हुसैनीवाला: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replacement - "मुताबिक" to "मुताबिक़") |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 32: | Line 32: | ||
[[8 अप्रैल]], [[1929]] को लाहौर की सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के जुर्म में क्रांतिकारी भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई थी। [[लाहौर]] में [[23 मार्च]], [[1931]] को शाम 7 बजकर 15 मिनट पर इन तीनों को फांसी दे दी गयी। आम जनता बगावत न कर दे, इसलिए इन तीनों क्रांतिकारियों को एक दिन पहले ही फांसी पर चढ़ा दिया गया। [[अंग्रेज़]] इन क्रांतिकारियों से इतने डरे हुए थे कि उनके शव भी उनके परिजनों को नहीं सौंपे गए बल्कि जेल अधिकारियों ने जेल की पिछली दीवार तोड़कर इन शवों को लाहौर से लगभग चालीस कि.मी. दूर हुसैनीवाला ले जाकर सतलुज नदी में बहा दिया। लेकिन सतलुज का दरिया बहुत देर तक यह राज अपने सीने में दफन नहीं रख सका। सुबह होते-होते हजारों लोगों ने उस स्थान को खोज निकाला, जहां पर शहीदों को उफनती लहरों के सुपुर्द किया गया था। तब से यह स्थान युवाओं और देशभक्तों के लिए तीर्थ स्थान बन गया। | [[8 अप्रैल]], [[1929]] को लाहौर की सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के जुर्म में क्रांतिकारी भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई थी। [[लाहौर]] में [[23 मार्च]], [[1931]] को शाम 7 बजकर 15 मिनट पर इन तीनों को फांसी दे दी गयी। आम जनता बगावत न कर दे, इसलिए इन तीनों क्रांतिकारियों को एक दिन पहले ही फांसी पर चढ़ा दिया गया। [[अंग्रेज़]] इन क्रांतिकारियों से इतने डरे हुए थे कि उनके शव भी उनके परिजनों को नहीं सौंपे गए बल्कि जेल अधिकारियों ने जेल की पिछली दीवार तोड़कर इन शवों को लाहौर से लगभग चालीस कि.मी. दूर हुसैनीवाला ले जाकर सतलुज नदी में बहा दिया। लेकिन सतलुज का दरिया बहुत देर तक यह राज अपने सीने में दफन नहीं रख सका। सुबह होते-होते हजारों लोगों ने उस स्थान को खोज निकाला, जहां पर शहीदों को उफनती लहरों के सुपुर्द किया गया था। तब से यह स्थान युवाओं और देशभक्तों के लिए तीर्थ स्थान बन गया। | ||
यहाँ शहीदों की याद में एक स्मारक बनाने में [[भारत सरकार]] को आधी सदी से भी ज़्यादा यानी 54 साल लग गए। यूं तो सबसे | यहाँ शहीदों की याद में एक स्मारक बनाने में [[भारत सरकार]] को आधी सदी से भी ज़्यादा यानी 54 साल लग गए। यूं तो सबसे पहलेसन्[[1968]] में तत्कालीन सरकार ने इसे राष्ट्रीय शहीद स्मारक घोषित किया और [[1973]] में भी देश के पूर्व [[राष्ट्रपति]] और [[पंजाब]] के तत्कालीन [[मुख्यमंत्री]] [[ज्ञानी जैल सिंह]] ने इसे विकसित करने की घोषणा की, लेकिन यह सब कवायद केवल रस्म अदायगी तक सीमित रह गई। [[23 मार्च]], [[1985]] को तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[राजीव गांधी]] ने हुसैनीवाला का दौरा किया। यहां तीनों शहीदों की मूर्तियां लगाई गईं और हर साल मेले का आयोजन किया जाने लगा। | ||
==समाधियाँ== | ==समाधियाँ== | ||
[[भगतसिंह]] के सहयोगी [[बटुकेश्वर दत्त]] ने जीवन के अंतिम समय में इच्छा व्यक्त की थी कि उनका दाह संस्कार भी हुसैनीवाला में ही किया जाए। परिजनों ने उनकी इच्छा के | [[भगतसिंह]] के सहयोगी [[बटुकेश्वर दत्त]] ने जीवन के अंतिम समय में इच्छा व्यक्त की थी कि उनका दाह संस्कार भी हुसैनीवाला में ही किया जाए। परिजनों ने उनकी इच्छा के मुताबिक़ उनका अंतिम संस्कार वहीं पर किया। भगतसिंह की मां विद्यावती देवी लंबे समय तक जीवित रहीं। [[1973]] में भारत सरकार की तरफ से उन्हें "पंजाब माता" का खिताब दिया गया। [[जून]], [[1974]] में उनका निधन हुआ। उनकी भी अंतिम इच्छा थी कि उनके पुत्र की समाधि के पास ही उनका भी अंतिम संस्कार किया जाए। मरने के बाद उनके परिजनों ने हुसैनीवाला में ही उनका दाह संस्कार किया। इस तरह हुसैनीवाला में कुल मिला कर पांच समाधियां हैं। | ||
==महत्त्व== | ==महत्त्व== | ||
वैसे [[भारत]] की आजादी के बाद विभाजन के समय हुसैनीवाला गाँव पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था, लेकिन भारत में आजादी के सपूतों के प्रति लोगों के प्यार को देखते हुए [[भारत सरकार]] ने पाकिस्तान को 12 अन्य गाँव देकर [[1960]] के दशक में हुसैनीवाला को भारत में मिलाया था। | वैसे [[भारत]] की आजादी के बाद विभाजन के समय हुसैनीवाला गाँव पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था, लेकिन भारत में आजादी के सपूतों के प्रति लोगों के प्यार को देखते हुए [[भारत सरकार]] ने पाकिस्तान को 12 अन्य गाँव देकर [[1960]] के दशक में हुसैनीवाला को भारत में मिलाया था। |
Latest revision as of 10:03, 11 February 2021
हुसैनीवाला
| |
विवरण | 'हुसैनीवाला' पंजाब के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह स्थान अमर शहीद भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु से सम्बंधित है। |
राज्य | पंजाब |
ज़िला | फ़िरोज़पुर |
विशेष | भारत सरकार ने पाकिस्तान को 12 अन्य गाँव देकर 1960 के दशक में हुसैनीवाला को भारत में मिलाया था। |
संबंधित लेख | पंजाब, पंजाब पर्यटन, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु |
अन्य जानकारी | 23 मार्च, 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हुसैनीवाला का दौरा किया। यहां तीनों शहीदों की मूर्तियां लगाई गईं और हर साल मेले का आयोजन किया जाने लगा। |
हुसैनीवाला (अंग्रेज़ी: Hussainiwala) पंजाब के फ़िरोज़पुर ज़िले का एक गाँव है। यह गाँव पाकिस्तान की सीमा के निकट सतलुज नदी के किनारे स्थित है। इसके सामने नदी के दूसरे किनारे पर पाकिस्तान का गेन्दा सिंह वाला नामक गाँव है। इसी गाँव में 23 मार्च, 1931 को शहीद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव का अन्तिम संस्कार किया गया था। यहीं पर उनके साथी बटुकेश्वर दत्त का भी 1965 में अन्तिम संस्कार किया गया। इन शहीदों की स्मृति में यहाँ 'राष्ट्रीय शहीद स्मारक' बनाया गया है। भगतसिंह की माँ विद्यावती का अन्तिम संस्कार भी यहीं किया गया था।
इतिहास
8 अप्रैल, 1929 को लाहौर की सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के जुर्म में क्रांतिकारी भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई थी। लाहौर में 23 मार्च, 1931 को शाम 7 बजकर 15 मिनट पर इन तीनों को फांसी दे दी गयी। आम जनता बगावत न कर दे, इसलिए इन तीनों क्रांतिकारियों को एक दिन पहले ही फांसी पर चढ़ा दिया गया। अंग्रेज़ इन क्रांतिकारियों से इतने डरे हुए थे कि उनके शव भी उनके परिजनों को नहीं सौंपे गए बल्कि जेल अधिकारियों ने जेल की पिछली दीवार तोड़कर इन शवों को लाहौर से लगभग चालीस कि.मी. दूर हुसैनीवाला ले जाकर सतलुज नदी में बहा दिया। लेकिन सतलुज का दरिया बहुत देर तक यह राज अपने सीने में दफन नहीं रख सका। सुबह होते-होते हजारों लोगों ने उस स्थान को खोज निकाला, जहां पर शहीदों को उफनती लहरों के सुपुर्द किया गया था। तब से यह स्थान युवाओं और देशभक्तों के लिए तीर्थ स्थान बन गया।
यहाँ शहीदों की याद में एक स्मारक बनाने में भारत सरकार को आधी सदी से भी ज़्यादा यानी 54 साल लग गए। यूं तो सबसे पहलेसन्1968 में तत्कालीन सरकार ने इसे राष्ट्रीय शहीद स्मारक घोषित किया और 1973 में भी देश के पूर्व राष्ट्रपति और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने इसे विकसित करने की घोषणा की, लेकिन यह सब कवायद केवल रस्म अदायगी तक सीमित रह गई। 23 मार्च, 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हुसैनीवाला का दौरा किया। यहां तीनों शहीदों की मूर्तियां लगाई गईं और हर साल मेले का आयोजन किया जाने लगा।
समाधियाँ
भगतसिंह के सहयोगी बटुकेश्वर दत्त ने जीवन के अंतिम समय में इच्छा व्यक्त की थी कि उनका दाह संस्कार भी हुसैनीवाला में ही किया जाए। परिजनों ने उनकी इच्छा के मुताबिक़ उनका अंतिम संस्कार वहीं पर किया। भगतसिंह की मां विद्यावती देवी लंबे समय तक जीवित रहीं। 1973 में भारत सरकार की तरफ से उन्हें "पंजाब माता" का खिताब दिया गया। जून, 1974 में उनका निधन हुआ। उनकी भी अंतिम इच्छा थी कि उनके पुत्र की समाधि के पास ही उनका भी अंतिम संस्कार किया जाए। मरने के बाद उनके परिजनों ने हुसैनीवाला में ही उनका दाह संस्कार किया। इस तरह हुसैनीवाला में कुल मिला कर पांच समाधियां हैं।
महत्त्व
वैसे भारत की आजादी के बाद विभाजन के समय हुसैनीवाला गाँव पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था, लेकिन भारत में आजादी के सपूतों के प्रति लोगों के प्यार को देखते हुए भारत सरकार ने पाकिस्तान को 12 अन्य गाँव देकर 1960 के दशक में हुसैनीवाला को भारत में मिलाया था।
|
|
|
|
|