दुर्गावती: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('रानी दुर्गावती गोंडवाना की शासक थीं, जो [[भारत का इति...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
m (Adding category Category:मध्य काल (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 16: | Line 16: | ||
[[Category:इतिहास_कोश]] | [[Category:इतिहास_कोश]] | ||
[[Category:नया पन्ना]] | [[Category:नया पन्ना]] | ||
[[Category:मध्य काल]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 06:49, 8 April 2011
रानी दुर्गावती गोंडवाना की शासक थीं, जो भारतीय इतिहास की सर्वाधिक प्रसिद्ध रानियों में गिनी जाती है। वह महोबा कालिंजर के चन्देल राजा कीर्तिराज की पुत्री थी। यह राजा 1545 ई. में शेरशाह सूरी के द्वारा कालिंजर के क़िले के घेरे के समय मारा गया था। दुर्गावती का विवाह गढ़मंडल (गोंडवाना) के राजा दलपतिशाह के साथ हुआ, किन्तु वह जल्दी ही विधवा हो गई। उस समय उसका वीर नारायण नाम का नाबालिग पुत्र था। उसने मालवा के बाजबहादुर और बंगाल के अफ़ग़ानों के हमलों से गोंडवाना की रक्षा की।
युद्ध
1564 ई. में मुग़ल सम्राट अकबर ने रानी के राज्य पर हमला करने के लिए सेनापति आसफ़ ख़ाँ को भेजा। पुत्र को साथ लेकर रानी ने मुग़लों की 50 हज़ार सेना का सामना किया। दोनों के बीच राजधानी के पास नरही में घोर युद्ध हुआ। युद्ध के दूसरे दिन उसका पुत्र घायल हो गया, जिसे रानी के सैनिकों की देखरेख में सुरक्षित स्थान पर भेज दिया गया। इन सैनिकों के जाने से रानी का पक्ष कमज़ोर हो गया और वह पराजित हो गई। शत्रुओं के हाथ में अपने को पड़ने से बचाने के लिए रानी ने कटार मारकर अपनी जान दे दी। इसके बाद मुग़ल सेना राजधानी चौरागढ़ की ओर बढ़ी। वहाँ पर उसके घायल अल्पवयस्क पुत्र ने पुन: जबर्दस्त प्रतिरोध किया, लेकिन बेचारा पराजित हुआ और मारा गया। गोंडवाना अकबर के राज्य में मिला लिया गया। सेनापति आसफ़ ख़ाँ अपने साथ बेशुमार सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात, सिक्के और एक हज़ार हाथी लेकर दिल्ली लौटा। यह इस बात का प्रमाण है कि रानी के राज्यकाल में गोंडवाना कितना समृद्धशाली था।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-208