रवि शास्त्री: Difference between revisions

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*रवि शास्त्री के माता-पिता कर्नाटक के रहने वाले थे, पर इनका जन्म मुंबई में हुआ। पिताजी डॉक्टर थे। घर में बच्चों को पढ़ाई की तरफ ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने को कहा जाता था। जब रवि शास्त्री बहुत छोटा थे तब वे गिल्ली-डंडा, कंचे और फुटबॉल-हॉकी खेलने में ही ज्यादा समय बिताते थे। उन्हें दोस्तों के साथ बाहर खेलकूद में ही ज्यादा मजा आता था।
*बचपन में रवि शास्त्री के पास ही खेलने का ज्यादातर सामान था और किसी भी खेल में आउट हो जाने पर वे खेल बंद कर देते थे तो सारे दोस्त उनकी बात मानकर उन्हें एक मौका और दे देते थे। क्रिकेट में भी जब वे आउट हो जाते थे तो बैट लेकर भाग जाते थे। फिर उनके दोस्त उन्हें घर से मनाकर लाते थे कि अच्छा चलो एक बार बैटिंग और कर लेना। ये बातें तबकी हैं जब वे बहुत छोटे थे। फिर बड़ा होने पर उन्हें मालूम हुआ कि हार-जीत खेल का हिस्सा है।
*रवि शास्त्री ने क्रिकेट से पहले बहुत से खेलों में हाथ आजमाए। जब वे बङे हो रहे थे तब वे टेनिस भी खेलते थे। खेलों के प्रति रुचि जगाने में उनका स्कूल डॉन बॉस्को का भी बड़ा योगदान रहा, क्योंकि यहाँ उन्हें तरह-तरह के खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। गिल्ली-डंडा और टेनिस से होते हुए सबसे आखिर में उनकी गाड़ी क्रिकेट पर आकर रुकी।
*स्कूल में रवि शास्त्री अपनी क्लास में सबसे पीछे की बेंच पर बैठते थे। इसका एक कारण थी आखिरी बेंच के पास की खिड़की। इस खिड़की से वे क्लास से बाहर क्या चल रहा है यह देख पाते थे और जरूरत लगने पर चॉकलेट की पन्नी या फलों के छिलके खिड़की से बाहर भी फेंक सकते थे। वे क्लास में बैठे-बैठे चॉकलेट और दूसरी चीजें भी खाते थे। जब वे स्कूल में थे तो खाने के बहुत-सी चीजें अपने दोस्तों के लिए ले जाते थे ताकि वे अपनी चीजें एक-दूसरे के साथ बाँट सकें।
*जब रवि शास्त्री 9वीं में थे, तब स्कूल की क्रिकेट टीम बनी और उनके कोच देसाई सर ने उन्हें क्रिकेट सीखने में खूब मदद की। उनकी वजह से ही वे क्रिकेटर बन सके। उनकी स्कूल की टीम ने चैंपियनशिप भी जीती थी और वह पहली ट्रॉफी थी जिसने उन्हें बहुत उत्साहित किया था। यह ट्रॉफी जीतने के बाद ही वे तय किये थे कि अब उन्हें एक अच्छा क्रिकेटर बनना है और देश के लिए क्रिकेट खेलनी है। उनका यह निर्णय आगे चलकर सही साबित हुआ और वे देश के लिए क्रिकेट खेला भी। दोस्तो, क्रिकेट से संन्यास के बाद भी उन्हें इस खेल से इतना लगाव हो गया है कि अब वे कमेंट्री में भी खूब आनंद लेते है।


