अतीत के चलचित्र -महादेवी वर्मा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 30: Line 30:
समय-समय पर जिन व्यक्तियों से सम्पर्क ने मेरे चिन्तन की दिशा और संवेदन को गति दी है, उनके संस्मरणों का श्रेय जिसे मिलना चाहिए उसके सम्बन्ध में मैं कुछ विशेष नहीं बता सकती। [[कहानी]] एक युग पुरानी, पर करुणा से भीगी है। मेरे एक परिचित परिवार में स्वामिनी ने अपने एक वृद्ध सेवक को किसी तुच्छ-से अपराध पर, निर्वासन का दण्ड दे डाला और फिर उसका अहंकार, उस अकारण दण्ड के लिए असंख्य बार माँगी गयी क्षमा का दान भी न दे सका।<br />
समय-समय पर जिन व्यक्तियों से सम्पर्क ने मेरे चिन्तन की दिशा और संवेदन को गति दी है, उनके संस्मरणों का श्रेय जिसे मिलना चाहिए उसके सम्बन्ध में मैं कुछ विशेष नहीं बता सकती। [[कहानी]] एक युग पुरानी, पर करुणा से भीगी है। मेरे एक परिचित परिवार में स्वामिनी ने अपने एक वृद्ध सेवक को किसी तुच्छ-से अपराध पर, निर्वासन का दण्ड दे डाला और फिर उसका अहंकार, उस अकारण दण्ड के लिए असंख्य बार माँगी गयी क्षमा का दान भी न दे सका।<br />
ऐसी स्थिति में वह दरिद्र, पर स्नेह में समृद्ध बूढ़ा, कभी गेंदे के मुरझाए हुए दो फूल, कभी हथेली की गर्मी से पसीजे हुए चार बताशे और कभी मिट्टी का एक रंगहीन खिलौना लेकर अपने नन्हें प्रभुओं की प्रतीक्षा में पुल पर बैठा रहता था। नये नौकर के साथ घूमने जाते हुए बालकों को जब वह अपने तुच्छ उपहार देकर लौटता, तब उसकी आंखें गीली हो जाती थीं। सन् 30 में उसी भृत्य को देखकर मुझे अपना बचपन और उसे अपनी ममता के घेरे हुए रामा इस तरह स्मरण आये कि अतीत की अधूरी कथा लिखने के लिए मन व्याकुल हो उठा। फिर धीरे-धारे रामा का परिवार बढ़ता गया और अतीत-चित्रों में वर्तमान के चित्र भी सम्मिलित होते गये। उद्देश्य केवल यही था कि जब समय अपनी तूलिका फेर कर इन अतीत-चित्रों की चमक मिटा दे, तब इन संस्मरणें के धुँधले आलोक में मैं उसे फिर पहचान सकूँ।
ऐसी स्थिति में वह दरिद्र, पर स्नेह में समृद्ध बूढ़ा, कभी गेंदे के मुरझाए हुए दो फूल, कभी हथेली की गर्मी से पसीजे हुए चार बताशे और कभी मिट्टी का एक रंगहीन खिलौना लेकर अपने नन्हें प्रभुओं की प्रतीक्षा में पुल पर बैठा रहता था। नये नौकर के साथ घूमने जाते हुए बालकों को जब वह अपने तुच्छ उपहार देकर लौटता, तब उसकी आंखें गीली हो जाती थीं। सन् 30 में उसी भृत्य को देखकर मुझे अपना बचपन और उसे अपनी ममता के घेरे हुए रामा इस तरह स्मरण आये कि अतीत की अधूरी कथा लिखने के लिए मन व्याकुल हो उठा। फिर धीरे-धारे रामा का परिवार बढ़ता गया और अतीत-चित्रों में वर्तमान के चित्र भी सम्मिलित होते गये। उद्देश्य केवल यही था कि जब समय अपनी तूलिका फेर कर इन अतीत-चित्रों की चमक मिटा दे, तब इन संस्मरणें के धुँधले आलोक में मैं उसे फिर पहचान सकूँ।
इनके प्रकाशन के सम्बन्ध में मैंने कभी कुछ सोचा ही नहीं। चिन्तन की प्रत्येक उलझन के हर एक स्पन्दन के साथ छापेखाने का सुरम्य चित्र मेरे सामने नहीं आता। इसके अतिरिक्त इन संस्मरणों के आधार प्रदर्शनी की वस्तु न होकर मेरी अक्षय ममता के पात्र रहे हैं। उन्हें दूसरों से आदर मिल सकेगा, इसकी परीक्षा से प्रतीक्षा रुचिकर जान पड़ी। ---''''[[महादेवी वर्मा]]'''
इनके प्रकाशन के सम्बन्ध में मैंने कभी कुछ सोचा ही नहीं। चिन्तन की प्रत्येक उलझन के हर एक स्पन्दन के साथ छापेखाने का सुरम्य चित्र मेरे सामने नहीं आता। इसके अतिरिक्त इन संस्मरणों के आधार प्रदर्शनी की वस्तु न होकर मेरी अक्षय ममता के पात्र रहे हैं। उन्हें दूसरों से आदर मिल सकेगा, इसकी परीक्षा से प्रतीक्षा रुचिकर जान पड़ी।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=6678 |title=अतीत के चल-चित्र|accessmonthday=31 मार्च |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language= हिंदी}} </ref>---''''[[महादेवी वर्मा]]'''





Revision as of 13:57, 31 March 2013

अतीत के चलचित्र -महादेवी वर्मा
कवि महादेवी वर्मा
मूल शीर्षक अतीत के चलचित्र
प्रकाशक राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली
प्रकाशन तिथि 1941 (पहला संस्करण)
ISBN 81-7119-099-5
देश भारत
पृष्ठ: 147
भाषा हिंदी
शैली रेखाचित्र

अतीत के चलचित्र महादेवी वर्मा द्वारा रचित एक रेखाचित्र है। इसमें लेखिका हमारा परिचय रामा, भाभी, बिन्दा, सबिया, बिट्टो, बालिका माँ, घीसा, अभागी स्त्री, अलोपी, बबलू तथा अलोपा इन ग्यारह चरित्रों से करवाती हैं। सभी रेखा-चित्रों को उन्होंने अपने जीवन से ही लिया है, इसीलिए इनमें उनके अपने जीवन की विविध घटनाओं तथा चरित्र के विभिन्न पहलुओं का प्रत्यारोपण अनायास ही हुआ है। उन्होंने अनुभूत सत्यों को जस-का-तस अंकित किया है।

चरित्र चित्रण

महादेवी वर्मा के रेखाचित्रों की यह विशेषता भी है कि उनमें चरित्र चित्रण का तत्व प्रमुख रहा है और कथ्य उसी का एक हिस्सा मात्र है। इनमें गंभीर लोक दर्शन का उद्घाटन होता चलता है, जो हमारे जीवन की सांस्कृतिक धारा की ओर इंगित करता है। 'अतीत के चलचित्र' में सेवक 'रामा' की वात्सल्यपूर्ण सेवा, भंगिन 'सबिया' का पति-परायणता और सहनशीलता, 'घीसा' की निश्छल गुरुभक्ति, साग-भाजी बेचने वाले अंधे 'अलोपी' का सरल व्यक्तित्व, कुम्हार 'बदलू' व 'रधिया' का सरल दांपत्य प्रेम तथा पहाड़ की रमणी 'लछमा' का महादेवी वर्मा के प्रति अनुपम प्रेम, यह सब प्रसंग महादेवी वर्मा के चित्रण की अकूत क्षमता का परिचय देते हैं।

पुस्तकांश

समय-समय पर जिन व्यक्तियों से सम्पर्क ने मेरे चिन्तन की दिशा और संवेदन को गति दी है, उनके संस्मरणों का श्रेय जिसे मिलना चाहिए उसके सम्बन्ध में मैं कुछ विशेष नहीं बता सकती। कहानी एक युग पुरानी, पर करुणा से भीगी है। मेरे एक परिचित परिवार में स्वामिनी ने अपने एक वृद्ध सेवक को किसी तुच्छ-से अपराध पर, निर्वासन का दण्ड दे डाला और फिर उसका अहंकार, उस अकारण दण्ड के लिए असंख्य बार माँगी गयी क्षमा का दान भी न दे सका।
ऐसी स्थिति में वह दरिद्र, पर स्नेह में समृद्ध बूढ़ा, कभी गेंदे के मुरझाए हुए दो फूल, कभी हथेली की गर्मी से पसीजे हुए चार बताशे और कभी मिट्टी का एक रंगहीन खिलौना लेकर अपने नन्हें प्रभुओं की प्रतीक्षा में पुल पर बैठा रहता था। नये नौकर के साथ घूमने जाते हुए बालकों को जब वह अपने तुच्छ उपहार देकर लौटता, तब उसकी आंखें गीली हो जाती थीं। सन् 30 में उसी भृत्य को देखकर मुझे अपना बचपन और उसे अपनी ममता के घेरे हुए रामा इस तरह स्मरण आये कि अतीत की अधूरी कथा लिखने के लिए मन व्याकुल हो उठा। फिर धीरे-धारे रामा का परिवार बढ़ता गया और अतीत-चित्रों में वर्तमान के चित्र भी सम्मिलित होते गये। उद्देश्य केवल यही था कि जब समय अपनी तूलिका फेर कर इन अतीत-चित्रों की चमक मिटा दे, तब इन संस्मरणें के धुँधले आलोक में मैं उसे फिर पहचान सकूँ। इनके प्रकाशन के सम्बन्ध में मैंने कभी कुछ सोचा ही नहीं। चिन्तन की प्रत्येक उलझन के हर एक स्पन्दन के साथ छापेखाने का सुरम्य चित्र मेरे सामने नहीं आता। इसके अतिरिक्त इन संस्मरणों के आधार प्रदर्शनी की वस्तु न होकर मेरी अक्षय ममता के पात्र रहे हैं। उन्हें दूसरों से आदर मिल सकेगा, इसकी परीक्षा से प्रतीक्षा रुचिकर जान पड़ी।[1]---'महादेवी वर्मा


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अतीत के चल-चित्र (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 31 मार्च, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख