पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क: Difference between revisions

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==सर्वाधिक ऊँचा उद्यान==
==सर्वाधिक ऊँचा उद्यान==
67.65 एकड़ क्षेत्रफल वाला यह प्राणी उद्यान यद्यपि छोटे प्राणी उद्यानों की श्रेणी में आता है, परन्तु ऊँचाई पर स्थित प्राणी उद्यानों में यह देश का सबसे बड़ा और विश्व का सबसे ऊँचा प्राणी उद्यान है। इस प्राणी उद्यान की स्थापना अत्यन्त कम ख़र्च में रोमांच, ऊर्जा और स्फुर्ति से भरपूर सुखद पल गुज़ारने के लिए भी की गई। हिमालयी पारिस्थितिकी के संरक्षण के महत्व को पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोगों तक पहुँचाने में भी इसकी ख़ास पहल है।
67.65 एकड़ क्षेत्रफल वाला यह प्राणी उद्यान यद्यपि छोटे प्राणी उद्यानों की श्रेणी में आता है, परन्तु ऊँचाई पर स्थित प्राणी उद्यानों में यह देश का सबसे बड़ा और विश्व का सबसे ऊँचा प्राणी उद्यान है। इस प्राणी उद्यान की स्थापना अत्यन्त कम ख़र्च में रोमांच, ऊर्जा और स्फुर्ति से भरपूर सुखद पल गुज़ारने के लिए भी की गई। हिमालयी पारिस्थितिकी के संरक्षण के महत्व को पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोगों तक पहुँचाने में भी इसकी ख़ास पहल है।
==महत्वपूर्ण उपलब्धि==
==महत्त्वपूर्ण उपलब्धि==
यहाँ पर कार्यरत कर्मचारिगण और रखवाले वैज्ञानिक पद्धति द्वारा प्रशिक्षित हैं। जिससे इन्हें जन्तुओं के व्यवहार, स्वास्थ्य और विकास पर निगाह रखने में सहायता मिलती है। प्राणी उद्यान में संचालित वर्कशॉपों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के कारण संरक्षित प्रजनन का लक्ष्य हासिल करने में भी कामयाबी मिली है। यहाँ की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है–रेड पांडा प्रोजेक्ट की सफलता जो प्राणी उद्यान ने यहीं पर प्रजनित [[लाल रंग]] वाले पांडों को वन में छोड़कर हासिल किया है। यह वास्तव में संरक्षित प्रजनन की लक्ष्य प्राप्ति है।
यहाँ पर कार्यरत कर्मचारिगण और रखवाले वैज्ञानिक पद्धति द्वारा प्रशिक्षित हैं। जिससे इन्हें जन्तुओं के व्यवहार, स्वास्थ्य और विकास पर निगाह रखने में सहायता मिलती है। प्राणी उद्यान में संचालित वर्कशॉपों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के कारण संरक्षित प्रजनन का लक्ष्य हासिल करने में भी कामयाबी मिली है। यहाँ की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है–रेड पांडा प्रोजेक्ट की सफलता जो प्राणी उद्यान ने यहीं पर प्रजनित [[लाल रंग]] वाले पांडों को वन में छोड़कर हासिल किया है। यह वास्तव में संरक्षित प्रजनन की लक्ष्य प्राप्ति है।
==आदर्श भ्रमण स्थल==
==आदर्श भ्रमण स्थल==
'स्नो लेपर्ड' ([[तेंदुआ]]), तिब्बतन वुल्फ़ ([[भेड़िया]]) और ऊँचाई पर रहने वाली अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए चल रही अन्य परियोजनाएँ भी ठीक इसी प्रकार अच्छा कार्य कर रही हैं। पूर्वी हिमालयी संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण व सुरक्षा के लिए प्राणी उद्यान और मत्स्यघर विश्व संगठन की अनुदानित सदस्यता से भी इस प्राणी उद्यान के मानित लक्ष्यों को पूरा करने में व्यापक मदद मिलने की उम्मीद है। विभिन्न प्राणियों के लिए प्राकृतिक परिवेश से युक्त विस्तृत और अत्यन्त साफ़-सुथरे उद्यान और विलुप्तप्राय हिमालयी प्रजातियों को देखने और जानने की दृष्टि से यह जुलॉजिकल पार्क पूरे विश्व के सैलानियों के लिए भ्रमण योग्य एक आदर्श स्थल है।
'स्नो लेपर्ड' ([[तेंदुआ]]), तिब्बतन वुल्फ़ ([[भेड़िया]]) और ऊँचाई पर रहने वाली अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए चल रही अन्य परियोजनाएँ भी ठीक इसी प्रकार अच्छा कार्य कर रही हैं। पूर्वी हिमालयी संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण व सुरक्षा के लिए प्राणी उद्यान और मत्स्यघर विश्व संगठन की अनुदानित सदस्यता से भी इस प्राणी उद्यान के मानित लक्ष्यों को पूरा करने में व्यापक मदद मिलने की उम्मीद है। विभिन्न प्राणियों के लिए प्राकृतिक परिवेश से युक्त विस्तृत और अत्यन्त साफ़-सुथरे उद्यान और विलुप्तप्राय हिमालयी प्रजातियों को देखने और जानने की दृष्टि से यह जुलॉजिकल पार्क पूरे विश्व के सैलानियों के लिए भ्रमण योग्य एक आदर्श स्थल है।

