धम्ममहामात्र: Difference between revisions

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धम्ममहापात्र या धर्ममहापात्र [[अशोक]] के वे उच्च अधिकारी थे, जो अशोक द्वारा प्रचारित धर्म सम्बंधी मामलों और कार्यों की देखभाल करते थे।<ref> {{cite book | last =भट्ट| first =जनार्दन | title =अशोक के धर्मलेख| edition = | publisher =प्रकाशन विभाग| location =नई दिल्ली| language =हिंदी | pages =118| chapter =}} </ref> अपने कार्य की दृष्टि से 'धम्ममहामात्र' एक नवीन प्रकार का कर्मचारी था। इन कर्मचारियों का मुख्य कार्य जनता को [[धम्म]] की बातें समझाना, उनमें धम्म के प्रति रुचि पैदा करना था। वे समाज के सभी वर्गों—[[ब्राह्मण]], [[क्षत्रिय]], [[वैश्य]], दास, निर्धन, वृद्ध - के कल्याण तथा सुख के लिए कार्य करते थे। वे सीमांत देशों तथा विदेशों में भी काम करते थे। राज्य में सभी प्रकार के लोगों तक उनकी पहुँच थी। उनका कार्य था धर्म के मामले में लोगों में सहमति बढ़ाना। ब्राह्मण, श्रमण तथा राजघराने के लोगों को दानशील कार्यों के लिए प्रोत्साहित करना, कारावास से क़ैदियों को मुक्त कराना या उनका दंड कम करवाना तथा लोगों की अन्याय से रक्षा करना। धम्ममहामात्रों की नियुक्ति से एक [[वर्ष]] पूर्व उसने साम्राज्य के विभिन्न स्थानों पर [[धम्म]] की शिक्षाओं को [[अशोक के शिलालेख|शिलालेखों]] में उत्कीर्ण करवाया।  
धम्ममहापात्र या धर्ममहापात्र [[अशोक]] के वे उच्च अधिकारी थे, जो अशोक द्वारा प्रचारित धर्म सम्बंधी मामलों और कार्यों की देखभाल करते थे।<ref> {{cite book | last =भट्ट| first =जनार्दन | title =अशोक के धर्मलेख| edition = | publisher =प्रकाशन विभाग| location =नई दिल्ली| language =हिंदी | pages =118| chapter =}} </ref> अपने कार्य की दृष्टि से 'धम्ममहामात्र' एक नवीन प्रकार का कर्मचारी था। इन कर्मचारियों का मुख्य कार्य जनता को [[धम्म]] की बातें समझाना, उनमें धम्म के प्रति रुचि पैदा करना था। वे समाज के सभी वर्गों—[[ब्राह्मण]], [[क्षत्रिय]], [[वैश्य]], दास, निर्धन, वृद्ध - के कल्याण तथा सुख के लिए कार्य करते थे। वे सीमांत देशों तथा विदेशों में भी काम करते थे। राज्य में सभी प्रकार के लोगों तक उनकी पहुँच थी। उनका कार्य था धर्म के मामले में लोगों में सहमति बढ़ाना। ब्राह्मण, श्रमण तथा राजघराने के लोगों को दानशील कार्यों के लिए प्रोत्साहित करना, कारावास से क़ैदियों को मुक्त कराना या उनका दंड कम करवाना तथा लोगों की अन्याय से रक्षा करना। धम्ममहामात्रों की नियुक्ति से एक [[वर्ष]] पूर्व उसने साम्राज्य के विभिन्न स्थानों पर [[धम्म]] की शिक्षाओं को [[अशोक के शिलालेख|शिलालेखों]] में उत्कीर्ण करवाया। <ref>{{cite web |url=http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%95#.E0.A4.85.E0.A4.B6.E0.A5.8B.E0.A4.95_.E0.A4.B6.E0.A4.BE.E0.A4.B8.E0.A4.95_.E0.A4.95.E0.A5.87_.E0.A4.B0.E0.A5.82.E0.A4.AA_.E0.A4.AE.E0.A5.87.E0.A4.82 |title=अशोक |accessmonthday=24 सितम्बर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>


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Revision as of 08:01, 25 September 2011

धम्ममहापात्र या धर्ममहापात्र अशोक के वे उच्च अधिकारी थे, जो अशोक द्वारा प्रचारित धर्म सम्बंधी मामलों और कार्यों की देखभाल करते थे।[1] अपने कार्य की दृष्टि से 'धम्ममहामात्र' एक नवीन प्रकार का कर्मचारी था। इन कर्मचारियों का मुख्य कार्य जनता को धम्म की बातें समझाना, उनमें धम्म के प्रति रुचि पैदा करना था। वे समाज के सभी वर्गों—ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, दास, निर्धन, वृद्ध - के कल्याण तथा सुख के लिए कार्य करते थे। वे सीमांत देशों तथा विदेशों में भी काम करते थे। राज्य में सभी प्रकार के लोगों तक उनकी पहुँच थी। उनका कार्य था धर्म के मामले में लोगों में सहमति बढ़ाना। ब्राह्मण, श्रमण तथा राजघराने के लोगों को दानशील कार्यों के लिए प्रोत्साहित करना, कारावास से क़ैदियों को मुक्त कराना या उनका दंड कम करवाना तथा लोगों की अन्याय से रक्षा करना। धम्ममहामात्रों की नियुक्ति से एक वर्ष पूर्व उसने साम्राज्य के विभिन्न स्थानों पर धम्म की शिक्षाओं को शिलालेखों में उत्कीर्ण करवाया। [2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भट्ट, जनार्दन अशोक के धर्मलेख (हिंदी)। नई दिल्ली: प्रकाशन विभाग, 118।
  2. अशोक (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 सितम्बर, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

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