लट्ठमार होली: Difference between revisions
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'''लट्ठमार होली''' [[होली]] खेलने का एक तरीक़ा है जो [[ब्रज]] क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज [[रंग|रंगों]] में डूबता है। यहाँ भी सबसे ज्यादा मशहूर है [[बरसाना]] की लट्ठमार होली। बरसाना [[राधा]] का जन्मस्थान है। [[मथुरा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। | '''लट्ठमार होली''' [[होली]] खेलने का एक तरीक़ा है जो [[ब्रज]] क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज [[रंग|रंगों]] में डूबता है। यहाँ भी सबसे ज्यादा मशहूर है [[बरसाना]] की लट्ठमार होली। बरसाना [[राधा]] का जन्मस्थान है। [[मथुरा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। | ||
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इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और [[नन्दगाँव]] के पुरुषों (गोप) जो राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की [[आत्मा]] बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो [[श्रीकृष्ण]] और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ [[गुलाल]] छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रृंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की [[गोपी|गोपियाँ]], बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है। | इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और [[नन्दगाँव]] के पुरुषों (गोप) जो [[राधा रानी मंदिर बरसाना|राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’]] पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की [[आत्मा]] बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो [[श्रीकृष्ण]] और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ [[गुलाल]] छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रृंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की [[गोपी|गोपियाँ]], बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है। | ||
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Revision as of 12:56, 13 March 2013
[[चित्र:Holi Barsana Mathura 1.jpg|thumb|लट्ठमार होली, बरसाना]] लट्ठमार होली होली खेलने का एक तरीक़ा है जो ब्रज क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूबता है। यहाँ भी सबसे ज्यादा मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली। बरसाना राधा का जन्मस्थान है। मथुरा (उत्तर प्रदेश) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है।
मान्यता
इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नन्दगाँव के पुरुषों (गोप) जो राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रृंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की गोपियाँ, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख