पुलकेशी प्रथम: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "पृथक " to "पृथक् ")
 
(9 intermediate revisions by 5 users not shown)
Line 1: Line 1:
*पुलकेशी प्रथम दक्षिण में [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] में [[चालुक्य वंश]] का प्रवर्तक था।  
'''पुलकेशी प्रथम''' (550-566 ई.), चालुक्य नरेश [[रणराग]] का पुत्र था। पुलकेशी प्रथम को पुलकेशिन प्रथम के नाम से भी जाना जाता था।
*दक्षिणापथ में [[चालुक्य वंश]] के राज्य की स्थापना छठी सदी के मध्य भाग में हुई, जब कि [[गुप्त साम्राज्य]] का क्षय प्रारम्भ हो चुका था।  
*यह चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी राजा था।
*पुरानी अनुश्रुति के अनुसार चालुक्य लोग उत्तरी भारत के निवासी थे, और किसी समय उन्होंने [[अयोध्या]] में शासन किया था।
*पुलकेशी प्रथम दक्षिण में [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] में [[चालुक्य वंश]] का प्रवर्तक था।
*उनका प्राचीन इतिहास अन्धकार में है, पर यह निश्चित है, कि 543 ई. तक पुलकेशी नामक चालुक्य राजा [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] (बीजापुर ज़िले में, बादामी) को राजधानी बनाकर अपने पृथक व स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर चुका था।  
*दक्षिणापथ में [[चालुक्य साम्राज्य]] के राज्य की स्थापना छठी [[सदी]] के मध्य भाग में हुई, जब कि [[गुप्त साम्राज्य]] का क्षय प्रारम्भ हो चुका था।
*उसने वातापी के समीपवर्ती प्रदेशों को जीत कर अपनी शक्ति का विस्तार किया था, और उसी उपलक्ष्य में [[अश्वमेध यज्ञ]] भी किया था। इस यज्ञ के अनुष्ठान से सूचित होता है, कि वह अच्छा प्रबल और दिग्विजयी राजा था।
*यह निश्चित है, कि 543 ई. तक पुलकेशी नामक चालुक्य राजा वातापी ([[बीजापुर ज़िला|बीजापुर ज़िले]] में, [[बादामी]]) को राजधानी बनाकर अपने पृथक् व स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर चुका था।  
 
*महाराज [[मंगलेश]] के 'महाकूट अभिलेख' से प्रमाणित होता है कि, उसने 'हिरण्यगर्भ', '[[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध]]', '[[अग्निष्टोम]]', 'अग्नि चयन', '[[वाजपेय]]', 'बहुसुवर्ण', 'पुण्डरीक' [[यज्ञ]] करवाया था।
 
*इसने 'रण विक्रम', 'सत्याश्रय', 'धर्म महाराज', 'पृथ्वीवल्लभराज' तथा 'राजसिंह' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।
 
*उनका प्राचीन इतिहास अन्धकार में है, पर उसने वातापी के समीपवर्ती प्रदेशों को जीत कर अपनी शक्ति का विस्तार किया था, और उसी उपलक्ष्य में अश्वमेध यज्ञ भी किया था। इस यज्ञ के अनुष्ठान से सूचित होता है कि, वह अच्छा प्रबल और दिग्विजयी राजा था।
 


{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
Line 16: Line 15:
|शोध=
|शोध=
}}
}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{चालुक्य राजवंश}}
{{चालुक्य साम्राज्य}}
{{भारत के राजवंश}}
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:इतिहास_कोश]]
[[Category:इतिहास_कोश]]
[[Category:दक्षिण भारत के साम्राज्य]]
[[Category:दक्षिण भारत के साम्राज्य]]
[[Category:चालुक्य साम्राज्य]]
[[Category:चालुक्य साम्राज्य]]
[[Category:भारत के राजवंश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 13:32, 1 August 2017

पुलकेशी प्रथम (550-566 ई.), चालुक्य नरेश रणराग का पुत्र था। पुलकेशी प्रथम को पुलकेशिन प्रथम के नाम से भी जाना जाता था।

  • यह चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी राजा था।
  • पुलकेशी प्रथम दक्षिण में वातापी में चालुक्य वंश का प्रवर्तक था।
  • दक्षिणापथ में चालुक्य साम्राज्य के राज्य की स्थापना छठी सदी के मध्य भाग में हुई, जब कि गुप्त साम्राज्य का क्षय प्रारम्भ हो चुका था।
  • यह निश्चित है, कि 543 ई. तक पुलकेशी नामक चालुक्य राजा वातापी (बीजापुर ज़िले में, बादामी) को राजधानी बनाकर अपने पृथक् व स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर चुका था।
  • महाराज मंगलेश के 'महाकूट अभिलेख' से प्रमाणित होता है कि, उसने 'हिरण्यगर्भ', 'अश्वमेध', 'अग्निष्टोम', 'अग्नि चयन', 'वाजपेय', 'बहुसुवर्ण', 'पुण्डरीक' यज्ञ करवाया था।
  • इसने 'रण विक्रम', 'सत्याश्रय', 'धर्म महाराज', 'पृथ्वीवल्लभराज' तथा 'राजसिंह' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।
  • उनका प्राचीन इतिहास अन्धकार में है, पर उसने वातापी के समीपवर्ती प्रदेशों को जीत कर अपनी शक्ति का विस्तार किया था, और उसी उपलक्ष्य में अश्वमेध यज्ञ भी किया था। इस यज्ञ के अनुष्ठान से सूचित होता है कि, वह अच्छा प्रबल और दिग्विजयी राजा था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख