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* 'फ़' अघोष दन्त्योष्ठ्य और संघर्षी व्यंजन है।
* 'फ़' अघोष दन्त्योष्ठ्य और संघर्षी व्यंजन है।
* 'फ़ की 'फ' से बहुत समानता होने के कारण अनेक हिन्दी भाषी 'फ़' के स्थान पर 'फ' और 'फ' के स्थान पर 'फ़' का प्रयोग कर देते है। जैसे- 'साफ़' को साफ या सफ़र को सफर कहना और फल को 'फ़ल' या 'फाटक' को 'फ़ाटक' कहना। बहुत बार इसका कारण अज्ञान होता है।
* 'फ़ की 'फ' से बहुत समानता होने के कारण अनेक हिन्दी भाषी 'फ़' के स्थान पर 'फ' और 'फ' के स्थान पर 'फ़' का प्रयोग कर देते है। जैसे- 'साफ़' को साफ या सफ़र को सफर कहना और फल को 'फ़ल' या 'फाटक' को 'फ़ाटक' कहना। बहुत बार इसका कारण अज्ञान होता है।
* 'फ' का स्वररहित प्रयोग भी होता है अर्थात 'फ़' के अनेक व्यंजन गुच्छ भी बनते है और पहले आने पर उसका रूप 'फ' रहता है। फ़ का ज़ ट त र और ल से संयोग होने पर क्रमश्: फ़्ज फ़्ट, फ़्ट , फ़्त, फ़्र, फ़्ल ' रूप बनते है। जैसे- लिफ़्ट, लफ़्ज, मुफ़्त, दफ़्तर, फ़्रांस, तिफ़्ल।  
* 'फ' का स्वररहित प्रयोग भी होता है अर्थात् 'फ़' के अनेक व्यंजन गुच्छ भी बनते है और पहले आने पर उसका रूप 'फ' रहता है। फ़ का ज़ ट त र और ल से संयोग होने पर क्रमश्: फ़्ज फ़्ट, फ़्ट , फ़्त, फ़्र, फ़्ल ' रूप बनते है। जैसे- लिफ़्ट, लफ़्ज, मुफ़्त, दफ़्तर, फ़्रांस, तिफ़्ल।  
* 'फ़' से पहले आकर मिलने वाली क़्, त्, र् और ल् ध्वनियों के संयुक्त रूप क्रमश 'क्फ़, त्फ़, र्फ़, ल्फ़ बनते हैं। जैसे- वक्फ़, लुत्फ़, बर्फ़, सुल्फ़ा।
* 'फ़' से पहले आकर मिलने वाली क़्, त्, र् और ल् ध्वनियों के संयुक्त रूप क्रमश 'क्फ़, त्फ़, र्फ़, ल्फ़ बनते हैं। जैसे- वक्फ़, लुत्फ़, बर्फ़, सुल्फ़ा।
* 'फ़' का द्वित्व भी होता है। जिसमें 'फ़्फ़' रूप बनता है। जैसे- गफ़्फ़ार, लफ़्फ़ा।
* 'फ़' का द्वित्व भी होता है। जिसमें 'फ़्फ़' रूप बनता है। जैसे- गफ़्फ़ार, लफ़्फ़ा।

Latest revision as of 07:59, 7 November 2017

विवरण देवनागरी वर्णमाला का पवर्ग का दूसरा व्यंजन है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह द्वयोष्ठय, स्पर्श, अघोष और महाप्राण ध्वनि है।
व्याकरण [ (धातु) फक्क् +ड ] पुल्लिंग- रूखी वाणी/ बात, व्यर्थ की बातें, बकबक, फुत्कार, फूँक, सर्प की फुंकार, झंझावत, सफलता, जमुहाई, जँभाई, उष्णता, गर्मी, उन्नति।
विशेष फ़ारसी, अँग्रेज़ी आदि के कुछ शब्दों के साथ हिन्दी में आगत 'फ़' और 'फ' वर्णों की समानता तथा अंतर ध्यान देने योग्य है।
दित्व 'फ़' का द्वित्व भी होता है। जिसमें 'फ़्फ़' रूप बनता है। जैसे- गफ़्फ़ार, लफ़्फ़ा।
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अन्य जानकारी 'फ़ की 'फ' से बहुत समानता होने के कारण अनेक हिन्दी भाषी 'फ़' के स्थान पर 'फ' और 'फ' के स्थान पर 'फ़' का प्रयोग कर देते है। जैसे- 'साफ़' को साफ या सफ़र को सफर कहना और फल को 'फ़ल' या 'फाटक' को 'फ़ाटक' कहना।

देवनागरी वर्णमाला का पवर्ग का दूसरा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह द्वयोष्ठय, स्पर्श, अघोष और महाप्राण ध्वनि है।

विशेष-
  • 'फ' का अल्पप्राण वर्ण 'प' है।
  • स्वर-रहित 'फ' अर्थात् 'फ' का प्रयोग मानक हिन्दी में किसी शब्द के आदि / मध्य / अन्त में प्राय: नहीं है। इस कारण इसका किसी व्यंजन वर्ण से संयुक्त रूप अर्थात् व्यंजन-गुच्छ नहीं बनता।
  • फ़ारसी, अँग्रेज़ी आदि के कुछ शब्दों के साथ हिन्दी में आगत 'फ़' और 'फ' वर्णों की समानता तथा अंतर ध्यान देने योग्य है।
  • 'फ़' अघोष दन्त्योष्ठ्य और संघर्षी व्यंजन है।
  • 'फ़ की 'फ' से बहुत समानता होने के कारण अनेक हिन्दी भाषी 'फ़' के स्थान पर 'फ' और 'फ' के स्थान पर 'फ़' का प्रयोग कर देते है। जैसे- 'साफ़' को साफ या सफ़र को सफर कहना और फल को 'फ़ल' या 'फाटक' को 'फ़ाटक' कहना। बहुत बार इसका कारण अज्ञान होता है।
  • 'फ' का स्वररहित प्रयोग भी होता है अर्थात् 'फ़' के अनेक व्यंजन गुच्छ भी बनते है और पहले आने पर उसका रूप 'फ' रहता है। फ़ का ज़ ट त र और ल से संयोग होने पर क्रमश्: फ़्ज फ़्ट, फ़्ट , फ़्त, फ़्र, फ़्ल ' रूप बनते है। जैसे- लिफ़्ट, लफ़्ज, मुफ़्त, दफ़्तर, फ़्रांस, तिफ़्ल।
  • 'फ़' से पहले आकर मिलने वाली क़्, त्, र् और ल् ध्वनियों के संयुक्त रूप क्रमश 'क्फ़, त्फ़, र्फ़, ल्फ़ बनते हैं। जैसे- वक्फ़, लुत्फ़, बर्फ़, सुल्फ़ा।
  • 'फ़' का द्वित्व भी होता है। जिसमें 'फ़्फ़' रूप बनता है। जैसे- गफ़्फ़ार, लफ़्फ़ा।
  • 'फ़्' और 'र' के संयुक्त रूप 'फ़्र' (फ़्रिज, कुफ़्र) तपा 'र्' और 'फ़्र' के संयुक्त रूप 'र्फ़' का अन्तर ध्यान देने योग्य है।
  • 'फ़्' (=फ़्) वाले शब्दों को 'फ / फ़' बनाकर बोलने की प्रवृत्ति भी सामान्य जनता में है। जैसे- मुफ़्त- मुफत या मुफ़त; दफ़्तर या दफतर।
  • [ (धातु) फक्क् +ड ] पुल्लिंग- रूखी वाणी/ बात, व्यर्थ की बातें, बकबक, फुत्कार, फूँक, सर्प की फुंकार, झंझावत, सफलता, जमुहाई, जँभाई, उष्णता, गर्मी, उन्नति।[1]

फ की बारहखड़ी

फा फि फी फु फू फे फै फो फौ फं फः

फ अक्षर वाले शब्द


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माध्यमिक
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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-2 | पृष्ठ संख्या- 1684

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