अक्षय नवमी: Difference between revisions

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*नियमों से साक्षात्कार कराने के लिए प्रभु ने अक्षय नवमी परिक्रमा कर असत्य का शंखनाद और एकादशी परिक्रमा करके अभय करने के लिए प्रभु ने  ब्रजवासियों का वृहद समागम किया।
*[[गुजरात]] में [[द्वारिकानाथ]], [[राजस्थान]] में श्रीनाथ, मध्यप्रदेश में गुरु संदीपन आश्रम, [[पांडव|पांडवों]] के कारण पंजाब-[[दिल्ली]] के साथ अन्य अनेक लीला स्थलियों से आने वाले श्रद्धालु [[ब्रज]]-परिक्रमा करते हैं।
*[[गुजरात]] में [[द्वारिकानाथ]], [[राजस्थान]] में श्रीनाथ, मध्यप्रदेश में गुरु संदीपन आश्रम, [[पांडव|पांडवों]] के कारण पंजाब-[[दिल्ली]] के साथ अन्य अनेक लीला स्थलियों से आने वाले श्रद्धालु [[ब्रज]]-परिक्रमा करते हैं।
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Revision as of 06:49, 29 June 2010

  • श्री कृष्ण की मुरली की त्रिलोक मोहिनी तान और राधा के नुपुरों की रूनझुन का संगीत सुनाती और प्रभु और उनकी आल्हादिनी शक्ति के स्वरूप मथुरा-वृन्दावन और गरूड गोविंद की परिक्रमा मन को शक्ति और शान्ति देती है।
  • धर्म और श्रम के सम्मिश्रण से पर्यावरण संरक्षण संदेश के साथ यह पर्व मंगल में भक्तों के मंगल के लिए अनेक मार्ग खोलता है।
  • यही वह दिन है जब भगवान श्री कृष्ण ने कंस-वध से पहले तीन वन की परिक्रमा करके क्रान्ति का शंखनाद किया था।
  • इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए लोग आज भी अक्षय नवमी पर असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत के लिए मथुरा वृन्दावन की परिक्रमा करते हैं।

राधा-दामोदर स्वरूप

मथुरा-वृन्दावन एवं कार्तिक मास साक्षात राधा-दामोदर स्वरूप है। इसी मास में श्री कृष्ण ने पूतना-वध के बाद मैदान में क्रीड़ा करने के लिए नंद बाबा से गो-चारण की आज्ञा ली।

युद्ध आह्वान दिवस

श्री कृष्ण ने ग्वाल बाल और ब्रजवासियों को एक सूत्र में पिरोने के लिए अक्षय नवमी तिथि को तीन वन की परिक्रमा कर क्रांति का अलख जगाया। मंगल की प्रतिनिधि तिथि नवमी को किया। क्रांति का शंखनाद ही अगले दिन दशमी को कंस के वध का आधार बना।

आंवला पूजन

नवमी को आंवला पूजन स्त्री जाति के लिए अखंड सौभाग्य और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है। पुराणाचार्य कहते हैं कि आंवला त्योहारों पर खाये गरिष्ठ भोजन को पचाने और पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है।

पुनर्जन्म से मुक्ति का साधन

  • नवमी के दिन युगल उपासना करने से भक्त शान्ति, सद्भाव, सुख और वंश वृद्धि के साथ पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति प्राप्त करने का अधिकारी बनाता है।
  • प्रभु का दिया धर्म ही जीव को नियमों की सीख देता है। जो मनुष्य क़ानून के दंड से नहीं डरते उन्हें यह राह दिखाता है।
  • नियमों से साक्षात्कार कराने के लिए प्रभु ने अक्षय नवमी परिक्रमा कर असत्य का शंखनाद और एकादशी परिक्रमा करके अभय करने के लिए प्रभु ने ब्रजवासियों का वृहद समागम किया।
  • गुजरात में द्वारिकानाथ, राजस्थान में श्रीनाथ, मध्यप्रदेश में गुरु संदीपन आश्रम, पांडवों के कारण पंजाब-दिल्ली के साथ अन्य अनेक लीला स्थलियों से आने वाले श्रद्धालु ब्रज-परिक्रमा करते हैं।

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