Latest revision as of 13:46, 9 April 2012

पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क दार्जिलिंग का अनूठा उद्यान है। यह उद्यान 'जवाहर पर्वत' पर स्थित है। यह उद्यान विशेष रूप से पश्चिम बंगाल की पूर्व राज्यपाल स्व. श्रीमती पद्मजा नायडु को समर्पित है। हिमालयी पारिस्थितिकी के संरक्षण के महत्व को पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोगों तक पहुँचाने में भी इस उद्यान की ख़ास पहल है। पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क में 'रेड पांडा प्रोजेक्ट' को भारी सफलता प्राप्त हुई है। यह जुलॉजिकल पार्क पूरे विश्व के सैलानियों के लिए भ्रमण योग्य एक आदर्श स्थल है।

स्थापना

पूर्व में हिमालयन जुलॉजिकल पार्क के नाम से प्रसिद्ध 'पद्मजा नायडु हिमालयन जुलॉजिकल पार्क' कंचनजंघा पर्वत की शानदार पृष्ठभूमि के सामने जवाहर पर्वत पर 7000 फीट (2133.5 मी.) की ऊँचाई पर स्थित एक अनूठा प्राणी उद्यान (चिड़ियाघर) है। जिसकी स्थापना 14 अगस्त सन् 1958 को हुई थी। सन् 1975 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने हिमालयन जुलॉजिकल पार्क को पश्चिम बंगाल की पूर्व राज्यपाल स्व. श्रीमती पद्मजा नायडु की याद में समर्पित किया था, जिसके बाद इस पार्क का नाम बदल कर 'पद्मजा नायडु हिमालयन जुलॉजिकल पार्क' हो गया।

सर्वाधिक ऊँचा उद्यान

67.65 एकड़ क्षेत्रफल वाला यह प्राणी उद्यान यद्यपि छोटे प्राणी उद्यानों की श्रेणी में आता है, परन्तु ऊँचाई पर स्थित प्राणी उद्यानों में यह देश का सबसे बड़ा और विश्व का सबसे ऊँचा प्राणी उद्यान है। इस प्राणी उद्यान की स्थापना अत्यन्त कम ख़र्च में रोमांच, ऊर्जा और स्फुर्ति से भरपूर सुखद पल गुज़ारने के लिए भी की गई। हिमालयी पारिस्थितिकी के संरक्षण के महत्व को पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोगों तक पहुँचाने में भी इसकी ख़ास पहल है।

महत्त्वपूर्ण उपलब्धि

यहाँ पर कार्यरत कर्मचारिगण और रखवाले वैज्ञानिक पद्धति द्वारा प्रशिक्षित हैं। जिससे इन्हें जन्तुओं के व्यवहार, स्वास्थ्य और विकास पर निगाह रखने में सहायता मिलती है। प्राणी उद्यान में संचालित वर्कशॉपों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के कारण संरक्षित प्रजनन का लक्ष्य हासिल करने में भी कामयाबी मिली है। यहाँ की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है–रेड पांडा प्रोजेक्ट की सफलता जो प्राणी उद्यान ने यहीं पर प्रजनित लाल रंग वाले पांडों को वन में छोड़कर हासिल किया है। यह वास्तव में संरक्षित प्रजनन की लक्ष्य प्राप्ति है।

आदर्श भ्रमण स्थल

'स्नो लेपर्ड' (तेंदुआ), तिब्बतन वुल्फ़ (भेड़िया) और ऊँचाई पर रहने वाली अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए चल रही अन्य परियोजनाएँ भी ठीक इसी प्रकार अच्छा कार्य कर रही हैं। पूर्वी हिमालयी संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण व सुरक्षा के लिए प्राणी उद्यान और मत्स्यघर विश्व संगठन की अनुदानित सदस्यता से भी इस प्राणी उद्यान के मानित लक्ष्यों को पूरा करने में व्यापक मदद मिलने की उम्मीद है। विभिन्न प्राणियों के लिए प्राकृतिक परिवेश से युक्त विस्तृत और अत्यन्त साफ़-सुथरे उद्यान और विलुप्तप्राय हिमालयी प्रजातियों को देखने और जानने की दृष्टि से यह जुलॉजिकल पार्क पूरे विश्व के सैलानियों के लिए भ्रमण योग्य एक आदर्श स्थल है।

विभिन्न जीव-जंतु

इस उद्यान में अपने बाड़े में खेलते रेड पांडों के रोचक नज़ारे को देखे बिना आप रह नहीं पायेंगे, वहीं पेड़ों की टहनियों पर लेटे हुए स्नो लैपर्ड्स को बिल्कुल पास से देखकर आप आश्चर्य से भर जायेंगे। हिमालयन टॉहर, नीली भेंड़, कस्तूरी मृग, याक और घोरॉल जैसे उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाने वाले जन्तु भी इन्हीं के समान अत्यन्त सुन्दर और दुर्लभ हैं। इस प्रकार से सैकड़ों हज़ारों लोगों का मनोरंजन करते हुए यह प्राणी उद्यान एक शैक्षिक व शोध संस्थान के रूप में भी कार्य कर रहा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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