सरकारिया आयोग: Difference between revisions
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*सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय एक पीठ ने बोम्मई मामले में [[मार्च]], [[1994]] में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया और राज्यों में केंद्रीय शासन लागू करने के संदर्भ में दिशा-निर्देश तय कर दिये थे। | *सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय एक पीठ ने बोम्मई मामले में [[मार्च]], [[1994]] में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया और राज्यों में केंद्रीय शासन लागू करने के संदर्भ में दिशा-निर्देश तय कर दिये थे। न्यायमूर्ति राजिन्दर सिंह सरकारिया ने केंद्र-राज्य संबंधों और राज्यों में संवैधानिक मशीनरी ठप हो जाने की स्थितियों की व्यापक समीक्षा की और [[1988]] में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में उन्होंने इस संदर्भ में समग्र दिशा-निर्देश सामन रखे। | ||
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सरकारिया आयोग ने [[राज्यपाल]] के सन्दर्भ में निम्न सिफ़ारिशें की हैं- | |||
#राज्यपाल के रूप में नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति को राज्य, जिसमें वह नियुक्त किया जाए, के बाहर का व्यक्ति होना चाहिए तथा उसे राज्य की राजनीति में रुचि नहीं रखना चाहिए। उसे ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो सामान्य रूप से या विशेष रूप से नियुक्त किये जाने के पहले राजनीति में सक्रिय भाग न ले रहा हो। | |||
#राज्यपाल का चयन करते समय अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्तियों को समुचित अवसर दिया जाना चाहिए। | |||
#राज्यपाल के रूप में किसी व्यक्ति का चयन करते समय राज्य के [[मुख्यमंत्री]] से प्रभावी सलाह लेने की प्रक्रिया को संविधान में शामिल किया जाना चाहिए। | |||
#किसी ऐसे व्यक्ति को राज्य के राज्यपाल के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए, जो कि केन्द्र में सत्तारूढ़ का दल का सदस्य हो, जिसमें शासन किसी अन्य दल के द्वारा चलाया जा रहा हो। | |||
#यदि राजनीतिक कारणों से किसी राज्य की संवैधानिक व्यवस्था टूट रही हो, तो [[राज्यपाल]] को यह देखना चाहिए कि क्या उस राज्य में [[विधानसभा]] में बहुमत वाली सरकार का गठन हो सकता है। | |||
#यदि नीति सम्बन्धी किसी प्रश्न पर राज्य की सरकार विधानसभा में पराजित हो जाती है तो शीघ्र चुनाव कराये जा सकने की स्थिति में राज्यपाल को चुनाव तक पुराने मंत्रीमण्डल को कार्यकारी सरकार के रूप में कार्य करते रहने देना चाहिए। | |||
#यदि राज्य सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो देती है तो राज्यपाल को सबसे बड़े विरोधी दल को सरकार बनाने का आमंत्रण देना चाहिए, और विधानसभा में बहुमत साबित करने का निर्देश देना चाहिए। यदि सबसे बड़ा दल सरकार गठित करने की स्थिति में न हो, तो [[राज्यपाल]] को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफ़ारिश करनी चाहिए। | |||
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सरकारिया आयोग का गठन जून, 1983 में भारत सरकार द्वारा किया गया था। इसके अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायधीश न्यायमूर्ति राजिन्दर सिंह सरकारिया थे। इसका कार्य भारत के केन्द्र-राज्य सम्बन्धों से सम्बन्धित शक्ति संतुलन पर अपनी संस्तुति देना था।
- कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस.आर. बोम्मई ने अपनी सरकार की बर्खास्तगी को 1989 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और राज्य विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने के उनके आग्रह को राज्यपाल द्वारा ठुकरा देने के निर्णय पर सवाल उठाया था।
- सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय एक पीठ ने बोम्मई मामले में मार्च, 1994 में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया और राज्यों में केंद्रीय शासन लागू करने के संदर्भ में दिशा-निर्देश तय कर दिये थे। न्यायमूर्ति राजिन्दर सिंह सरकारिया ने केंद्र-राज्य संबंधों और राज्यों में संवैधानिक मशीनरी ठप हो जाने की स्थितियों की व्यापक समीक्षा की और 1988 में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में उन्होंने इस संदर्भ में समग्र दिशा-निर्देश सामन रखे।
राज्यपाल के सम्बंध में सिफ़ारिशें
सरकारिया आयोग ने राज्यपाल के सन्दर्भ में निम्न सिफ़ारिशें की हैं-
- राज्यपाल के रूप में नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति को राज्य, जिसमें वह नियुक्त किया जाए, के बाहर का व्यक्ति होना चाहिए तथा उसे राज्य की राजनीति में रुचि नहीं रखना चाहिए। उसे ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो सामान्य रूप से या विशेष रूप से नियुक्त किये जाने के पहले राजनीति में सक्रिय भाग न ले रहा हो।
- राज्यपाल का चयन करते समय अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्तियों को समुचित अवसर दिया जाना चाहिए।
- राज्यपाल के रूप में किसी व्यक्ति का चयन करते समय राज्य के मुख्यमंत्री से प्रभावी सलाह लेने की प्रक्रिया को संविधान में शामिल किया जाना चाहिए।
- किसी ऐसे व्यक्ति को राज्य के राज्यपाल के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए, जो कि केन्द्र में सत्तारूढ़ का दल का सदस्य हो, जिसमें शासन किसी अन्य दल के द्वारा चलाया जा रहा हो।
- यदि राजनीतिक कारणों से किसी राज्य की संवैधानिक व्यवस्था टूट रही हो, तो राज्यपाल को यह देखना चाहिए कि क्या उस राज्य में विधानसभा में बहुमत वाली सरकार का गठन हो सकता है।
- यदि नीति सम्बन्धी किसी प्रश्न पर राज्य की सरकार विधानसभा में पराजित हो जाती है तो शीघ्र चुनाव कराये जा सकने की स्थिति में राज्यपाल को चुनाव तक पुराने मंत्रीमण्डल को कार्यकारी सरकार के रूप में कार्य करते रहने देना चाहिए।
- यदि राज्य सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो देती है तो राज्यपाल को सबसे बड़े विरोधी दल को सरकार बनाने का आमंत्रण देना चाहिए, और विधानसभा में बहुमत साबित करने का निर्देश देना चाहिए। यदि सबसे बड़ा दल सरकार गठित करने की स्थिति में न हो, तो राज्यपाल को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफ़ारिश करनी चाहिए।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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