डिमेट्रियस: Difference between revisions

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*दमित्रि अथवा दमेत्रियस हिन्दी-यूनानी शासक। सम्राट कलिंग और खारबेला के हाथी गु्फा के लेखों में दमेत्रियस की सेना सहित उपस्थिति [[पाटलिपुत्र]] से 70 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित राजग्रह में बतायी है।
*दमित्रि अथवा दमेत्रियस हिन्दी-यूनानी शासक था। [[हाथीगुम्फ़ा शिलालेख|खारवेल के हाथी गु्फा]] के लेखों में दमेत्रियस की सेना सहित उपस्थिति [[पाटलिपुत्र]] से 70 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित [[राजगृह]] में बतायी है।
*सीरियन सम्राट एण्टियोकस के साथ सन्धि और विवाह - सम्बन्ध हो जाने के अनन्तर [[बैक्ट्रिया]] के राजवंश की बहुत उन्नति हुई। उसने समीप के अनेक प्रदेशों को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। बैक्ट्रिया के इस उत्कर्ष का प्रधान श्रेय डेमेट्रियस को है, जो सीरियन सम्राट [[एण्टियोकस]] का जामाता था। बैक्ट्रिया के राजाओं के इतिहास का परिज्ञान उनके सिक्कों के द्वारा होता है, जो कि अच्छी बड़ी संख्या में [[भारत]] व अन्य देशों में प्राप्त हुए हैं। ग्रीक लेखक स्ट्रैबो के अनुसार डेमेट्रियस और [[मिनेंडर|मिनान्डर]] के समय बैक्ट्रिया के यवन राज्य की सीमाएँ दूर—दूर तक पहुँच गई थीं। उत्तर में [[चीन]] की सीमा से लगाकर दक्षिण में [[सौराष्ट्र]] तक इन बैक्ट्रियन राजाओं का सम्राज्य विस्तृत था।
==डिमेट्रियस का शासन==
*190 ई. पू. में या इससे कुछ पूर्व डेमेट्रियस बैक्ट्रिया के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उसके राज्यारोहण से पूर्व ही युथिडिमास ने हिन्दुकुश पर्वत को पारकर उस राज्य को जीत लिया था, जिस पर सुभागसेन का शासन था। इसलिए हिरात, कन्धार, सीस्तान आदि में उसके सिक्के बड़ी संख्या में उपलब्ध हुए हैं।
*डेमेट्रियस ने भी एक बड़ी सेना के साथ [[भारत]] पर आक्रमण किया। ग्रीक विवरणों में उसे भारत का राजा लिखा गया है, और इसमें सन्देह नहीं कि भारत की विजय करते हुए वह दूर तक मध्यदेश में चला आया था। इस समय भारत में [[मौर्य वंश]] के निर्बल राजाओं का शासन था, और [[मगध]] की सैन्यशक्ति क्षीण हो चुकी थी। [[सिकन्दर]] के आक्रमण के समय [[पंजाब]] में कठ, मालव, क्षुद्रक आदि जो शक्तिशाली गणराज्य थे, इस समय वे अपनी स्वतंत्रता खो चुके थे, और उनकी सैन्य शक्ति नष्ट हो गई थी। यवनों के आक्रमण को रोकने की उत्तरदायिता अब उन मौर्य सम्राटों पर थी, जिन्हें भारतीय साहित्य में 'अधार्मिक' और 'प्रतिज्ञादुर्बल' कहा गया है। ये सम्राट यवनों का मुक़ाबला कर सकने में असमर्थ रहे।
*[[पतंजलि]] मुनि ने 'महाभाष्य' में '''अरुणत् यवनः साकेतम्, अरुणत् यवनः माध्यमिकाम्,''' लिखकर जिस यवन आक्रमण का संकेत किया है, वह सम्भवतः डेमेट्रियस का ही आक्रमण था, जो सम्भवतः उस समय (185 ई. पू. के लगभग) हुआ था, जबकि अन्तिम मौर्य राजा [[बृहद्रथ]] मगध के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
*सेनानी पुष्यमित्र ने उसे मारकर जो स्वयं राज्य प्राप्त कर लिया, उसका कारण भी सम्भवतः यही था, कि यवन आक्रमण का मुक़ाबला न कर सकने से सेना और जनता बृहद्रथ के विरुद्ध हो गई थी।
*श्री जायसवाल आदि कतिपय इतिहासकारों के अनुसार [[खारवेल|कलिंगराज ख़ारवेल]] के [[हाथीगुम्फ़ा शिलालेख]] में भी डेमेट्रियस के आक्रमण का उल्लेख है। श्री जायसवाल ने इस शिलालेख के पाठ को जिस रूप में सम्पादित किया है, उसके अनुसार वहाँ लिखा है - '''आठवें वर्ष...गोरथगिरि को तोड़कर राजगृह को घेर दबाया। इन कर्मों के अवदान (वीरकथा) के सनाद से यवनराजा दिमित घबराई सेना और वाहनों को कठिनता से बचाकर मथुरा को भाग गया।''' पर बहुसंख्यक इतिहासकारों को श्री जायसवाल का यह पाठ स्वीकार्य नहीं है। वे इस लेख में 'दिमित' के पाठ को सही नहीं मानते। पर इसमें सन्देह हीं कि हाथीगुम्फ़ा लेख में एक ऐसे यवन राजा का उल्लेख अवश्य है, जो ख़ारवेल आक्रमण के समाचार से घबरा कर [[मथुरा]] की ओर भाग गया था। यह असम्भव नहीं है, कि यह यवन राजा डेमेट्रियस ही हो।
*अनेक इतिहासकारों का मत है, कि गार्गी संहिता के 'युग पुराण' में जिस यवन राजा के आक्रमण का उल्लेख है, और जो [[मथुरा]], [[पांचाल]] और [[साकेत]] का विजय करता हुआ [[पाटलिपुत्र]] तक पहुँच गया था, वह भी यही दिमित या डेमेट्रियस था। यद्यपि गार्गी संहिता में इस यवन आक्रमण का उल्लेख मौर्य राजा शालिशुक के वृत्तान्त के साथ किया गया है। पर यह सम्भव नहीं है, कि यह डेमेट्रियस के आक्रमण का ही निर्देश करता हो, क्योंकि प्राचीन साहित्य के ये विवरण पूर्णतया स्पष्ट नहीं है।
*डेमेट्रियस जो मगध या मध्य देश में नहीं टिक सका, उसका एक प्रधान कारण कलिंगराज ख़ारवेल की सैन्यशक्ति थी। यवन सेना के भारत में दूर तक चले आने पर ख़ारवेल अपनी सेना के साथ उसका मुक़ाबला करने के लिए आगे बढ़ा, और उसने यवनों को पश्चिम में मथुरा की ओर खदेड़ दिया। यही समय है, जब कि पाटलिपुत्र में सेनानी पुष्यमित्र ने निर्बल मौर्य राजा बृहद्रथ की हत्या कर स्वयं राज्य प्राप्त कर लिया था।
*डेमेट्रियस का आक्रमण 185 ई. पू. के लगभग हुआ था, और मौर्य राजा उसका मुक़ाबला करने में असमर्थ थे। मौर्य वंश के पतन का यही प्रधान कारण था। सम्भवतः ख़ारवेल ने इसी समय दूर पश्चिम की ओर आगे बढ़कर यवनों को परास्त किया था। पर इस प्रसंग में यह नहीं भूलना चाहिए कि डेमेट्रियस का आक्रमण और ख़ारवेल का समय आदि विषयों पर इतिहासकारों में बहुत मतभेद है।
*डेमेट्रियस के भारतीय आक्रमण के सम्बन्ध में कतिपय अन्य निर्देश भी उपलब्ध होते हैं। 'सिद्धांतकोमुदी' में दात्तामित्री नामक एक नगरी का उल्लेख है, जो सौवीर देश में स्थित थी। सम्भवतः यह दात्तामित्री नगरी डेमेट्रियस के द्वारा ही बसाई गई थी। गार्गीसंहिता के युगपुराण में 'धर्मगीत' नामक एक यवन राजा का उल्लेख है, जिसे जायसवालजी ने डेमेट्रियस या दिमित्र का रूपान्तर माना है।