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रवि शास्त्री
व्यक्तिगत परिचय
पूरा नाम रविशंकर जयद्रथ शास्त्री
अन्य नाम रवि शास्त्री
जन्म 27 मई, 1962
पत्नी रितु
संतान 1पुत्री
खेल परिचय
बल्लेबाज़ी शैली दाएँ हाथ के बल्लेबाज़
गेंदबाज़ी शैली बाएं हाथ से स्पिन गेंदबाज़
टीम भारत,ग्लेमॉर्गन,मुंबई
भूमिका बल्लेबाज
पहला टेस्ट न्यूजीलैंड विरुद्ध भारत, वेलिंग्टन , 21 फरवरी 1981
आख़िरी टेस्ट दक्षिण अफ्रीका विरुद्ध भारत, सेंट जॉर्ज पार्क, 26 दिसम्बर 1992
पहला वनडे भारत विरुद्ध इंग्लैंड, अहमदाबाद, 25 नवम्बर 1981
आख़िरी वनडे दक्षिण अफ्रीका विरुद्ध भारत, डरबन , 17 दिसम्बर 1992
कैरियर आँकड़े
प्रारूप टेस्ट क्रिकेट एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय टी-20 अन्तर्राष्ट्रीय
मुक़ाबले 80 150 0
बनाये गये रन 3830 3108 0
बल्लेबाज़ी औसत 35.79 29.04 o
100/50 11/12 4/18 0
सर्वोच्च स्कोर 206 109 0
फेंकी गई गेंदें 15751 6613 0
विकेट 151 129 0
गेंदबाज़ी औसत 40.96 36.04 0
पारी में 5 विकेट 2 1 0
मुक़ाबले में 10 विकेट 0 0 0
सर्वोच्च गेंदबाज़ी 5/75 5/15 0
कैच/स्टम्पिंग 36/0 40/0 0
  • रवि शास्त्री के माता-पिता कर्नाटक के रहने वाले थे, पर इनका जन्म मुंबई में हुआ। पिताजी डॉक्टर थे। घर में बच्चों को पढ़ाई की तरफ ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने को कहा जाता था। जब रवि शास्त्री बहुत छोटा थे तब वे गिल्ली-डंडा, कंचे और फुटबॉल-हॉकी खेलने में ही ज्यादा समय बिताते थे। उन्हें दोस्तों के साथ बाहर खेलकूद में ही ज्यादा मजा आता था।
  • बचपन में रवि शास्त्री के पास ही खेलने का ज्यादातर सामान था और किसी भी खेल में आउट हो जाने पर वे खेल बंद कर देते थे तो सारे दोस्त उनकी बात मानकर उन्हें एक मौका और दे देते थे। क्रिकेट में भी जब वे आउट हो जाते थे तो बैट लेकर भाग जाते थे। फिर उनके दोस्त उन्हें घर से मनाकर लाते थे कि अच्छा चलो एक बार बैटिंग और कर लेना। ये बातें तबकी हैं जब वे बहुत छोटे थे। फिर बड़ा होने पर उन्हें मालूम हुआ कि हार-जीत खेल का हिस्सा है।
  • रवि शास्त्री ने क्रिकेट से पहले बहुत से खेलों में हाथ आजमाए। जब वे बङे हो रहे थे तब वे टेनिस भी खेलते थे। खेलों के प्रति रुचि जगाने में उनका स्कूल डॉन बॉस्को का भी बड़ा योगदान रहा, क्योंकि यहाँ उन्हें तरह-तरह के खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। गिल्ली-डंडा और टेनिस से होते हुए सबसे आखिर में उनकी गाड़ी क्रिकेट पर आकर रुकी।
  • स्कूल में रवि शास्त्री अपनी क्लास में सबसे पीछे की बेंच पर बैठते थे। इसका एक कारण थी आखिरी बेंच के पास की खिड़की। इस खिड़की से वे क्लास से बाहर क्या चल रहा है यह देख पाते थे और जरूरत लगने पर चॉकलेट की पन्नी या फलों के छिलके खिड़की से बाहर भी फेंक सकते थे। वे क्लास में बैठे-बैठे चॉकलेट और दूसरी चीजें भी खाते थे। जब वे स्कूल में थे तो खाने के बहुत-सी चीजें अपने दोस्तों के लिए ले जाते थे ताकि वे अपनी चीजें एक-दूसरे के साथ बाँट सकें।
  • जब रवि शास्त्री 9वीं में थे, तब स्कूल की क्रिकेट टीम बनी और उनके कोच देसाई सर ने उन्हें क्रिकेट सीखने में खूब मदद की। उनकी वजह से ही वे क्रिकेटर बन सके। उनकी स्कूल की टीम ने चैंपियनशिप भी जीती थी और वह पहली ट्रॉफी थी जिसने उन्हें बहुत उत्साहित किया था। यह ट्रॉफी जीतने के बाद ही वे तय किये थे कि अब उन्हें एक अच्छा क्रिकेटर बनना है और देश के लिए क्रिकेट खेलनी है। उनका यह निर्णय आगे चलकर सही साबित हुआ और वे देश के लिए क्रिकेट खेला भी। दोस्तो, क्रिकेट से संन्यास के बाद भी उन्हें इस खेल से इतना लगाव हो गया है कि अब वे कमेंट्री में भी खूब आनंद लेते है।



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