नासिकेतोपाख्यान: Difference between revisions
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Revision as of 14:02, 6 March 2012
नासिकेतोपाख्यान सदल मिश्र की प्रसिद्ध कृति है। 'नासिकेतोपाख्यान', 'यजुर्वेद', 'कठोपनिषद' और पुराणों में वर्णित है। सदल मिश्र ने इसे स्वतंत्र रूप से खड़ीबोली गद्य में प्रस्तुत करके सर्वजन सुलभ बना दिया।
रचना काल
इसकी रचना फोर्ट विलियम कॉलेज में अध्यापन कार्य करते समय जॉन गिल क्राइस्ट की आज्ञा से सन् 1803 ई. में की गयी थी।
कथानक
इसमें महाराज रघु की पुत्री चन्द्रावती और उसके पुत्र नासिकेत का पौराणिक आख्यान खड़ी बोली गद्य में वर्णित है। गंगा में स्नान करती हुई चन्द्रावती ने अज्ञानवश गंगा की धारा में प्रवाहित कमल कोश में बन्द महामुनि उद्दालक का वीर्य सूँघ लिया था। उसी के प्रभाव से उसकी नासिका से नासिकेत उत्पन्न हुआ। नासिकेत के आचरण से क्रुद्ध होकर उद्दालक ने उसे यमपुर जाने का शाप दिया। नासिकेत यमपुर गया और यमराज से अजरामर होने का वरदान प्राप्त कर लौट आया।
भाषा शैली
सदल मिश्र ने यह आख्यान बड़ी ही मनोरंजक और प्रसन्न शैली में लिखा है। इनकी वर्णन शैली मनोरंजन और काव्यात्मक है।
प्रकाशन
यह कृति नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से प्रकाशित हुई थी। बाद में 'बिहार राष्ट्र-भाषा परिषद' ने 1960 ई. में सदल मिश्र ग्रंथावली के अंतर्गत इसका पुन: प्रकाशन किया है।
महत्त्व
प्रारम्भिक हिन्दी खड़ी बोली गद्य के मान्य रूप को उदाहूत करने के कारण इस कृति का विशेष महत्त्व है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