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दमित्रि अथवा दमेत्रियस

  • दमित्रि अथवा दमेत्रियस हिन्दी-यूनानी शासक था। खारवेल के हाथी गु्फा के लेखों में दमेत्रियस की सेना सहित उपस्थिति पाटलिपुत्र से 70 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित राजगृह में बतायी है।
  • सीरियन सम्राट एण्टियोकस के साथ सन्धि और विवाह - सम्बन्ध हो जाने के अनन्तर बैक्ट्रिया के राजवंश की बहुत उन्नति हुई। उसने समीप के अनेक प्रदेशों को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। बैक्ट्रिया के इस उत्कर्ष का प्रधान श्रेय डेमेट्रियस को है, जो सीरियन सम्राट एण्टियोकस का जामाता था। बैक्ट्रिया के राजाओं के इतिहास का परिज्ञान उनके सिक्कों के द्वारा होता है, जो कि अच्छी बड़ी संख्या में भारत व अन्य देशों में प्राप्त हुए हैं। ग्रीक लेखक स्ट्रैबो के अनुसार डेमेट्रियस और मिनान्डर के समय बैक्ट्रिया के यवन राज्य की सीमाएँ दूर—दूर तक पहुँच गई थीं। उत्तर में चीन की सीमा से लगाकर दक्षिण में सौराष्ट्र तक इन बैक्ट्रियन राजाओं का सम्राज्य विस्तृत था।

डिमेट्रियस का शासन

  • 190 ई. पू. में या इससे कुछ पूर्व डेमेट्रियस बैक्ट्रिया के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उसके राज्यारोहण से पूर्व ही युथिडिमास ने हिन्दुकुश पर्वत को पारकर उस राज्य को जीत लिया था, जिस पर सुभागसेन का शासन था। इसलिए हिरात, कन्धार, सीस्तान आदि में उसके सिक्के बड़ी संख्या में उपलब्ध हुए हैं।
  • डेमेट्रियस ने भी एक बड़ी सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया। ग्रीक विवरणों में उसे भारत का राजा लिखा गया है, और इसमें सन्देह नहीं कि भारत की विजय करते हुए वह दूर तक मध्यदेश में चला आया था। इस समय भारत में मौर्य वंश के निर्बल राजाओं का शासन था, और मगध की सैन्यशक्ति क्षीण हो चुकी थी। सिकन्दर के आक्रमण के समय पंजाब में कठ, मालव, क्षुद्रक आदि जो शक्तिशाली गणराज्य थे, इस समय वे अपनी स्वतंत्रता खो चुके थे, और उनकी सैन्य शक्ति नष्ट हो गई थी। यवनों के आक्रमण को रोकने की उत्तरदायिता अब उन मौर्य सम्राटों पर थी, जिन्हें भारतीय साहित्य में 'अधार्मिक' और 'प्रतिज्ञादुर्बल' कहा गया है। ये सम्राट यवनों का मुक़ाबला कर सकने में असमर्थ रहे।
  • पतंजलि मुनि ने 'महाभाष्य' में अरुणत् यवनः साकेतम्, अरुणत् यवनः माध्यमिकाम्, लिखकर जिस यवन आक्रमण का संकेत किया है, वह सम्भवतः डेमेट्रियस का ही आक्रमण था, जो सम्भवतः उस समय (185 ई. पू. के लगभग) हुआ था, जबकि अन्तिम मौर्य राजा बृहद्रथ मगध के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
  • सेनानी पुष्यमित्र ने उसे मारकर जो स्वयं राज्य प्राप्त कर लिया, उसका कारण भी सम्भवतः यही था, कि यवन आक्रमण का मुक़ाबला न कर सकने से सेना और जनता बृहद्रथ के विरुद्ध हो गई थी।
  • श्री जायसवाल आदि कतिपय इतिहासकारों के अनुसार कलिंगराज ख़ारवेल के हाथीगुम्फ़ा शिलालेख में भी डेमेट्रियस के आक्रमण का उल्लेख है। श्री जायसवाल ने इस शिलालेख के पाठ को जिस रूप में सम्पादित किया है, उसके अनुसार वहाँ लिखा है - आठवें वर्ष...गोरथगिरि को तोड़कर राजगृह को घेर दबाया। इन कर्मों के अवदान (वीरकथा) के सनाद से यवनराजा दिमित घबराई सेना और वाहनों को कठिनता से बचाकर मथुरा को भाग गया। पर बहुसंख्यक इतिहासकारों को श्री जायसवाल का यह पाठ स्वीकार्य नहीं है। वे इस लेख में 'दिमित' के पाठ को सही नहीं मानते। पर इसमें सन्देह हीं कि हाथीगुम्फ़ा लेख में एक ऐसे यवन राजा का उल्लेख अवश्य है, जो ख़ारवेल आक्रमण के समाचार से घबरा कर मथुरा की ओर भाग गया था। यह असम्भव नहीं है, कि यह यवन राजा डेमेट्रियस ही हो।
  • अनेक इतिहासकारों का मत है, कि गार्गी संहिता के 'युग पुराण' में जिस यवन राजा के आक्रमण का उल्लेख है, और जो मथुरा, पांचाल और साकेत का विजय करता हुआ पाटलिपुत्र तक पहुँच गया था, वह भी यही दिमित या डेमेट्रियस था। यद्यपि गार्गी संहिता में इस यवन आक्रमण का उल्लेख मौर्य राजा शालिशुक के वृत्तान्त के साथ किया गया है। पर यह सम्भव नहीं है, कि यह डेमेट्रियस के आक्रमण का ही निर्देश करता हो, क्योंकि प्राचीन साहित्य के ये विवरण पूर्णतया स्पष्ट नहीं है।
  • डेमेट्रियस जो मगध या मध्य देश में नहीं टिक सका, उसका एक प्रधान कारण कलिंगराज ख़ारवेल की सैन्यशक्ति थी। यवन सेना के भारत में दूर तक चले आने पर ख़ारवेल अपनी सेना के साथ उसका मुक़ाबला करने के लिए आगे बढ़ा, और उसने यवनों को पश्चिम में मथुरा की ओर खदेड़ दिया। यही समय है, जब कि पाटलिपुत्र में सेनानी पुष्यमित्र ने निर्बल मौर्य राजा बृहद्रथ की हत्या कर स्वयं राज्य प्राप्त कर लिया था।
  • डेमेट्रियस का आक्रमण 185 ई. पू. के लगभग हुआ था, और मौर्य राजा उसका मुक़ाबला करने में असमर्थ थे। मौर्य वंश के पतन का यही प्रधान कारण था। सम्भवतः ख़ारवेल ने इसी समय दूर पश्चिम की ओर आगे बढ़कर यवनों को परास्त किया था। पर इस प्रसंग में यह नहीं भूलना चाहिए कि डेमेट्रियस का आक्रमण और ख़ारवेल का समय आदि विषयों पर इतिहासकारों में बहुत मतभेद है।
  • डेमेट्रियस के भारतीय आक्रमण के सम्बन्ध में कतिपय अन्य निर्देश भी उपलब्ध होते हैं। 'सिद्धांतकोमुदी' में दात्तामित्री नामक एक नगरी का उल्लेख है, जो सौवीर देश में स्थित थी। सम्भवतः यह दात्तामित्री नगरी डेमेट्रियस के द्वारा ही बसाई गई थी। गार्गीसंहिता के युगपुराण में 'धर्मगीत' नामक एक यवन राजा का उल्लेख है, जिसे जायसवालजी ने डेमेट्रियस या दिमित्र का रूपान्तर माना है।