पारसौली: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]'''
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]'''
पारसौली / Parsauli'''<br />
'''पारसौली / Parsauli'''<br />


[[Category:पर्यटन कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थल]]  
[[Category:पर्यटन कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थल]]  

Revision as of 08:33, 20 April 2010

पारसौली / Parsauli
गोवर्धन की तलहटी में गोवर्धन ग्राम से लगभग एक सवा मील अग्निकोण में परासौली ग्राम है। मथुरा के निकट महाकवि सूरदास का निवासस्थान है। इनका जन्म रूनकता ग्राम में हुआ था किंतु कहा जाता है कि ये प्राय: पारासौली ही में रहते थे और यहीं इन्होंने अपनी अधिकांश अमृतमयी रचनाएं की थी। श्री वल्लभाचार्य के मत में पारासौली ही मूल वृन्दावन है। कहा जाता है कि पारासौली शब्द परम रासस्थली से बिगड़कर बना है।


मुग़लकाल में मुसलमानों ने गाँव का नाम बदलकर महम्मदपुर रख दिया था। यह कृष्ण एवं उनकी प्रियतमा गोपियों की वासन्ती रासलीला का स्थल है । यहाँ पर ब्रह्माजी की एक रात तक रास हुआ, परन्तु ऐसा प्रतीत हुआ मानो ब्रह्माजी की वह रात भी कुछ क्षणों में ही बीत गई । आकाश में चन्द्र भी रासलीला को देखकर स्तम्भित हो गये तथा सारी रात टस से मस नहीं हुए। उनकी पूर्ण ज्योत्स्नामयी किरणों के प्रकाश में रास होता रहा। इसलिए इसे चन्द्रसरोवर भी कहते हैं । सरोवर के नैऋत्यकोण में श्रृंगार मन्दिर है, जहाँ कृष्ण ने स्वयं श्रीमती का श्रृंगार किया था ।


सरोवर के पास ही छोंकर वृक्ष के नीचे श्रीवल्लभाचार्य जी की बैठक है । उसी के समीप सूरकुटी और सूर–समाधि श्रीवल्लभाचार्यजी की बैठक में ही स्थित है । सूरदास जन्मजात कवि थे, इनकी पदावलियों का संग्रह सूरसागर या सूरपदावली के नाम से प्रसिद्ध है । सूरदास जी अन्धे होते हुए भी श्रीनाथजी का जैसा श्रृंगार होता, ठीक वैसे ही पद की रचना कर उसका सरस वर्णन करते थे, एक दिन पुजारीजी ने श्रीनाथजी को बिल्कुल नंगे रखकर मन्दिर के पट खोल दिये एवं सूरदास को उनके श्रंगार का वर्णन करने को कहा। सूरदास कुछ क्षण तक मौन खड़े रहे। किन्तु पुजारी जी के बार–बार पूछने पर सूरदास जी बड़े जोर से हँसे, और यह गाना आरम्भ किया –
आज भये हरि नंगम नंगा।
सूरदास का यह पद सुनकर सभी लोग स्तब्ध हो गये।


अपने अन्तिम दिनों में वे पारसौली में ही थे। श्रीगोसांईजी ने पूछा– सूर ! तुम क्या चिन्ता कर रहे हो ? सूरदास जी ने अन्तिम पदावली के रूप में गाते–गाते अपने प्राणों को छोड़ दिया–
खंजन नैन रूप रस माते,
अतिशय चारू चपल अनियारे पल पिंजरा न समाते
गोसाई जी ने अश्रुपूरित नेत्रों से कहा– आज पुष्टिमार्ग का जहाज चला गया । पारसौली के अग्निकोण में संकर्षण–कुण्ड है, उसके तट के ऊपर श्रीबलदेवजी का मन्दिर है ।