चैनपुर: Difference between revisions
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इस गाँव का सबसे प्रमुख त्यौहार काली पूजा है. लगभग 200 बर्ष से इस गाँव में काली की पूजा हो रही है. कलकत्ता के दक्षिणेश्वर से काली माँ को मृतिका | इस गाँव का सबसे प्रमुख त्यौहार काली पूजा है. लगभग 200 बर्ष से इस गाँव में काली की पूजा हो रही है. कलकत्ता के दक्षिणेश्वर से काली माँ को मृतिका स्वरूप में लाया गया था. प्रत्येक वर्ष काली माता की भव्य प्रतिमा बनाइ जाती है तथा मेला का आयोजन किया जाता है. सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में गाँव के कलाकारों द्वारा नाटको के मंचन की एक सुदीर्घ परंपरा रही है इस गाँव में. आस पास के गाँव के लोग इस गाँव के मेला और नाटक को देखने आते है. ये काली माता सभी मनोकामना को पूर्ण करने वाली मानी जाती है. लोग अपनी मनौती के पूरा होने पर छागर की बलि देते है. | ||
चैनपुर गाँव में काली की पूजा दो जगहों पर होती है, जो लगभग 50 वर्षों से की जा रही है. | चैनपुर गाँव में काली की पूजा दो जगहों पर होती है, जो लगभग 50 वर्षों से की जा रही है. |
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चैनपुर बिहार के सहरसा ज़िला के अन्तर्गत, ज़िला मुख्यालय से 10 किलोमिटर के दूरी पर अवस्थित एक गाँव है। बिहार राज्य के मिथिला क्षेत्र में कोसी नदी के बेसिन में चैनपुर गाँव स्थित है। यह गाँव अपने शिक्षा संस्कार और विद्वानों के कारण पूरे मिथिला में प्रसिद्ध है।
इतिहास
इस गाँव के आदि पुरुष श्री भागीरथ ठाकुर को माना जाता है और गाँव के लोग अपने को भागीरथ ठाकुर के ही वंशज मानते है। परंपरागत विश्वास के अनुसार आज से लगभग 250 साल पहले इस गाव में भागीरथ बाबा आये थे। ऐसी भी मान्यता है कि यह गाँव बहुत प्राचीन है। किवदंति है कि जब आठवीं सदी में शंकराचार्य शास्त्रार्थ करने के लिये मंडन मिश्र के पास महिषी आये थे तब वे चैनपुर होकर गये थे। चैनपुर गाँव के नीलकंठ महादेव मन्दिर में पूजा करने के उपरान्त वे धेमरा नदी (धर्ममूला) पार कर के महिषी पहुँचे थे। यह आख्यान शायद शंकर विजय नामक प्रबंध ग्रन्थ में उपलब्ध है। साथ ही, इस गाँव में ढेरों प्राचीन मूर्तिया भी प्राप्त हुदी हैं। ये सब अद्वितीय है जैसे कि सूर्य भगवान के आदमकद मूर्ति, विष्णु भगवान के मूर्ति। इसके पौराणिकता को सिद्ध करने का कोई सबूत शायद उपलब्ध नहीं है। कुछ अपठनीय लेख भी उपलब्ध है जिसको पढ़ने के बाद शायद इस गाँव की पौराणिकता सिद्ध हो सकती है।
संरचना
इस गाँव की बनावट अद्भुत है। आस पास के किसी भी गाँव की संरचना ऐसी नहीं है। लगता है कि कोई मंझा हुआ कलाकार अपने कला का प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोडा। गाँव की संरचना की योजना बनाने में चार-चार समानांतर सड़क जो गाँव के एक छोर से दूसरे छोर तक जाती है एवं पुनः इन चारों सड़कों को समकोण पर काटती है।
शिक्षा एवं संस्कृति
5 प्राथमिक विद्यालय, दो मिड्डल स्कूल, दो हाई स्कूल, एक संस्कृत महाविद्यालय है। धार्मिक स्थान के रूप में नीलकंठ मंदिर, काली मंदिर, दुर्गा मंदिर, विष्णु घर, हनुमान थान, ब्रहम बाबा, राधा कृष्ण कुटी, मार्कंडेय बाबा के काली मंदिर इत्यादि दर्शनीय स्थल है। गाँव में सभी पर्व त्यौहार संपूर्ण उमंग, उत्साह और धार्मिक वातावरण में मनाये जाते हैं। काली पूजा एवं फगुआ कुछ ज्यादा ही प्रसिद्ध है। दशहरा और शिवरात्रि, कृष्णाष्टमी, राम नवमी और हनुमान जयंती आदि त्योहार भी परम श्रद्धा और भक्ति मनाये जाते हैं।
काली पूजा
इस गाँव का सबसे प्रमुख त्यौहार काली पूजा है. लगभग 200 बर्ष से इस गाँव में काली की पूजा हो रही है. कलकत्ता के दक्षिणेश्वर से काली माँ को मृतिका स्वरूप में लाया गया था. प्रत्येक वर्ष काली माता की भव्य प्रतिमा बनाइ जाती है तथा मेला का आयोजन किया जाता है. सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में गाँव के कलाकारों द्वारा नाटको के मंचन की एक सुदीर्घ परंपरा रही है इस गाँव में. आस पास के गाँव के लोग इस गाँव के मेला और नाटक को देखने आते है. ये काली माता सभी मनोकामना को पूर्ण करने वाली मानी जाती है. लोग अपनी मनौती के पूरा होने पर छागर की बलि देते है.
चैनपुर गाँव में काली की पूजा दो जगहों पर होती है, जो लगभग 50 वर्षों से की जा रही है.
दशहरा
दुर्गा स्थान चैनपुर गाँव का सबसे पुराना पूजा अर्चना स्थल है. प्रत्येक वर्ष यहाँ दुर्गा पूजा बड़े हि पवित्रता एवं भक्ति भाव से की जाती है. पहले यहाँ मा दुर्गा की एक पाषाण मूर्ति थी, जो की बहुत पहले एक अगलगी के दौरान चोरी हो गयी थी. बाद में एक दूसरी प्रतिमा स्थापित की गयी. अभी हाल हि में दुर्गा माँ के एक आदमकद संगमरमर की मूर्ति स्थापित की गयी है. मंदिर भी बहुत भव्य बना दिया गया है. दशहरा के दौरान अहर्निश दुर्गा सप्तशती का समवेत पाठ एवं हजारों कुमारि कन्यायों का पूजन किया जाता है.
पड़ोसी गाव
चैनपुर के पड़ोसी गाँव पडरी, बनगाव, महिशि, बलहि, तेघरा, बसौना, बलहा, गढिया आदि हैं।
विविध
चैनपुर में ढेर सारे पंडित हुए. उदहारण के लिए : गंगाधर मिश्र, अमृत नाथ झा, भृगु देव झा, अर्जुन झा, छोटू बाबु, कामेश्वर बाबु, इन्द्रानंद झा, शिलानंद झा इत्यादि.....
पंडित मधुकांत झा 'मधुकर' अपने शिव भजन, देवी भजन इत्यादि के लिए बहुत प्रसिद्ध है.
स्वर्गीय भोला ठाकुर 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 29 अगस्त 1942 को अंग्रेजों के गोली के शिकार हुए थे.
स्वर्गीय परस 26 जनवरी 2012 को आतंकवादियों से लड़ते हुए मणिपुर में शहीद हुए.
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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