आलाप: Difference between revisions
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'''आलाप''' [[राग]] के [[स्वर (संगीत)|स्वरों]] को विलम्बित लय में विस्तार करने को कहते हैं। आलाप को आकार की सहायता से या नोम, तोम जैसे शब्दों का प्रयोग करके किया जा सकता है। गीत के शब्दों का प्रयोग करके जब आलाप किया जाता है तो उसे बोल-आलाप कहते हैं। 'आलाप' का अर्थ है बदल-बदल कर बढ़ना। [[स्वर (संगीत)|स्वरों]] के नये नये बनाव, नई उपज, नये विस्तार, चलने के नये रास्ते, इन पर चलना। आलाप की इस व्याख्या के साथ ही वह स्वरों की संगति में [[संगीत]] की तलाश करते हैं। कहते हैं, ‘स्वरों की अपनी संगति में, संगीत की अपनी मर्यादाओं और संभावनाओं में, हम औचित्य की कसौटियों की खोज कर सकते हैं।’ | '''आलाप''' [[राग]] के [[स्वर (संगीत)|स्वरों]] को विलम्बित लय में विस्तार करने को कहते हैं। आलाप को आकार की सहायता से या नोम, तोम जैसे शब्दों का प्रयोग करके किया जा सकता है। गीत के शब्दों का प्रयोग करके जब आलाप किया जाता है तो उसे बोल-आलाप कहते हैं। 'आलाप' का अर्थ है बदल-बदल कर बढ़ना। [[स्वर (संगीत)|स्वरों]] के नये नये बनाव, नई उपज, नये विस्तार, चलने के नये रास्ते, इन पर चलना। आलाप की इस व्याख्या के साथ ही वह स्वरों की संगति में [[संगीत]] की तलाश करते हैं। कहते हैं, ‘स्वरों की अपनी संगति में, संगीत की अपनी मर्यादाओं और संभावनाओं में, हम औचित्य की कसौटियों की खोज कर सकते हैं।’ | ||
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Revision as of 13:23, 6 March 2013
[[चित्र:Bhimsen-joshi-01.jpg|शास्त्रीय गायन में 'आलाप' लेते हुए पंडित भीमसेन जोशी]] आलाप राग के स्वरों को विलम्बित लय में विस्तार करने को कहते हैं। आलाप को आकार की सहायता से या नोम, तोम जैसे शब्दों का प्रयोग करके किया जा सकता है। गीत के शब्दों का प्रयोग करके जब आलाप किया जाता है तो उसे बोल-आलाप कहते हैं। 'आलाप' का अर्थ है बदल-बदल कर बढ़ना। स्वरों के नये नये बनाव, नई उपज, नये विस्तार, चलने के नये रास्ते, इन पर चलना। आलाप की इस व्याख्या के साथ ही वह स्वरों की संगति में संगीत की तलाश करते हैं। कहते हैं, ‘स्वरों की अपनी संगति में, संगीत की अपनी मर्यादाओं और संभावनाओं में, हम औचित्य की कसौटियों की खोज कर सकते हैं।’
शब्दार्थ
लाप में आ उपसर्ग लगने से बनता है आलाप जिसका अर्थ कथन, कहना, बातचीत या भाषण होता है। शास्त्रीय संगीत में आलाप का विशेष महत्व है जिसमें गीत या पद के गायन से पहले गायक आलाप के जरिये उस राग की स्वर-संगतियों की जानकारी श्रोताओं को कराता है। आलाप दरअसल गायन की भूमिका है।
लक्षण
आलाप किसी राग के गायन के आरम्भ में गाया जाने वाला वो हिस्सा होता है जो धीरे धीरे राग के एक एक सुर को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत करता है। सुरों का ये विस्तार सुर के उच्चारण को मधुर और अनोखा बनाने के विभिन्न तरीकों को इस्तेमाल करके किया जाता है। आलाप गायन के प्रारंभ से ही राग के स्वरुप को धीमी गति से विकसित करने और इसके पूर्ण स्वरुप में ले जाने की प्रकिया है। आलाप का सामान्यतः कोई विशिष्ट बंधन या नियम नहीं होता है, इसीलिए गायक कलाकार आलाप को अपने ढंग से, अपनी शैली और अपने अनोखेपन से प्रस्तुत करने का मौका मिलता है। आलाप में गायक की अपनी सोच और राग के प्रति गायक की अपनी प्रवत्ति निकल कर अभिव्यक्ति होती है। आलाप सामान्यतयः आकार में गाया जाता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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