उत्तिरमेरूर: Difference between revisions
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* ग्राम 30 भागों में विभाजित था, जिनमें से प्रत्येक भाग का प्रतिनिधि लाटरी द्वारा चुनी गई वार्षिक परिषद में उपस्थित होता था। | * ग्राम 30 भागों में विभाजित था, जिनमें से प्रत्येक भाग का प्रतिनिधि लाटरी द्वारा चुनी गई वार्षिक परिषद में उपस्थित होता था। | ||
* परिषद पाँच उपसमितियों में विभाजित थी जिनमें से तीन क्रमश: उद्यानों तथा वाटिकाओं, तालाबों तथा सिंचाई और झगड़ों के निबटारे के लिए उत्तरदायी थीं, जबकि अंतिम दो के कार्य अनिश्चित हैं। | * परिषद पाँच उपसमितियों में विभाजित थी जिनमें से तीन क्रमश: उद्यानों तथा वाटिकाओं, तालाबों तथा सिंचाई और झगड़ों के निबटारे के लिए उत्तरदायी थीं, जबकि अंतिम दो के कार्य अनिश्चित हैं। | ||
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*[http://www.hindu.com/fr/2008/07/11/stories/2008071151250300.htm Constitution 1,000 years ago] | |||
*[http://www.hindu.com/2010/08/25/stories/2010082554121500.htm 1,200-year old temple restored to its original beauty] | |||
*[http://pulivahanan.wetpaint.com/page/Uthiramerur,Sri+Sundara+Varadhar+Temple Uthiramerur,Sri Sundara Varadhar Temple] | |||
*[http://prtraveller.blogspot.com/2008/12/uthiramerur-sundara-varadar.html UthiraMerur Sundara Varadar] | |||
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Revision as of 14:31, 28 August 2011
उत्तिरमेरूर, उत्तरमेरूर अथवा उत्तरमेरुर (अंग्रेज़ी: Uthiramerur) दक्षिण भारत में तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम ज़िले का एक पंचायती ग्राम है। चोल राज्य के अंतर्गत ब्राह्मणों (अग्रहार) के एक बड़े ग्राम में दसवीं शताब्दी के पश्चात अनेक शिलालेख स्थानीय राजनीति पर प्रकाश पर प्रकाश डालते हैं, जो इस प्रकार हैं-
- ग्राम 30 भागों में विभाजित था, जिनमें से प्रत्येक भाग का प्रतिनिधि लाटरी द्वारा चुनी गई वार्षिक परिषद में उपस्थित होता था।
- परिषद पाँच उपसमितियों में विभाजित थी जिनमें से तीन क्रमश: उद्यानों तथा वाटिकाओं, तालाबों तथा सिंचाई और झगड़ों के निबटारे के लिए उत्तरदायी थीं, जबकि अंतिम दो के कार्य अनिश्चित हैं।
- सदस्य अवैतनिक होते थे तथा दुर्व्यवहार के कारण पदच्युत किये जा सकते थे। परिषद में सम्मिलित होने का आधिकार सम्पत्ति योग्यता द्वारा सीमित था, जिसमें मकान तथा छोटा भू-भाग सम्मिलित था।
- सदस्यता 35 तथा 70 वर्ष की आयु के मध्य वाले व्यक्तियों के लिए सीमित थी जो एक वर्ष तक कार्यभार सँभाल लेते थे, वे तीन वर्ष के लिए पुन: नियुक्ति हेतु अयोग्य हो जाते थे।
- उत्तिरमेरूर विधान की दो अंतिम विशेषताएँ अन्य ग्रामों के विधानों में भी पायी जाती हैं, जिनकी लेखा आज भी प्राप्त हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सभी ने युवकों तथा वृद्धों के प्रवेश का अपनी परिषदों में निषेध कर दिया था और कुछ में न्यूनतम आयु 40 वर्ष निश्चित की गयी थी। अधिकांश ने विश्राम-ग्रहण किये हुए सदस्यों की पुन:नियुक्ति पर प्रतिबन्ध लगा दिये थे। निस्सन्देह यह भ्रष्टाचार-निवारण के लिये तथा व्यक्तिगत प्रभाव की वृद्धि को रोकने के लिए किया गया था। एक स्थान में तो किसी विश्राम-ग्रहण करने वाले सदस्य के निकट सम्बंधियों को सदस्यता से पाँच वर्ष के लिए वंचित कर दिया था, दूसरे स्थान पर विश्राम प्राप्त सदस्य की दस वर्ष तक पुन: नियुक्ति नहीं हो सकती थी।
- दक्षिण की ये परिषदें न केवल झगड़ों का निबटारा करती थीं तथा सरकार की सीमा के बाहर सामाजिक कार्यों का प्रबन्ध करती थीं, अपितु मालगुजारी एकत्र करने, व्यक्तिगत सहयोग का मूल्य निर्धारित करने की बातचीत के लिए उत्तरदायी थीं। गाँव की बंजर भूमि का स्वामित्व विक्रय अधिकार सहित निश्चित रूप से उनका था तथा वे सिंचाई, मार्ग-निर्माण तथा अन्य जनकार्यों में विशेष रुचि रखते थे। उनके आदान प्रदान का विवरण ग्राम के मन्दिरों की दीवारों पर अंकित रहता था जिससे एक शक्तिशाली सामुदायिक जीवन का आभास मिलता है और जो प्रारम्भिक भारतीय राजनीति के सर्वश्रेष्ठ अंश के स्थायी स्मारक हैं।[1]
इतिहास
उत्तिरमेरूर से पल्लव एवं चोल काल के लगभग दो सौ अभिलेख मिले हैं। इन अभिलेखों से परिज्ञात होता है कि पल्लव एवं चोल शासन के अन्तर्गत ग्राम अधिकतम स्वायत्तता का उपभोग करते थे। 10वीं शताब्दी का एक लेख आज भी एक मन्दिर की दिवार पर ख़ुदा है, जो यह बताता है कि चोल शासन के अन्तर्गत स्थानीय 'सभा' किस प्रकार कार्य करती थी। सभा का चुनाव उपयुक्त व्यक्तियों में से लाटरी निकालकर होता था। ग्राम स्तर पर स्वायत्तता इतनी थी कि प्रशासन के उच्च स्तरों और राजनीतिक ढाँचे में होने वाले परिवर्तनों से गाँव का दैनन्दिन जीवन अप्रभावित रहता था। यह इसलिए सम्भव हो सका था, क्योंकि गाँव पर्याप्त रूप से आत्मनिर्भर थे। आधुनिक पंचायतों की चोल कालीन स्थानीय प्रशासन से तुलना करना सार्थक एवं रुचिकर होगा। [2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- Uthiramerur
- Constitution 1,000 years ago
- 1,200-year old temple restored to its original beauty
- Uthiramerur,Sri Sundara Varadhar Temple
- UthiraMerur Sundara Varadar
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