प्रलय: Difference between revisions
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Revision as of 06:13, 8 March 2016
प्रलय का अर्थ होता है संसार का अपने मूल कारण प्रकृति में सर्वथा लीन हो जाना या भूखण्ड या ब्रह्माण्ड का मिट जाना, नष्ट हो जाना। प्रकृति का ब्रह्म में लय[1] हो जाना ही प्रलय है। यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड ही प्रकृति कही गई है। इसे ही शक्ति कहते हैं।[2]
प्रलय चार प्रकार की होते है- पहला किसी भी धरती पर से जीवन का समाप्त हो जाना, दूसरा धरती का नष्ट होकर भस्म बन जाना, तीसरा सूर्य सहित ग्रह-नक्षत्रों का नष्ट होकर भस्मीभूत हो जाना और चौथा भस्म का ब्रह्म में लीन हो जाना अर्थात फिर भस्म भी नहीं रहे, पुन: शून्यावस्था में हो जाना।
हिन्दू शास्त्रों में मूल रूप से प्रलय के चार प्रकार बताए गए हैं-
- नित्य
- नैमित्तिक
- द्विपार्थ
- प्राकृत
पौराणिक गणना के अनुसार यह क्रम है-
- नित्य
- नैमित्तक
- आत्यन्तिक
- प्राकृतिक प्रलय
नित्य प्रलय
वेदांत के अनुसार जीवों की नित्य होती रहने वाली मृत्यु को नित्य प्रलय कहते हैं। जो जन्म लेते हैं, उनकी प्रतिदिन की मृत्यु अर्थात प्रतिपल सृष्टी में जन्म और मृत्य का चक्र चलता रहता है।
आत्यन्तिक प्रलय
आत्यन्तिक प्रलय योगीजनों के ज्ञान के द्वारा ब्रह्म में लीन हो जाने को कहते हैं। अर्थात मोक्ष प्राप्त कर उत्पत्ति और प्रलय चक्र से बाहर निकल जाना ही आत्यन्तिक प्रलय है।
नैमित्तिक प्रलय
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वेदांत के अनुसार प्रत्येक कल्प के अंत में होने वाला तीनों लोकों का क्षय या पूर्ण विनाश हो जाना नैमित्तिक प्रलय कहलाता है।
प्राकृत प्रलय
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ब्राह्मांड के सभी भूखण्ड या ब्रह्माण्ड का मिट जाना, नष्ट हो जाना या भस्मरूप हो जाना प्राकृत प्रलय कहलाता है। name="pp"/>
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लीन
- ↑ हिंदू धर्म : प्रलय के चार प्रकार जानिए (हिन्दी) Web Dunia। अभिगमन तिथि: 8 मार्च, 2016।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख