पुरोहित: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('पुरोहित आगे अवस्थित अथवा पूर्वनियुक्त व्यक्ति, जो ध...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(7 intermediate revisions by 4 users not shown)
Line 1: Line 1:
पुरोहित
*'''पुरोहित''' आगे अवस्थित अथवा पूर्वनियुक्त व्यक्ति, जो धर्मकार्यों का संचालक और मंत्रिमंडल का सदस्य होता था।
आगे अवस्थित अथवा पूर्वनियुक्त व्यक्ति, जो धर्मकार्यों का संचालक और मंत्रिमंडल का सदस्य होता था। वैदिक संहिताओं में इसका उल्लेख है। पुरोहित को 'पुरोधा' भी कहते हैं। इसका प्राथमिक कार्य किसी राजा या सम्पन्न परिवार का घरेलू पुरोहित होना होता था। ऋग्वेद के अनुसार विश्वामित्र एवं वसिष्ठ त्रित्सु कुल के राजा सुदास के पुरोहित थे। शान्तनु के पुरोहित देवापि थे। यज्ञ क्रिया के सम्पादनार्थ राजा को पुरोहित रखना आवश्यक होता था। यह युद्ध में राजा की सुरक्षा एवं विजय का आश्वासन अपनी स्तुतियों द्वारा देता था। अन्न एवं सस्य के लिए यह वर्षाकारक अनुष्ठान कराता था। पुरोहितपद के पैतृक होने का निश्चित प्रमाण नहीं है, किन्तु सम्भवत: ऐसा ही था। राजा कुरु श्रवण तथा उसके पुत्र उपम श्रवण का पुरोहित के साथ जो सम्बन्ध था, उससे ज्ञात होता है कि साधारणत: पुत्र अपने पिता के पुरोहित पद को ही अपनाता था। प्राय: ब्राह्मण ही पुरोहित होते थे। बृहस्पति देवताओं के पुरोहित एवं ब्राह्मण दोनों के कहे जाते हैं। ओल्डेनवर्ग के मतानुसार पुरोहित प्रारम्भ में होता होते थे, जो स्तुतियों का गान करते थे। इसमें संदेह नहीं कि ऐतिहासिक युग में वह राजा की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता था तथा सामाजिक क्षेत्र में उसका बड़ा प्रभाव था। न्याय व्यवस्था तथा राजा के कार्यों के संचालन में उसका प्रबल हाथ होता था।  
*वैदिक संहिताओं में पुरोहित का उल्लेख है। पुरोहित को '''पुरोधा''' भी कहते हैं।
*इसका प्राथमिक कार्य किसी राजा या सम्पन्न परिवार का घरेलू पुरोहित होना होता था।
*[[ऋग्वेद]] के अनुसार [[विश्वामित्र]] एवं [[वसिष्ठ]] 'त्रित्सु कुल' के राजा सुदास के पुरोहित थे।
*[[शान्तनु]] के पुरोहित देवापि थे। [[यज्ञ]] क्रिया के सम्पादनार्थ राजा को पुरोहित रखना आवश्यक होता था।
*पुरोहित युद्ध में राजा की सुरक्षा एवं विजय का आश्वासन अपनी स्तुतियों द्वारा देता था।
*राज्य में अन्न का अच्छा उत्पादन हो एवं सस्य के लिए पुरोहित वर्षाकारक अनुष्ठान कराता था।
*पुरोहित पद के पैतृक होने का निश्चित प्रमाण नहीं है, किन्तु सम्भवत: ऐसी ही परम्परा का भारतीय समाज में प्रचलन था।
*राजा कुरु श्रवण तथा उसके पुत्र उपम श्रवण का पुरोहित के साथ जो सम्बन्ध था, उससे ज्ञात होता है कि साधारणत: पुत्र अपने पिता के पुरोहित पद को ही अपनाता था।
*प्राय: [[ब्राह्मण]] ही पुरोहित होते थे।
*[[बृहस्पति]] [[देवता|देवताओं]] के पुरोहित एवं ब्राह्मण दोनों के कहे जाते हैं।
*ओल्डेनवर्ग के मतानुसार पुरोहित प्रारम्भ में होते थे, जो स्तुतियों का गान करते थे।
*इसमें संदेह नहीं कि ऐतिहासिक युग में वह राजा की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता था तथा सामाजिक क्षेत्र में उसका बड़ा प्रभाव था।
*न्याय व्यवस्था तथा राजा के कार्यों के संचालन में पुरोहित का प्रबल हाथ होता था।  




{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
|आधार=
|प्रारम्भिक=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|पूर्णता=
|शोध=
|शोध=
}}
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
[[Category:नया पन्ना]]
 
[[Category:वैदिक धर्म]]
[[Category:हिन्दू धर्म]]
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 12:16, 21 March 2014

  • पुरोहित आगे अवस्थित अथवा पूर्वनियुक्त व्यक्ति, जो धर्मकार्यों का संचालक और मंत्रिमंडल का सदस्य होता था।
  • वैदिक संहिताओं में पुरोहित का उल्लेख है। पुरोहित को पुरोधा भी कहते हैं।
  • इसका प्राथमिक कार्य किसी राजा या सम्पन्न परिवार का घरेलू पुरोहित होना होता था।
  • ऋग्वेद के अनुसार विश्वामित्र एवं वसिष्ठ 'त्रित्सु कुल' के राजा सुदास के पुरोहित थे।
  • शान्तनु के पुरोहित देवापि थे। यज्ञ क्रिया के सम्पादनार्थ राजा को पुरोहित रखना आवश्यक होता था।
  • पुरोहित युद्ध में राजा की सुरक्षा एवं विजय का आश्वासन अपनी स्तुतियों द्वारा देता था।
  • राज्य में अन्न का अच्छा उत्पादन हो एवं सस्य के लिए पुरोहित वर्षाकारक अनुष्ठान कराता था।
  • पुरोहित पद के पैतृक होने का निश्चित प्रमाण नहीं है, किन्तु सम्भवत: ऐसी ही परम्परा का भारतीय समाज में प्रचलन था।
  • राजा कुरु श्रवण तथा उसके पुत्र उपम श्रवण का पुरोहित के साथ जो सम्बन्ध था, उससे ज्ञात होता है कि साधारणत: पुत्र अपने पिता के पुरोहित पद को ही अपनाता था।
  • प्राय: ब्राह्मण ही पुरोहित होते थे।
  • बृहस्पति देवताओं के पुरोहित एवं ब्राह्मण दोनों के कहे जाते हैं।
  • ओल्डेनवर्ग के मतानुसार पुरोहित प्रारम्भ में होते थे, जो स्तुतियों का गान करते थे।
  • इसमें संदेह नहीं कि ऐतिहासिक युग में वह राजा की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता था तथा सामाजिक क्षेत्र में उसका बड़ा प्रभाव था।
  • न्याय व्यवस्था तथा राजा के कार्यों के संचालन में पुरोहित का प्रबल हाथ होता था।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