अक्षय तृतीया: Difference between revisions

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[[चित्र:Banke-Bihari-Temple-Vrindavan.jpg|thumb|[[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांके बिहारी जी मन्दिर]], [[वृन्दावन]]<br /> Banke Bihari Temple, Vrindavan]]
[[चित्र:Banke-Bihari-Temple-Vrindavan.jpg|thumb|[[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांके बिहारी जी मन्दिर]], [[वृन्दावन]]<br /> Banke Bihari Temple, Vrindavan]]
वैशाखी शुक्ल 3 को अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) कहते हैं। [[वृन्दावन]] में चरण दर्शन इसी दिन होते हैं। अक्षय तृतीया को सामान्यतया अखतीज के नाम से भी पुकारा जाता है। वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथी अक्षय तृतीया के नाम से लोक विख्यात है।  
वैशाखी शुक्ल 3 को अक्षय तृतीया कहते हैं। [[वृन्दावन]] में चरण दर्शन इसी दिन होते हैं। अक्षय तृतीया को सामान्यतया अखतीज के नाम से भी पुकारा जाता है। वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथी अक्षय तृतीया के नाम से लोक विख्यात है।  
*अक्षय का अर्थ है जो कभी भी ख़त्म नहीं होता।  
*अक्षय का अर्थ है जो कभी भी ख़त्म नहीं होता।  
*हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है।  
*हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है।  

Revision as of 10:25, 20 May 2010

[[चित्र:Banke-Bihari-Temple-Vrindavan.jpg|thumb|बांके बिहारी जी मन्दिर, वृन्दावन
Banke Bihari Temple, Vrindavan]] वैशाखी शुक्ल 3 को अक्षय तृतीया कहते हैं। वृन्दावन में चरण दर्शन इसी दिन होते हैं। अक्षय तृतीया को सामान्यतया अखतीज के नाम से भी पुकारा जाता है। वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथी अक्षय तृतीया के नाम से लोक विख्यात है।

  • अक्षय का अर्थ है जो कभी भी ख़त्म नहीं होता।
  • हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता का सूचक है।
  • इस दिन को सर्वसिद्धि मुहूर्त दिन भी कहते है क्योंकि इस दिन शुभ काम के लिये पंचांग देखने की ज़रूरत नहीं होती। ऐसा माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किये गये जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिये अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान मांगना चाहिए।
  • पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। नर-नारयण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथी को हुआ था। प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथी से ही पुनः खुलते हैं। वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। अक्षय तृतीया को व्रत रखने और अधिकाधिक दान देने का बड़ा ही महात्म्य है।

कैसे करें व्रत

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। अपने नित्य कर्म व घर की साफ-सफ़ाई से निवृत होकर स्नान करें। वैसे इस दिन समुद्र, गंगा या यमुना में स्नान करना चाहिए। इस दिन उपवास रखें और घर में ही किसी पवित्र स्थान पर विष्णु भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित कर पूजन का संकल्प करें। संकल्प के बाद भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं, तत्पश्चात उन्हें सुगंधित चंदन, पुष्पमाला अर्पण करें। नैवेद्य में जौ या जौ का सत्तू, ककडी और चने की दाल अर्पण करें। भगवान विष्णु को तुलसी अधिक प्रिय है, अतः नैवेद्य के साथ तुलसी अवश्य चढाएं जहाँ तक हो सके तो ‘विष्णु सस्त्रनाम’ का पाठ भी करें। अंत में भक्ति पूर्वक आरती करें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और चंद्रमा इस दिन उच्चस्थ स्थिति में होते हैं। इस दिन उपवास रखते हैं और जौ, सत्तू, अन्न तथा चावल से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन को नवन्न पर्व भी कहते हैं। इस दिन बरतन, पात्र, मिष्ठान, तरबूजा, खरबूजा, दूध, दही, चावल का दान दें।

प्रचलित कथाएँ

Template:High left स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में जन्म लिया। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं । Template:Table close अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफ़ी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना।

स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में जन्म लिया। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर सन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए थे। वह अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।

अन्य लिंक

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