपने को असफल कहते, लेकिन इनके उपन्यासों को पढ़ कर कोई यह नहीं कह सकता कि बख्शी जी असफल उपन्यासकार हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीवास्तव, डॉ. नलिनी। सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वाणी प्रकाशन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।

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