हलाहल विष: Difference between revisions

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[[चित्र:Shiv-drinking-Poison.jpg|thumb|200px|भगवान शिव विषपान करते हुए]]
'''हलाहल विष''' [[देवता|देवताओं]] और [[असुर|असुरों]] द्वारा मिलकर किये गए [[समुद्र मंथन]] के समय निकला था। मंथन के फलस्वरूप जो चौदह मूल्यवान वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं, उनमें से हलाहल विष सबसे पहले निकला था।
'''हलाहल विष''' [[देवता|देवताओं]] और [[असुर|असुरों]] द्वारा मिलकर किये गए [[समुद्र मंथन]] के समय निकला था। मंथन के फलस्वरूप जो चौदह मूल्यवान वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं, उनमें से हलाहल विष सबसे पहले निकला था।



Revision as of 11:15, 17 May 2013

thumb|200px|भगवान शिव विषपान करते हुए हलाहल विष देवताओं और असुरों द्वारा मिलकर किये गए समुद्र मंथन के समय निकला था। मंथन के फलस्वरूप जो चौदह मूल्यवान वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं, उनमें से हलाहल विष सबसे पहले निकला था।

  • जब देवताओं तथा असुरों ने समुद्र मंथन आरम्भ किया, तब भगवान विष्णु ने कच्छप बनकर मंथन में भाग लिया।
  • भगवान कच्छप की एक लाख योजन चौड़ी पीठ पर मन्दराचल पर्वत घूम रहा था।
  • समुद्र मंथन से सबसे पहले जल का हलाहल विष निकला, जिसकी ज्वाला बहुत तीव्र थी।
  • हलाहल विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे और उनकी कान्ति फीकी पड़ने लगी। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की।
  • देवताओं तथा असुरों की प्रार्थना पर महादेव शिव उस विष को हथेली पर रख कर उसे पी गये, किन्तु उसे कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। उस कालकूट विष के प्रभाव से शिव का कण्ठ नीला पड़ गया। इसीलिये महादेव जी को 'नीलकण्ठ' कहा जाने लगा।
  • हलाहल विष को पीते समय शिव की हथेली से थोड़ा-सा विष पृथ्वी पर टपक गया, जिसे साँप, बिच्छू आदि विषैले जन्तुओं ने ग्रहण कर लिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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