राग: Difference between revisions
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#राग में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वर होने चाहिए। पाँच स्वरों से कम का राग नहीं होता है। | #राग में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वर होने चाहिए। पाँच स्वरों से कम का राग नहीं होता है। | ||
#प्रत्येक राग को किसी न किसी [[ठाट]] से | #प्रत्येक राग को किसी न किसी [[ठाट]] से उत्पन्न माना गया है। जैसे राग भूपाली को कल्याण ठाट से और राग बागेश्वरी को काफी ठाट से उत्पन्न माना गया है। | ||
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# | #प्रत्येक राग में '''म''' और '''प''' में से कम से कम एक स्वर अवश्य रहना चाहिए। दोनों स्वर एक साथ वर्जित नहीं होते। अगर किसी राग में '''प''' के साथ शुद्ध '''म''' भी वर्जित है, तो उसमें तीव्र '''म''' अवश्य रहता है। भूपाली राग में म वर्जित है तो मालकोश में '''प''', किन्तु कोई राग ऐसा नहीं है जिसमें '''म''' और '''प''' दोनों एक साथ वर्ज्य होते हों। | ||
#प्रत्येक राग में आरोह-अवरोह, वादी-साम्वादी, पकड़, समय आदि आवश्यक हैं। | #प्रत्येक राग में आरोह-अवरोह, वादी-साम्वादी, पकड़, समय आदि आवश्यक हैं। | ||
#राग में किसी स्वर | #राग में किसी स्वर के दोनों रूप एक साथ एक दूसरे के बाद प्रयोग नहीं किये जाने चाहिए। उदाहरणार्थ कोमल '''रे''' और शुद्ध '''रे''' अथवा कोमल '''ग''' और शुद्ध '''ग''' दोनों किसी राग में एक साथ नहीं आने चाहिए। यह अवश्य ही सम्भव है कि आरोह में शुद्ध प्रयोग किया जाए और अवरोह में कोमल, जैसे खमाज राग के आरोह में शुद्धि '''नि''' और अवरोह में कोमल '''नि''' प्रयोग किया जाता है। | ||
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Revision as of 17:27, 8 April 2011
कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वरों की वह सुन्दर रचना जो कानों को अच्छी लगे राग कहलाती है। आजकल राग-गायन ही प्रचार में है। अभिनव राग-मंजरी में राग की परिभाषा इस प्रकार दी गई है–
योऽयं ध्वनि-विशेषस्तु स्वर-वर्ण-विभूषित:।
रंजको जनचित्तानां स राग कथितो बुधै:।।
- अर्थात्
स्वर और वर्ण से विभूषित ध्वनि, जो मनुष्यों का मनोरंजन करे, राग कहलाता है।
लक्षण
प्राचीन काल में राग के दस लक्षण माने जाते थे, जिनके नाम हैं– ग्रह, अंश, न्यास, अपन्यास, षाडवत्व, ओडवत्व, अल्पत्व, बहुत्व, मन्द और तार। इनमें से कुछ लक्षण आज भी परिवर्तित रूप में प्रयोग किये जाते हैं। आधुनिक समय में राग के निम्नलिखित लक्षण माने जाते हैं–
- ऊपर यह बताया गया है कि वह रचना जो कानों को अच्छी लगे, राग कहलाती है। इसलिए यह स्पष्ट है कि राग का प्रथम लक्षण या विशेषता है कि प्रत्येक राग में रंजकता अवश्य होना चाहिए।
- राग में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वर होने चाहिए। पाँच स्वरों से कम का राग नहीं होता है।
- प्रत्येक राग को किसी न किसी ठाट से उत्पन्न माना गया है। जैसे राग भूपाली को कल्याण ठाट से और राग बागेश्वरी को काफी ठाट से उत्पन्न माना गया है।
- किसी भी राग में षडज अर्थात् सा कभी वर्जित नहीं होता, क्योंकि यह सप्तक का आधार स्वर होता है।
- प्रत्येक राग में म और प में से कम से कम एक स्वर अवश्य रहना चाहिए। दोनों स्वर एक साथ वर्जित नहीं होते। अगर किसी राग में प के साथ शुद्ध म भी वर्जित है, तो उसमें तीव्र म अवश्य रहता है। भूपाली राग में म वर्जित है तो मालकोश में प, किन्तु कोई राग ऐसा नहीं है जिसमें म और प दोनों एक साथ वर्ज्य होते हों।
- प्रत्येक राग में आरोह-अवरोह, वादी-साम्वादी, पकड़, समय आदि आवश्यक हैं।
- राग में किसी स्वर के दोनों रूप एक साथ एक दूसरे के बाद प्रयोग नहीं किये जाने चाहिए। उदाहरणार्थ कोमल रे और शुद्ध रे अथवा कोमल ग और शुद्ध ग दोनों किसी राग में एक साथ नहीं आने चाहिए। यह अवश्य ही सम्भव है कि आरोह में शुद्ध प्रयोग किया जाए और अवरोह में कोमल, जैसे खमाज राग के आरोह में शुद्धि नि और अवरोह में कोमल नि प्रयोग किया जाता है।
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