कैलाश सत्यार्थी: Difference between revisions
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thumb|कैलाश सत्यार्थी कैलाश सत्यार्थी (अंग्रेज़ी: Kailash Satyarthi, जन्म: 11 जनवरी, 1954) भारत के बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं जिन्हें वर्ष 2014 में शांति हेतु नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कैलाश सत्यार्थी बाल श्रम के विरुद्ध भारतीय अभियान में 1990 के दशक से ही सक्रिय हैं। कैलाश सत्यार्थी के द्वारा संचालित संगठन का नाम "बचपन बचाओ आन्दोलन" है। इस संगठन ने में लगभग 70,000 स्वयंसेवक हैं, जो लगातार मासूमों के जीवन में खुशियों के रंग भरने के लिए कार्यरत हैं। अब तक 80 हज़ार से ज़्यादा बच्चों की ज़िंदगी कैलाश सत्यार्थी के इस संगठन ने बदली है। उन्होंने बच्चों के लिए आवश्यक शिक्षा को लेकर शिक्षा के अधिकार का आंदोलन चलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जीवन परिचय
भारत के मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी 1954 को पैदा हुए कैलाश सत्यार्थी 'बचपन बचाओ आंदोलन' चलाते हैं। पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रहे कैलाश सत्यार्थी ने 26 वर्ष की उम्र में ही करियर छोड़कर बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था। उन्हें बाल श्रम के ख़िलाफ़ अभियान चलाकर हज़ारों बच्चों की ज़िंदगी बचाने का श्रेय दिया जाता है। इस समय वे 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर' (बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं। कैलाश सत्यार्थी की वेबसाइट के मुताबिक़ बाल श्रमिकों को छुड़ाने के दौरान उन पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए हैं। 17 मार्च 2011 में दिल्ली की एक कपड़ा फ़ैक्ट्री पर छापे के दौरान उन पर हमला किया गया। इससे पहले 2004 में ग्रेट रोमन सर्कस से बाल कलाकारों को छुड़ाने के दौरान उन पर हमला हुआ।[1]
बचपन बचाओ आंदोलन
कैलाश सत्यार्थी ने वर्ष 1983 में बालश्रम के खिलाफ 'बचपन बचाओ आंदोलन' की स्थापना की। उनका यह संगठन अब तक 80,000 से ज़्यादा बच्चों को बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और बालश्रम के चंगुल से छुड़ा चुका है। गैर-सरकारी संगठनों तथा कार्यकर्ताओं की सहायता से कैलाश सत्यार्थी ने हज़ारों ऐसी फैकटरियों तथा गोदामों पर छापे पड़वाए, जिनमें बच्चों से काम करवाया जा रहा था। कैलाश सत्यार्थी ने 'रगमार्क' (Rugmark) की शुरुआत की, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि तैयार कारपेट (कालीनों) तथा अन्य कपड़ों के निर्माण में बच्चों से काम नहीं करवाया गया है। इस पहल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में काफी सफलता मिली। कैलाश सत्यार्थी ने विभिन्न रूपों में प्रदर्शनों तथा विरोध-प्रदर्शनों की परिकल्पना और नेतृत्व को अंजाम दिया, जो सभी शांतिपूर्ण ढंग से पूरे किए गए। इन सभी का मुख्य उद्देश्य आर्थिक लाभ के लिए बच्चों के शोषण के ख़िलाफ़ काम करना था। उनके दृढ़ निश्चय एवं उत्साह के कारण ही गैर-सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन का गठन हुआ। वह देश में बाल अधिकारों का सबसे प्रमुख समूह बना और 60 वर्षीय सत्यार्थी बच्चों के हितों को लेकर वैश्विक आवाज़ बनकर उभरे। वह लगातार कहते रहे कि बच्चों की तस्करी एवं श्रम गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और जनसंख्या वृद्धि का कारण है। दिल्ली एवं मुंबई जैसे देश के बड़े शहरों की फैक्टरियों में बच्चों के उत्पीड़न से लेकर ओडिशा और झारखंड के दूरवर्ती इलाकों से लेकर देश के लगभग हर कोने में उनके संगठन ने बंधुआ मजदूर के रूप में नियोजित बच्चों को बचाया। उन्होंने बाल तस्करी एवं मजदूरी के ख़िलाफ़ कड़े कानून बनाने की वकालत की और अभी तक उन्हें मिश्रित सफलता मिली है। सत्यार्थी कहते रहे कि वह बाल मजदूरी को लेकर चिंतित रहे और इससे उन्हें संगठित आंदोलन खड़ा करने में मदद मिली।[2]
सम्मान और पुरस्कार
- 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार (पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई के साथ संयुक्त रूप से)
- 2009 में डेफेंडर ऑफ़ डेमोक्रेसी अवार्ड (अमेरिका)
- 2008 में अलफांसो कोमिन इंटरनेशनल अवार्ड (स्पेन)
- 2007 में मेडल ऑफ द इटालियन सेनाटे (Medal of the Italian Senate)
- 2006 में फ्रीडम अवार्ड (अमेरिका)
- 2002 में वैलेनबर्ग मेडल, युनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन
- 1999 में फ्राइड्रीच इबर्ट स्टीफटंग अवार्ड (जर्मनी)
- 1995 में रॉबर्ट एफ. कैनेडी ह्यूमन राइट अवार्ड (अमेरिका)
- 1985 में द ट्रमपेटेर अवार्ड (अमेरिका)
- 1984 में द आचेनेर इंटरनेशनल पीस अवार्ड (जर्मनी)[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कौन हैं नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी? (हिंदी) बीबीसी हिंदी। अभिगमन तिथि: 11 अक्टूबर, 2014।
- ↑ कैलाश सत्यार्थी : बाल अधिकारों के लिए संघर्ष के अगुआ (हिंदी) एनडीटीवी ख़बर। अभिगमन तिथि: 11 अक्टूबर, 2014।
- ↑ कैलाश सत्यार्थी के बारे में (हिंदी) आजतक। अभिगमन तिथि: 11 अक्टूबर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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