चाँचर (रमैनी): Difference between revisions
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Revision as of 06:35, 1 December 2011
अपभ्रंश में 'चर्चरी' काव्य रूप हिन्दी में चाँचर के रूप में प्रचलित हुआ। कबीर के 'चाँचर' में छन्दगत एकरूपता नहीं मिलती। किसी में 25 पंक्तियाँ और किसी में 28 पंक्तियाँ हैं। चाँचर भी बसन्तोत्सव में गाया जाने वाला लोकगीत है, जिसे कवियों ने साहित्य में स्थान दिया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शर्मा, रामकिशोर कबीर ग्रन्थावली (हिंदी), 100।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख