अनमोल वचन 5: Difference between revisions
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* दूसरों की ग़लतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि खुद इतनी ग़लतियाँ कर सकें। - अमिताभ बच्चन | * दूसरों की ग़लतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि खुद इतनी ग़लतियाँ कर सकें। - अमिताभ बच्चन | ||
* अगर भगवान से माँग रहे हो तो हल्का बोझ मत माँगो, मजबूत कंधे माँगो। - अमिताभ बच्चन | * अगर भगवान से माँग रहे हो तो हल्का बोझ मत माँगो, मजबूत कंधे माँगो। - अमिताभ बच्चन | ||
'''शेख़ सादी''' | '''शेख़ सादी''' | ||
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* जो नसीहतें नहीं सुनता, उसे लानत-मलामत सुनने का सुख होता है। - शेख़ सादी | * जो नसीहतें नहीं सुनता, उसे लानत-मलामत सुनने का सुख होता है। - शेख़ सादी | ||
* | '''विदुर''' | ||
* धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। - विदुर | |||
* कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है। - विदुर | |||
'''शरतचंद्र''' | |||
* ख़ातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास ज़रूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। - शरतचंद्र | |||
* संसार में ऐसे अपराध कम ही हैं जिन्हें हम चाहें और क्षमा न कर सकें। - शरतचंद्र | |||
'''अथर्ववेद''' | |||
* जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी निवास करती है। - अथर्ववेद | |||
* पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढ़ाए, पाप की कमाई को मैंने नष्ट कर दिया है। - अथर्ववेद | |||
'''रामनरेश त्रिपाठी''' | |||
* शत्रु के साथ मृदुता का व्यवहार अपकीर्ति का कारण बनता है और पुरुषार्थ यश का। - रामनरेश त्रिपाठी | |||
* यह सच है कि कवि सौंदर्य को देखता है। जो केवल बाहरी सौंदर्य को देखता है वह कवि है, पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का वर्णन करता है वह महाकवि है। - रामनरेश त्रिपाठी | |||
'''अमृतलाल नागर''' | |||
* श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ हैं कि जो एक बार घोल कर पी लेता है वह चाहने पर मृत्यु को भी पीछे धकेल देता है। - अमृतलाल नागर | |||
* जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं। - अमृतलाल नागर | |||
'''कमलापति त्रिपाठी''' | |||
* साध्य कितने भी पवित्र क्यों न हों, साधन की पवित्रता के बिना उनकी उपलब्धि संभव नहीं। - कमलापति त्रिपाठी | |||
* अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव होता है। - कमलापति त्रिपाठी | |||
'''डॉ. मनोज चतुर्वेदी''' | |||
* मित्र के मिलने पर पूर्ण सम्मान सहित आदर करो, मित्र के पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद अवश्य करो। - डॉ. मनोज चतुर्वेदी | |||
* डूबते को बचाना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। - डॉ. मनोज चतुर्वेदी | |||
'''हरिशंकर परसाई''' | |||
* वसंत अपने आप नहीं आता, उसे लाना पड़ता है। सहज आने वाला तो पतझड़ होता है, वसंत नहीं। - हरिशंकर परसाई | |||
* मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। - हरिशंकर परसाई | |||
'''रवीन्द्र नाथ टैगोर''' | |||
* मानव तभी तक श्रेष्ठ है, जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है। बतौर पशु, मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। - रवीन्द्र नाथ टैगोर | |||
* आदर्श के दीपक को, पीछे रखने वाले, अपनी ही छाया के कारण, अपने पथ को, अंधकारमय बना लेते हैं। - रवीन्द्र नाथ टैगोर | |||
'''गुरु नानक''' | |||
* दूब की तरह छोटे बनकर रहो। जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है। - गुरु नानक | |||
* कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है। - गुरू नानक | |||
* शब्द धरती, शब्द आकाश, शब्द शब्द भया परगास! सगली शब्द के पाछे, नानक शब्द घटे घाट आछे!! - गुरु नानक | |||
'''विष्णु प्रभाकर''' | |||
* ददीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य दीपक का नहीं उसकी लौ का होता है जिसे कोई अँधेरा नहीं बुझा सकता। - विष्णु प्रभाकर | |||
* दीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य उसका नहीं होता, मूल्य होता है उसकी लौ का जिसे कोई अँधेरा, अँधेरे के तरकश का कोई तीर ऐसा नहीं जो बुझा सके। - विष्णु प्रभाकर | |||
'''संतोष गोयल''' | |||
* हर चीज़ की कीमत व्यक्ति की जेब और ज़रूरत के अनुसार होती है और शायद उसी के अनुसार वह अच्छी या बुरी होती है। - संतोष गोयल | |||
* अवसर तो सभी को ज़िंदगी में मिलते हैं किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीक़े से इस्तेमाल कितने कर पाते हैं? - संतोष गोयल | |||
'''स्वामी रामदेव''' | |||
* बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। - स्वामी रामदेव | |||
* स्वदेशी उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा, ज्ञान, तकनीक, खानपान, भाषा, वेशभूषा एवं स्वाभिमान के बिना विश्व का कोई भी देश महान नहीं बन सकता। - स्वामी रामदेव | |||
* भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। - स्वामी रामदेव | |||
'''स्वामी शिवानंद''' | |||
* मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान है, शुद्ध बुद्धिमत्ता मस्तिष्क से महान है, आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से बढकर कुछ भी नहीं है। - स्वामी शिवानंद | |||
* बारह ज्ञानी एक घंटे में जितने प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं उससे कहीं अधिक प्रश्न मूर्ख व्यक्ति एक मिनट में पूछ सकता है। - स्वामी शिवानंद | |||
* संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है। - स्वामी शिवानंद | |||
'''डॉ. शंकर दयाल शर्मा''' | |||
* सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना। - डॉ. शंकरदयाल शर्मा | |||
* धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। - डॉ. शंकर दयाल शर्मा | |||
'''महाभारत''' | |||
* धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं। - महाभारत | |||
* बुद्धि से विचारकर किए गए कर्म ही सफल होते हैं। - महाभारत | |||
* अपने भाई बंधु जिसका आदर करते हैं, दूसरे भी उसका आदर करते हैं। - महाभारत | |||
'''स्वामी रामतीर्थ''' | |||
* जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं। - स्वामी रामतीर्थ | |||
* वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। - स्वामी रामतीर्थ | |||
* केवल प्रकाश का अभाव ही अंधकार नहीं, प्रकाश की अति भी मनुष्य की आँखों के लिए अंधकार है। - स्वामी रामतीर्थ | |||
* त्याग निश्चय ही आपके बल को बढ़ा देता है, आपकी शक्तियों को कई गुना कर देता है, आपके पराक्रम को दृढ कर देता है, वही आपको ईश्वर बना देता है। वह आपकी चिंताएं और भय हर लेता है, आप निर्भय तथा आनंदमय हो जाते हैं। - स्वामी रामतीर्थ | |||
'''इंदिरा गांधी''' | |||
* जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो। - इंदिरा गांधी | |||
* यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाए तो वह ख़तरनाक भी हो सकती है। - इंदिरा गांधी | |||
* असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाए, तो वह ख़तरनाक भी हो सकती है। - इंदिरा गांधी | |||
* | * तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। - गुरु गोविंद सिंह | ||
* | * सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकांत साधना में होता है। - अनंत गोपाल शेवडे | ||
* | * जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी देती है। - उत्तररामचरित | ||
* | * प्रकृति का तमाशा भी ख़ूब है। सृजन में समय लगता है जबकि विनाश कुछ ही पलों में हो जाता है। - ज़क़िया ज़ुबैरी | ||
* संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। - काका कालेलकर | |||
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* | * कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। - मृच्छकटिक | ||
* मनुष्य | * बुद्धिमान मनुष्य अपनी हानि पर कभी नहीं रोते बल्कि साहस के साथ उसकी क्षतिपूर्ति में लग जाते हैं। - विष्णु शर्मा | ||
* | * अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। - डॉ. तपेश चतुर्वेदी | ||
* जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। - भावना कुँअर | |||
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* प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। - वृंद | * प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। - वृंद | ||
* निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा सर्वोत्कृष्ट प्रकाश है तो निराशा घोर अंधकार है। - रश्मिमाला | * निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा सर्वोत्कृष्ट प्रकाश है तो निराशा घोर अंधकार है। - रश्मिमाला | ||
* कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। - हरिवंश राय बच्चन | |||
* मनुष्य अपना स्वामी नहीं, परिस्थितियों का दास है। - भगवतीचरण वर्मा | |||
* सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है। - पं. मोतीलाल नेहरू | |||
* जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। - डॉ. विक्रम साराभाई | * जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। - डॉ. विक्रम साराभाई | ||
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* जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है। - डॉ. रघुवंश | * जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है। - डॉ. रघुवंश | ||
* | * अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है। वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। - राजेंद्र अवस्थी | ||
* देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। - बलभद्र प्रसाद गुप्त 'रसिक' | |||
* | * असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। - हरिभाऊ उपाध्याय | ||
* | * जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है। - मोरारजी देसाई | ||
* जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता। - स्वामी भजनानंद | |||
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* विद्वत्ता युवकों को संयमी बनाती है। यह बुढ़ापे का सहारा है, निर्धनता में धन है, और धनवानों के लिए आभूषण है। | |||
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* सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। - सम्राट अशोक | |||
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* | * जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। - दीनानाथ दिनेश | ||
* प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही प्रजातंत्रीय शासन की सफलता का मूल सिद्धांत है। - राजगोपालाचारी | * प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही प्रजातंत्रीय शासन की सफलता का मूल सिद्धांत है। - राजगोपालाचारी | ||
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* शाला में नया छात्र कुछ लेकर नहीं आता और पुराना कुछ लेकर नहीं जाता फिर भी वहाँ ज्ञान का विकास होता है। - राजेन्द्र अवस्थी | * शाला में नया छात्र कुछ लेकर नहीं आता और पुराना कुछ लेकर नहीं जाता फिर भी वहाँ ज्ञान का विकास होता है। - राजेन्द्र अवस्थी | ||
* बूढा होना कोई आसान काम नहीं। इसे बड़ी मेहनत से सीखना पड़ता है। - निर्मल वर्मा | * बूढा होना कोई आसान काम नहीं। इसे बड़ी मेहनत से सीखना पड़ता है। - निर्मल वर्मा | ||
* आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। - पंडित रामप्रताप त्रिपाठी | * आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। - पंडित रामप्रताप त्रिपाठी | ||
* कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे। - पंडितराज जगन्नाथ | * कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे। - पंडितराज जगन्नाथ | ||
* | * अविश्वास आदमी की प्रवृत्ति को जितना बिगाड़ता है, विश्वास उतना ही बनाता है। - धर्मवीर भारती | ||
* मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे जानना चाहते हो तो हिन्दवी में पूछो। मैं तुम्हें अनुपम बातें बता सकूँगा। - अमीर ख़ुसरो | |||
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* विश्व में अग्रणी भूमिका निभाने की आकांक्षा रखनेवाला कोई भी देश शुद्ध या दीर्घकालीन अनुसंधान की उपेक्षा नहीं कर सकता। - होमी भाभा | * विश्व में अग्रणी भूमिका निभाने की आकांक्षा रखनेवाला कोई भी देश शुद्ध या दीर्घकालीन अनुसंधान की उपेक्षा नहीं कर सकता। - होमी भाभा | ||
* कोई भी भाषा अपने साथ एक संस्कार, एक सोच, एक पहचान और प्रवृत्ति को लेकर चलती है। - भरत प्रसाद | * कोई भी भाषा अपने साथ एक संस्कार, एक सोच, एक पहचान और प्रवृत्ति को लेकर चलती है। - भरत प्रसाद | ||
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* कहानी जहाँ खत्म होती है, जीवन वहीं से शुरू होता है।' - संजीव | * कहानी जहाँ खत्म होती है, जीवन वहीं से शुरू होता है।' - संजीव | ||
* हम अमन चाहते हैं जुल्म के ख़िलाफ़, फैसला ग़र जंग से होगा, तो जंग ही सही। - राम प्रसाद बिस्मिल | |||
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* | * सपने हमेशा सच नहीं होते पर ज़िंदगी तो उम्मीद पर टिकी होती हैं। - रविकिरण शास्त्री | ||
* विनम्रता की परीक्षा 'समृद्धि' में और स्वाभिमान की परीक्षा 'अभाव' में होती है। - आदित्य चौधरी | * विनम्रता की परीक्षा 'समृद्धि' में और स्वाभिमान की परीक्षा 'अभाव' में होती है। - आदित्य चौधरी | ||
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* समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। - (न्यायमूर्ति) कृष्णस्वामी अय्यर | * समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। - (न्यायमूर्ति) कृष्णस्वामी अय्यर | ||
* ईमानदार के लिए किसी छद्म वेश-भूषा या साज-श्रृंगार की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए सादगी ही प्रर्याप्त है। - औटवे | |||
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* कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है। - वीर सावरकर | * कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है। - वीर सावरकर | ||
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* जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। - सत्यार्थप्रकाश | * जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। - सत्यार्थप्रकाश | ||
* जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। - नारदभक्ति | |||
* स्वयं प्रकाशित दीप को भी प्रकाश के लिए तेल और बत्ती का जतन करना पड़ता है बुद्धिमान भी अपने विकास के लिए निरंतर यत्न करते हैं। | |||
* सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही समय आने पर महान फल देता है। - कथा सरित्सागर | * सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही समय आने पर महान फल देता है। - कथा सरित्सागर | ||
Line 607: | Line 637: | ||
* बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। - यशपाल | * बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। - यशपाल | ||
* जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय। - संपूर्णानंद | |||
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* दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए। - रामायण | * दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए। - रामायण | ||
Line 625: | Line 646: | ||
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद | * अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद | ||
* अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्यों कि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को। - महादेवी वर्मा | * अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्यों कि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को। - महादेवी वर्मा | ||
* विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। - हर्ष मोहन | * विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। - हर्ष मोहन |
Revision as of 17:19, 14 September 2011
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अनमोल वचन |
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